Moral stories in hindi : दस बजने को आये और सगुना की बच्ची का अभी तक कोई पता नहीं। महारानी.,मेरा फ़ोन भी नहीं उठा रही है..ज़रूर … इधर-उधर काम करके पैसा बना रही होगी।।आज आये तो सही, फिर खबर लेती हूँ..।” अपनी कामवाली पर गुस्से-से भुनभुनाती रजनी बार-बार घड़ी की तरफ़ देखती जा रही थी कि तभी काॅलबेल बजी तो उसने दौड़कर दरवाज़ा खोला।पसीने से लथपथ सगुना खड़ी थी।
” दीदी, वो क्या है….।”सगुना ने कहना चाहा लेकिन रजनी उस पर फट पड़ी,” आज तो तेरा कोई बहाना नहीं सुनूँगी…सब समझती हूँ, तुम छोटे लोग एक नंबर के लालची होते हो।तुम लोगों का कितना भी कर दो लेकिन कभी अपने नहीं होगे,नमक-हराम कहीं…।” कहते-कहते वह रुक गई जब बेटे और पति के माथे और हाथ पर पट्टियाँ बँधी देखी।वे दोनों सगुना के पीछे-पीछे ही आयें थें।
उसके मुँह से चीख निकल पड़ी, ” अरे! ये सब कैसे हुआ…आप तो स्कूल जा रहें थें.., अरी सगुना, तू खड़ी-खड़ी क्या देख रही है, जा, फ़्रीज़र से बर्फ़ निकालकर ला…और सुन, गीजर से गरम पानी भी ले आना… कितना खून बह गया है।”कहकर वह बेटे को गोद में बिठाकर हाथ पर लगे रक्त को पोंछते हुए पूछने लगी कि ये सब कैसे हुआ?
रजनी के पति ने बताया कि हम घर से निकले ही थें कि स्कूटी का पिछला पहिया पंचर हो गया।स्कूटी को मैकेनिक के हवाले करके हम ऑटो का इंतज़ार कर रहें थें कि तेजी से आई एक बाइक हमें टक्कर मारती निकल गई।उसी समय सगुना यहाँ आ रही थी, हमें सड़क पर पड़े देखी तो दौड़कर आई, एक ऑटो में बिठाकर हमें हॉस्पीटल ले गई।डाॅक्टर तो एक्सीडेंट केस कहकर हाथ नहीं लगा रहें थें तब तुम्हारी सगुना तो उनसे भिड़ गई,बोली,” अब कानून है कि पहले इलाज फिर पुलिस-जाँच।” सच कहता हूँ रजनी,उस वक्त सगुना न होती तो न जाने क्या…।” इतने में सगुना बर्फ़ की थैली लेकर आ गई और उसे देती हुई बोली” दीदी, लीजिए बर्फ़…,साहब जी को घुटने में ज़्यादा चोट लगी है।आप..।”
रजनी सगुना का हाथ पकड़कर बोली,”सगुना,मुझे माफ़ कर दे।तूने इनकी जान बचाई और मैंने थैंक्स कहने की बजाए तुझे खूब खरी-खोटी सुना दिया।तेरा एहसान मैं कैसे…।” कहते हुए वह रो पड़ी।
सगुना उसके आँसुओं को पोंछते हुए बोली,” नहीं दीदी,एहसान कैसा? ऐसे ही एक दिन मेरा आदमी भी बेटे को स्कूल छोड़ने जा रहा था,ट्रक ने टक्कर मार दी,किसी ने मदद नहीं की दीदी,बहुत खून बह गया और मेरे जाते-जाते तो…दीदी, सब खत्म।आपके मुन्ने में ही हम अपने बबलू को देख लेते हैं।अब बूढ़े सास-ससुर के खातिर काम करने निकली तो रिश्तेदारों से लेकर मुहल्ले वालों ने क्या कुछ नहीं सुनाया दीदी।आपने तो हमें बहुत प्यार दिया है ,फिर आपकी बातों का क्या…”कहते हुए वह भावुक हो गई।मुस्कुराते हुए वह रजनी के बेटे को पुचकारने लगी,” अभी भी दर्द हो रहा है मेरे मुन्ने को…।”
रजनी उसे अपलक देखती रह गई।ये छोटे लोग बड़ा काम करके भी जताते नहीं और हम बड़े लोग….।आज तो वह स्वयं को सगुना के सामने बहुत छोटा महसूस कर रही थी।
विभा गुप्ता
# खरी-खोटी सुनाना स्वरचित