hindi Stories : भैय्या, बड़ो की गलतियों की सजा मुझे क्यूँ देते हो? नीचे कार खड़ी है, आपको मेरी शादी में चलना ही होगा।
एक बात बताओ विक्की, चाचा ने पिताजी को आमंत्रण तक नही दिया,क्या मैं अपने पिता से भी बड़ा हो गया हूँ?मैं कैसे तुम्हारी शादी में सम्मलित हो सकता हूँ?
रमेश एवं सुरेश दो भाई थे।दोनो की आयु में लगभग 20 वर्ष का अंतर था।सुरेश का लालन पालन एक प्रकार से बड़े भाई रमेश ने ही किया था।सुरेश के व्यापार जमाने से लेकर उसके मकान तक बनवाने में रमेश ने ही आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग प्रदान किया था। सुरेश का एकलौता बेटा ही विक्की था।समय का परिवर्तन और शायद आज के चलन ने सुरेश के मन मे अपने पितातुल्य बड़े भाई के प्रति ही ईर्ष्या का भाव भर दिया।बड़े भाई ने किस प्रकार अपने छोटे भाई सुरेश को अपने पुत्र समान समझ कर ही पालन किया,यह सब सुरेश के लिये गौण हो चुका था।
अचानक ही पिता की वृद्धावस्था में मौत हुई तो अंतिम संस्कार में स्नेहवश रमेश ने सुरेश को ही दाग(कपाल क्रिया) लगाने को बोल दिया।सुरेश ने ही कपाल क्रिया पूरी की।लेकिन बाद में सुरेश ने अपने बड़े भाई रमेश को आरोपित कर दिया कि मुझसे कपाल क्रिया इसलिये कराई गई कि जिससे मैं अपने व्यवसाय से आरिष्टि तक 13 दिनों को वंचित हो जाऊं।
रमेश को यह सुनकर धक्का तो लगा ही और उनकी सोच सुरेश के प्रति बदल गयी।बस वो यह कहकर चुप हो गये कि भाई भले ही दाग तुमने लगाया हो,13 दिन मैं ही हर कर्म करूँगा,तुम निश्चिंत होकर अपने व्यापार पर ध्यान दो।इसका उत्तर भी रमेश को मिल गया कि समाज मे उसे बदनाम करने की चाल है।रमेश का मन पहली बार सुरेश के प्रति वितृष्णा से भर गया।रमेश ने समझ लिया कि सुरेश उसका नही रहा।धीरे धीरे दोनो के बीच संबंध ही समाप्त हो गये।
समय के तो पंख लगे होते है,उड़ान भरी की बीत गया।सुरेश का बेटा विक्की शादी योग्य हो गया था,उसी की शादी होने जा रही थी।विक्की अपने बड़े भाई रमेश के पुत्र सनी का बहुत आदर करता था।अपने पिता सुरेश के स्वभाव के विपरीत वो अपने ताऊ जी से संबंध बनाये रखना चाहता था।अक्सर सनी से मिलने के बहाने वो घर भी आ जाता था।पर अतीत में सुरेश द्वारा दिये जख्म हरे हो जाते। ऊपर से तो कोई कुछ न बोलता पर अंदर ही अंदर सब विक्की पर शक करते कि कही चाचा सुरेश कोई नई चाल तो नही चल रहे।
विक्की जितना पास आने का प्रयास कर रहा था,उसके प्रति शंका के बादल उतने ही घनेरे हो जाते।यह बात और रमेश के परिवार में पुख्ता हो गयी जब सुरेश ने अपने पिता तुल्य बड़े भाई रमेश को विक्की की शादी का कार्ड तक नही दिया।इस बात से अनजान विक्की शादी में चलने के लिये सनी से आग्रह कर रहा था।उसका सोचना था कि सनी भैय्या शायद पुरानी बातों के कारण शादी में नही चल रहे।उसे ये ज्ञात ही नही था कि उसके ताऊ जी को कार्ड तक भी नही दिया गया है।
सनी की शादी में न चलने की दो टूक सुनकर विक्की चुपचाप वहां से चला आया।विक्की ने पहली बार अपने पिता सुरेश से स्पष्ट रूप से कह दिया कि पापा मैं भी बड़ा हो गया हूँ सब बात खूब समझता हूं,पहले से लेकर अब तक सब गलतियां आपकी रही है।ताऊ जी ने तो आपको अपने बेटे की तरह पाला था,और आप ही उनके हमेशा सामने आ गये, मुझे आप पर शर्म आती है।साफ सुन ले मैं बिना ताऊ जी के आशीर्वाद के शादी ही नही करूँगा।
अपने खुद के बेटे ने आज सुरेश को आइना दिखा दिया था।अपना विद्रूप चेहरा देख सुरेश को भी ग्लानि महसूस होने लगी।पर बड़े भाई के पास किस मुँह से जाये, ये धर्मसंकट सामने था।विक्की ने कहा पापा प्रयाश्चित का यही अवसर है, झिझके नही,ताऊ जी के पास चले।
सुरेश अपने बेटे विक्की के साथ बड़े भाई के घर ऊहापोह की स्थिति में पहुंच तो गया,पर मन मे संशय था कि भाई से नजरे कैसे मिलाउगा,पता नही भाई माफ करेंगे या नही?बाहर बरामदे में ही रमेश मिल गये, सुरेश को देख अतिरेक में वही से चिल्लाकर बोले अरे सनी की माँ जल्दी से बाहर आ,देख तो अपना सुरेश लौट आया है।कितना इंतजार कराया है इसने?दरवाजे पर आयी रमेश की पत्नी अपने आँचल से अपनी नम आंखों को पोंछ रही थी।दृश्य ही ऐसा था दोनो भाई गले से लगे अपने आंसुओं से एक दूसरे के कंधे भीगो रहे थे।बोल कोई नही रहा था, पर दोनो के आंसू तो कहानी बयां कर ही रहे थे।सनी विक्की का हाथ पकड़ घर के अंदर ले जा रहा था, पूरे अधिकार के साथ।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
स्वरचित,अप्रकाशित
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