पराए का साथ अपनों से कही बेहतर – रश्मि प्रकाश : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : घर में घुसते ही निकुंज की नजर अपनी बेटी को खोज रही थी…. दो महीने का बेटा पालने में लेटा हुआ था और राशि रसोई में जल्दीजल्दी हाथ चला रही थी ताकि रात का खाना बना कर बेटी को खिला सके।

“ राशि दीया कहाँ है … जब घर आया दरवाज़ा भी लॉक नहीं था कही वो सीढ़ियों से उपर या नीचे उतर कर तो नहीं चली गई…. औरपता नहीं तुम्हारा ध्यान कहाँ रहता है…तुम एक बार अड़ोस पड़ोस में पता करो तब तक दिव्य को मैं सँभालता हूँ ।” निकुंज थोड़े तल्ख़स्वर में बोला

“ आए नहीं की शुरू हो गए… सवा तीन साल की बेटी और ये दो महीने का बेटा अकेले कैसे सँभालती हूँ मैं ही जानती हूँ…. कोई आकरसँभाल देता तो कितना अच्छा होता पर मुझे करने वाला कोई हो तो ना…।” राशि दीया कहाँ है बिना बताए निकुंज की बात सुन बिफरपड़ी 

“ अपनी मम्मी को क्यों नहीं बुला लेती हो… वो रहती तो तुम्हारी मदद भी हो जाती..।”निकुंज ग़ुस्से में बोला 

“ अब वो अपना घर भी ना देखे…. दीया के वक़्त भी उन्होंने ही सब सँभाला और तो और दिव्य के होने से पहले भी वही आ कर रही अभीपन्द्रह दिन उन्हें गए हुए ही हुए हैं फिर बुला लूँ….. वैसे भी छोटे भाई की तबीयत ख़राब है… उनका वहाँ रहना ज़्यादा ज़रूरी है….. आपअपनी माँ से क्यों नहीं कहते कभी…. क्या उनकी ज़िम्मेदारी बड़े बेटे के बच्चों को ही सँभालने की है क्योंकि उनकी बड़ी बहू नौकरी करतीहै….. वैसे भी मैं तो उन्हें खुद से कभी आने नहीं बोल सकती ….. दिव्य के जन्म पर आई और सप्ताह भर में चल दी…. मैंने और माँ नेकितना कहा रूकने को दो टूक शब्दों में कह दी …. क्या करूँ दो हिस्सा कर लू…. फिर मैं तो किसी मुँह से उन्हें रोकने की हिमाक़त नाकर सकी ….. उन्हें अपने उन पोते पोतियों से ज़्यादा लगाव है तो वही सही।” कहते हुए राशि दिव्य को गोद में उठाकर बाहर की ओरनिकल गई 

“ मैं आ रही हूँ आप कपड़े बदल लीजिए ।”कहते हुए राशि चल दी 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मेरी बहुओं ने मुझे कहाँ फँसाकर छोड़ दिया है? – गीतू महाजन

जब लौट कर आई तो दीया साथ थी और उसके हाथ में उसके खिलौने भी थे वो चहक रही थी ।

“ आ गई मेरी बेटी….।” निकुंज के कहते दीया पापा से चिपक गई

“बताओ  तो सही दीया कहाँ थी ….सारी बकवास कर ली पर ये नहीं बताया दीया कहाँ थी।” निकुंज ने पूछा 



“ जब सब तरफ़ दरवाज़े बंद हो जाते हैं ना निकुंज तब कोई ना कोई दरवाज़ा खुल ही जाता है….. मम्मी जिस दिन जा रही थी सामनेवाली दीदी भी दरवाज़े पर खड़ी थी…. वो मम्मी को रोता देख पूछी बेटी को छोड़कर जा रही इसलिए रो रही है….. मम्मी बोली हाँ… इतनेछोटे बच्चों के साथ ये कैसे सब करेंगी वही सोच रही हूँ…. फिर बेटी के पास कितने दिन रह सकती हूँ ….  वहाँ घर पर भी सब अस्तव्यस्त हो जाता है ….. 

कैसे मैनेज करती हूँ मैं ही जानती हूँ ….. एक ही तो बेटी है मेरी….. कैसे उसके लिए कुछ नहीं करूँ…. अभी बेटे  पढ़ाई ही कर रहे …. हॉस्टल में रहते हैं तो आ जाती हूँ इसे सँभालने पर अभी सब घर आए हुए हैं….. खुद ही खाना पकाना कर रहे हैं परबोल रहे कुछ दिनों के लिए आ जाओ…. इधर बेटी उधर बेटे…. माँ के लिए तो दोनों को देखना पड़ता है…. समधन जी ही कुछ दिन रूकजाती तो राशि को मदद मिल जाती पर वो भी ना रूकी …. अब इसकी परेशानी का सोच कर परेशान हूँ….

दामाद जी छुट्टी लेकर तो घरमें रहेंगे नहीं …… तब दीदी ने आगे बढ़कर मम्मी से कहा था….. आप आराम से जा कर बेटों को देखिए….. यहाँ आपकी बेटी के पास मैंहूँ…. मैं दोनों बच्चों को देख लूँगी….. आप तो जानती ही है मेरे बच्चे बड़े है हॉस्टल में रहते हैं घर में हम पति पत्नी ही रहते… ये भी जल्दीघर आ जाते है और तो और बच्चों से उन्हें बड़ा लगाव है…. बस आप आराम से जाइए …. तब से वो लोग दीया और दिव्य को सँभालनेलगे हैं….

जब मुझे दीया का कुछ काम करना होता और दिव्य रोता रहता तो वो दिव्य को ले जाती उसे अपने घर पर रखती …. दूध कीबोतल भी ले जाती …डाइपर भी …उसका शूशू पोटी सब साफ भी कर देती …. मैं मना भी करती तो हँसते हुए कहते हमारे बच्चे नहीं थेक्या…. तुम चिन्ता मत करो…. आज दीया रो रही थी उसे गोद में रहना था…. दीदी के पति उसका रोना सुन दीदी को भेजकर बुलालिए….

उसे लेकर छतपर घुमा रहे थे….. तब जाकर वो चुप हुई ….. फिर दीदी ने कहा तुम डिनर बना कर रख लो…. दिव्य तब सो रहाथा….. निकुंज पन्द्रह दिनों से उन लोगों की बदौलत मैं थकी नहीं हूँ…. दीदी तो यहाँ तक कहकर दोनों को ले जाती राशि तुम कुछ देरआराम कर लो…. थक जाती होगी ….. कितनी बार मुझे घर बुला कर ज़बरदस्ती चाय पिलाती हैं…..  कहती है अकेले बच्चों कोसँभालना बहुत मुश्किल है ये बात मैं अच्छी तरह जानती हूँ तभी तो तुम्हें समझ पा रही हूँ…..

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती है, आपकी बेटी को बहु बनाना। – चाँदनी झा  

छोटी बहन जैसी हो …. इतना तो कर हीसकती तुम्हारे लिए……निकुंज  वो तो गैर है ना….   पराए है पर देखो अपनों से तो ज़्यादा है मेरे लिए…।” राशि निकुंज को सब सुना दी

राशि की सासु माँ कभी उसके बच्चों को सँभालने को नहीं आई ….. ना राशि हिम्मत जुटा सकी जब अपने होकर दर्द या तकलीफ़ नहींसमझ सकेतो ग़ैर से क्या उम्मीद करती पर जब सामने वाले पड़ोसी ने उसके लिए जो किया वो ज़िन्दगी भर उनकी एहसानमंद होगई…..अब तो उसकी मम्मी भी आती तब भी वो बच्चों को अपने घर लेकर जाती …. एक दिन दीदी ने कहा,“ राशि तुम्हारे भाई साहबकह रहे थे राशि को धन्यवाद कहना उसने हमारे बच्चों के जाने के बाद के सूनेपन को इन मासूमों के साथ समय गुज़ारने का मौक़ा देकरहमें धन्य कर दिया ।”

तब राशि ने अपनी दीदी से कहा,“ पता है दीदी मेरी ना कोई बड़ी बहन है ना छोटी आपके रूप में बड़ी बहन मिल गई….. हमारा तबादलाकही भी हो जाए आप हमेशा मेरे ज़ेहन में रहेंगी ।” 

समय गुज़रता गया राशि के कई तबादले हुए पर ना फिर वो दीदी मिली ना कोई वैसे अपने लोग जो पराए हो कर भी अपने से लगे….  “सच्ची मिस यू लतिका दीदी ” राशि अक्सर भगवान जी से कहती हैं क्योंकि अब वो इस दुनिया से जा चुकी है ।

दोस्तों ये  सच्ची बात है जिसे बस मैंने कहानी के रूप में आपके सामने प्रस्तुत किया है…….।

मेरी रचना पसंद आए तो कृपया उसे लाइक करें और कमेंट्स करें।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#पराए_रिश्ते_अपना _सा_लगे

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!