लल्लू लाल चले ससुराल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : नाम था उसका लल्लू लाल, पर वह सचमुच में लल्लू नहीं था। देखने में एकदम साधारण, लेकिन व्यवहार में उत्तम। जब लड़की देखने गया, तब लड़की के घर वालों को कुछ जमा नहीं, उन्हें लगा कि हमारी बेटी सुषमा तो इसे देखते ही विवाह के लिए मना कर देगी। 

      दोनों को थोड़ी देर अकेले में बात करने का मौका दिया गया। उस बातचीत के बाद सुषमा ने तुरंत हां कर दी। घरवाले बेचारे हैरान-परेशान। तब सुषमा ने उन्हें बताया,”लल्लू लाल जी का व्यवहार बहुत अच्छा है। महिलाओं का बहुत सम्मान करते हैं और हंसाते भी बहुत हैं, उनका सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत अच्छा है। बहुत अच्छे नेचर के हैं हां, देखने में लल्लू लगते हैं पर है नहीं।” 

चलिए साहब, विवाह का दिन भी आ गया। लल्लू लाल ने सुषमा के साथ सिर्फ सवा रूपया और नारियल स्वीकार किया, बाकी कोई भी सामान लेने से साफ इंकार कर दिया और बोले-“हम इन सब के खिलाफ हैं।”अब तो भैया! हर तरफ लल्लू लाल की तारीफों के पुल बंध गए। 

          सुषमा ससुराल आ कर बेहद खुश थी। पग फेरे की रस्म के लिए लल्लू लाल पहुंचे ससुराल। वहां  सुषमा की सहेलियों और उसकी छोटी बहन ने उन्हें घेर लिया और जीजू जीजू करके उनके पीछे पड़ गई। जीजू ये खाइए, जीजू वो खाइए। अरे अरे लल्लू लाल जी तो व्यंजन खा खाकर थक गए। पेट फटने लगा तो बोले-“अरे साली साहिबा, एक हाजमे की गोली तो दीजिए, कहीं रात में 

ऐसा बम न फटे कि सब डर जाए और हम गैस के गुब्बारे की तरह उड़ जाए।” 

साली साहिबा हंसते-हंसते हाजमे की गोली ले आई और बोली-“जीजा जी, दीदी ने बताया कि आप बहुत अच्छे जोक सुनाते हैं, कोई जोक सुनाइए ना।” 

     लल्लू लाल-“एक बार एक दामाद अपनी ससुराल गया और 2 दिन वहां रह गया। सास ने उसे दिन के भोजन में पालक पनीर खिलाया, रात में पालक का रायता खिलाया। अगले दिन पालक कोफ्ता और रात में पालक के पकोड़े। 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

  नेकी का बदला – लतिका श्रीवास्तव 

तीसरे दिन दामाद अपनी सासू मां से बोला-“सासू मां, पालक का खेत कहां पर है बता दीजिए, मैं खुद ही जाकर चर लूंगा।” 

सब बहुत जोर से हंस पड़े और लल्लू लाल की सास बोली-“हम समझ गए दामाद जी, आज हमने आपको पालक खिलाई, चिंता मत कीजिए कल नहीं खिलाएंगे।” 

लल्लू लाल-“अरे अरे माताजी, हम आपको थोड़े ही ना कह रहे थे।” 

सासू मां-“हम सब समझते हैं, यह बाल हमने धूप में थोड़े ही  ना सफेद किए हैं।” 

लल्लू लाल-“आपके बाल सफेद है ही कहां माताजी, यह तो चांदी है चांदी।” 

सासू मां-“कुछ भी कहो दामाद जी, आप बातों में है बड़े होशियार, सामने वाले को खुश कर देते हैं। अपने जैसा ही कोई लड़का ढूंढ दीजिए हमारी छुटकी के लिए।” 

लल्लू लाल-“कोशिश करेंगे, वैसे हम इकलौते पीस है दुनिया में, ये तो आप समझ ही लो।” 

सब ठहाके लगाकर हंसने लगे। 

इसी तरह लल्लू लाल जी जब भी ससुराल आते, अपने सास-ससुर और साली के लिए उपहार लाते, हंसते हंसाते सबको  खुश कर जाते। दामादों वाले नखरे बिल्कुल न दिखाते, ना कोई मीन मेख निकालते। बस सम्मान देते और सम्मान पाते। दो-तीन दिन रह कर खुशी-खुशी वापस चले जाते। 

स्वरचित अप्रकाशित 

गीता वाधवानी दिल्ली

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!