मेरा घर : Moral stories in hindi

उच्च श्रेणी का वृद्धाश्रम .. सभी अपने क्रिया कलापों में व्यस्त, समीर जी ..अपने कमरे की बालकनी से बाहर गार्डन की खूबसूरती निहार रहे हैं… ये वृद्धाश्रम  दीन हीन बुजुर्गों का नहीं… अकेलेपन से ग्रस्त लोगों के लिए था, जो काफी महंगा होने के साथ सर्व सर्व सुविधायुक्त भी था!!

सामने खूब हरा भरा गार्डन था.. खुला खुला माहौल, ज्यादातर ऐसे लोग थे.. जिनकी संताने विदेशों में थी,  या अकेले थे,अपने जीवनसाथी को खो चुके थे, विदेश में रहना उन्हें भाता नहीं इसलिए

यहां सबके बीच रहने आ गए!!

समीर भी उन्हीं में से थे, पत्नी काफ़ी पहले साथ छोड़ गई…. एक बेटा है जो विदेश में है, बहू दो बच्चे भी हैं… रिटायरमेंट के बाद.. बेटे के पास गए पर वहां उनका दिल नहीं लगा…. किसी ने इस वीआईपी वृद्धाश्रम के बारे में बताया  तो यहां आ गए!!

यहां उनके हमउम्र काफी लोग थे, महिलाऐं भी थी!! सब एकाकीपन से त्रस्त होकर यहां रह रहे थे!!

सुबह की चाय पीकर समीर गार्डन में टहल रहे थे

अचानक एक कार रुकती देखी… देखा उतरती उम्र की महिला के साथ एक पुरूष भी था…  उम्र से बेटा ही लगा, महिला रोए जा रही थी, बेटा समझाने की कोशिश कर रहा था… समीर उनके समीप पहुंच गए.. वैसे भी सहृदय, सामाजिक थे, महिला को रोते हुए देख द्रवित हो गया उनका मन….

” मैं आपकी कोई सहायता करूं? “

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” नमस्कार अंकल.. ये मेरी मां हैं ” आगे बात काटते हुए समीर बोले ” अच्छा और आप उन्हें यहां छोड़ने आए हैं ? “




” आप गलत मत समझिए … मैं अपनी मां को बहुत प्यार करता हूं, बहुत इज्जत करता हूं, आज जो भी हूं अपनी मां की बदौलत ही हूं “

” बुरा मत मानो बेटा , व्यक्तिगत बातों में दखल दे गया, फिर इन्हें यहां छोड़ने की वजह ” ?

” मां की उम्र अब आराम करने की है, मैं चाहता हूं… अब वो घर गृहस्थी के चक्करों से दूर शांति से जीवन बितायें पर पत्नि इन्हें चैन से रहने नहीं देती.. बच्चे भी उसी की तरह होते जा रहे हैं, इसलिए मैं उन्हें यहां लाया, माना मुझसे दूर रहेंगी पर एक ही शहर है… मिलने आता रहूंगा

मैं मां से बहुत प्यार करता हूं… इन्हें हर तरह से खुश देखना चाहता हूं, मेरी पत्नी का कर्कश व्यवहार इन्हें जीने भी नहीं दे रहा, उसे समझाने की हर कोशिश मेरी विफल हो गई… थककर

मैंने ये कदम उठाया, कहते.. कहते सरल.. यही नाम बताया उसने… आंखें भर आईं उसकी “!!

” मैं समझ सकता हूं आपकी परेशानी… यहां बहुत अच्छा माहौल है, हम सब अपने जीवनसाथी को खो चुके हैं, अकेलापन बर्दाश्त होता नहीं, एक साथ मिले… उसी की तलाश में यहां आ गए “!!

सारी औपचारिकताएं पूरी कर… सरल, जल्दी आने का वायदा कर चला गया!!

आज सबके बीच पहला दिन….सीमा को अजीब सा लग रहा है, पहली बार परिवार के बिना अजनबियों के बीच कुछ अजीब सा महसूस कर रहीं हैं!!

सबसे परिचय हुआ… हर उम्र के लोग हैं, सब अपनी उम्र वालों के साथ एक सामंजस्य स्थापित कर चुके हैं… वो जल्दी घुल मिल नहीं पाती, भावुक हैं, पति के जाने के बाद बेटे को ही देखकर जीती रहीं, बेटा भी दूर हुआ.. ये सहन नहीं हो पा रहा उनसे.. गार्डन में आकर एक बेंच पर बैठ गईं!!




” गुड मॉर्निंग सीमा जी”

अपना नाम सुनकर चौंक गईं, पलटकर देखा तो समीर मुस्कुराते हुए खड़े थे!!

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” आपको यहां अकेले देखा तो आ गया, माफ़ कीजिए… बुरा तो नहीं लगा आपको”!!

” नहीं नहीं … ऐसा कुछ नहीं, गुड मॉर्निंग समीर जी”

” देखिए सीमा जी! अब यहीं रहना है तो अपने को ढाल ही लीजिए इस माहौल में… अच्छी जगह अच्छे लोग, इंतजाम सब अच्छा, सबसे बड़ी बात, हमारे बच्चे हमसे प्यार करते हैं, हमारा ख्याल है उन्हें “!!

” समझती हूं समीर जी… शुरु से परिवार में रही हूं बच्चों में ही दुनिया समेट ली थी मैंनेअपनी,

अपने हाथों से बनाती खिलाती थी …अपने सामने देखती तो थी, पर,यहां कुछ अधूरा सा लगता है, कमी सी लगती है  आंसू

छलछला गए, जिसे पल्लू से उन्होंने पोंछ लिया”!!

समीर उनकी पीड़ा को समझ रहे थे, अक्सर मिलते बातें करते पर सीमा के चेहरे पर खुशी नहीं दिखती!!

एक दिन एक वृद्धा नहीं रही… उस दिन सीमा

बोली  ” मैं ऐसे नहीं जाना चाहती गैरों के बीच “

और फूट फूटकर रो पड़ीं “!!




सीमा का बेटा आता रहता, मां की जरुरत का बहुत ध्यान रखता, समीर से भी खूब बातें करता मां का ध्यान रखने को कहता!!

छह माह हो चुके थे सीमा को यहां आए हुए

पर घर की कमी आज भी उन्हें अंदर से सालती थी, समीर से खुलने लगीं थीं, मन की बातें भी करने लगीं थीं !!

आज़ भी घर परिवार की कमी को लेकर बात छिड़ी तो समीर अचानक बोले….

” आपको अगर एक घर मैं दूं तो आप रहेंगी उसमें”??

” सीमा ने चौंक कर समीर की ओर देखा….. वो पूरी तरह गम्भीर थे”!!

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” मेरे पास घर है सब कुछ है पर साथी नहीं, अकेलेपन से घबराकर मैं यहां आ गया, विदेश में बेटा बहु हैं… पर मुझे वहां रहना नहीं, अकेलेपन का शिकार हम दोनों ही हैं, बगैर किसी सम्बंध के लोग जीने नहीं देंगे…. साफ शब्दों में पूछ रहा हूं “सीमा.. आप मुझसे शादी करेंगी”? !! जवाब देने की कोई जल्दी नहीं, सोचकर बताइए, न भी कहा तो हमारी दोस्ती पर कोई असर नहीं होगा “

कुछ पल तो स्तब्ध सी रह गई सीमा.. कुछ समझ नहीं आया, कई दिनों तक सोचा, बेटा आया तो झिझक के साथ बताया, बेटा खुश हुआ… मां की घुटन कम होगी, पिता का साथ बहुत जल्दी छूटा, मां ने अकेले ही पाला, उन्हें भी खुशियों के साथ जीने का हक है!!

समीर अपने बेटे को अपना निर्णय बता चुके थे

वो भी पिता के लिए खुश था!!

आज खुशी का दिन है दो बेटे अपने माता पिता का हाथ उनके जीवन साथियों के हाथों में थमा रहे हैं… एक नई सुबह उनका इंतजार कर रही है

एक नई रौशनी के साथ!!

समीर का हाथ थामकर सीमा ने घर में प्रवेश किया और भरपूर मुस्कुराहट से समीर को देखा… आज समीर समझे ….वाकई मकान को घर एक पत्नी ही बनाती है, यही उसका स्वर्ग है….

यही उसका जीवन!!

प्रीति सक्सेना

इंदौर

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