Moral stories in hindi : राधिका ट्युशन से आई ही थी कि उसके पापा उसके सिर पर हाथ रख कर उसकी मनपसंद मिठाई का एक टुकड़ा उसे खिलाते हुए कहते हैं,” गुड़िया बैठ हमारे पास, तुझे कुछ बताना है। आज ही तेरे ससुराल वालों ने शादी की तारीख तय कर दी है। अगले महीने ही हमें उनके शहर जाना होगा।”
वो मिठाई का आधा टुकड़ा मुंह से निकाल पापा की बातें ध्यान से सुनती है।
“परिवार वाले बहुत अच्छे हैं, सब मिलजुल कर एक साथ एक ही घर में रहते हैं। चार भाई, दो बहनें हैं। बस सास थोड़ी कड़क स्वभाव की है, पर मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है मेरी गुड्डो रानी वहां अपने स्वभाव से अपनी सास और पूरे परिवार का दिल जीत लेगी। “
“हां गुड़िया के पापा आप ठीक कहते हैं। पढ़ाई-लिखाई सिलाई कढ़ाई और घर के सभी कामों में निपुण हैं अपनी गुड़िया।
कड़क सास से ही ससुराल और संयुक्त परिवार आज भी टिका हुआ है। क्या हुआ थोड़ी सी कड़क हैं और सबके लिए एक रसोई में खाना पकता है।” राधिका की मम्मी बोल ही रही थीं कि तभी लैंड लाइन पर फोन की घंटी बजती।
“हैलो … हाँ स्नेहा बोल कैसे फोन किया?”
राधिका ने पूछा तो स्नेहा बोली…
“यार मेरी मैथ्स की नोटबुक शायद तेरे बैग में चली गई है।”
“ठीक है मैं अभी लेकर आती हूं।”
राधिका ने मम्मी पापा से पूछा तो मम्मी बोली, “जल्दी आ जाना। शाम हो रही है।”
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राधिका को तो वैसे भी कोई बहाना चाहिए था अपनी पक्की सहेली स्नेहा के घर जाने का जहां उसे सब अपने लगते थे। स्नेहा के मम्मी पापा भाई बहन सब उसे बहुत मानते थे।
वहां जाकर जैसे ही स्नेहा ने अपने पापा की बताई उसकी शादी और ससुराल की बात स्नेहा की मम्मी और बहन को बताई, वहीं उसका छोटा भाई जो आठवीं कक्षा में पढ़ता था, अपना विडियो गेम खेलने में मस्त था।राधिका ने जब संयुक्त परिवार और सदस्यों के बारे में बताया। स्नेहा का भाई विडियो गेम को एक तरफ रख अपनी रफ कॉपी उठा कुछ लिखने लगा।
फिर अचानक बोला, “राधिका दीदी आप को नाश्ते में ही साठ रोटी और खाने में डेढ़ से दो किलो चावल, पन्द्रह कटोरी दाल और पन्द्रह प्लेट सब्जी बनानी पड़ेगी अपने ससुराल में।”
सब हैरान हो उसे देख रहे थे।
“अरे मेरे छोटे भाई!! डरती है क्या तेरी दीदी, इतना खाना बनाने से।” राधिका ने बड़े प्यार से उसके सिर पर चपत लगाते हुए कहा।
” वो तो स्नेहा दी तो मेरी दो रोटी भी नहीं बना पाती। जब कभी मम्मी ऑफिस के लिए लेट हो जाती हैं और बड़ी दीदी भी अपने कॉलेज चली जाती है तो स्नेहा दीदी को बोलकर जाती है। आपके चौबीस घंटों में से बारह घंटे तो किचन के काम में ही बीतेंगे अपने ससुराल में। फिर आप जो सरकारी नौकरी के लिए इतनी मेहनत कर रही हो।उसका क्या होगा???..”
राधिका भावुक हो जाती है स्नेहा के भाई की बातें सुनकर और उन पन्नों को ध्यान से देखती है जिस के एक तरफ भाई ने कितने लोग कितनी रोटियां… गुणा भाग जमा सब किया होता है और दूसरी तरफ कार्टून बना कर राधिका को किचन में रोटियां बेलते दिखाया होता है। सरकारी नौकरी लिख कर उसे बड़ा सा क्रौस बना दिया था।
राधिका की आंखें भर आती है स्नेहा के भाई की बातें और उसके बालमन में होती हलचल को जानकर।
“अरे!! छुटके इतना प्यार करता है तू अपनी दीदी से।”
घर आते वक्त उसे लगता है कि स्नेहा का भाई ठीक ही कह रहा है, पापा मम्मी से मैं इस रिश्ते के लिए मना कर देती हूं।
राधिका अपने मां पापा को दुखी भी नहीं करना चाहती थी… बस यह कोई ठोस कारण तो नहीं है कि संयुक्त परिवार में शादी नहीं करेंगी।उसकी भाभी भी तो हमारे परिवार को कितने अच्छे से संभाल रखीं हैं यह सोचकर वो उस रिश्ते के लिए मना नहीं कर पाती।
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महीने भर बाद वो दिन भी आ जाता है जब राधिका शादी के बाद अपने ससुराल जाती है, मन में डर लेकर कहीं उसके सारे सपने बिखर तो नहीं जाएंगे। किचन में सिमट कर ही उसका पूरा जीवन ना बीत जाए जैसे उसने अपनी मां और चाची को देखा।
ससुराल में उसका स्वागत सबने बड़े प्यार से किया। चौथे दिन रसोई छुआई की एक रस्म में उसे अपनी पसंद का कुछ बनाकर सबको खिलाना था।
उसकी ननदों को पता था कि उसे राजमा चावल बहुत पसंद है तो उन्होंने उसके नहाकर पूजा करने के बाद रसोईघर में आने से पहले ही सब इंतजाम करके रखा था। वो हैरान थी यह देखकर कि दोनों ननदों और जेठानियों ने उसकी पूरी मदद की और उसके साथ ही रसोई में रहीं।
सबको राधिका का बनाया खाना बहुत पसंद आया।
अगले ही दिन उसे रेलवे की तरफ से ज्वाइनिंग लेटर आया।वो असमंजस में थी कि ससुराल वालों को कैसे बताए।
तभी उसकी ननद ने …एक खुशखबरी है… खुशखबरी है…कहकर सबको राधिका की नौकरी वाली बता दिया।
जिस सास की और परिवार की डरावनी तस्वीर उसके जेहन में बसी थी आज उन्हें अपने साथ खड़ा देखा।
“सभी सास, ननदें एक समान नहीं होते हैं और ना ही ससुराल कोई भूतिया कोठी।” कहते हुए राधिका की सांस ने उसे गले लगा लिया क्योंकि सास भी तो मां समान होती है जो अपनी बहू के मन के डर को समझ गई थी।
“बस हफ्ते में एक दिन परिवार के नाम का दोगी ना राधिका बिटिया।” जब सास ने यह कहा तो सास और ससुराल का इतना प्रेम देखकर उसकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे
“हां मम्मी जी…”
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बस इतना ही कह पाई थी राधिका।
अगले दिन अपने सपनों को पूरा करने के लिए ट्रेन की खिड़की वाली सीट पर बैठी स्नेहा के भाई की बातें जो उसे महीने भर डराई रखी…. सोचकर मुस्कुरा रही थी।
#ससुराल
कविता झा ‘काव्य’