Moral stories in hindi : कहाँ जा रही हो गरिमा ?? ये सुन वो चौंक गई !! कहीं नहीं दादा जी , बस अपनी सहेली मीना के पास । अच्छा ! तुम्हें लगता है , मैं बूढ़ा हो गया हूँ ! तो इस घर में मेरी कोई हैसियत नहीं है । ये मत भूलो मैं इस घर का मुखिया हूँ ! तुम्हारे बाप का बाप , तो मुझसे ज़्यादा होशियारी ना किया करो ।
नहीं ,दादा जी मैं सच कह रही हूँ , भीतर जाओ और ख़बर दार जो बाहर खेलने गई । अच्छे घर की लड़कियों को शोभा नहीं देता , यूँ लड़कों के साथ खुले में खेलना । तुम्हारे बाप ने बहुत छूट दे रखी है तुम्हें , आने दो आज उसे मैं बात करता हूँ ! घबराई हुई गरिमा चुप-चाप छोटा सा मुँह लिए भीतर चली गई ।
शाम को जब श्याम सिंह जी घर आए तो गरिमा का उतरा हुआ मुँह देख कर बोले ! क्या हुआ आज फिर मैच हार गई क्या ?? जो ये चेहरा यू लटका हुआ हैं….. बिना कोई जवाब दिए गरिमा अंदर चली गई । तभी उसकी माँ बोली —- “अजी आपके बाबू जी आज भी ख़ुद को राजा और हम सब को प्रजा समझते है “।
माना आपके पूर्वजों ने कभी राज किया था । पर आज ना तो वो राजा है ना ही कोई राज्य है । फिर भी हुकुम ऐसे देते है जैसे पत्थर पे लकीर । सुनिए जी , हमारी एक ही बेटी है और वो अगर क्रिकेट खेल कर अपना नाम बनाना चाहती है तो हमे उसे सहयोग करना चाहिए । ठीक है , मैं बाबू जी से बात करता हूँ । तुम शांत हो जाओ …
थोड़ी देर बाद श्याम सिंह जी हाथ में दूध का गिलास लिए अपने बाबू जी के कमरे में जैसे ही दाखिल होता हैं ।।।। तो कानों को चीरती हुई एक आवाज़ आती है….. आ गया हिमायती बन कर , कभी अपनी अक्ल का भी इस्तमाल कर लिया कर ! हमेशा अपनी जोरू के कहे में चलता हैं !
आप क्या कह रहे है बाबू जी ! कौन सी हिमायत , कौन सा कहना ?? अपनी बीवी और बच्ची की बात को सुनना ,समझना उनकी ख़ुशियो का ध्यान रखना कौन सा अपराध है । जो आप मुझे तानो भरी सज़ा सुना रहे है । जैसे आप की ख़िदमत करना आपकी हर ख्वाहिश का ध्यान रखना मेरा अधिकार है । वैसे ही उनके प्रति भी मेरे कुछ अधिकार और कर्तव्य है जो हर पति और पिता का हक़ हैं ।
मुझे मत समझाओ ये अधिकार और कर्तव्य की गाथा मुझे सब पता है । आज कल कितना गलत हो रहा है लड़कियों के साथ ! आए दिन क्या -क्या सुनने को मिलता रहता है और ये सब जानते बूझते कैसे मैं उसे खाई में धकेल दूँ ।
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आप ठीक कह रहे है बाबू जी ! पर क्या…. इस डर के कारण कि कहीं हमारी बच्ची के साथ कुछ ग़लत ना हो जाए ?? उसे हम उसकी हर ख़ुशी से महरूम कर दे ।
अच्छा बाबू जी आप ये बताइए “ अगर आपके कमरे में कोई कॉक्रोच या मच्छर आकर आपको परेशान करे , तो क्या आप अपने कमरे से बाहर चले जायेगे”??
क्यों मैं क्यों जाऊँ ? मेरा कमरा है ! भागेगे तो वो ऐसी दवा छिड़कूँगा कि फिर आने की हिम्मत नहीं करेगें । ऐसे ही बाबू जी ग़लत लोग हर जगह कीड़े की तरह रेंगते रहते है । उनसे डर के हम जीना नहीं छोड़ सकते । बल्कि उनके बीच रहकर ही उनका सामना कर सकते है । इसलिए हमे अपनी बेटी के लिए डर के आगे जीत है का माहौल बनाना हैं । नाकि डर से घबराना है !
तुम ठीक कह रहो हो श्याम ! पर गरिमा मेरी लाड़ली है , उसका बहुत ध्यान रखना । आप चिंता ना करे बाबू जी , बस अपने बेटे पर भरोसा करे और आशीर्वाद दे कि मैं अपने अधिकार के साथ-साथ अपना पिता होने का कर्तव्य भी अच्छे से पूरा कर सँकू । जुग- जुग जीयो बेटा तुमने मेरी आँखें खोल दी ।
अगली सुबह जब गरिमा तैयार हो कर जाने लगी तो, रास्ते में दादा जी को खड़ा देख वो ठहर गई और आँखें झुकाए घबराने लगी । ये देख हरि सिंह जी उसके पास गए और बैट गरिमा के हाथों में थमा के बोले “जाओ बेटा जाओ आँखें झुका के नहीं , उठा के शान से जाओ और अपने दादा का नाम खूब रोशन करो “।
ये सब देख गरिमा अपने दादा के गले लग गई और बोली देखना दादा जी कैसे ईट से ईट बजाती हूँ ।
एक परिवार में रह रहे सभी लोगो को एक दूसरे के प्रति अपने अधिकार और कर्तव्यों का पालन करना चाहिए ।
#अधिकार
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति