Moral stories in hindi : वो कई दिनों से काफ़ी चिन्तित थीं। एक सप्ताह बाद उनके विवाह की पाँचवीं वर्षगाँठ मनाई जा रही थी, उनकी वैभवपूर्ण ससुराल की रीति के अनुसार बहुत भव्य आयोजन की तैयारी हो रही थी, शहर के सभी गणमान्य लोगों को निमंत्रणपत्र जा रहे थे।
सुबह ही उनकी सासुमां मालती जी ने कहा,”नीरा बेटी! ज़रा अपनी भाभी को फ़ोन लगाओ, उन सबको भी न्योता दे दिया जाए।”
“मम्मी जी! कह तो ठीक रही हैं पर इस बार भैय्या भाभी को नहीं बुलाने का सोच रही हूँ! भैय्या का समय थोड़ा गड़बड़ चल रहा है, अपने काम में उन्हें बहुत नुक्सान हुआ है। पूरा परिवार आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रूप से टूटा हुआ है। इस समय छोटी बहन का न्योता उनको बहुत भारी पड़ जाएगा।”
किंचित सोच कर मालती जी बोली,”हाँ सुना तो था हमने भी और दुख भी बहुत हुआ पर ऐसा ऊँच नीच तो जीवन में चलता ही रहता है। ईश्वर चाहेगा तो सब ठीक हो जाएगा , पर न्योता तो जाएगा ही ।”
मालती जी ने उनको सुझाया कि ऐसी हालत में भाई के परिवार पर बोझ मत डालो। उनकी इज्ज़त के लिए तुम उनके हाथ में कुछ बढ़िया गहना रख देना। सबके सामने वो अपनी बहन को पहना देंगें।
दादी जी अब तक चुप थी पर अब और चुप ना रह सकी,” हमें तुम दोनों की ही बात समझ में नहीं आई! अगर भाई आर्थिक रूप से कमजोर है तो क्या उसे अपनी खुशी में शामिल ही नहीं करोगी? और मालती तुम क्या सुझा रही हो?यही ना कि तुम उनके हाथ में सबके सामने देने को कुछ पकड़ा दो! अरे ,इससे उनके स्वाभिमान को कितनी चोट लगेगी। उनका कितना अपमान होगा।भाई बहन के रिश्ते अनमोल होते हैं।भाई भाभी का अपमान नहीं होना चाहिए।”
“दादी जी! आप कितनी सही बात कह रही हैं! मैं भैय्या के अहं को चोट नहीं पहुँचा सकती।”
“बेटा! हर रिश्ते नाते को धन दौलत की तराजू से नहीं तोला जा सकता है! तुम पूरे आदर के साथ उन सबको बुलाओ। तुम्हारे सुख सौभाग्य में उनका आशीर्वाद बहुत आवश्यक है।”
वो कृतज्ञ नेत्रों से दादी जी को निहारती रह गई।
स्वरचित मौलिक
नीरजा कृष्णा