Moral stories in hindi : शुचि की जब से राहुल से शादी हुई थी,वो खुश नहीं थी,वो राहुल के स्मार्ट व्यक्तित्व से प्रभावित हो गई थी और उसके प्यार मे पड़कर उससे शादी रचा बैठी।राहुल बहुत सीधा सादा,समझदार लड़का था जिसे शुचि की उसके लिए दीवानगी भा गई थी और उसने ये न सोचा कि ये आधुनिक बाला,उसके परंपरागत परिवार में सामंजस्य बैठा भी पायेगी या नहीं।
अक्सर शुचि राहुल से झगड़ने लगी थी जब भी वो अपनी कमाई,अपने किसी भी परिवार जन पर खर्च करता।
कल ही राहुल ने अपने पिता का प्रोस्टेट का ऑपरेशन करवाया, उसमें उसका वो पैसा खर्च हो गया जिससे वो और शुचि गोवा का ट्रिप प्लान कर रहे थे।
शुचि,इस अप्रत्याशित खर्चे से बिलबिला उठी,”क्या मेरा तुम्हारे पैसे पर कोई अधिकार नहीं राहुल?”वो चीखने लगी।
“चिल यार!”क्या हुआ?धीरे बोलो,मां पापा सुन लेंगे।” राहुल फुसफुसाया।
“क्यों धीरे बोलूं?ये मेरा घर है, मैं किसी का खर्चा नहीं करा रही,न मैंने किसी से उधार खाया है।”शुचि की आवाज अभी भी बहुत तेज थी।
राहुल को बहुत बुरा लगा,वो ही कमरा छोड़ कर वहां से चला गया।
ये शुचि की रोज की आदत बनती जा रही थी,हर छोटी छोटी बात पर अपने अधिकारों का हवाला देकर लड़ती रहती।
एक दिन,उसकी मां रेखा देवी,शुचि और राहुल से मिलने आई।
“कैसे हो राहुल बेटा?शुचि कहां है?”वो बोलीं।
इस कहानी को भी पढ़ें:
“अभी अभी पार्लर गई है,थोड़ी देर में आ जाएगी,चलिए!तब तक आप मेरे हाथ की कॉफी पीजिए।अभी बनाता हूं।”
“नहीं दामाद जी!क्या गजब करते हैं! मै सब कुछ खा पीकर चली थी,आज आपसे कुछ गप्प ही मारती हूं,कितना वक्त हुआ संग बैठे।”
उन्होंने राहुल को वहीं बैठा लिया जबरदस्ती।
“आप कुछ परेशान लग रहे हो?शुचि से कोई झगड़ा हुआ?”बातों में रेखा जी ने पूछा।
थोड़ी बहुत टाल मोल के बाद,राहुल ने अपने दिल की व्यथा उन्हें सुनाई।
मम्मीजी! शुचि क्या पहले भी ऐसे ही करती थी?राहुल ने दुखी होकर पूछा।
रेखा बहुत घबरा गई थीं,बेटी की बुराई दामाद के मुंह से सुनना किसी को अच्छा नहीं लगता पर वो जानती थीं,उनका अपना सिक्का ही खोटा है।कब तक राहुल को धोखे में रखती।
कह उठी,बेटा!हमें माफ कर देना,शुचि के स्वभाव में ये अक्खड़पन कुछ सालों से ज्यादा हो गया है,,जब छोटी थी तब ऐसी न थी ये,जबसे इसके छोटे बहन भाई हुए,ये ऐसी हो गई।बात बात पर झगड़ना,हर वक्त अपने अधिकारों की बात करना इसके प्रमुख काम हैं। छोटे बहन भाई के लिए इसके क्या कर्तव्य हैं,ये कभी जानना नहीं चाहती बस हम सबको व्यंग बाण चला कर घायल करती रहती थी।
“अरे!!”राहुल बोला,ये तो बहुत अजीब सी बात है।
हमे लगा,शादी हो जायेगी,ये सुधर जायेगी,जब जिम्मेदारी आएंगी तो अधिकारों के साथ अपने कर्तव्य भी सीखेगी।बस ज्यादा ध्यान नहीं दिया फिर।रेखा जी नजरे झुका कर बोली।
“अब तो खुद ये मां बनने वाली है,शायद तब कुछ समझे?”रेखा जी बोलीं।
“जिसे समझना होता है वो समझ लेता,मुझे तो इससे कोई उम्मीद नहीं”राहुल निराशा से बोला।
“नहीं,ऐसा न कहें, मै बात करती हूं उससे।”रेखा कहने लगीं।
इस कहानी को भी पढ़ें:
शुचि को न सुनना था,न समझना,वो दो बेटियों की मां बन चुकी थी।राहुल की आदत हो चली थी उसे झेलने की।लेकिन लड़कियां अब जवान हो गई थीं।लगता था दोनो बिलकुल शुचि पर ही गई थीं।
पहली बेटी की शादी कर दी थी उन्होंने और अब दूसरी की बारी थी।आज वो दूसरी लड़की
शुचि से जिद पर अड़ी थी कि वो उसे बड़ी गाड़ी दे दहेज में।
बेटा!हमारी माली हालत अच्छी नहीं है आजकल,तुम फिलहाल” स्विफ्ट डिजायर” से ही मान जाओ प्लीज़।शुचि ने समझाया उसे। क्यों मम्मी!ये तो दीदी को भी दी थी,तब से अब तक कितनी महंगाई बढ़ गई है,मुझे तो “किया” ही लेनी है और वो भी फर्स्ट मॉडल।
“कहा न वो नहीं ले सकते।”शुचि चीखी।
“क्यों क्या मेरा कोई अधिकार नहीं इस घर में?”उसकी बेटी उससे तेज आवाज में बोली।
अचानक शुचि को अपना बचपन और जवानी के दिन याद आ गए,वो भी तो ऐसे ही रार करती थी,सारा घर सिर पर उठा लेती थी।
आज पहली बार,उसे अपनी गलती का एहसास जो रहा था।उसकी बेटी,उसकी कार्बन कॉपी बनी थी और उसके पापा राहुल,उसको भी पूरे धैर्य से समझा रहे थे…
“बेटा!अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।बिना कर्तव्यों के अधिकार बेमानी हैं,अगर आप अपने कर्तव्य ठीक से निभायेंगे तो आपको अपने अधिकार खुद मिल जायेंगे।जो लोग सिर्फ अधिकार पाना चाहते हैं और कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करते,वो क
भी न खुद खुश रहते हैं और न जो उनके साथ होते हैं वो खुश वाह पाते।”
शुचि ने राहुल को देखा था उसी पल,उसे भी आज पहली बार,राहुल की कही बात प्रभावशाली लग रही थी।उसे अफसोस था कि वो अपनी लड़की को इस नेक सीख का संस्कार न दे पाई क्योंकि वो खुद उससे महरूम थी लेकिन बस…अब और नहीं..उसने राहुल से माफी मांगी और वो मुस्करा दिया,”जब जागो तभी सवेरा,अभी भी देर नहीं हुई डार्लिंग!”
उनकी बेटी,पलके झपका कर मां पापा को देख रही थी कि इन्हें अचानक क्या हुआ?
समाप्त
डॉ संगीता अग्रवाल
वैशाली गाजियाबाद।
#अधिकार