तुम से अच्छा कौन ? – उमा वर्मा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : न जाने कितनी यादें जो अकेले पन की धरोहर और साथी है मेरे ।जीवन में कितने लोगों से मिलना हुआ, कुछ अपने न होते हुए भी अपने से लगे।कुछ बहुत अपने होते हुए भी पराये हो गये ।सच में कभी कभी ऐसा होता है जब कोई खास से अचानक भेंट हो जाती है तब हम अपलक उसे देखते रह जाते हैं और तब ऐसा महसूस होता है जैसे किसी जन्म की हमारी पुरानी पहचान रही हो, 

लगता है यह मेरा बिलकुल अपना है जिसे  समय के अंतराल  ने कभी  दूर कर दिया हो ।यह बड़ी आश्चर्य  जनक बात है कि इस युग में भी हम रिश्तों  में बंध कर  जी लेते हैं, उसे घसीटते रहते हैं ।चाहत कभी  घसीटी नहीं जा सकती, उसे भोगना पड़ता है ।जीना पड़ता है ।कोई भी व्यक्ति  किसी भी व्यक्ति से  जुड़ सकता है, लेकिन यह  जुड़ना  सनद नहीं मांगता ।

मै भी बहुतों से जुड़ी रही हूँ ।कुछ के साथ इस हद तक कि उसे नकारा नहीं जा सकता है ।उनमें से एक गीता मौसी थी।उनसे माँ के साथ बहुत अपनापन था ।वे बहुत शान्त, सौम्य  और शालीन थी।कम बोलती थी, लेकिन गलत नहीं बोलती थी ।वे मुझसे भी बहुत स्नेह करतीं थी।हमारी पारिवारिक दोस्ती थी ।हम लोग साथ साथ घूमने जाते, सिनेमा जाते, और एक दूसरे के यहाँ  खाना पीना चलता ।उनकी बेटी मेरी बहुत अच्छी दोस्त बन गई ।

हमारा स्कूल, कालेज  साथ होता ।भैया की शादी की बात चलने लगी तो माँ बहुत बेचैन हो गई ।उनको लगता था कि बेटी की  शादी पहले होनी चाहिये थी।लोगों ने माँ को समझाया कि सब ईश्वर की मर्जी से होता है ।फिर भी माँ  अकेले में फूट फूट कर रो लेती ।तब गीता मौसी ने तय कराई थी मेरी शादी अपने ही परिवार में ।अच्छा घर परिवार मिला तो माँ खुश हो गई ।मौसी अब मेरी मौसी सास बन गई और उनकी बेटी कनु मेरी ननद ।



लेकिन हमारा रिश्ता दोस्ती का ही रहा ।जिन्दगी की गाड़ी पटरी पर दौड़ती रही ।अपने अपने परिवार में हम खुशियाँ मनाते हुए आगे बढ़ने लगे और बच्चों की माँ भी बन गये।पर खुशी बहुत कहाँ टिकती है ।अचानक सुना मौसी गुजर गयी ।माँ उनके जाने से अकेले हो गई ।दोनों अपनी हर बात ,सुख दुःख शेयर करतीं  थी।जीवन को चलना ही पड़ता है ।दिन बीत रहे थे कि कनु के पति ने फोन किया “” मीनू,तुम एक बार आ जाती तो अच्छा होता “” ।”” क्या बात है विशाल? “”     बस ऐसे ही, कनु तुम से  मिलना चाहती है ।फिर किसी कारण मै नहीं जा पायी।टिकट एक सप्ताह के बाद का मिला ।

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अगले दिन मैंने फोन लगाया “” विशाल,वह कैसी है?”” ठीक नहीं है वह” ।डाक्टर ने कैन्सर का तीसरा स्टेज  बताया है ।तुरंत मैंने गाड़ी  बुक किया और सामान  समेटने लगी कि फोन  बजने लगा।उसकी बेटी  का फोन था “” मीनू मौसी, माँ चली गई “” फिर नहीं मालूम कि क्या  हुआ ।मै बेहोश हो गई थी ।पति देव सिर सहला रहे थे ।बाद में विशाल ने फोन पर बताया कि वह तुम्हारा ही नाम ले रही थी ।मेरे लिए वह बहुत दुखी करने वाला क्षण था ।जिन्दगी कब कहाँ शुरू होगी, कब खत्म होगी कोई नहीं जानता ।अगले साल पति भी मुझे छोड़ कर चले गये ।

मेरी दुनिया उजाड़ हो गई ।अब मेरी जिंदगी की नाव डोल रही थी ।बेटा अपनी नौकरी पर चला गया ।मै सास ससुर ,देवर देवरानी के साथ थी।मेरे मन को समझने वाला कोई नहीं था ।घर में पति के न रहने पर रोज किच किच होता ।अब विशाल और  मेरा दुख एक ही जैसा था ।वे हमेशा फोन  करते ।समझाते ।” जीवन में सब कोई साथ नहीं जाता ” हम दोनों एक ही तकलीफ से गुजर रहे हैं ।कनु बहुत अच्छी थी ।दोस्ती की मिसाल थी वह ।” जाते, जाते  बहुत  याद करती थी तुम्हे ।

“” उसने  कभी अपनी तकलीफ नहीं बताया, जब दर्द से छटपटाने लगती थी तो  मै बेचैन हो गया था ।डाक्टर के यहाँ ले गया तो उसका अंत ही हो गया ।उस दिन विशाल की बात सुनकर बहुत बेचैन हो गई मै।कुछ दिन बीत गया ।समय अपनी गति से चल रहा है भाग रहा था ।जीवन यथावत् चलने लगा ।रोज रात को विशाल फोन करते ।अब मै भी अपना सुख दुःख बाँट लेती ।



मन तो हल्का हो जाता ।जानती थी कि विशाल बहुत अच्छे हैं और निर्दोष हैं पर रात को देर तक बात करना? परिवार क्या समझेगा ।उनसे बात करके मेरे मन को शांति मिलती है यह कौन समझ पायेगा ।हम सिर्फ एक अच्छे दोस्त बनकर हमेशा रहेंगे लेकिन समाज का क्या? और फिर मेरा परिवार बहुत दकियानूस था ।

कोई नहीं समझ सकता है कि वह सिर्फ दोस्त है ।विशाल भी अकेलापन महसूस करते ।वे कहीँ बाहर जाना चाहते ताकि कनु की याद को भूल सकें ।मुझे कहते “” मै भारत भ्रमण पर जाना चाहता हूँ, चलोगी मेरे साथ? ” मै क्या  कहती, मन तो बहुत करता पर दुनिया समाज के नजरों में हम दोषी करार दिए जाते ।किस किस को समझाते कि विशाल बहुत अच्छे हैं और निर्दोष हैं, हम सिर्फ दोस्त हैं।

फिर वे अकेले ही जाते।और तस्वीरें भेजते ।कनु मेरी रिश्ते दार थी लेकिन उसके पूरे परिवार से हमेशा दोस्ती का ही रिश्ता रहा ।एक ऐसी दोस्ती जिसमें कहीँ भी स्वारथ नहीं था, लेन देन की बात नहीं थी ।कनु  तुम्हारी बहुत याद आती है ।मेरी दादी से तुम कहानियाँ सुनती थी ।याद था तुम्हे जब एक बार दादी ने किसी बात पर कहा था कि ” टमाटर की भी कहीँ सास होती है “” और तब हमलोग कितना हँसते रहे थे ।मेरी दादी से तुम कहानियाँ सुनती थी और गुड़िया बनाने के लिए जिद करती थी ।

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और बचपन में पूरे छत पर मुझे घसीट दिया था ।फिर भी हमारे परिवार की दोस्ती पर जरा भी आंच नहीं आई थी ।”” मै भी न,पागल हो गई हूँ, किसे सुना रही थी, तुम तो अलग दुनिया में चली गयी  कनु “” देखो विशाल तुम्हे  कितना याद किया करते हैं ।हमारी दोस्ती तुम से ही तो जुड़ी हुई थी ।तुम्हारे जैसा दोस्त कहाँ? काश,तुम से एक बार  मिल पाती? क्यों चली गयी तुम? हर पल याद आती हो तुम ।मेरे पास शब्द नहीं है लिखने को ।क्या  लिखें, कितना लिखें मै और विशाल एक दूसरे को सिर्फ समझा सकते हैं ।तुम जहाँ भी हो, हमे जरूर याद  करना ।

उमा वर्मा

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