वसीयत – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : एक बार विमल जी बीमार हो गए… उन्हे लगा अब अंत समय पास ही हैं… सोचा… मेरे मरने के बाद मेरे बच्चे घर की जमीन जायदाद का लेकर झगड़ने ना लगे.. क्युंकि ये पैसा सगे भाईयों में भी दरार पैदा कर देता हैं… उनके जाने के बाद कहीं बच्चे ,,उन्होने सालों में समाज में जो इज्जत कमायी हैं वो कहीं मिट्टी में ना मिला दे… ये सोच सोचकर विमल जी का दिल बैठा जा रहा था … ये भी एक बड़ा कारण था कि उनकी तबियत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी .. सरकारी विभाग से सेवा निवृत्त हुए 10 साल हो गए थे उन्हे … दोनों बेटे नौकरी से लग गए थे ..अपने अपने बीवी बच्चों के साथ नौकरी वाली जगह पर रहे थे .. कभी कभी तीज त्योहारों पर आ जाते थे एक दो दिन के लिए… एक बेटी थी .. उसको भी अच्छे घर में ब्याह दिया था … पत्नी सुशीलाजी और विमल जी अकेले रहते थे .. पत्नी विमल जी के लिए चाय बनाकर लायी … उन्हे बैठाकर पिलाने ही वाली थी तभी विमल जी ने उनका हाथ पकड़ चाय का कप मेज पर रखने का इशारा किया ..

क्या हुआ जी आज चाय नहीं पीनी…

नहीं… तू नितिन, अनुज को फ़ोन कर बुला ले … मुझे लगता नहीं कि अब ज्यादा समय बचा हैं मेरे पास…. विमल जी भावुक होते हुए बोले..

ए जी,, ऐसी अशुभ बातें मत निकालिये मुंह से… अभी तो आप 100 साल ज़ियेंगे … आपको मेरी भी उम्र लग जायें … सुशीला जी विमल जी के हाथ की पकड़ मजबूत करते हुए बोली..

तेरे कहने से मेरी उम्र थोड़े ना बढ़ जायेगी… तू सबको फ़ोन कर दें बस…

सुशीला जी ने भारी मन से बेटों को फ़ोन किया .. दोनों ने यहीं कहा , माँ पापा को अच्छे अस्पताल में भर्ती करा दो … अभी इतना काम हैं.. अभी नहीं आ सकते…. पापा तो वैसे भी छोटी छोटी बातों से जल्दी घबरा ज़ाते हैं….

पर जैसे ही सुशीला जी ने कहा ,, पापा को कुछ ज़रूरी बात भी करनी हैं तुम लोगों से…. इतना सुनते ही दोनों बेटे प्रॉपर्टी की सोच माँ से बोले.. ठीक हैं माँ पापा को दिखाना ज़रूरी हैं… कल छुट्टी लेकर आते हैं ….

अगले दिन दोनों बेटे बहू बच्चों सहित घर आ गए… पर यह क्या विमल जी तो….

 यह क्या विमल जी अपने छोटे छोटे पोते , पोतियों को चहकता हुआ देख बेड पर उठकर तुरंत उठकर बैठ गए….

ए जी ,, इतने दिनों से तो बिस्तर पर हो… सारे काम मुझ पर करवा रहे हो… आज कैसे उठकर बैठ गए और अपने आप कंघी से बाल बनाने लगे… सुशीला जी चिढ़ाते हुए विमल जी से बोली…

तुझे पता हैं ना मेरे सोन चिरौटे आये हैं… मेरे बिट्टू को उसका दादू हीरो जैसा बना ठना अच्छा लगता हैं.. पिछली बार देखा नहीं था तूने कैसे मेरे बिखरे बाल देखकर गुस्सा हो गया था .. खुद ही बनाने लगा था मेरे बाल.. तब जाकर बोला.. अब लग रहे हैं मेरे दादू हीरो.. उसके बाद ही मुझे पार्क ले जाता था बैट बाल खेलने…

दोनों बेटों ने, बहुओं ने पोतों ने विमल जी और सुशीला जी के पैर छूयें… दोनों पोतियों ने नमस्ते किया…

चहकता हुआ 5 साल का बिट्टू दादू की गोद में उनकी गर्दन से चिपककर बैठ गया… विमल जी उसे दुलारने पुचकारने लगे…

ए बिट्टू ये क्या कर रहा हैं… तुझे बताया था ना दादू की तबियत ठीक नहीं हैं…. हट जा उनकी गोद से.. यहां बैठ जा… बड़ा बेटा नितिन अपने बेटे को डांटता हुआ बोला….

नहीं नहीं… मैं कोई बिमार विमार नहीं… मेरे बच्चे आ गए हैं… अब बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा ….

छोटा बेटा अनुज बोला… ये सही बात हैं पापा असल से ब्याज प्यारा होता हैं… ऐसा प्यार कभी हम पर दिखाय़ा हैं जैसा आप बिट्टू पर कर रहे हो….

सभी लोग ठहाके मारकर हंसने लगे.. अचानक से हंसते हंसते विमल जी की खांसी उखड़ गयी….उनकी सांस फूलने लगी…… सुशीला जी ने तुरंत पानी पिलाया..बेटों ने सहारा दे उन्हे बिस्तर पर लिटा दिया…

माँ मैं डॉक्टर को लेकर आता हूँ… नितिन बोला…

नहीं रे ,, ये तो रोज का हैं… सुशीला तूने राखी (बेटी) को फ़ोन नहीं किया क्या ?? उसे नहीं बुलाया … विमल जी की जबान लड़खड़ा रही थी…

जी नहीं…मुझे लगा आपको अनुज नितिन से ही बात करनी हैं… इसलिये उसे तो नहीं कहा मैने…

तभी तपाक से बड़ी बहू रानी बोली… पापा जी… वैसे भी घर की बातों में दीदी को बुलाने की क्या ज़रूरत… उनके अपने काम हैं…. हम ही कैसे कैसे अपने काम छोड़कर आयें हैं… हमें ही पता हैं… अब खामखा उन्हे क्यूँ परेशान करना… जो बात करनी हो आपको कर लिजिये…. हम सब हैं ना …. सभी बहू बेटों ने रानी की बात से हामी भरी ..

तभी पता नहीं कहां से विमल जी में इतनी ताकत आ गयी कि दहाड़ती हुई आवाज में बोले…

खबरदार .. अब एक शब्द भी आगे कहा तो….

शेष आगे….

वसीयत भाग 1  – मीनाक्षी सिंह 

वसीयत ( भाग – 2 )

वसीयत ( भाग – 3)

वसीयत ( अंतिम भाग )

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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