अधिकार – रत्ना बापुली : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : पूनम ऑफिस जाने की तैयारी कर ही रही थी कि फोन की घंटी टनटना उठी ।

हैलो, नमस्ते पापा ।प्रणाम, कैसे हैं? 

पापा -बेटी पूनम, एक खुश खबरी देनी थी ।

पूनम -क्या पापा? 

पापा –अलका की शादी तय हो गयी है, लड़का बैंक मे नौकरी करता है, खाता पीता घर है, अलका सुखी रहेगी ।

पूनम –मै जानती हूँ पापा आप इस मामले मे बहुत ही दूर दर्शिता से काम लेते हैं, घर एंव बर दोनो ही अच्छा  ही होगा ।

हॉ तो बेटी मै इस इतवार को कार्ड देने तेरे घर आ रहा हूँ, तू तो अब बड़ी अफसर बन गयी है, उस दिन रहेगी न घर पर ।

पूनम –अरे पापा, मेरी पढ़ाई मे आपका कितना योगदान था यह मै कभी नही भूल सकती, आज मै जो भी हूँ आपके बदौलत ही हूँ।

मौका मिलने पर अलका से कहिएगा मुझे फोन करे, अच्छा अब फोन रखती हूँ, ऑफिस जाना है ।

संबध विच्छेद हो जाता है ।

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अलका कार पर बैठ गई, कार अपनी नियत गति से ऑफिस की तरफ दौड़ती जा रही थी, साथ ही साथ पूनम का ख्याल भी दौड़ रहा था, 

सन्2000 की बात है पूनम अपने बीए का रेजेल्ट लेकर पापा बनवारी लाल के पास जाकर बोली –पापा मै पास हो गई, यह देखिए मेरा मार्क सीट ।सबमे प्रथम श्रेणी के नं आए थे केवल अँग्रेजी मे कुछ नं कम थे, जिस कारण वह प्रथम नही आ पाई, उसने कहा –साँरी पापा, मै प्रथम न आ पायी, 

पापा का जबाब था तो क्या हुआ प्रथम के नजदीक तो आई है, यही बहुत हैं, कहॉ मै संस्कृत का मास्टर, भारतीय संस्कृति का पोषक, मेरी बिटिया कैसे अँग्रेज़ी मे अच्छे नं लाएगी, कोई बात नही तू मेहनत कर एंव आई ए एस अधिकारी बन, मेरा पूरा सहयोग रहेगा, मुझे मालूम है तू एक दिन जरूर आई ए एस अधिकारी बनेगी, शायद उस दिन मेरे पापा की जिह्वा मे सरस्वती जी बैठ गई थी, और मै आज उसी पद पर आसीन हूँ।

आई ए एस की इन्टर व्यू मे पापा का भारत के संस्कृति एंव दर्शन के प्रति बृहद ज्ञान ने पूनम को पहली बार मे ही सफलता का ताज पहना दिया था ।

उसके विचारो की गति थम सी गई क्योकि उसका ऑफिस आ गया था ।

पूनम का पति भी सरकारी आफिस मे अधीक्षण अभियन्ता के पद पर आसीन थे, खाता पीता घर ही नही बैभव सम्पन्न परिवार था नौकर चाकर सभी थे, घर क्या था बंगला ।सास ससुर भी अच्छे पोस्ट से ही रिटार्यड हुए थे   पर सम्पन्नता का घमंड उनके परिवार के किसी भी सदस्य को छू नही गया था ।

पूनम की शादी मे इसलिए इन लोगो ने कोई दहेज की मॉग नही रक्खी थी, पूनम के पापा गिरधारी लाल की सज्जनता तथा धर्म शास्त्रो के ज्ञान ने पूनम के सास ससुर का मन मोह लिया था ।

आज से पचास वर्ष पूर्व संस्कृत के अध्यापक होकर गिरधारी लाल आजमगढ़ के एक सरकारी स्कूल मे पदस्थापित होकर, वही बस गए थे, स्कूल से घर आकर भारत की संस्कृति का ज्ञान देना एंव आस पास के बच्चो को गीता पढ़ाना ही उनकी दिन चर्या थी इस कारण वह अपने मोहल्ले मे पंडित जी के नाम से भी मशहूर थे, यहॉ तक की सभी अपनी अपनी समस्याओं को लेकर तथाकथित पंडित जी के पास सलाह लेने आते थे और पंडित जी उनको भक्ति व ज्ञान की चरणामृत पिलाकर संतुष्ट कर देते थे, 

पंडित जी धन तो नही बटोर पाए थे पर नाम बहुत बटोर लिया था, जिस कारण पूनम उसकी बड़ी बेटी का विवाह विना दहेज के धूम धाम से हो गया था ।

अभी भी दो बेटियॉ ब्याहने को बॉकी था ।

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पूनम आँफिस से आकर अपने बेटे को होम वर्क करा रही थी कि फोन की घंटी बज उठी ।

पूनम ने जैसे ही फोन उठाया उधर से अलका की आवाज सुनाई दी ।पूनम ने कहा –बधाई हो अलका, आखिर आ ही गयी न सही रास्ते पर, कितना कहती थी मै शादी नही करुंगी, 

अलका –दीदी सुनो तो मेरी बात, मै इस शादी से विल्कुल खुश नही हूँ, 

पूनम –क्यो क्या यह रिश्ता तुझे पसंद नही।

अलका –यह बात नही है दीदी, 

पूनम–फिर क्या बात है? 

अलका –दीदी उनलोग दहेज बहुत मॉग रहे हैं, जिसकी पूर्ती करने के लिए पापा अपना घर गिरवी रख रहे हैं, तुम तो जानती हो दीदी पापा की स्थिति अभी रितु की भी जिम्मेदारी पापा को निभानी है ।इसलिए मेरा मन तो बिल्कुल नही है, मै तो सोच रही हूँ कि मना कर दूँ।

पूनम –तेरे वुड वी हस्बै्ड का क्या नाम है? 

अलका –सचिन ।

पूनम –तू सचिन से इस बारे मे बात कर, नही तो मुझे उनका नं दे मै बात करती हूँ, तू विल्कुल न घबड़ा सब ठीक हो जाएगा तू शादी से इंकार मत कर नही तो पापा को दुःख  होगा ।

अलका –ठीक है दीदी, रखती हूँ फोन।

पूनम कुछ सोच रही थी, तभी उसका पति मानव आकर कहता है क्या बात है? आज तुम किस चिन्ता मे डूबी हो ।

पूनम ने सारी बात बताते हुए अपने पति का विचार जानना चाहा ।पति मानव ने भी पूनम के हॉ मे हॉ मिलाकर अपने विशाल हृदय का परिचय दिया ।

पूनम रविवार के आने के इंतज़ार मे यथा साध्य लग गयी ।

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आज रविवार को पूनम सुबह से ही घर को सजाने मे, पापा के पंसद की बेसन की कचौड़ी बनाने मे लग गई कौन से कमरे मे पापा मम्मी को रहना है यह भी पूनम ने सबकी राजी खुशी से तय कर लिया ।

नियत समय पर पूनम के पिताजी को लेने ड्राईवर गया पूनम ड्राईंग रूम मे बैठकर बड़ी बेसब्री से पिता जी के आने का बाट जोह रही थी, तभी बेल की घंटी बजी और जिसका इंतजार था पूनम को वह गिरधारी लाल एंव उनकी पत्नी मालती द्वार पर हाजिर थे, पूनम तथा मानव ने बढ़कर उनके पॉव छूए एंव कहा –भोलू पिताजी का सामान मेरे कमरे के बगल वाले कमरे मे रख दे ।

भोलू –सामान कहॉ, बाबूजी तो बीच रास्ते मे ही एक होटल मे रुक कर सामान रखवा दिए।

पूनम –उलाहना भरे स्वर मे यह क्या पिता जी, आपने यह क्यो किया? 

गिरधारी लाल बोले बेटी के यहॉ रहना क्या, एक गिलास पानी पीना भी मना है ।

पूनम –आज पिताजी आप से मेरा शास्तार्थ हो ही जाएगा, आप इतना बुद्धि मान होते हुए भी यह सब दकियानूसी की बात करते हैं, बताईए तो ज़रा किस धर्म ग्रन्थ मे लिखा है कि बेटी के घर का दाना पानी नही खाते ।

गिरधारी लाल –यह रिवाज है बेटा ।

पूनम –जिस झूठी रिवाजो से निकलने के लिए आप पूरी दुनिया को सलाह देते आए है उसी रिवाज का सहारा लेकर क्यो आप हिन्दू धर्म को बदनाम कर रहे हैं ।

तभी मानव बोल पड़ा मानता हूं बेटी के घर का खाना पीना बर्जित है पर नाती पर तो आपका अधिकार है यह रहा आपका नाती रोहित इसके अधिकार से आप यहॉ रहे, रोहित भी जिद करने लगा रह जाओ न नाना जी यहॉ दो दिन के लिए खूब मजा आएगा, आपसे कृष्ण भगवान की कहानी सुनने मे ,मम्मा के पास तो फुर्सत ही नही ।

गिरधारी लाल –अरे मै तो भूल ही गया, रोहित के लिए सूट व खिलौना लाया था वह वही सामान के साथ ही छूट गया ।

पूनम पापा के उत्तर की अपेक्षा न करते हुए बोली भोलू जा कार लेकर जा और पापा का सामान लेता आ, चाबी दीजिए पिताजी मै आपकी एक भी बात सुनने वाली नही हूँ, सुबह से मन लगाकर इतने प्रेम से आपके लिए बेसन की कचौड़ी बनाया, मम्मी के लिए मूँग के दाल की पकौड़ी और आप कह रहे हैं कि रूकेंगे नही, आज पूनम बेटी के जिद के आगे गिरधारी लाल हार गए ।

मानव जी भोलू के साथ पिताजी का सामान लेने चले गए ।

पॉच वर्ष का रोहित नाना नानी का हाथ पकड़कर उन्हे प्राय खींचता हुआ ले चला उनके कमरे में, अपने कमरे मे खिलौना दिखाने के लिए ।

दो दिन बाद जब जाने का समय आया तो पूनम ने पापा के हाथ पर चार लाख का चेक रखते हुए बोली 

पापा यह आपका अधिकार है ले लीजिए ।

गिरधारी लाल ने कहा –नही बेटी यह मै नही ले सकता 

पूनम ने कहा –मै पापा एक आई एस अधिकारी हूँ मै जानती हूँ कि जैसे पापा की सम्पत्ति पर बेटी का अधिकार होता है, वैसे ही बेटी यदि सक्षम हो तो और वह खुशी खुशी अपनी सम्पत्ति अपने पिता को दे तोउसे लेने का अधिकार भी पिता को है ।

गिरधारी लाल अपने आई एस बेटी के बातो का कोई तर्क संगत उत्तर नही ढूढ पाए, एंव जाने की तैयारी करने लगे ।

यह दो दिन पूनम व गिरधारी लाल के लिए जैसे एक अविस्मरणीय दिन बन गया ।

 

रत्ना बापुली लखनऊ

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