Moral stories in hindi : ” तुमने मेरी नाक कटवा कर रख दी। इज़्ज़त मिट्टी में मिलाकर रख दी। बस यही दिन देखना रह गया था। तुम्हें शर्म नहीं आई, यह सब करते हुए। अपने माता-पिता के अरमानों पर पानी फेर दिया। मेरा नाम डुबोकर तुम्हें चैन मिल गया होगा।” पिता जी गुस्से में संजीव को बोल रहे थे।
पर पिता जी, आप मेरी बात तो सुनिए, मैंने आपकी नाक नहीं कटवाई, न ही आपका नाम डुबोया, बस उस समय मुझे जो सही लगा, मैंने वही किया।
” अच्छा अब तू इतना बड़ा हो गया है कि हमसे बिना पूछे ही अपनी ज़िंदगी का फ़ैसला ले लेगा।
“पर पिता जी, एक बार आप मेरी बात तो सुनिए”, संजीव हाथ जोड़ते हुए बोला।
“मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी।” इतना कहकर वे घर से बाहर निकल गए।
” संजीव बेटा, तुमने जो भी किया, वह सही या गलत, नहीं जानती, पर तुमने हमारे खानदान पर कलंक लगा दिया है। दूसरी जाति की लड़की से शादी करके उसे घर ले आए और तुम कह रहे हो कि तुमने हमारा नाम नहीं डुबोया। तुम्हें इसका ज़रा भी अफसोस नहीं है।
माँ, मैंने जो किया, वह सही किया है। उस समय हालात ही ऐसे थे कि आपको बताने या पूछने का मौका ही नहीं मिला। पर एक बार आप मेरी बात तो सुनें।
बेटा, अभी तुम अपने कमरे में जाओ और इसे भी ले जाओ। यह तुम्हारी पत्नी है, पर मेरी बहू नहीं, समझे तुम।
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कमरे में आकर सीमा की आँखों में झर-झर आँसू बहने लगे। वह संजीव से कहती है कि मेरी वजह से आपको इतना कुछ सुनना पड़ा। आपके माता-पिता आपसे नाराज़ हैं।आप मुझे माफ़ कर दीजिए।
संजीव सीमा से कहता है कि इसमें आपका कोई कसूर नहीं। आपने मुझ पर शादी का दबाव नहीं डाला था।वह फ़ैसला मेरा था। चिंता मत कीजिए, सब ठीक हो जाएगा। आप आराम कर लीजिए।
पर सीमा की आँखों में नींद नहीं थी। रह-रहकर बीती रात की घटनाएँ उसकी आँखों के सामने आ रही थीं।
शादी के जोड़े में वह कितनी खूबसूरत लग रही थी, अपनी आँखों में भविष्य के ख्वाब बुन रही थी कि तभी रमेश के पिता ने शादी से पहले दस लाख की माँग कर दी कि शादी तभी होगी जब दस लाख रुपए मिलेंगे, नहीं तो बारात वापिस चली जाएगी।
सीमा के पिता ने इतने रुपए देने में असमर्थता जताई तो रमेश के पिता ने उन्हें बहुत बुरा-भला कहा। संजीव रमेश का दोस्त था और वह रमेश के साथ बारात में आया हुआ था। उसने रमेश को बहुत समझाया, पर उसने अपने पिता का साथ देते हुए कहा कि मेरे पिता जी ने मेरी पढ़ाई पर बहुत खर्च किया है, अब वह वसूलना भी तो है।
उसकी बात सुनकर संजीव हैरान रह गया क्योंकि जितना खर्चा एक लड़के की पढ़ाई पर होता है उतना लड़की की पढ़ाई पर भी होता है। इस समय में ऐसी सोच। सीमा के माता-पिता व भाई-बहन, सब लड़के वालों के हाथ जोड़ रहे थे पर वह टस से मस नहीं हो रहे थे। उस समय संजीव ने सीमा से शादी करने का फ़ैसला लिया और एक लड़की की अस्मिता पर आँच न आने दी।
संजीव के बुलाने पर सीमा अपने ख्यालों से बाहर आई। सीमा का सिर बहुत भारी हो रहा था। संजीव ने उसे चाय पीने के लिए दी और अपनी मुस्कान से उसे भरोसा दिलाया कि वह हमेशा उसके साथ रहेगा व जल्दी ही सब कुछ सही कर देगा और उसके माता-पिता भी बहू-बेटे को आशीर्वाद ज़रूर देंगे।
स्वरचित
रचना गुलाटी
मुहावरा : नाम डुबोना