अपने तो अपने होते हैं – कमलेश राणा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : नीलू बहुत प्यारी लड़की थी बड़ी चुलबुली सी,, सबके साथ हंसी मजाक करना सबकी मदद को तैयार रहना उसका स्वभाव था जिसने उसको सबके बीच लोकप्रिय बना दिया था। जो देखो वही उसकी तारीफ करते नहीं थकता जहाँ जाती महफ़िल की जान बन जाती वो,,

फुर्ती इतनी किसी को मेंहदी लगा आती तो किसी की साड़ी पिन अप कर देती , किसी की पटली संभालती दिखती तो दूसरे पल किसी का जूडा बना रही होती हर तरफ नीलू की तारीफ के ही स्वर सुनाई देते। 

डांस में तो उसका कोई जवाब ही नहीं था जब वह संगीत सेरेमनी में डांस करती तो सब अपने मोबाइल संभाल लेते उसका वीडियो बनाने के लिए। उसकी चुस्ती, फुर्ती, अदाएं, चेहरे के भाव देखते ही बनते ऐसा समां होता कि नज़र ठहर सी जाती वहीं। 

अब उसका एक ही अरमान था कि कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाये तो वह सेटल हो जाये और उसकी तमन्ना जल्द ही पूरी हो गई।

जब तक काम ऑफिस से चल रहा था तब तक सब ठीक था पर जब से वर्क फ्रॉम होम हो गया तब से प्राइवेट नौकरी और घर गृहस्थी के बीच तालमेल बिठाना बहुत कठिन लग रहा था उसे और उसके घरवालों को भी। 

समय असमय होती मीटिंग्स कई बार अव्यवस्था और गृहक्लेश का कारण बनने लगीं। हर समय ऑन लाइन रहने के कारण वह किसी भी रिश्ते को वक्त नहीं दे पा रही थी न पति को और न ही बच्चे को परिणामस्वरूप हर समय वह टेंशन में रहने लगी। घर में हर कोई अब बस उसकी कमियां निकालने में ही लगा रहता उसकी थकान और परेशानी से किसी को कोई सरोकार नहीं था। 

यह सच है कि गृहस्थी में प्यार बाद में होता है और फर्ज़ पहले यदि सब काम समय पर पूरे होते हैं तो ही सबका प्यार उमड़ता है यह नियम केवल उस पर ही लागू नहीं होता परिवार के हर सदस्य पर लागू होता है जब तक सब अपना काम सुचारु रूप से नहीं करेंगे जीवन नैया हिचकोले खाने लगेगी किसी एक की लापरवाही सबके लिए टेंशन का कारण बनती है। 

धीरे- धीरे नीलू को ऐसा लगने लगा कि कोई उससे प्यार नहीं करता हताशा उसके मन को घेरने लगी और अब वह अपने साथियों से मन की बातें शेयर करने लगी। अब उसका अधिकांश समय दोस्तों से हंसने बोलने में ही बीतने लगा जो घर के माहौल को और अधिक तनावपूर्ण बना रहा था जिस पर हमेशा उसका तर्क होता.. उनसे बात करके मेरा मन हल्का हो जाता है। 

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बड़े बूढों की बात गलत नहीं है कि जब आप दूसरों से घर के मामले में सलाह करने लगें तो बेड़ा गर्क हुआ समझिये। वही नीलू के साथ भी हुआ कोई उसे सही बात समझाने वाला नहीं मिला सब उसको उपेक्षित बताकर उसके घावों पर मरहम लगाने का दिखावा कर रहे थे और सच तो यह था कि वे उसके घावों को नासूर बना रहे थे अब उसे सबमें कमियां ही नज़र आतीं। 

अगर कोई उसे समझाने की कोशिश करता भी तो वह झल्ला पड़ती उसे बर्बाद करने वाली जहरीली बातें ही मीठी लगने लगी थी। धीरे- धीरे परिवार को उसके बिना जीने की आदत हो गई आज वह चाहती है कि सब कुछ पहले जैसा हो जाये लेकिन परिवार की उपेक्षा का दंड तो उसे भुगतना ही पड़ेगा और यह अवधि कितनी लंबी होगी कौन जाने?? शायद कुछ साल या हो सकता है आजीवन!!! 

दोस्तों अपने और परायों में अंतर समझना बहुत जरूरी है। परायों को आपके बुरे- भले से कोई मतलब नहीं होता वे मुँह देखी मीठी बातें करते हैं लेकिन घर वाले हित की बात कहते हैं जो कई बार कड़वी लगती है। परिवार की उपेक्षा कभी नहीं करना चाहिए वरना दुनियां में कहीं ठिकाना नहीं मिलता अपने तो अपने होते हैं बाकी सब मोह माया है। 

#उपेक्षा

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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