Short Stories in Hindi
जी पांडे जी…
जी समधी जी…इधर से गदगद स्वर में पांडे जी कहते हैं।
जी पांडे जी, वो हम ये विवाह नहीं कर सकेंगे…पांडे जी की प्रसन्नता भरी आवाज सुनकर उधर से सिन्हा साहब की आवाज थोड़ी सकुचा गई थी।
जी पर क्यों..परसों ही तो हमने विवाह की तारीख पर भी डिस्कस किया था, तब आपने ऐसा कोई संदेश नहीं दिया था। अचानक इस एक दिन में क्या हो गया। बिटिया को कोई और पसंद है क्या…पूछते हुए यूं लगा जैसे पांडे जी की आवाज बुझ गई थी,
यूॅं लगा जैसे उन्हें स्वमेव ये ज्ञात हो गया था कि क्या बात हो सकती है। लेकिन यहाॅं कौन बताने आएगा। सिन्हा साहब की तो पूरी फैमिली ही यही है…यही सोचते हुए …
सिन्हा साहब क्या बात हो गई…उधर से कोई आवाज न आने पर पांडे जी ने हिम्मत करके फिर से पूछ लिया था।
जी पांडे जी, मेरी मिसेज को पता चला की आपकी पहली पत्नी ने आपके अत्याचारों से तंग आकर खुदकुशी कर ली थी, वो भी तब जब वो गर्भवती थी और ये आपकी दूसरी पत्नी और बेटा है। जिस घर में औरतों की बेइज्जती का इतिहास रहा हो,
वहाॅं हम बेटी नहीं दे सकते हैं श्रीमान। ऐसे में हम जानते समझते मक्खी निगल नहीं सकते हैं… है तो वो आखिर आपका ही बेटा न…माफ कीजिएगा पांडे जी…अब खुल कर बोलते हुए सिन्हा साहब ने मोबाइल ऑफ कर दिया।
और पांडे जी वही सोफे पर बैठे बैठे शून्य में खो गए।
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पंद्रह साल की ही तो थी कामिनी और बीस साल के खुद वो उच्च पदाधिकारी पिता के बेटे स्वरूप पांडे। पिता के पद और पैसों के मतवाले स्वरूप पांडे। जब उन दोनों की शादी हुई थी, सबने कहा बिल्कुल गौरी शंकर की सी जोड़ी है,
कमनीय काया की कामिनी और गबरू जवान से स्वरूप पांडे। लेकिन वो शंकर कहाॅं बन सके। उन्हें तो ऐसा लगा मानो एक खिलौना मिल गया था, जिसे जैसे तोड़ो मरोड़ो, चाहे जो कहो, खिलौने की तरह ही चुपचाप टुकुर टुकुर ताकेगी और ये सच भी था उनकी हर ज्यादती कामिनी चुचाप सह जाती थी।
छह महीने गुजरते ना गुजरते उसकी आँखों की चमक खत्म हो गई। खाने की थाली फेंक देना, मुॅंह पर पानी मार देना ये तो रोज का क्रम हो गया। स्वरूप पांडे की माॅं भी दबी जुबान में कामिनी को ही समझाती कि मर्द ऐसे ही होते हैं, हमने भी ऐसे ही दिन गुजारे हैं, तुम्हारी माॅं ने भी इसी तरह के दिन देखे होंगे।
उनकी ऐसी बातों पर चिल्लाते पिता ही याद आते थे उसे। सच ही तो था माॅं को भी सही गलत बोलने की आज्ञा कहाॅं थी। सिर्फ हाॅं में हाॅं मिलाने की ही अनुमति थी और यदि गलती से भी माॅं सही गलत का भेद बता देती तो पिता कई कई दिन बिन खाए रहते और माॅं को अपराधी सा महसूस करवाते।
इसलिए कामिनी कभी मायके में अपनी स्थिति नहीं बता सकी थी। सोलह साल की होते ना होते कामिनी प्रौढ़ा स्त्री लगने लगी थी। उसके अंदर बनाव श्रृंगार की कोई चाह नहीं रही थी। अब सास ससुर पोते का मुॅंह देख लें तब चैन से परलोक वासी हो सकेंगे का प्रलाप शुरू कर चुके थे।
लेकिन कामिनी की काया रोज रोज की प्रताड़ना से अब इतनी कमजोर हो चुकी थी कि गर्भधारण भी समस्या बन गई थी।
दोस्त यार भी हॅंसी हॅंसी में स्वरूप पांडे की मर्दानगी पर सवाल उठने लगे थे, जिसके एवज में स्वरूप पांडे कामिनी पर हाथ उठा कर अपनी मर्दानगी को संतुष्ट कर रहे थे।
उस दिन एक अरसे बाद कामिनी खुश थी। जैसे ही वो घर में घुसे कामिनी को पहली बार धीमी आवाज में गुनगुनाते सुन उनका पारा चढ़ गया था और उन्हें उस वक्त उसकी खुशी बरदाश्त नहीं हुई और नशे की हालत में हाथ के साथ साथ लात घूॅंसों की बरसात होती गई थी।
पूरा का पूरा मोहल्ला स्वरूप पांडे की चीख और गंदी गालियों को सुन जमा हो गया था। अभी तक जो बात कामिनी की सहनशीलता के कारण घर के अंदर थी,
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आज सरेराह हो गई थी और ये कामिनी बर्दाश्त नहीं कर सकी और उसी रात उसने खुद को मृत्यु को समर्पित कर दिया था। पोस्टमार्टम में ही कामिनी के गर्भवती होने की बात सामने आई थी और उस शाम उसके गुनगुनाने का राज स्वरूप पांडे को समझ आई।
पिता उच्च पदाधिकारी थे ही ,सारी बात दबाने के साथ साथ बेटे को तत्काल विदेश की ओर रवाना कर वही व्यापार में मशगूल कर बसा दिया। कामिनी के पिता और भाई भी घड़ियाली ऑंसू बहा,जिसने जाना था , वो तो चली गई, कोर्ट कचहरी से क्या फायदा कह अपना पल्ला झाड़ ही चुके थे।
समय के साथ स्वरूप पांडे की दूसरी शादी हो गई, कामिनी की मौत ने उन्हें ऐसा डरा दिया कि अब वो अपनी दूसरी पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार करने लगे थे। लेकिन कामिनी पर किए गए अत्याचार का दाग अब उन्हें और उनके परिवार को जीने नहीं दे रहा था।
इसी दाग से बचने के लिए वो हमेशा के लिए विदेश के होकर रह गए थे। लेकिन उन्हें पता नहीं था कि ऐसे दाग कभी धुलते नहीं हैं।
सो यह दाग भी उनका पीछा करते हुए उनके घर पर भी से दस्तक दे चुका था और अब उनके पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचा था।
उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी एक समय आएगा जब लोग ऐसे दागदार घर में अपनी बेटी ब्याहना पसंद नहीं करेंगे।भले ही वो घर या उस घर का बेटा कितना भी लायक क्यूॅं ना हो।
उन्होंने सोचा नहीं था कि एक समय ऐसा भी आएगा जब प्यार और विश्वास सर्वोपरि होगा।
आरती झा आद्या
दिल्ली
#दाग
(v)
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