दाग – उमा वर्मा : Short Moral Stories in Hindi

सीमा स्कूल से आकर चुप चाप अपने कमरे में बन्द हो गई ।” सीमा, दरवाजा खोल बेटा, खाना तो खा ले” माँ ने पुकारा तो भी वह कमरे में बन्द ही रही।माँ ने सोचा थक गयी होगी, थोड़ी देर में आराम कर लेगी तो खुद ही खा लेगी।

लेकिन जब शाम तक वह कमरे से नहीं निकली तो माँ को चिंता हुई ।रात में पापा घर आये तो बेटी को आवाज़ दिया ।” बेटा, खाना तो खा ले माँ ने पुकारा तो भी तुम नहीं निकली,क्या बात है?”” अभी मन नहीं है पापा, बाद में खा लूंगी ” ।

ठीक है कोई बात नहीं है ।पिता निश्चिन्त हो गये।तुम भी न सरला ,नाहक परेशान हो जाती हो।अपने पत्नि से बोले सुधीर जी ।रात में बेटी ने खाना नहीं खाया ।सभी लोग सोने चले गये ।सुबह सीमा उठी तो माँ ने गौर किया ।

वह बुझी बुझी सी लगी।स्कूल की कोई तैयारी नहीं थी ।माँ, मै आज से स्कूल नहीं जाऊंगी ।” कयों बेटा?” ” बस ,ऐसे ही “। ठीक है तबियत सुधर जाए तो चली जाना।लेकिन आठ दिन बीत गये ।सीमा ने स्कूल जाना बंद कर दिया ।

एक दिन माँ ने बेटी को घेर लिया ।” देख रही हूँ तुम मनमानी करने लगी हो” पढ़ाई छोड़ कर घर बैठ जाओगी तो भविष्य क्या होगा, पता है?” शामको सुधीर घर आये ।मालूम हुआ बेटी ने पढ़ाई छोड़ दिया है ।पत्नि को समझाया ।

” देखो सरला,अब जमाना बदल गया है ।तुम प्यार से उससे पूछो ,बात क्या है? उसके मन में कोई गांठ है, वह तुम को समझदारी से खोलना होगा ।” फिर सीमा ने जो बताया वह चौंकने वाली बात थी ।” माँ, मेरे स्कूल के साइंस टीचर बहुत बुरे हैं “

” आखिर हुआ क्या, बतायेगी भी?” इस बार माँ झल्ला उठी बेटी पर ।सीमा खुल कर नहीं बोल पायी।माँ देख रही थी वह न ठीक से खाना खा रही है न किसी से बात कर रही है ।बहुत चिंता हुई उसे ।

लेकिन कोई उपाय नहीं सूझ रहा था ।पन्द्रह दिन बीत गए ।उसकी तबियत खराब होने लगी थी ।अक्सर खाने के बाद उल्टियाँ हो जाती ।माँ की घबराहट बढ़ती गई ।जो लक्षण दीख रहा था वह ठीक नहीं था।

गुस्से में आकर सरला ने पीट दिया एक दिन बेटी को ।उस रात सीमा बहुत रोयी।खाना भी नहीं खाया ।किसी से कोई बात नहीं हुई ।अपने कमरे में बन्द हो गई ।माँ को लगा, पिटाई कर दिया है तो नाराज हो गई होगी, खुद ही ठीक हो जाएगी ।

सरला को गुस्सा भी था और चिंता भी बेटी के प्रति तो थी ही ।सोचा सुबह देखा जाएगा ।रात भर न माँ सो पायी न पिता ।सुबह सब लोग उठ कर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर बेटी को आवाज़ दिया तो कोई उत्तर नहीं मिला ।

अब माता पिता की चिंता बढ़ती गई ।आठ बज गए ।नौ बज गए ।सीमा नहीं निकली कमरे से तो अंत में दरवाजे को तोड़ने का ही उपाय था । यह क्या? सीमा पंखे से झूल रही थी ।फिर तुरंत उसे नीचे उतारा गया तो जीवन का कोई चिन्ह शेष नहीं था ।

माँ तो पछाड़ खा कर बेहोश हो गई ।पिता ने देखा तकिए के नीचे एक खत रखा हुआ है ।” माँ और पापा, आप मुझे माफ कर देना ।आप की बेटी किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रही थी ।मेरे ही स्कूल के टीचर ने मेरे माथे पर कलंक का टीका लगा दिया है ।

अब चाहे लाख उपाय कर लेंगे ।मुझ पर लगा दाग क्या कभी मिट पायेगा? लोग भले न समझें पर मै खुद को कभी माफी नहीं दे सकती ।जानती हूं पापा इसमें मेरी कोई गलती नहीं है लेकिन दुनिया क्या इस दाग को मिटाने में मेरी मदद करेगी? नहीं ना?

तो आपलोग भी तो बदनाम हो जायेंगे ।बस यही एक उपाय मेरे पास बचा था कि मैं अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूँ ।जानती हूं पापा मेरे जाने के बाद आप बहुत परेशान हो जायेंगे ।पुलिस केस होगा ।मेरे शरीर के अंगों की चीर फाड़ होगी ।

सबसे निबटना बहुत मुश्किल होता है ।लेकिन आप सबकुछ संभाल लेंगे पापा ।आप बहुत बहादुर और हिम्मत वाले हैं ।हो सके तो मुझे माफ कर देना पापा, माँ ।मै भी कहाँ छोड़ना चाहती थी आप लोगों को ।लेकिन कोई चारा नहीं बचा था मेरे पास ।”

आपकी प्यारी बेटी , सीमा ” पत्र पढ़ कर सुधीर जी भी गिर पड़े ।” यह क्या किया तुमने बेटा? हम दुनिया से लड़ लेते, लेकिन तुम्हारी जान तो नहीं जाती ।तुम्हारी तो कोई गलती ही नहीं थी।हम इस दाग को मिटाने के लिए तैयार रहते ।

मेरी बच्ची ,यह बहुत गलत फैसला कर लिया तुमने ।शाम होते होते सारी कारवाई पूरी हो गई ।और पोस्ट मार्टम भी हो गया ।सीमा की अंतिम यात्रा खत्म हो गई ।सुधीर जी घर लौटे तो पत्नि खाट पर निश्चेष्ट पड़ी थी।हिलाया डुलाया, कोई प्रतिक्रिया नहीं ।

उसदिन और एक अर्थी निकली घर से ।दाग मिटाने का फैसला सही था? यह अपने पाठकों पर ही छोड़ती हूँ ।यह एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी है ।जो हमारे पास ही घटित हुई थी ।हमारे ही सोसायटी में ।

स्वरचित, मौलिक, व अप्रकाशित ।

उमा वर्मा ।नोयेडा ।

#दाग

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