अभागन – डॉ. संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

मेडिकल कॉलेज का पहला दिन था आज मेघा का,उसका एडमिशन इतने प्रतिष्ठित कॉलेज में हो गया था और वो बिलकुल सामान्य थी,कोई और होता तो खुशी से झूम उठता।अखिल बहुत देर से उसे यूं उदास देख रहा था,मेघा,मेरिट से चुने गए लोगों में प्रथम स्थान पर थी और अखिल द्वितीय पर,उसे लगा चलो! उसे बधाई देता हूं और दोस्ती भी कर लूंगा उससे इस बहाने, पर मेघा का रूखा सा रिस्पॉन्स उसे बहुत खला था।

मेघा वाकई में प्रतिभाशाली थी,चाहे लेक्चर हो या कोई प्रोजेक्ट,वो सबसे आगे ही रहती,अखिल उसे चुपचाप नोटिस करता रहता लेकिन वो बस अपने काम से काम रखती,उसकी अखिल से ही नहीं किसी और लड़की से भी दोस्ती न थी।

पहला सेमेस्टर खत्म होने आया और मेघा के व्यवहार में कोई फर्क न आया।वो पहले दिन जैसी गंभीर और चुपचाप ही बनी रही।

उस दिन,सेमेस्टर का आखिरी एग्जाम था और अचानक बहुत तेज बारिश आ गई।बारिश भी क्या मानो तूफान था, ओलो और बिजली गिरने के साथ बहुत जोरदार झंझावत था।

मेघा का रिक्शा नहीं आया था और वो परेशान हो रही थी।तभी अखिल उसके पास आया और अपनी गाड़ी का हॉर्न बजाने लगा…

गाड़ी से मुंह बाहर निकाल वो बोला,”आइए! मैं आपको घर छोड़ दूं।”

“थैंक्स.. मैं मैनेज कर लूंगी।”मेघा ने मना कर दिया जिसकी उम्मीद अखिल को थी पहले से।

“मेघा जी!”हिम्मत कर अखिल बोला,”आपकी समस्या क्या है?हम संग पढ़ते हैं,कल को हम डॉक्टर बन जायेंगे,क्या इतना ही विश्वास करेंगी आप अपने पेशेंट्स पर भी?जैसा आज का मौसम है,रात तक भी आपको कोई व्हीकल नहीं मिलेगा,यहीं रहेंगी सारी रात?”

मेघा ने अखिल को देखा,उसकी बात की गहराई नाप रही हो जैसे,कुछ कश्मकश थी उसके चेहरे पर..

अब आ भी जाइए, मै आपको खा नहीं जाऊंगा।अखिल ने जोर दिया तो मेघा झिझकती हुई बैठ गई।

बहुत तेज बिजली चमकी और मेघा डर गई।

अखिल ने झट गाड़ी स्टार्ट कर दी।सारे रास्ते वो दोनो चुप रहे,बस मेघा ने उसे एड्रेस बताया और अखिल ने उसे वहां तक सुरक्षित पहुंचा दिया।

जब मेघा उतर रही थी तो अखिल ने एक उम्मीद के साथ उसे देखा,शायद वो उसे अपने घर आने को कहे,इतने गंदे मौसम में अपने हाथ की चाय ही पिलवा दे और अपने पेरेंट्स से मिलवाए पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

मन मसोस के रह गया था वो,फिर उसने दिमाग को झटक दिया, “ऊंह!कोई इसकी चाय को थोड़े ही लाया था मैं इसे,पहुंच गई न घर ठीकठाक,बस बहुत है।”

पर,मेघा को पहली बार खुद पर बहुत शर्म आई,”काश! मैं उसे बुला पाती!!कितना मन था पर पता नहीं पापा क्या सोचते?”

दूसरी तरफ अखिल सोच रहा था,”ये मेघा का घर तो बहुत सुंदर और शानदार लग रहा था,ये जितने बड़े लोग होते हैं,उनका दिल उतना ही छोटा होता है।”

अगले दिन,मेघा ने अखिल से कल के लिए सॉरी बोला।

“क्यों,आप सॉरी क्यों भला?”अनजान बनते वो बोला।

“कल मैंने आपको एक कप चाय तक को नहीं पूछा,आप कल मुझे न छोड़ते तो मैं कैसे आती?”वो मासूमियत से बोली।

“कोई बात नहीं,आज पिला दीजिए।”अखिल ने कहा तो मेघा कोई बहाना न बना सकी और वो दोनो कॉफी कैफे पहुंच गए।

कॉफी पीते हुए,अखिल ने मेघा से पूछ ही लिया आज,”एक बात पूछूं,आप बुरा तो नहीं मानेगी?”

“कहिए!”,मेघा जानती थी वो क्या पूछेगा लेकिन उसके दिल पर भी जैसे पत्थर रखा था,वो खुल कर किसी को अपना दर्द बताना चाहती थी मानो।

“आप इतनी प्रतिभाशाली हैं,संवेदनशील भी लगती हैं फिर इतना रूखा व्यवहार क्यों?सबसे कटी हुई क्यों रहती हैं?”

“क्योंकि मैं बहुत अभागन हूं?”वो बोली तो अखिल को हाथ से कॉफी मग गिरते बचा।

अभागन?? व्हाट रबिश!!यू मीन  अनलकी!!

वो बोला।

“जी..”आंखें झुकाते वो बोली,”जब मैं पैदा हुई थी तो मेरी मां मर गई थी और मेरे डैडी मेरी मां को अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे बस वो मेरी परछाई से भी नफरत करते हैं आज तक।”

“ये क्या अजीब बात है?एक बाप अपनी सगी,मासूम बच्ची से कैसे नफरत कर सकता है?”

उनकी देखा देखी घर में सब लोग,ऐसा ही कहने लगे।ये दाग मेरे चरित्र पर पैदाइशी ही है जो मुझे समझ नहीं आता,कैसे मिटेगा?कहकर वो रोने लगी।”लोग कहते हैं ये पैदा होते ही अपनी मां को खा गई।”

“प्लीज आप रो मत,आप तो एक डॉक्टर बनने वाली हो जो जीवन देता है,लेता नहीं।”अखिल ने उसे ढाढस बंधाया।

समय बीतता गया,मेघा एक सफल फिजिशियन बन गई।उसका हाथ लगते ही गंभीर से गंभीर बीमारी खत्म हो जाती।संयोग की बात है कि एक बार,खुद उसके पापा का लाइलाज ट्रीटमेंट,मेघा ने ही किया।जहां काबिल सीनियर डॉक्टर्स भी हाथ खड़े कर चुके थे और उन लोगों से कह रहे थे,अब दवा की जगह दुआ काम करेंगी,मेघा ने अपने पिता का सफल ऑपरेशन किया और उन्हें मौत के मुंह से खींच लाई।

जब उसके पिता स्वस्थ हुए,उन्होंने मेघा को अपने ह्रदय से लगा लिया,” मैं तुझे हमेशा तेरी मां के हत्यारे के रूप में ही देखता था,ये मेरी ओछी सोच थी बेटा!मुझे माफ कर दे, तूने मेरे प्राण ही नहीं बचाए बल्कि एक अभागे पिता को अज्ञान के अंधेरे से भी निकाला है, मैं तुझे अभागन  समझता रहा,तेरे वजूद को दाग लगाता रहा,अभागा तो खुद था जो तुझ जैसी फरिश्ते सी बेटी को न पहचान पाया।मुझे माफ कर दे बेटी।”

मेघा और उसके पिता लिपटे हुए रोते रहे,आज दोनो का ही नया जन्म हुआ था जिसमें उन्हें खुल कर एक दूसरे के साथ रहना था।

समाप्त

डॉ संगीता अग्रवाल

वैशाली

#दाग

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!