सोचो के झीलों का शहर हो उसमें अपना एक घर हो ..ये सुनने में जितना अच्छा लगता है। हक़ीक़त में झीलों का शहर सब उथल पुथल कर देता है । ये कहानी भी ऐसे ही झीलों के शहर की है ,जिसमें सब तैर कर पार जाना चाहते है ।वीर और आरोही दो नाम ,दो जान एक दूसरे से कोई वास्ता नहीं ! पर जब ये एक राह पे रूबरू होते हैं तो उनके जीवन में कई बदलाव आते हैं।
कश्मीर के छोटे से कस्बे से आए वीर ने दिल्ली के एक कॉलेज में हिंदी लिटरेचर कोर्स में एडमिशन लिया । उसके पिता जी बचपन में ही उन्हें छोड़ कहीं चले गये थे । तब से उसकी माँ ने ही उसको पिता और माँ दोनों का प्यार दे बड़ा किया। इसलिए उसके जीवन में माँ की एक ख़ास जगह थी । वीर मिज़ाज से सरल,शर्मिला स्वभाव होने के कारण अपने काम से ही काम रखता था ।आज उसका कॉलेज में पहला दिन था , तो वो थोड़ा नर्वस सकुचाते हुए …. अपना बैग थामे कोरिडोर में चले जा रहा था । तभी पीछे से एक लड़की भागती हुई आयी…..और उसे राजीव बोल सम्बोधित करने लगी !! तभी वीर ने कहा-“मैम आपको कोई ग़लतफहमी हुई है ।
मैं राजीव नही,वीर हूँ ! थोड़ी देर में वो लड़की उसे देख मुस्कुराने लगी । इससे पहले वो कुछ समझ पाता इतने में वो लड़की उसे सॉरी बोल कहने लगी कि “मेरे दोस्तों ने मुझ से शर्त लगायी थी ,कि तुम मुझे अपना नाम इतनी आसानी से नही बताओगे । पर तुमने तो मेरे कुछ कहने से पहले ही मुझे शर्त जीता दी “। तुम्हारा बहुत शुक्रिया बोल ! वो अपने दोस्तों से शर्त के पैसे लिए चली गयी । वीर अचंभित खड़ा सोचता रहा बताओ कैसे सीनियर है ???आज तो पहला ही दिन है और ये सब ! बच के रहना पड़ेगा इन सबसे !!
कुछ दिन बाद वो लड़की और उसके दोस्त वीर को फिर से कैंटीन में मिले । देखने पे वो बहुत निडर ,नए दौर,नयी सोच की मालिक लग रही थी । सब कैंटीन में जोर जोर से नारे लगा रहे थे । क्योंकि छात्र संघ के चुनाव की तैयारी चल रही थी । जब उनका चुनाव प्रचार का पर्चा देखा तो पता चला की, वो यहाँ अपने दोस्त विवेक ! जो चुनाव में खड़ा हुआ है , उसका समर्थन करने आयी हैं ।
तभी किसी ने मीठी सी धुन में उसका नाम आरोही पुकारा ! ! जिसे सुनते ही एक नया सा साज बजने लगा । जाते हुए जब वो वीर के पास से गुजरी तो उसके रोंगटे खड़े हो गए ।कॉलेज में चुनावों की सरगर्मी चल रही थी । तो कक्षाएँ भी ख़ाली ही रहती या कुछ बच्चों की ही मौजूदगी होती । एक दिन विवेक वीर के पास आया और उससे प्रार्थना करने लगा कि वो हिंदी भाषा में एक भाषण लिखें और उनकी पार्टी की मदद करे ।
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वीर- आप क्या कह रहे हैं ??? मैं आपकी पार्टी के लिए भाषण…..
हाँ क्यों नहीं ?? मुझे पता चला है ! कि तुम हिंदी भाषा के अच्छे ज्ञाता हो !! देखो यार हमारी तो हिन्दी अच्छी नहीं है अगर हम लिखने बैठे तो कुछ का कुछ लिख देगें । इसलिए तुम से निवेदन कर रहे है…. वीर उन्हें मना नही कर पाया । जैसे-जैसे चुनाव प्रचार होता रहा वीर की भी सबसे अच्छी दोस्ती हो गयी । उसके भाषण , उसकी कर्मठता से सब बहुत प्रभावित हुए । वीर भी धीरें- धीरें ना चाहते हुए आरोही की तरफ़ आकर्षित होने लगा ।
कुछ दिनों बाद चुनाव नतीज़े सामने आये और विवेक चुनाव जीत गया । विवेक ने कॉलेज के बाहर एक पार्टी का आयोजन किया । जिसमें सभी छात्र – छात्राओं को बुलाया गया । वहाँ वीर आरोही का बेचैनी से इंतज़ार कर रहा था ।लेकिन आरोही किसी कारण वश आ नहीं पाई । तब वीर को एहसास हुआ कि इन कुछ दिनों में ही आरोही उसके लिए कितनी खास हो गयी थी । वो ये एहसास आरोही को बताने के लिए जाना चाहता था , लेकिन उसके दोस्त ने उसे रोका और कहा “ये उचित समय नही है !अभी तुम एक दूसरे को जानते ही कितना हों “।अपने दोस्त की बात सुन उसे भी एहसास हुआ कि कहीं वो जल्दबाज़ी के चक्कर में सब ख़राब ना कर दे ।
ऐसे ही समय का पहिया चलता रहा । वीर ने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया । सब दोस्तों के कहने पर वीर ने एक छोटी सी चाय समोसा पार्टी रखी ।जिसमें उसके सभी दोस्त शामिल थे ,और उसे मुबारक बाद दे रहे थे । लेकिन जैसे ही आरोही उसके सामने आती तो उसके लबों पे एक सन्नाटा सा छा जाता था ।उसकी घबराहट देख आरोही बोल पड़ी !! लगता है मैं हिटलर हूँ ! “जो मुझे देख वीर की बोलती बंद हो जाती हैं , या फिर ये बस भाषण ही लिख सकता हैं “ । ये सुन ! वीर भी बोल पड़ा ना तुम हिटलर हो ! ना ही मैं ख़ामोश हूँ ! बस इस पल ना तुम अपने हो ,ना ही बेगाने हो !! तुम कौन हो ?? कैसे कह दू ?? एक पहेली बन हवासों पे छाए हों .. …..
वाह वाह बहुत खूब !! वहाँ खड़े सब लोग उसकी शायरी की दाग देने लगे । हमे नहीं पता था कि तुम शायरी भी कर लेते हों । लेकिन ये सब सुन आरोही कुछ ख़ामोश सी खड़ी वीर को ही देख रही थी । शायद वो उसकी आँखों में अपना नाम पढ़ चुकी थी । थोड़ी देर में वो वहाँ से बिना कुछ कहे चली गई । उस रात के बाद वीर की बेचैनी और बढ़ गई । उसने अपनी दुविधा दूर करने के लिए आरोही को फ़ोन किया ,पर उसने कोई जवाब नहीं दिया । तीन चार दिन बाद वीर ने उसकी सहेली से उसके घर का पता लिया और अगली सुबह सब भूल कर हाथो में फूल लिए उससे मिलने उसके घर पहुँचा । तो आरोही उसके सामने आ खड़ी हुई ।
तुम यहाँ भी आ गए ! क्या हुआ आरोही तुम मुझसे इतना कतरा क्यों रही हो ?? आख़िर मुझसे कोई गलती हुई है तो मुझे बताओ !
जब वो जाने लगी तो वीर ने अपने प्यार का इज़हार कर दिया और कुछ पल बाद आरोही वीर के पास आयी और बोली “ मैं ऐसा कुछ नहीं सोचती ! तुम मेरे बस एक अच्छे दोस्त हो” ! लेकिन आज तुमने ऐसा सोच ये दोस्ती भी ख़त्म कर दी है” । ये बोल वो जाने लगी तो वीर ने पूछा कि “तुम मुझसे प्यार क्यों नहीं कर सकती “??
आरोही ने गहरी साँस ली और बोली-“ क्या तुम मुझसे प्यार करना बंद कर सकते हो ! मुझे भूल सकते हो “ !
वीर ने कहा नहीं ……..
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ऐसे ही मैं तुम्हारे कहने या सोचने पे तुम से प्यार नहीं कर सकती ।प्यार जब होना होता है तब होता है ! ना कि ज़ोर ज़बरदस्ती से । ये कह वो जाने लगी और कुछ दूरी पे जाकर बोली उम्मीद करती हूँ अब तुम ये सब हरकते करना बंद कर दोगे । ये सुन ! वीर कुछ ना कह पाया….. बस जाते हुए लम्हों को समेट मोहबत की संदूक में दफ़न कर नफ़रत के ताले से जकड़ दिया ।और उम्मीद की चाबी को काले घने अतीत के साये में फेंक दिया । अगले दिन अपने को पठार सा मज़बूत कर नए तूफ़ानो से भिड़ने निकल पड़ा ।
अब पहले जैसा कुछ नहीं था ना ही वीर ,ना ही समय । क्योंकि एक बार गुजरा हुआ पल वापस नहीं आता । अब वीर का एक ही उद्देश्य था एक अच्छी नौकरी और अपनी माँ की हर इच्छा पूरी करना । अब जब कभी वो दोनो एक दूसरे के आमने सामने आते तो अजनबियों की तरह कतरा के निकल जाते । जहाँ एक तरफ वीर ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया । वही आरोही भी संगीत सीखने में व्यस्त हो गयी। यूँही वक्त गुजरा और आरोही अपनी मंज़िल की ओर कदम बढ़ाते हुए सब कुछ पीछे छोड़ चली । एक वर्ष उपरांत वीर ने भी कॉलेज पास किया और आगे की पढ़ाई ले लिए दूसरे शहर चला गया ।
कुछ सालों में वीर को एक सरकारी कॉलेज में पढ़ाने की नौकरी मिल गई । वीर अपनी माँ को साथ ले लखनऊ पहुँचा जहाँ उसे किराए पे एक मकान मिला । अब उसकी माँ का बस एक ही सपना था कि उसके जीवन में एक ऐसी साथी आए जो उसे सम्भाले , कभी गिरने ना दे । बस यही सोच वीर की माँ ने उसके लिए जीवन साथी की खोज शुरू कर दी । यहाँ भी कॉलेज के विद्यार्थी बड़े ही शैतान थे । उन्हें देख वीर को भी अपना वक्त याद आ गया । सच में ये समय कितना अच्छा होता है हर फ़िक्र से ,हर ज़िक्र से आज़ाद बस परिंदे की भाँति उड़ते रहते हैं ।
दो महीने बाद बेला वीर के पास आयी और बोली सर मुझे हिंदी समझ तो आ जाती है पर मुझे थीसिस लिखने में दिक़्क़त आ रही है । क्या आप मेरी मदद कर देंगे ?? सर कॉलेज में तो समय ही नही मिलता । क्या आप छुट्टी वाले दिन घर आकर कुछ दिनो के लिए पढ़ा दिया करेंगे??? वीर कुछ सकुचाते हुए बोला ! ठीक है पहले तुम्हारे घरवालों से बात करूँगा फिर देखता हूँ । बेला मुस्कुराती हुई ठीक है सर ! आप कल आ जाएगा ।
अगले दिन वीर शाम को बेला के घर पहुँचा और दरवाज़े पे दस्तक देने लगा । तभी बेला आयी और उसे अंदर ले गयी । वीर ने कहा अपनी माँ को बुला दो या बाबा को …. सर मेरे माँ बाबा का देहांत एक वर्ष पहले हो चुका हैं ! ओह !! तो अभी घर में कौन हैं ???? सर मेरी भाभी हैं वो बस पास में ही गई हुई है ….. और तुम्हारे भैया ???? ….. वीर की ये बात सुन वो ख़ामोश हो गयी …..थोड़ी देर के सन्नाटे के बाद वो बोली सर वो हमारे साथ नही रहते ! उनकी अपनी एक अलग दुनिया है । ये सुन ! बहुत अचरज हुआ फिर वीर को लगा कि ज़्यादा पूछना उचित नही हैं ! क्योंकि ये उनका पारिवारिक मामला है । उसी क्षण घंटी बजी तो थोड़ी राहत मिली ! चलों अब मैं उनसे बात कर जल्दी निकलता हूँ ।
थोड़ी देर बाद बेला चाय लेकर आयी और बोली सर बस पाँच मिनट में भाभी आ रही है । जब बेला की भाभी अंदर आयी तो उनके आने से पहले एक महक वीर तक पहुँची अरे ! यें तो वही ख़ुशबू हैं जो आरोही लगाती थी ।वीर मन में आरोही की कल्पना करते हुए सोच में डूब गया और जब बेला की भाभी ने उसके सामने आकर नमस्ते बोला तो वीर हड़बड़ा के खड़ा हुआ…. नमस्ते मैम !
माफ़ करना मुझे आने में थोड़ी देरी हो गयी !
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कोई बात नहीं …….मैम
सर आप बस इसे कभी कभार आकर थोड़ा पढ़ा दिया करे ताकि इसका मनोबल बना रहे । आपका बहुत आभार होगा । मै इसकी पढ़ाई की वजह से चिंतित रहती हूँ । वीर उसकी निःशब्द आँखो को ना कह ही नही पाया । ठीक है रविवार को आता हूँ । मेरा घर भी पास हैं तो आने जाने में कोई दिक़्क़त नही होगी । बेला की भाभी ने जब फ़ीस की बात की तो वीर ने कहा – देखिए ऐसा कुछ नही हैं क्योंकि मैं बच्चों को ट्यूशन नहीं देता । यें तो बेला के ज़्यादा इसरार करने पर मैं तैयार हुआ हूँ ।
चार दिन बाद वीर बेला के घर गया और उसे पढ़ा कर वापस आकर खाना खाकर सो गया । पूरे हफ़्ते कॉलेज और छुट्टी वाले दिन बेला को पढ़ाना ।यही दिनचर्या के चलते वो बहुत व्यस्त रहने लगा । उसे अपनी माँ के लिए भी बड़ी मुश्किल से समय मिलता । लेकिन वो खुश था की उसकी और बेला की मेहनत रंग ला रही थी । इस बार बेला का हिंदी साहित्य में तीसरा स्थान आया । एक दिन जब वो पढ़ा रहा था तो बहुत तेज बरसात होने लगी । वीर को लगा ऐसा ही चलता रहा तो वो घर कैसे जाएगा ?? बेला की भाभी ने पकोड़े बनाए थे वो भी ख़त्म हो गए पर बरसात बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी । वो सब बैठ बातें कर रहे थे । तभी बातों बातों में वीर को बेला की भाभी का नाम पता चला ।
जैसे ही बरसात थमी तो वीर अलविदा कह जाने लगा…..उसी पल वीर के मोबाईल की घंटी बजी तो पता चला की वीर की माँ की तबियत खराब हो गयी है । पड़ोसी उन्हें अस्पताल ले कर गए है । ये सुन वीर घबरा गया ! तभी नूरी ने कहा मैं भी आपके साथ चलती हूँ । वीर उसकी तरफ राहत भरी नज़रों से देखने लगा । दोनो जब अस्पताल पहुँचे तो पता चला कि वीर की माँ का ब्लड प्रेशर कम हो गया था । इसलिए वो बेहोश होकर गिर पड़ी थी । लेकिन अब वो ठीक है ये जान वीर ने चैन की साँस ली । नूरी उसके लिए चाय लेकर आयी और बोली ये पी लो अच्छा लगेगा । वीर ने चाय पी और नूरी का शुक्रिया अदा किया ।
वीर ने नूरी को बोला अब माँ ठीक है । आप अपने घर जा सकती हो ! नही ,मैं यहीं रुकती हूँ, क्योंकि अंदर एक महिला अटैडेंट ही रह सकती हैं । अगर आप को तकलीफ़ ना हो तो आप बेला के पास घर चले जाएगा ।आज तक मैंने उसे रात को कभी अकेला नहीं छोड़ा । मैं …लेकिन वो मेरे साथ अकेली रहेगी तो अच्छा नहीं लगेगा ……
नूरी बोली- जिस इंसान ने कभी मेरा नाम जानने की चेष्टा नहीं की , जिसके आस पास होने से हमने हमेशा महफ़ूज़ महसूस किया हो । वो इंसान गलत नहीं हो सकता । मुझे आप पे भरोसा हैं ! ये सुन वीर आत्मविश्वास के साथ बेला के घर चला गया ।
अगली सुबह जब वीर माँ से मिलने गया तो माँ के चेहरे पे वो ही आभा थी ,जो कुछ साल पहले दिखती थी । यें देख वो बहुत खुश था , माँ और नूरी जी को देख लगा ही नहीं कि वो अभी मिले है । ऐसा लग रहा था ना जाने कितने वर्षों से जान पहचान है । वीर ने नूरी का शुक्रिया किया जब नूरी जाने लगी तो वीर की माँ ने बोला बेटी जल्दी मिलने आना । ठीक है आंटी ! बोल वो चली गई…….
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बुर्क़े वाली – दीपा शाहु
माँ आज ठीक है और नूरी जी की तारीफ करते थकती नहीं है । कॉलेज में पेपर शुरू हो गए थे वीर व्यस्त रहने लगा । एक दिन सुमित्रा जी ने नूरी को फ़ोन कर घर आकर ख़ाना खाने का निमंत्रण दिया । रात को जब वीर घर आया तो नूरी और बेला को घर पाकर आश्चर्य चकित हो गया । आप लोग ???
क्यों कोई दिक़्क़त है …??. नहीं माँ आपने बताया नहीं ? मैं तुमसे इतने दिन से बात करना चाह रही थी । पर तुम्हारे पास तो समय ही नहीं था , तो मैंने ख़ुद ही बुला लिया ।
माँ आपने अच्छा किया ! मैं भी इनका शुक्रिया करना चाह रहा था ।
थोड़ी देर बाद वो दोनों चली गई और वीर की माँ वीर के पीछे पड़ गई की वो नूरी से शादी कर ले मुझे वो बहुत पसंद आयी है !
माँ ऐसे थोड़ी होता है ! आप क्या जानती है नूरी के बारे में …….
मैं तुमसे ज़्यादा जानती हूँ ! उसने मुझे सब कुछ बता दिया हैं।
अगर तुम हाँ कहो तो मैं बात आगे बढ़ाती हूँ ……
दूसरी तरफ़ बेला का भी कॉलेज पूरा होने वाला था । यें सोच नूरी को बेला की चिंता सताने लगी । अगले दिन सुमित्रा जी वीर के साथ नूरी के घर पहुँची । उन्हें देख नूरी बहुत खुश हुई । थोड़ी देर बाद वीर और बेला को कुछ सामान लाने के लिए बाज़ार भेजा ।तभी नूरी और सुमित्रा जी चाय पीते हुए कश्मकश में दिखी । दोनो की आँखो में बहुत सवाल थे । पर नूरी ने हिम्मत कर पूछ ही लिया…… “माँ जी क्या मैं आपके वीर का हाथ अपनी नंद बेला के लिए माँग सकती हूँ “ ??? ये सुन सुमित्रा जी असमंजस में दिखी कि मैं तो यहाँ इसका हाथ माँगने आयी थी पर यें तो …..सुमित्रा जी ने उसे उनकें घर आने का मक्सद नहीं बताया ।
नूरी ने कहा -माँ जी मैं आपसे कुछ नहीं छिपाना चाहती । मैं विजय से प्यार करती हूँ हम दोनो एक साथ काम करते है ,और शादी करना चाहते है । लेकिन बेला मेरी ज़िम्मेदारी है ! जब तक मैं इसे सुरक्षित रुखसत नहीं कर देती , तब तक मैं भी शादी नहीं करूँगी । फिर चाहें उसमें कितना ही समय लगे । उसकी ये बाते सुन सुमित्रा जी के मन में उसकी इज़्ज़त ओर बढ़ गई ।माँ जी आप चिंता नहीं किजीए बेला मुझसे भी अच्छी है आपको कोई शिकायत का मौक़ा नहीं देगी । बस आप हाँ बोल दिजीए …….
नूरी की बाते सुन सुमित्रा जी ने बहुत सोचा और शादी के लिए हाँ कह दी ।
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खामोश वक़्त – भगवती सक्सेना गौड़
थोड़ी देर बाद जब वीर और बेला एक साथ आए तो ,दोनों साथ में अच्छे लग रहे थे । ये देख सुमित्रा जी का यक़ीन और पक्का हो गया कि जो उन्होंने किया है वो सबके लिए ठीक है । नूरी अंदर से मिठाई लेकर आयी और सबको खिलाने लगी । कुछ समय बाद जब वीर और उसकी माँ घर पहुँचे तो सुमित्रा जी ने बड़ी झिझक से कहा “मैंने तुम्हारा रिश्ता पक्का कर दिया है “। पता है माँ तभी तो मिठाई खिलायी जा रही थी । नूरी मान गई उसे कोई परेशानी तो नहीं है ??
वीर का सवाल सुन सुमित्रा जी बोली बेटा ! बोलो माँ ! वो …. नूरी नहीं बेला के साथ बात पक्की की है !!
ये सुन वीर के हाथ से गिलास छूट नीचे गिर गया …. बहुत लंबी खामोशी के बाद एक आवाज़ आयी ….माँ आप ये क्या कह रही है ??? बेटा !मेरी बात तो सुनो ! नूरी तुम से शादी नहीं करना चाहती ,वो किसी ओर को पसंद करती है ।
वीर -अगर किसी और को पसंद करती है तो आप बेला …. बेला के लिए हाँ बोल आयी !!
माँ वो मेरी विद्यार्थी है !
विद्यार्थी है तो क्या ?? पर वो मुझे पसंद है और मैं हाँ कर चुकी हूँ । वीर ग़ुस्से में वहाँ से चला गया !
कुछ दिन बाद नूरी ने वीर को मिलने के लिए बुलाया और सब कुछ बताया । बस अब हम सब की क़िस्मत तुम्हारे हाथ में है ! जो चाहो जिस तरफ़ मोड़ना चाहों सब तुम पर निर्भर करता है । यें बोल नूरी चली गई ।
घर आकर वीर सारी रात यही सोचता रहा कि आख़िर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है ?? जिससे उम्मीद करता हूँ वो ही ना उम्मीद कर देती है । तभी रेडियो पे गाना बजने लगा …..उम्मीद जिससे ना थी वो आसरा है बनी ! मज़िल जो मेरी ना थी वो ज़ुस्तज़ू हो चली क़िस्सा था क्या क्या हो गया ?? शायद यही मेरी क़िस्मत है सोच उसने बेला को चुन लिया । सुमित्रा जी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा । वो वीर की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी । इसलिए अपने हाथों से सब काम करवा रही थी । आख़िरकार वो दिन आ ही गया जब वीर और बेला एक रिश्ते में बंध गए । बेला को विदा करते हुए…..नूरी ने वीर का शुक्रिया कहा और बेला का ध्यान रखना बोल !अश्रु से भीगे नयन लिए चौखट पे खड़ी सोचने लगी कि आज उसने अपने सास ससुर को दिया वचन पूरा कर अपना फर्ज निभाया ।
शादी के बाद वीर और बेला के लिए सब नया था । उन्हें एक दूसरे का साथ अपनाने में समय लग रहा था । सुमित्रा जी और बेला की अच्छी दोस्ती हो चुकी थी । ये देख वीर खुश था कि बेला ने इस रिश्ते को अपनाना शुरू कर दिया है । कुछ दिन बाद वीर का तबादला दिल्ली हो गया ।वीर के लिए तो ये शहर पुराना था ,पर माँ और बेला के लिए सब नया था । उन्हें सब अपनाने में थोड़ा समय लगा , पर कुछ समय बाद सब ठीक हो गया ।
वीर की तरक़्क़ी हो गई और उनके घर में एक नया मेहमान आने वाला था । सुमित्रा जी अपनी बहू का बहुत ध्यान रखती थी , इसी भागम भाग में एक दिन वो सीढ़ियों से गिर पड़ी । उनकी मौत ने सब बिखेर कर रख दिया था । वीर भी ख़ामोश रहने लगा ! बेला बहुत जतन करती कि वीर माँ को ज़्यादा याद ना करे पर वो सफल ना हो पायी ।
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बड़े भाई साहब – सरला मेहता
एक दिन बहुत तेज़ बरसात हो रही थी तभी बेला को लेबर पैन होने लगे । वीर उसे जल्दी से अस्पताल लेकर गया । पूरी रात इंतज़ार करने के बाद सूरज की पहली किरण के साथ खबर मिली कि घर में एक नन्ही परी आयी है । बेला के पास बैठ वीर ने जब बेटी को गोद में उठाया तो वो एहसास एक अलग ही एहसास था । मानो उसे सब कुछ मिल गया है वो प्यार वो एहसास वो रिश्ता जिसके लिए वो भटकता रहा । वीर ने बेला का शुक्रिया कहा और बेटी का नाम प्रियल रखा ।
वीर प्रियल के आने के बाद बहुत बदल गया था । अब वो खुल के जीना सीख गया था ।अब उसे किसी बात की कोई परेशानी नही थी । प्रियल के आने के बाद से उसका और बेला का रिश्ता एक मज़बूत रिश्ता बन गया । बेला अब बेझिझक कुछ भी कह सकती थी । तीनो एक साथ बहुत खुशहाल जीवन जी रहे थे । पर कहते हैं ना कि समय कभी किसी के लिए नही रुकता ! प्रियल कब बड़ी हो गयी वीर को पता ही नहीं चला ।
आज प्रियल ने कॉलेज पास कर लिया था । उसने थिएटर में अपनी एक पहचान बनाई ,और वो उसी क्षेत्र में अपना नाम बनाना चाहती है ।बेला को ये सब पसंद नहीं था , लेकिन वीर के आगे बेला की एक ना चलती । इसलिए प्रियल थोड़ी ज़िद्दी भी हो गई । प्रियल ने अपने लिए लड़का भी पसंद कर लिया और उसे वीर से मिलवाने के लिए घर बुलाया गया । बेला ने वीर से कहा – “देखो तुम ना एक दम हाँ मत कह देना “! पहले थोड़ा लड़के को परखना , उसके परिवार से मिलना बाद में कुछ कहना । यानी जितना समय मैंने तुम्हें हाँ बोलने में लगाया था उतना ही लूँगा । वीर ये सब बोल बात हंसी में उड़ा गया । क्योंकि बेला जानती थी कि वीर वहीं करेंगे जो प्रियल चाहती है । थोड़ी देर बाद प्रशांत घर आया । उससे मिलकर वीर और बेला दोनों को अच्छा लगा । लड़का अपनी ज़मीन से जुड़ा हुआ हैं कोई बनावट नहीं हैं । यें देख बेला संतुष्ट थी, वीर ने पूछा तुम्हारे पिता जी क्या करते है ??प्रशांत ने बोला मेरे पापा एक व्यापारी है और माँ की एक नृत्य शाला है वो डांस सिखाती है । वीर ने पूछा तो हम उनसे कब मिल सकते है ।प्रशांत ने बोला अंकल मैं आपको फ़ोन करके बताता हूँ । प्रियल बहुत खुश थी कि पापा को प्रशांत अच्छा लगा । बस अब हमारे घर वाले भी एक दूसरे से मिल ले ।
कुछ दिन बाद प्रशांत का फ़ोन आया और उसने कहा अंकल आप लोग कल शाम को घर आ सकते है !! वीर ने कहा ठीक है कल मिलते है । जब वीर अपने परिवार के साथ उनके घर पहुँचा तो उनकी शान शौक़त देख वीर थोड़ा नर्वस लगने लगा । तभी बेला ने उसका हाथ थामा और कहा कुछ नहीं सब ठीक है । ये देख वीर मुस्कुराने लगा …..बेला वीर की ओर देखती हुई बोली क्या हुआ ?? कुछ नहीं बस माँ याद आ गई ! वो यही चाहती थी की उनके बेटे को ऐसी जीवन साथी मिले जो उसे गिरने ना दे और तुम बिलकुल वैसी ही हो । मुझे कभी टूटने नहीं देती जब भी लगता है कुछ टूट रहा है तो तुम हाथ थाम सब जोड़ देती हो ।
वीर जी अगर मेरी तारीफ़ हो गई हो तो बेटी पे ध्यान दे……. पापा क्या है ?? आप को अभी भी रोमांस सूझ रहा है प्लीज़ मुझ पर फोकस करे । वीर ने मुस्कुरा कर बोला – ओके
तभी प्रशांत अपने पापा के साथ आया और हम लोगों ने खूब बाते करी ।वीर ने उन्हें पहले ही बता दिया कि वो उनकी तरह अमीर नही हैं ,पर अपनी बेटी के लिए कुछ भी कर सकता हैं । मिस्टर वर्मा ने कहा -“मैं ये सब बातें नही मानता….मैं तो बस अपने बेटे की ख़ुशी चाहता हूँ “।बेला ने प्रशांत से पूछा बेटा तुम्हारी माँ नहीं दिख रही । बस आंटी जी वो आती होंगी………..तभी एक आवाज़ आयी जिसे सुन वीर के रोंगटे खड़े हो गए । दिल में वोही पुराना साज बजने लगा । थोड़ी देर में हाथों को जोड़ती हुई जब वो वीर के सामने आयी तो उसके पैरो तले ज़मीन खिसक गयी … आरोही तुम ! ……. प्रशांत ने पूछा क्या आप लोग एक दूसरे को जानते है ??? आरोही बोली .. हाँ बेटा ! हम एक ही कॉलेज पढ़े हैं ।
प्रियल ! तुम्हारी बेटी है ये मुझे नही पता था । खैर तुम क़ैसे हो….अपनी बीवी से नही मिलवाओगे??? यें बेला है मेरी पत्नी !
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जीवन संध्या – मधु श्री
आप सब से मिलकर अच्छा लगा और प्रियल तो मुझे पहले से ही पसंद है । तो अब तो ना का कोई सवाल ही नहीं है । हमारी तरफ से शादी के लिए हाँ हैं बोल ! आरोही ने सबका मुँह मीठा कराया ।लेकिन आरोही से मिल वीर थोड़ा असहाय महसूस करने लगा । आरोही आज भी नही बदली वोही निडरता वोही सोच ।लेकिन प्रियल की ख़ुशी देख वो खुश था । पर अंदर ही अंदर वो इस बात से परेशान था कि जो भी उसके माँझी में हुआ …………..
शादी की तैयारी बड़े ज़ोरों से चल रही थी । बारात आने में थोड़ा ही समय बाक़ी था । बेला अपने कमरे में कुछ काम से गई , तो उसने देखा वीर खिड़की के पास खड़ा हुआ है । वीर क्या सोच रहे हो ?? तैयार हो जाओं आज तुम्हारी बेटी की शादी है ! हाँ अभी होता हूँ ………. और बेला बाहर चली गयी ।
तभी प्रियल दुल्हन के जोड़े में वीर के पास आती है….. उसे देख वीर की आँखें भर आती है और वो उसे गले से लगाए बोलता हैं कि- एक पुरुष के जीवन में प्यार के कितने रूप कितने मौसम आते है । कभी माँ के रूप में , तो कभी प्रेमिका ,पत्नी , बहन , बेटी के रूप में ! जैसे हर मौसम का अपना रंग होता है । वैसे ही हर रिश्ते में अपना एक प्यार , एक एहसास होता है । लेकिन एक बाप बेटी का रिश्ता उनका प्यार सब रिश्तों पे भारी होता है । ये मैं आज जाना हूँ बेटा ! तुम्हारे जाने से जो दर्द हो रहा है वो मुझे आज तक नहीं हुआ । ओह मेरे प्यारे पापा ! मैं कौन सा दूर जा रही हूँ ….यही इसी शहर में हूँ । तभी बेला चिल्लाते हुए आती है….एक तो तुम बाप बेटी का ड्रामा ही ख़त्म नहीं होता । चलो जल्दी करो बारात आने वाली है ! वीर प्रियल ने मुस्कुराते हुए बेला को गले से लगा लिया । और कुछ पल में ही बारात के ढोल बाजे की आवाज़ आने लगी ।सब बहुत खुश थे । प्रियल और प्रशांत को फेरो के लिए बुलाया गया और वीर और बेला ने उसका कन्यादान किया । कन्यादान कर वीर बहुत संतुष्ट महसूस कर रहा था । उसकी सारी घबराहट , डर सब दबे पाव बाहर चले गए।
आरोही को अकेली देख वीर उसके पास गया और बोला मेरी बेटी का ध्यान रखना । हमारे माझी में जो भी हुआ उसका असर इन पर ना पड़े ! बस यही चाहता हूँ ये लोग हमेशा खुश रहे । आरोही बोली -“वीर तुमने कभी सोच था कि हमारे बच्चों की एक दूसरे के साथ शादी होगी” ??? नही ना
क्योंकि कहते है कि जो होता है अच्छे के लिए होता है । हमारी कभी कोई कहानी ही नहीं थी , कहानी तो इनकी हैं इसीलिए आज ये एक साथ हैं ।
तुम ठीक कह रही हो आरोही आज मैं अपने आपको बहुत धन्य मानता हूँ जो मुझे ऐसी बेटी मिली और सबसे बड़ा दान कन्यादान करने का मौक़ा मिला । तभी पापा पापा की आवाज़ आयी और वीर प्रियल के पास चला गया । प्रियल को जाते हुए देख वीर फूट फूट कर रोने लगा और प्रियल अपने पापा को चुप कराने लगी । ये देख सब हँसने लगे बताओ दुल्हन तो रो नहीं रही है ,और उसके पापा …. तभी आरोही बोली वीर चुप हो जाओ ! वरना तुम्हें दहेज में ले जाना पड़ेगा । प्रियल तुम मुझसे रोज़ मिलने आना……ठीक है पापा बोल वो चली गई !! आज इस पल में वीर और बेला एक दूसरे का हाथ थामे खड़े है । वीर ने भी आज अपनी मोहब्बत की संदूक को खोल उस मोहब्बत की ख़लिश को आज़ाद कर दिया जो कभी उसकी थी ही नहीं । जो उसके साथ है वहीं उसकी मोहब्बत है ,वहीं उसके बुढ़ापे का मौसम है । जो मरते दम तक उसके साथ रेहेगा ॥
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति