गौरी शंकर बहुत सुलझे हुए व्यक्ति थे,हालांकि सत्तर की उम्र पार कर चुके थे पर फूर्ति शरीर में जवानों वाली आज भी बरकरार थी।रोज सुबह शाम नियमित घूमने जाते,कसरत करते और अपने आधा दर्जन दोस्तों के साथ गपशप करते।
उनके दोस्तों मे सूरजमल,किशन सिंह,राधेश्याम और अनवर अली मुख्य थे जो शायद बहुत लंबे समय से साथ थे।जहां सूरज उनकी तरह ही चुस्त दुरुस्त थे वहीं राधेश्याम हाई बी पी,डायबिटीज और थायराइड से पीड़ित थे।अनवर मियां का वजन ज्यादा था पर वो घूम घूम कर उसे घटाने में जुटे रहते जबकि किशन थोड़े दार्शनिक से थे,उनके परिवार में उनकी पत्नी तो अब रही नहीं थीं और बेटा बहु उनका ध्यान रखते नहीं थे।
अनवर मियां अक्सर उनसे मजाक करते,”यार! लगता है,जब भाभी थीं,आपने उनको कभी मायके नहीं भेजा नहीं तो आज ये दिक्कत न आती।”
“उनके मायके न जाने से मेरी दिक्कत का क्या संबंध?”वो परेशान हो जाते।
“अगर वो जाती होती तो पहली बात,आपको उनके बिना रहना आ जाता और दूसरा सबसे बड़ा फायदा,आप को रसोई का कुछ काम करना आता।”
अनवर की इस बात पर सब हंसने लगे।
गौरी शंकर बोले,मजाक छोड़ो,वैसे भी हम को अपनी पत्नियों के सामने ही कुछ रसोई का काम सीख लेना चाहिए,इससे फायदा तो होता है।मुझे ही देख लीजिए, मैं कितना खुश रहता हूं क्योंकि मैं अपना काम अपने हाथ से करना जानता हूं।
आपकी बहू बेटे बहुत अच्छे हैं,इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं भाई!राधेश्याम बोले।
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मेरे घर में मेरी पत्नी है लेकिन को भी मेरी तरह बीमार रहती है,अब दो दो बूढ़ों को आज की पीढ़ी कहां सहन करती है और वो भी को रात भर खांसते रहें,लघुशंका को उठते रहें।
“भाई!ऐसा कोई नियम तो नहीं है कि बूढ़े लोगों को घर छोड़ कर कहीं चले जाना
चाहिए।” किशन बिगड़ते हुए बोले।
तभी गौरीशंकर कहने लगे,”देखो दोस्तों!जिंदगी में खाना एक बहुत महत्वपूर्ण रोल निभाता है,,आप लोग सहमत हैं इस बात से?”
“हां…पर इस बात का हमारी समस्या का क्या संबंध?”सब बोले एकदम।
“समझाता हूं, सब्र तो करो..”गौरी शंकर ने बोलना शुरू किया।
“जिंदगी में हम चार तरह की रोटी खाते हैं।।”वो खोए हुए से कहने लगे।
“एक मां के हाथ की बनी रोटी जिससे पेट तो भरता है पर कभी मन नहीं भरता।वो रोटी वात्सल्य और स्नेह से सिक्त होती है।”
“लेकिन वो नसीब कितने दिन होती है?”किशन बोले।
“हम्मम …दूसरी रोटी हमारी पत्नी के हाथ की होती है,जिससे पेट और मन दोनों भर जाते हैं वो समर्पण और प्रेम से भरी होती है।”
“सब आपकी तरह तकदीर वाले नहीं होते शंकर भाई”,राधेश्याम बोले,”भाभी तो साक्षात अन्नपूर्णा थीं।”
“कुछ तकदीर भी होती है,कुछ बनानी भी पड़ती है भाई,”गौरी शंकर गहरी सांस लेते हुए बोले,”अपनी जवानी में,हम मगरुर होते हैं,पत्नियों से दुर्व्यवहार करते हैं और फिर चाहते हैं कि वो बढ़ती उम्र में हमारा वैसे ही ख्याल रखें जैसे जवानी में रखती थीं,हम ये क्यों भूल जाते हैं कि अगर सत्तर की उम्र हमारी हो रही है तो अड़सठ की वो भी हो रही हैं।”
“बात तो ठीक है आपकी!”सिर खुजलाते अनवर मियां बोले।
“अरे!आपकी रोटियां अभी दो ही हुई हैं,क्या ये आगे भी हैं?”राधेश्याम बोला।
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“बिलकुल”,हंसते हुए शंकर बोले,हमारी तीसरी रोटी हमारी बहू के हाथ की होती है जो कर्तव्य और जिम्मेदारी से भरी होती है और उससे पेट तो भर ही जाता है,मन की क्या कहूं?”
आखिर में एक रोटी और होती है,गौरी शंकर बोले,
अच्छा जी!अभी और भी है,वो हंसने लगे।
“जी..और ये रोटी नौकरानी के हाथ की होती है जिससे न पेट भरता और न ही मन तब भी खानी पड़ती है।”
किशन उदास होते बोले,”मैं तो वर्षो से वो ही खा रहा हूं यार!”
“आपकी बहू खाना नहीं बनाती?”सूरजमल बोले।
“वो तो नौकरीपेशा है पर जो नहीं भी हैं वो ही कौन सा बना रही हैं?” वो दुखी होते बोले,”जमाना हो गया स्वादिष्ट खाना खाए हुए बस अब तो पेट में डाल लेते हैं खाना,स्वाद का तो नामोनिशान नहीं।”
गौरी शंकर बोले,”सुनिए!ऐसी स्थिति में भी भगवान को धन्यवाद कहें।”
“वो क्यों?”थोड़ा चिढ़ते हुए किशन बोले।
“क्योंकि इस उम्र में ज्यादा स्वाद का क्या कीजिएगा?जिसने जीभ को संतुष्ट किया फिर उसका शरीर साथ नहीं देता,आप उस परमपिता का धन्यवाद करें कि उसने ये जीवन दे तो रखा है कम से कम और परिवार भी।उनकी सोचिए जो बिल्कुल अकेले हैं।”
“आप जैसी सोच हो जाए तो जिंदगी स्वर्ग बन जाए”,अनवर मुस्कराए।
“और हम स्वर्गवासी!”राधेश्याम खी खी कर हंसने लगे।
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वो सब एक साथ हंसने लगे थे और पास ही एक जवान लड़कों का झुंड निकल रहा था,वो आपस में कहने लगे,”देखना!इन बूढ़ों को!कैसे खिलखिला रहे हैं इस उम्र में भी और एक हम हैं, हज़ार परेशानियों से घिरे हुए,निस्तेज चेहरे,जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे हुए।
जिंदगी ऐसे ही चलती रहती है,इसे समझदारी से जिया जाए तो ये सुखद लगती है और बोझ समझा जाए तो बोझ ही बन जाती है।पुरुषों को ज्यादातर बहुत कठोर माना जाता है,,कहते हैं मर्द को दर्द नहीं होता,वो रोते नहीं,लेकिन ऐसा नहीं है,सब तरह के पुरुष होते हैं,अगर वो अपने जीवन में आई स्त्रियों,मां पत्नी बेटी बहु का सम्मान करते हैं तो उन्हें सुख,संतुष्टि जरूर मिलती है,कई पुरुष भी बहुत संवेदनशील होते हैं और उन्हें भी दर्द होता है।
समाप्त
डॉ संगीता अग्रवाल
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