पापा की बेटी – अंजु पी केशव

पापा नें कुर्सी से उठने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। आभा तेजी से उनकी सहायता के लिए उठी। पापा को जोर लगा कर उठाया और दीवान तक पहुँचा दिया। बाथरूम से तुरंत नहा कर निकली सिम्मी नें भाभी के कंधे पर पापा का हाथ देखा तो उसे अजीब लगा लेकिन कुछ कहा नहीं और तौलिये से अपने बाल पोछती बालकनी में आ खड़ी हुई। कल से मायके आई हुई सिम्मी लगातार ये सब देख रही थी।भाभी कभी पापा को कपड़े पहनने में मदद करती हैं तो कभी उनके कंधों पर तेल की मालिश करती दिख जाती हैं। और भी कई अमल है जो देख कर सिम्मी को अजीब लग रहे थे। पापा की हड्डियों में उम्र के साथ ही दर्द भी बढ़ गया है। अब उठने-बैठने में तकलीफ ज्यादा हो रही है। एक जमाना था जब पापा की फुर्ती की मिसाल दी जाती थी।बुढ़ापा भी क्या चीज है उफ्फ! सिम्मी नें एक गहरी साँस भरी।

  नाश्ता कर लो सिम्मी !”आभा के पुकारने पर वो डाइनिंग टेबल पर आ बैठी ।

     ” आप नहीं खाएंँगी भाभी?” सिम्मी नें पूछा

       “अभी थोड़ी देर में खाती हूँ। थोड़ा काम है निपटा लूँ। तुम खाओ। नहाने के बाद तो भूख और तेज हो जाती है।” आभा नें मुस्कराते हुए कहा तो सिम्मी को ध्यान आया कि भाभी तो सुबह ही नहा लेती हैं तो क्या उन्हें भूख नहीं लगती? शादी के बाद से ही माँ का बनाया हुआ नियम था ये कि वह बिना नहाये रसोई में नहीं जाएगी। माँ खुद भी ऐसा ही करती थी। ठीक है कि सुबह उठ कर फ्रेश हो जाना, नहा धुला लेना अच्छी बात है लेकिन ये क्या कि नहाये तो सबसे पहले और खाये सबसे पीछे। सिम्मी नें भी पहले कभी इस तरह से कहाँ सोचा था। भाई की शादी के एक साल बाद ही उसकी शादी हो गई थी और कुछ दिन ससुराल में रहने के बाद वह पति के साथ बाहर चली गई थी। माँ के अपने अलग नियम थे जिन्हें भाभी नें भी निभाया। लेकिन आज जब भाभी नें नहाने के बाद भूख लगने की बात कही तो उसे लगा कि ये तो एक बहुत ही सामान्य सी बात है जिसके बारे में कोई ज्यादा सोचता भी नहीं है। वो तो सुबह हर काम से पहले चाय नाश्ता करती है और तभी कुछ करती है। भूख लग जाने पर उसे तो कुछ भी नहीं सूझता। नाश्ता खतम कर वह फिर से बालकनी में आ गई। सर्दियों में यह सबकी मनपसंद जगह थी जहाँ धूप का लंबे समय तक बसेरा होता था। वहीं पर एक छोटा सा दीवान रखा था जिस पर पापा बैठे हैं और भाभी उनकी पीठ में दवा लगा रही हैं। दीवान पर पापा के साथ भाभी को बैठे देख कर तथा उनकी खुली पीठ पर दवा लगाते देख कर सिम्मी को फिर वही एहसास हुआ। एक अजीब सा एहसास, जिसका कोई ब्योरा तो नहीं था लेकिन था बहुत अजीब।शुरू से ही उसके घर का माहौल ज्यादा खुला हुआ नहीं था और पापा के सारे काम तो माँ ही किया करती थी। फिर माँ के जाने के बाद मायके में ज्यादा रहना तो नहीं हुआ लेकिन जब भी रही उनको खुद ही अपनी देखभाल करते हुए देखा है।भाई की राशन की दुकान है। वह तो सुबह ही दुकान चले जाते हैं। बच्चे जब तक रहे, कभी-कभी दादा जी के लिए दौड़-धूप कर लेते थे लेकिन अब तो वो भी बाहर पढ़ने चले गये। पापा अब नाश्ता नहीं करते। सुबह बस थोड़ा सा ड्राई या फ्रेश फ्रूट खाते हैं और फिर ग्यारह-बारह बजे सीधा खाना खाते हैं। दोनों बाप-बेटी इधर-उधर की बातें करने लगे और आभा चाय बना कर ले आई।

 आओ सिम्मी पहले चाय पीते हैं फिर पापा को खाना दूँगी। तब सिम्मी नें फिर महसूस किया कि काम निपटाना तो एक बहाना है। दरअसल भाभी पापा के खाने के बाद ही खाती हैं। शुरू से उनके लिए यही नियम बना  है। हालांकि अब तो कोई देखने-पूछने वाला भी नहीं है लेकिन जो नियम है सो है।

      बहुत दिनों के बाद इस बार सिम्मी इतने दिनों के लिए मायके आई है। माँ थी तब आना-जाना ज्यादा होता था। फिर पिता ही उससे मिलने आ जाया करते थे। लेकिन जब से बीमार हुए, उनका आना-जाना बंद हो गया।

        दो-तीन दिन बस यूँ ही निकल गये। अब तो बातों का पिटारा भी खाली होने लगा। माँ थी तो और बात थी। महीनों भी बात खत्म होने का नाम नहीं लेते थे। रात को थोड़ी देर सब मिल बैठ कर हँसी-ठट्ठे करते। दिन में वो कभी पापा के काम कर दिया करती, कभी भाभी का हाथ बँटा देती लेकिन समय निकालना फिर भी मुश्किल हो गया। घर की चिंता भी हो रही थी।लेकिन जाने का टिकट हफ्ते भर बाद का था। अजीब होती हैं ये औरतें भी। जहाँ रहतीं हैं , वहाँ होतीं नहीं।  धीरे-धीरे उसकी छुट्टियाँ भी खतम हो रही थीं और उसकी अजीब वाली फीलिंग्स भी।

     आज रात को सिम्मी की ट्रेन है। सुबह-सुबह ये खयाल आते ही उसका मन रुआँसा हो गया।कहाँ तो हफ्ते के दिन गिन रही थी और अब, जब जाने का समय आया तो इतना बुरा लग रहा है।

   “भाभी आज नाश्ता मैं बनाती हूँ।” सिम्मी नें कहा तो आभा चौंक पड़ी। सिम्मी के मुँह से ये सुन कर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। जानती थी कि सिम्मी को घर के कामों में दिलचस्पी नहीं है और वो भी किचेन के काम?

            “क्या हुआ सिम्मी? ऊब गई मेरा बनाया खा-खा कर…” भाभी मुस्कराई।

    “नहीं भाभी! आप प्लीज जाइये और जा कर बाकी काम देखिए। आपको तो कितने सारे काम है।” आभा सचमुच आश्चर्य में थी क्योंकि आज तक कभी सिम्मी नें इस तरह का प्रस्ताव नहीं रखा था। तब भी नहीं, जब वो दोनों साथ थीं या जब वह काम और बच्चों की जिम्मेदारियों से घिरी रहती। आज अचानक इसे क्या हुआ…. वो भी जाने के दिन। मन ही मन सोचती सिम्मी रसोई से बाहर आ कर पापा का बेड ठीक करने लगी।जब तक उसने घर को व्यवस्थित किया, सिम्मी नें नाश्ता तैयार कर लिया और भाई को आवाज लगाई। भाई नें खूब तारीफें कर-कर के नाश्ता किया और काम पर चले गये। फिर वह दो प्लेटों में नाश्ता लाई और भाभी को आवाज लगाई।

  “अरे वाह सिम्मी! खुद से नाश्ता बनाया तो भूख बढ़ गई क्या? “आभा नें उसे छेड़ते हुए कहा।

     “आपके लिए भी लाई हूँ।” भाभी का हाथ पकड़ कर बैठाते हुए बोली।

   “मेरे लिए…? तुम खाओ सिम्मी ।मैं अभी पापा के लिए खाना बनाऊंँगी नहीं तो देर हो जाएगी।” सिम्मी नें देखा कि भाभी की नजर अचानक ही बालकनी में अखबार पढ़ते पापा की तरफ चली गई।

   “कोई देर नहीं होगी भाभी। बस दस मिनट तो लगेंगे नाश्ता करने में।” सिम्मी नें आभा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए आगे कहा, “और हाँ! सिर्फ आज नहीं।बल्कि आज से आपका यही रुटीन बना रही हूँ।”

  “सिम्मी! आज तुम्हें जाना है न इसीलिए तुम इमोशनल हो रही हो।” आभा नें हँसते हुए कहा

” ठीक है अगर ऐसा है तो यही सही। भाभी पापा की अब उम्र हो गई और खाना पीना उनके लिए बस एक फार्मैलिटी है…. लेकिन आपकी तो अभी बहुत सारी जिम्मेदारियाँ हैं। पूरे घर परिवार की देखभाल आपके जिम्मे है। पहले जब माँ-पापा सुबह-सुबह नाश्ता करते थे तो आपका इंतजार करना बनता था लेकिन अब भूख दबा कर इतनी देर तक खाली पेट रहना सही नहीं है भाभी। सबके साथ-साथ आपको अपना खयाल भी रखना चाहिए।”

 ये सिम्मी तो आज झटके पे झटके दे रही है। आभा नें उसकी तरफ देखते हुए सोचा। सिम्मी की बात सुनकर उसे सुखद आश्चर्य हुआ।वैसे देखा जाये तो बात कोई इतनी अनोखी भी नहीं थी लेकिन आभा के दिल को छू गई। पता नहीं वह इन सलाहों पर अमल कर पाएगी या नहीं, पता नहीं वह इतने दिनों की आदत से बाहर आ पाएगी या नहीं लेकिन सिम्मी की बात से उसकी रुह को जो सुकून मिला वो बेहद खुशगवार था । अपने बारे में सोचे जाने के एहसास की खुशी आभा अंदर तक महसूस कर रही थी।

 “.. और थैंक्यू भाभी.. ” सिम्मी नें और भावुक होते हुए कहा

    ” अब ये किसलिए… “आभा नें भौंहें चढ़ाते हुए पूछा।

    ” पापा की बेटी बनने के लिए.. ” सिम्मी की आँखों में तैरता पानी साफ देखा आभा नें।

 ” ओह!!” अचानक ही आभा की जुबान से निकला और दोनों ने एक दूसरे का हाथ कस कर थाम लिया।सुकून नें चुपके से एक मुट्ठी बौछार की फेंकी जिसमें दोनों के रुह सराबोर हो गये।

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