समय का फेर – डाॅ उर्मिला सिन्हा
“यह कुलच्छिनी जन्म लेते मां को खा गई फिर बाप को! इसके साये से भी दूर रहना चाहिए। “ताई दांत पीस -पीस कर कोसे जा रही थी।
सब का लात मार के साथ जूठन खा अनाथ बालिका रमा जैसे-तैसे ताई ताऊ बुआ दादी के सहारे बड़ी हुई।
उसपर कोढ में खाज की तरह रमा का रुपवती होना किसी को फूटी आंख नहीं सुहाता था।
क्योंकि फटे पुराने उतरन पहनकर भी उसका रुप दमक उठता। उसके सुंदरता के आगे घर की अन्य लड़कियां पानी भरती।
फिर क्या था रमा को नीचा दिखाने के लिए “खा खा के मुटा रही है… काम के न काज के ” चाची का गुस्सा सातवें आसमान पर रहता था । थर-थर कांपती रमा सिर झुकाये सबकी तीमारदारी में लगी रहती। उसकी बुद्धि भी बहुत तेज थी। जहाँ घर के अन्य बच्चे महंगे स्कूल में संसाधनों के साथ खींच-तीर कर पास होते वहीं सरकारी स्कूल में रमा को वजीफा मिलता ।
“ला ये पैसे हमें दे… मुफ्त खोरी की आदत पड़ी हुई है”जख्म पर नमक छिड़कने वालों की कमी न थी।
ईश्वर की माया… ऐसे ही रोते-धोते गाली गलौज फजीहत के बीच अपने परिश्रम के बल पर रमा का चयन पहली ही बार में प्रशासनिक सेवा में चयन हो गया।
पेपर मीडिया में रमा छा गई। पहचान वाले बधाईयां देने लगे। रमा को जली-कटी सुनाने वालों का मुंह बन गया।
किंतु आदत से लाचार ताई जले पर नमक छिड़कने से बाज न आई, “देखना यह मनहूस लड़की वहां भी सुख से न रह पायेगी! “
पडो़सी से रहा न गया बोल पड़ी , “अब तो बस करो… यही लड़की तुमलोगों का नाम रौशन की और इसी को भला-बुरा कह रही हो। अब तो जख्मों पर नमक छिड़कना बंद करो! “
समय बदलते सबके मुंह पर ताले जड़ गये।
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा ©®
#जख्मों पर नमक छिड़कना
नमक स्वादानुसार – डॉ. पारुल अग्रवाल
सुहानी जब शादी करके ससुराल आई थी तब वो अपने ससुराल में इतनी ज्यादा पढ़ी-लिखी और नौकरी करने वाली पहली बहू थी।हॉस्टल में रहने के कारण वो वो घर के काम में इतनी निपुण तो नहीं थी पर बिल्कुल कुछ ना आता हो ऐसा भी नहीं था। उसके पापा ने रिश्ते के समय शिष्टाचारवश उसकी सास और ननद के सामने बस इतना कह दिया था कि इसको ज्यादा कुछ नहीं आता पर आप जैसा सिखाओगे ये सीख लेगी।
उसके पिता के कहे ये शब्द और नौकरी करने वाली लड़की के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने के कारण सुहानी को हर बात में अपनी सास और ननद द्वारा कटाक्ष का सामना करना पड़ता। ये कटाक्ष उन दोनों के द्वारा ही होते तब भी कोई बात नहीं थी पर मौसी सास, चाची सास भी गाहे-बगाहे उनकी हां में हां मिलाते हुए उसको कुछ भी कह देती।
ससुराल में मिले सारे तानों से उसका मन अंदर से बहुत व्यथित हो चुका था,सब बातों को सोच-सोचकर वो अपने आपको काफ़ी बीमार कर चुकी थी। जब भी ससुराल में कुछ होता तो स्वभावनुसार कोई ना कोई उसके ज़ख्म पर नमक छिड़क ही जाता।
वो तो सुहानी को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था जिसने समय रहते उसको ऐसे नकरात्मक लोगों की दुनिया से बाहर निकालकर उसके कदम नई मंजिल की तरफ बढ़ा दिए थे। उधर वक्त का पहिया अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था,समय भी बदल रहा था। जो लोग सुहानी पर ताने कसते थे उनमें से अधिकतर के बच्चों ने अपनी पसंद से ही शादी की थी। समाज में जिससे ज्यादा बातें ना बनें इसलिए अब वो बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी की बात करते थे। अपने घर में शांति बनी रहे इसलिए वो सभी के सामने अपनी बहुओं की भी बहुत तारीफ़ करते थे।सुहानी उनका दोगला चेहरा देख कर हैरान थी।
अब सुहानी ने एक बात अच्छे से गांठ बांध ली थी कि कभी भी किसी को अपने आस-पास इतना अधिकार नहीं देना चाहिए कि वो अपनी बातों से आपके जख्मों पर नमक छिड़क जाए और ज़िंदगी का स्वाद ही गड़बड़ा जाए। बल्कि ऐसे लोगों की कही बातों से तो अपने सपनों की मंजिल की रेसिपी में नमक स्वादानुसार प्रयुक्त करके नई उड़ान भरनी चाहिए।
डॉ. पारुल अग्रवाल,
बेटी – उषा शर्मा
आज सपना के पति सुबह अखबार पढ़ने बैठे तो, उसके पहले पेज पर एक खबर मिली , कि एक माॅ अपनी नवजात बेटी को हॉस्पिटल की बैंच पर छोड़कर चली गई है , और एक चिट्ठी लिखकर रख गई है , कि मेरी पांच बेटियां हैं और यह मेरी छठी भी बेटी हुई है ,, और मेरी सास बहुत कलेश करती हैं। इसलिए मैं अपनी बेटी को छोड़कर जा रही हूं, मेरी मजबूरी को समझें , कृपया करके मेरी बेटी को कोई पाल लेना , यह खबर जब उन्होंने देखी तो मन में विचार आया, कि क्यों ना हम इस बेटी को गोद ले ले, सपना के पति ने कहा चलो हम देख कर आते हैं यह बेटी हमें कहां मिलेगी । सपना और सपना के पति दोनों शिशु पालन ग्रह में पहुंचे , तो वहां शनिवार पढ़ने के कारण ऑफिस बंद था तो कर्मचारियों ने बताया कि आप सोमवार को आना आपको साहब मिल जाएंगे। और आप उनसे बात कर लेना, तो वो दोनों वहाँ से खुशी खुशी एक उम्मीद के साथ घर लौट आये , उनके पास बेटे तो है उन्होंने सोचा अगर कोई अपनी बेटी को छोड़कर जा रहा है तो चलो हम उसे पाल लेंगे और हमारे बेटों के लिए छोटी बहन हो जाएगी । यह बात सुनकर बच्चे बहुत खुश हुए कि हमारे पास भी छोटी सी गुड़िया आ जाएगी । दो दिन तक बच्चे सुनहरे सपने बुनते रहे , सोमवार के दिन फिर से दोनों शिशु पालन ग्रह मैं गए थे उन्होंने साफ मना कर दिया की यह बेटी आपको नहीं मिल सकती। आपके पास पहले से ही बच्चे हैं, अगर आप चाहे तो ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं , अगर आपका आवेदन पास कर दिया गया तो शायद आपको बेटी मिल सकती है , अन्यथा नहीं मिल सकती । यह बात सुनकर उन्हें बहुत बुरा लगा लेकिन कर भी क्या सकते हैं बच्चों को जब यह बात पता चली तो बेचारे बच्चे बहुत दुखी हुए उन्होंने न जाने कितने सुखद सपने दो दिन में संजो लिए थे , कितना अच्छा लग रहा था उन्हें , लेकिन उन बच्चों का मासूम मन दुखी हो गया । वैसे आए दिन बेटियां कूड़े में फेंक दी जाती हैं लेकिन बिना रिश्वत के बेटियां भी गोद नहीं मिलती बेहद दुखी दुख की बात है।
स्वरचित , ,,,,,,,,,,,,,,,
उषा शर्मा
के कामेश्वरी -पतिव्रता स्त्री
विनीता के घर के सामने बहुत से लोगों की भीड़ लगी हुई थी ।सब लोग विनीता के दर्शन करने के लिए खड़े थे । विनीता कोई नेता थी नहीं ईश्वर थी नहीं वह तो एक साधारण सी महिला थी ।
लोग उसे पतिव्रता कहते हैं । लोगों का कहना था कि उसका पति उसे इतना मारता पीटता था पर उसने उफ़ तक नहीं की औरअब वह बिस्तर पर पड़ा है और विनीता उसकी सेवा में ही लगी हुई है । नई ब्याहता लड़कियों को उससे मिलाकर उसका आशीर्वाद दिलाया तो उनकी ज़िंदगी में ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ आ जाती हैं ।एक बार प्रियंका नामक एक लड़की को उसकी माँ और मौसी ज़बरदस्ती विनीता के घर चलने के लिए कहतीं हैं कि तुम्हारे पति और तुम्हारे बीच की जो दूरियाँ हैं उससे मिलने पर कम हो जाएँगी । अब उनसे क्या बहस करे इसलिए प्रियंका उनके साथ विनीता के घर जाती है ।
बाहर की भीड़ को देखते ही उसे आश्चर्य हुआ कि लोग कितने अँधविश्वासी हैं ।
वह अपनी माँ और मौसी के साथ अंदर गई तो उसने विनीता को देखा जो बहुत सुंदर लग रही थी । उसे देखते ही प्रियंका को अपनापन महसूस हुआ । मौसी उससे अकेले में बात करती है और दोनों कमरे में आते हैं ।मौसी माँ को और प्रियंका को बताती है कि विनीता के पति कैसे थे और उन्होंने कैसे सब कुछ सहा। यह सब सुनकर प्रियंका को समझ में आ गया कि माँ और मौसी भी बाहर खड़े लोगों के समान अँधविश्वासी हैं । उसे लगता है कि दूसरों के सामने अपनों के लिए क्या कहें ?
विनीता ने कहा — मैं प्रियंका जी से अकेले में बात करना चाहतीहूँ । प्रियंका अनमने मन से उनके पीछे जाती है ।
विनीता ने कहा — प्रियंका मुझे तुम्हारी मौसी ने तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया है तुम्हारी पढ़ाई शादी के कारण रुक गई है ना तो अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने पैरों पर खड़ी हो जा मेरी बहन ।
मुझे मेरे माता-पिता का साथ नहीं मिला । उन्होंने मुझे अपनी ग़रीबी के कारण इस दरिंदे के घर में उसके साथ रहने के लिए मजबूर कर दिया था । आज भी मुझे चैन नहीं पलंग पर पड़े पड़े ही यह मुझे सताता है और कोई ऑप्शन न होने के कारण मैं यह सब सह रही हूँ । तुम घर वालों और लोगों की परवाह न करते हुए आगे की पढ़ाई पूरी करो और अपनी ज़िंदगी बनाओ । लोगों का क्या है उन्होंने मुझे पतिव्रता का ख़िताब दे दिया है लेकिन मेरे दिल की बात बताऊँ वे जब मुझे पतिव्रता स्त्री कहते हैं ना तब मुझे लगता है जैसे वे मेरे दर्द को कुरेद रहे हैं या जले पर नमक छिड़क रहे हैं । तुम मेरे समान किसी के झाँसे में नहीं आना ऑल द बेस्ट प्रियंका कहते हुए उसकी आँखों में आँसू आ गए ।
उसका पति गंदी सी गाली देते हुए उसे बुलाता है । अपने चेहरे पर हँसी लाते हुए वह पति की सेवा करने के लिए चली जाती है ।प्रियंका और माँ मौसी के घर आ जाते हैं । उन्होंने प्रियंका को चुपदेखा तो लगा कि विनीता की बातों का असर उस पर हो रहा है । वे दोनों खुश हो जाती हैं ।
दूसरे दिन माँ और प्रियंका वापस अपने घर आ जाते हैं । प्रियंका ने किसी से बात नहीं किया । दो दिन बाद वह अपना सामान पैककरने लगी । माँ ने सोचा ससुराल जाने के लिए तैयार हो रही है ।माता-पिता दोनों बहुत खुश हो गए । पूजा ने माता-पिता के पैर छुए और कहा आप दोनों मुझे माफ़ कर दीजिए । मैं होस्टल में रहने जा रही हूँ । मैं एक और पतिव्रता नहीं बनना चाहती हूँ कहते हुए निकल गई ।
स्वरचित
के कामेश्वरी
मजबूरी – रणजीत सिंह भाटिया
रघु रोते रोते घर आया, घुटने में से खून भी बह रहा था, जैसे ही कांता ने अपने बेटे को देखा तो दौड़ी दौड़ी आई और पूछा ” क्या हुआ बेटा…? तब रघु ने कहा ” मां हम सब दोस्त खेल रहे थे, तभी बंटी जब हारने लगा तो उसने मुझे बहुत मारा और धक्का दिया तो मैं गिर पड़ा और घुटने में से खून भी निकल आया “
” बेटा तुझे कितनी बार कहा है, उस तरफ खेलने मत जाया कर, उस कॉलोनी में सब अमीर लोग रहते हैं l हमारा उनका क्या मेल, और उनसे जाकर शिकायत भी नहीं कर सकते उनके घरों में काम करके हमारी रोजी-रोटी चलती है पर तू मेरी एक नहीं सुनता…! अब कभी मत जाना उधर चल आ तुझे हल्दी लगा दूं “
उधर बंटी ने अपनी गलती छुपाने के लिए अपनी मां रमा को बताया कि उसे रघु ने आज फिर बहुत मारा और भाग गया तो रामा ने कहा ” तू क्यों उन बस्ती वाले बच्चों के साथ खेलता है..? उनसे दूर रहा कर इन लोगों को कोई तमीज नहीं है….! उसकी हिम्मत कैसे हुई मेरे बच्चे को हाथ लगाने की, तू चल मेरे साथ में अभी उनको उनकी औकात बताती हूं “
थोड़ी ही देर में तमतमाती हुई रमा अपने बेटे बंटी को लेकर रघु के घर पहुंच गई और आग बबूला होके कांता को बहुत खरी-खोटी सुनाई ” कहा तुम मुझसे तो पंगा लेना मत तुम मुझे जानती नहीं…! मैं क्या कर सकती हूं , दो मिनट में ही इस बस्ती का सफाया करवा सकती हूं…. और जो यह तुम घर घर जाकर झाड़ू बर्तन करती हो ना…वह भी सब छुड़वा दूंगी, समझा लो अपने बेटे को अब कभी उस तरफ नजर नहीं आना चाहिए, इस बार तो माफ कर देती हूं पर आगे से ऐसा हुआ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा..समझी…!! चल बेटा बंटी “
कांता बेचारी क्या बोलती मजबूरी ने उसके मुंह पर ताला लगा रखा था, और वह सोचने लगी ” उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ” हम गरीब लोगों को शिकायत करने का भी हक नहीं है…, हमारे ” जख्मों पर मरहम लगाना तो दूर उल्टे उन पर नमक छिड़क ” दिया उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे, उसने रामा से कहा गलती हो गई…..! “रघु अभी बच्चा है, मैं इसे समझा दूंगी अब उस तरफ कभी नहीं जाएगा l
मौलिक एवं स्वरचित
ज़ख्मों पर नमक छिड़कना “
लेखक: रणजीत सिंह भाटिया
फ़ैसला – रचना गुलाटी
आज शमा बहुत परेशान थी, उदास थी, आँखों में झर-झर आँसू बह रहे थे, आज उसकी ही सबसे प्यारी सखी ने उसके ज़ख्मों पर नमक झिड़क दिया था। वह अपनी अतीत की यादों में खो गई । वह एक कॉलेज में शिक्षिका है। मध्यमवर्गीय परिवार ने अपनी हैसियत के अनुसार उसकी शादी की। बहुत खुश थी
वह, पर शादी की पहली ही रात पति ने उससे हर रिश्ता तोड़ दिया , यह कहकर कि यह शादी उसकी मर्ज़ी से नहीं हुई। हर सपना टूट गया। बहुत कोशिश की , उसने अपना घर बसाने की, पर तानों के इलावा कुछ न मिला, दहेज को लेकर मारा-पीटा गया, बाँझ कहा गया, जब अपने अधिकार के लिए बोली तो पति ने तन का तो इस्तेमाल किया पर मन से कभी न अपनाया।
एक बेटी हुई, सोचा उसे पिता का प्यार मिलेगा, पर यह भी नहीं हुआ। जब अपनी बेटी पर बात आई तो एक माँ ने आत्महत्या करने या ससुराल के हाथों मरने की बजाए अपनी बेटी के साथ जिन्दगी को चुना और तलाक ले लिया। अपने दिल की हर बात अपनी सहेली को बताई और आज जब वह कॉलेज में अपनी मेहनत से मुकाम बना रही थी।
लोगों के तानों की परवाह न कर आगे बढ़ रही थी तो उसी सखी ने उसकी सारी बातें बढ़ा-चढ़ा कर सबको बतानी शुरु की और कहा कि जो अपना घर नहीं बसा सकती, वह बच्चों को क्या सिखाएगी। इस बात ने उसके दिल को तोड़ दिया।
तभी उसकी बेटी की आवाज़ ने उसे अतीत से वर्तमान में ला दिया। अपनी माँ की आँखों में आँसू देखकर वह नन्ही बच्ची परेशान हो गई। अपनी बेटी को परेशान देखकर शमा ने निर्णय लिया कि वह दुनिया की परवाह नहीं करेगी और अपनी मेहनत से अपनी बेटी की जिन्दगी सँवारेगी। उसने तलाक लेकर कोई गलती नहीं की क्योंकि उसने मौत नहीं जिन्दगी को चुना था।
रचना गुलाटी
बेसहारा – मोनिका रघुवंशी
मुझे माफ़ कर दो सुवर्णा अब मैं आ गया हूँ हमेशा के लिए… अब हम सब साथ रहेंगे हमेशा मैं तुम और हमारे बच्चे…
हां यही तो चाहती थी मैं कि हम सब साथ रहें, हंसे खेले खाये… बस ये छोटा सा सपना संजोया था मैंने जो कि हर स्त्री संजोती होगी।शादी के सात साल बाद तुमने मुझे और मेरे बच्चों को बस इसीलिए छोड़ दिया क्योंकि तुम्हारा दिल किसी और से लग गया।
मैं तो पराए घर से आई थी तुम्हारे अपने मां बाप जो तुम्हारे जाने के बाद से अपनी आखिरी सांस तक इसी उम्मीद में जिये की उनका खून उनका अपना बेटा लौटकर आएगा,पर तुमने उनका हालचाल जानना भी जरूरी नही समझा।
अब जब हमने हालात से समझौता करके तुम्हारे बिन जीना सीख लिया तो तुम फिर चले आये हमारे जख्मों पर नमक छिड़कने।
आज तुम वापस आये हो, इसलिए नही कि तुम्हे ‘मेरी या बच्चों की याद खींच लाई।’ बल्कि इसलिए कि अब तुम्हारी नौकरी नही रही, तुम्हारा शरीर भी रोगी हो चला है इसलिए तुम्हारी प्रेयसी भी तुम्हे छोड़ गई।
मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह शेष नही रह गयी है इसलिए तुम्हारी पत्नी बनकर सेवा करने का तो सवाल ही नही उठता।हां ये संस्था ‘बसेरा’ मैं ही चलाती हूं बेसहारा लोगों को सहारा देती है।उनका ख्याल रखती है जिनका इस दुनिया मे कोई नही है। एक अनाथ की हैसियत से यंहा रहना चाहो तो, कुछ आवश्यक कागजी कार्यवाही पूरी करके रह सकते हो।
#जख्म पर नमक छिड़कना
– मोनिका रघुवंशी
परवरिश – ऋतु रानी
” बेटी अब वो बड़े वाले महंगे स्कूल में नहीं जाती हो क्या “- पड़ोस की महिला ने, मोहिनी की बेटी से पूछा
” बस भी करिये आंटी! क्यों ज़ख्म पर नमक छिड़क रही हैं? ये जानते हुए भी कि मेरे पति अब इस दुनिया में नहीं रहे और मेरी आय सीमित है जिसके कारण अब बेटी महंगे स्कूल में नहीं पढ़ सकेगी, आप ऐसे प्रश्न क्यों कर रही हैं?
वैसे भी स्कूल बड़ा होने से कुछ नहीं होता बल्कि उस स्कूल में मिल रही शिक्षा से बच्चों का भविष्य बनता है और मैं अपनी बच्ची की अच्छी परवरिश करूंगी और उसे एक नेक और शिक्षित इंसान बनाऊंगी। “- मोहिनी ने करारा जवाब दिया।
समय के साथ, आज मोहिनी की बेटी सफल डाॅक्टर बन गयी। बरसों पुरानी बात याद करते हुए, मोहिनी की आंखों से आंसू आ गये । उसकी परवरिश ने बेटी को आत्मविश्वासी बनाया।
ऋतु रानी
ज़ख़्म पर नमक छिड़कना – पूनम अरोड़ा
अभी काॅलेज में ही थी शीनू कि पिता का साया उठ गया सिर से।प्राइवेट जाॅब करते थे ,कोई पेन्शन की व्यवस्था नहीं थी।घर में माँ के सिवा दो छोटे भाई बहिन भी थे जो अभी स्कूल में ही थे।उनकी पढ़ाई और घर की जिम्मेदारियों के चलते शीनू ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर एक प्राइवेट कम्पनी में जाॅब कर ली।सैलरी बहुत अच्छी तो नहीं लेकिन हाथ समेट के घर का खर्च और पढ़ाई की फीस का बंदोबस्त हो जाता ।अपने लिए जीना तो छोड़ ही दिया था उसने ।बस माँ और भाई बहिन की जरूरतों को पूरा करना ही उसका उद्देश्य भी और खुशी का पर्याय बन गया था। उनकी एक एक उपलब्धि उसको जैसे अपनी सफलता की मंजिल लगती ।
वह इस घर का “पिता” बनकर अपने हितों को दरकिनार करके बस उनको सैटल करने की जी जान कोशिश में लगी रहती।।उसने गौर ही नहीं किया कि वह उम्र के अड़तीसवें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है । माँ को भी इसका आभास तो था , वह कहती भी कि “शादी की उम्र निकल रही है तेरी अब अपना सोच!” लेकिन कैसे वो सबको मंझदार में छोड कर चली जाती। रिश्तेदार जब भी आते उसकी निस्वार्थ साधना की प्रशंसा न करके उस पर और माँ पर तंज ही कसते कि ” इतनी उम्र निकलती जा रही है लड़की की लेकिन शादी की कोई चिंता नहीं । हाँ भई वो चली गई तो परिवार कौन पालेगा। सब अपना अपना ही सोचते हैं आजकल ।”ये बातें नश्तर सी चुभती उनके अंतस को जख्मों से लहुलुहान कर देतीं लेकिन किसी का मुँह तो बंद नहीं किया जा सकता और फिर वे यह सोचकर कि—
कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना–
अपने मन को तसल्ली दे देते।
आखिर उसकी तपस्या रंग लाई।बहिन अब बी काॅम कर रही थी और भाई इंजीनियरिंग कर चुका था और वहीं काॅलेज कैम्पस से ही उसकी नियुक्ति भी एक अच्छी फर्म में हो गई । अब वह निश्चिंत थी ।अब माँ ने जबरदस्ती कर उसे ” शादी डाॅट काॅम” और “जीवनसाथी” पर अपनी प्रोफाइल डालने को मजबूर कर दिया ।
अब जब नजदीक के रिश्तेदार भाई की नियुक्ति की मुबारक देने आए तो शीनू के विवाह न हो पाने के लिए अफसोस करना नहीं भूले। तब माँ ने उनको कहा “कि मैरिज एप्प पर प्रोफाइल डाला है भगवान की कृपा से कोई अच्छा लडका मिल ही जाएगा।”
तो रिश्तेदारों ने पहले से ही हरे, रिसते जख्मों पर नमक छिड़कते हुए कहा “”चालीस की उम्र में लड़का !! अब कोई लड़का नहीं कोई अधेड़, विधुर , तलाकशुदा बच्चों का बाप ही मिलेगा।”
#जख्मों पर नमक छिड़कना
पूनम अरोड़ा
मंदबुद्धि – संगीता अग्रवाल
आदित्य एक मंदबुद्धि बच्चा है जोकि ग्यारह साल का हो चुका है पर अपनी उम्र के बच्चो से बहुत पिछड़ा हुआ है । हालाँकि उसकी माँ रीमा तथा पिता माधव उसे बाकी बच्चो जैसा बनाने की दिन रात कोशिश करते है ,
रीमा उसे एक चीज बार बार समझाती पढ़ाती है जिससे वो कुछ तो पढ़ जाये उसके साथ खेलती है जिससे उसे दोस्तों की कमी महसूस ना हो। शाम को घर आकर माधव आदित्य को पार्क ले जाता है उसे नई नई चीजे दिखा कर उनके नाम बताता है।
यहां तक कि उन दोनो ने आदित्य की दशा देखते हुए दूसरे बच्चे का ख्याल भी छोड़ दिया जिससे वो इसी बच्चे को पूरा समय दे सके।
” देखो माधव आज हमारे आदित्य ने पहली कक्षा पास कर ली हमारी मेहनत सफल हो गई हमारा आदित्य आगे बढ़ रहा है !” एक दिन आदित्य के स्कूल से आकर रीमा खुश होते हुए पति से बोली।
” वाह रीमा ये तो सच मे बहुत अच्छी खबर है । वाह आदित्य बेटा बहुत अच्छे !” माधव खुश होते हुए बोला और आदित्य को गले से लगा लिया।
” हुँह खुश तो ऐसे हो रहे है जैसे बेटा कलेक्टर बन गया हो ..ग्यारह साल मे पहली कक्षा पास करके कौन सा तीर मार लिया !” उसे इस कदर खुश देख उसकी जेठानी ने ताना दिया।
” भाभी हमारे लिए हमारे बच्चे की हर सफलता उसके कलेक्टर बनने जैसी ही है क्योकि हम जानते है वो सामान्य बच्चो जैसा नही है फिर भी कोशिश कर रहा है उनके जैसा बनने की। एक माँ बाप के लिए उनके बच्चे का सामान्य ना होना बहुत कष्टकारी होता है।
आप उसकी ताई है बड़ी माँ बोलता है वो आपको तो आपको तो ये बाते बोल हमारे जख्मो पर नमक छिड़कने की जगह उसे शाबाशी देनी चाहिए थी इस बात के लिए तभी तो आप सही मायने मे बड़ी माँ कहलाती।
खैर कोई बात नही आप शाबाशी दे या जख्मो पर नमक छिड़के हम अपने बच्चे की सफलता पर बहुत खुश है लीजिये आप भी हमारी खुशी मे मुंह मीठा कीजिये !” रीमा ने ये बोल जेठानी के आगे मिठाई का डिब्बा कर दिया।
खिसियाती हुई जेठानी ने मिठाई का पीस उठा मुंह मे डाला पर उसका मुंह मीठा नही हो सका क्योकि रीमा ने सच बोल जो उसे हकीकत का आइना दिखाया था उसकी कड़वाहट उसके मुंह मे घुली थी।
संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )