जैसे ही तुहीना ने उस सकरी गली में कदम बढ़ाया एक के बाद एक दो तीन चार अभद्र सीटियों की आवाजे तेज होने लगीं…सहम कर अपना दूसरा कदम उठा ही रही थी कि उन आवारा लड़कों ने एकदम समीप आकर उसे घेर लिया …एक ने तो धृष्टता पूर्वक उसका दुपट्टा भी पकड़ लिया।
तुहिना की तो जैसे सांस ही अटक गई थी कि तभी महेश चच्चा की लाठी पटक के साथ बुलंद फटकार सुनाई दी और तुरंत ही वो आवारा रफूचक्कर हो गए… चाचा ने पास आकर उसका दुपट्टा दुरुस्त किया उसको हिम्मत दी और साथ में चल पड़े।
घर के दरवाजे पर पहुंची ही थी कि पिता की दहाड़ सुनाई पड़ने लगी क्यों जाती है कॉलेज चुपचाप घर में रहते नहीं बनता किसी दिन वो आवारा कुछ अनहोनी कर बैठेंगे तो मैं कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगा…
बिना कुछ कहे चुपचाप घर के अंदर भाग गई थी पीछे से महेश चच्चा की भर्त्सना सुनाई दे रही थी हद करते हो भाई रामदास आवारा बदमाश की गलती सुधारने के बजाय बेकसूर बच्ची को ही हड़का रहे हो इन लफाडियो के कारण क्या बेटी कॉलेज जाना बंद कर देगी ..!
..तुम क्या समझोगे महेश भाई इस पुरुष प्रधान समाज में महिला ही गलत होती है पुरुष की गलती ना कभी देखी जाती है ना ही सुधारी जाती है तुम्हारे तो तीनों बेटे हैं ना इसीलिए उपदेश सूझ रहे हैं बेहतर है कि कोई ऊंच नीच होने से पहले मैं अपनी बेटी को ही रोक लूं….
रामदास ने बेहद संजीदगी से कहा तो एकाएक महेश कुछ बोल ही नहीं पाए सही तो कह रहा है समझना तो हम पुरुषों को चाहिए जो स्त्री को ही गलत ठहराते हैं हमेशा अपनी गलतियों का जखीरा भी उन्हीं पर फोड़ देते हैं सोचते हुए वो वापिस मुड़ गए थे।
तुहीना क्या हुआ बेटा …मां ने बेटी की घबराहट भांप ली थी फिर वही आवारा तंग कर रहे थे !!इतने में भाई तुषार आ गया था अरे दीदी तुम चिंता मत करो मैं इन सबकी शिकायत थाने में कर दूंगा जेल जाएंगे तभी समझ आएगी कल से मैं तुम्हारे साथ कॉलेज चलूंगा दिलासा देता भाई उसे दुनिया का सबसे प्यारा पुरुष लग रहा था
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भाई मैं लड़की बन कर पैदा ही क्यों हुई…देखो तुम मुझसे छोटे हो फिर भी ज्यादा हिम्मती हो क्योंकि पुरुष होने के नैसर्गिक गुणों से भरपूर हो… जैसे तुम मेरी चिंता कर रहे हो वैसे ही वो तुम्हारी ही उम्र के लड़के जो मेरा जीना मुहाल कर रहे हैं क्यों नहीं समझ पाते आखिर उनके घर की बहनें भी तो बाहर आती जाती होंगी …. फिर पिता जी मुझे ही दोषी ठहराते हैं….. ठीक है मां मैं कल से भाई के साथ जाऊंगी..
.तभी पिता जी आ गए थे” हां हां अपना स्कूल और अपनी पढ़ाई छोड़ कर इस बेवकूफ लड़की के पीछे जा बस यही काम रह गया है तेरे लिए चल जा अपनी पढ़ाई करऔर सुन तुही कॉलेज जाना है तो अकेले जइयो कोई खतरा होगा तो अपने मत्थे निबटना ये इतने टाइट कपड़े क्यों पहने हैं तूने ढीले ढाले हल्के रंग के शालीन ड्रेस पहन कर जाया कर.. ध्यान रखना पढ़ने जाती है फैशन करने नहीं..
पिता की फटकार भरी हिदायते तुहिन को फिर से पुरुष की अनुदार तानाशाही छवि का बोध शिद्दत से करा गई थी।
तुहिन बेटी मेहुल के घर से एक महीने से फोन आ रहे है वो
लोग कुछ रस्म करना चाह रहे हैं तू मुझे भी तो कुछ बता क्या सोचती रहती है मन ही मन क्या तुझे मेहुल पसंद नही है पिता की चिंता मत कर तेरी शादी के बारे में तू जो भी फैसला करेगी मैं पिता से लड़ लूंगी…
मां ने फिर से कम से कम पांचवी बार यही बात दोहराई तो तुहिन बिफर पड़ी मां मुझे शादी ही नही करनी है ये पुरुष समाज स्त्रियों को किसी न किसी बंधन में बांध कर अपने स्वार्थों की अपने पुरुषत्व की पूर्ति करता रहता है मैं शादी ही नही करूंगी …
अभी पिता के आदेशों की जकड़न शादी के बाद पति के आदेशों की पूर्ति की बाध्यता…जिंदगी भर इन्हीं की चाकरी करते रहो….
मैं अपने आप बिना किसी पुरुष की सहायता के अपनी जिंदगी जीना चाहती हूं मां समझ गईं आप…तेजी से इतना कह तुहिन कॉलेज के लिए निकल गई।
…. जैसे ही कॉलेज पहुंची वो गली के आवारा वहां मौजूद थे …फिर से डर गई उन्हें देख कर सिकोड़ कर अपने कदमों को पीछे मुड़ना ही चाहा था कि एक ने आगे बढ़ धृष्ठता से सरेआम उसका दुपट्टा पकड़ कर खींच दिया वो कुछ कह पाती तभी दूसरे ने उसका हाथ पकड़ लिया
…उनकी विद्रूप हंसी अभद्र शब्दावली जैसे पिघला हुआ सीसा उसके कानों में उड़ेल रही थी….!चिल्लाती कैसे उसका मुंह उन धृष्ठ हाथों ने बंद कर दिया था…आंख बंद कर ली थी उसने और किसी अनहोनी की आशंका से कांप रही थी ..!
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किसी की तेज चीख और अपने मुंह पर पकड़ अचानक ढीली होने से आंख खोल कर देखा तो मेहुल को उन गुंडों की पिटाई करते पाया….ऐसा लगा मानो स्वर्ग का कोई देवदूत आ गया हो…!
मेहुल ने उसे पानी पिलाया और बिठा कर समझाया इतना डरोगी तो कैसे जियोगी!! इन गुंडों को पुलिस के हवाले कर दो हिम्मत जुटाओ ..! गुंडों से डरती हो पिता से डरती हो !!मुझसे भी चिढ़ती रहती हो !! क्यों तुहीना ऐसा लगता है तुम मुझसे भी नफरत सी करने लगी हो!!
हां मुझे नफरत होती है पुरुष वर्ग से सब स्त्री को कमजोर समझते हैं अपने अनुसार चलाना चाहते हैं जैसे उसके पास खुद का दिमाग ही नहीं है हर बात पर टोका टाकी और संदेह ….मुझे मत समझाओ मुझे क्या करना चाहिए मैं निबट लूंगी इन गुंडोंसे….पुरुष ही गुंडे होते हैं
आज तक किसी स्त्री को गुंडा होते देखा है ……स्त्री अकेली भी सामर्थ्य वान होती है पुरुष की हमदर्दी या मदद के बिना भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व निर्माण कर सकती है ….मैं साबित कर दूंगी ये….दृढ़ता से कह तुहीना उठ गई थी।
शाम को बाजार जाना था मां को ….भाई को कुछ काम आ गया तो वो जिद करके मां के साथ बाजार चली गई थी…..जैसे ही बाजार पहुंची फिर वही गुंडे उसका पीछा करते आ गए और अपने धृष्ठ् हाथों से उसका दुपट्टा और मां का पर्स छीनने की चेष्टा करने लगे दुपट्टे पर उनकी पकड़ तेज होती देख फिर से तुहिन का दिल कांप उठा मां भी डर गई …अचानक उसके कानो में मेहुल की समझाइश गूंज उठी कब तक डरती रहोगी पुलिस के हवाले करो इन्हें….उसने तत्क्षण
पास से गुजरते एक युवक को रोक कर सहायता मांगी युवक ने तुरंत रुक कर उसकी सहायता की पुलिस को सूचित कर दिया और थोड़ी ही देर में वहां पुलिस की गाड़ी आ गई थी जो तुहिना की शिकायत पर उन दुष्टों को पकड़ कर ले गई थी।
मां अकबका कर अपनी बेटी को बहादुर बनते देख ही रहीं थीं की पीछे से पिताजी भाई के साथ आ गए शाबाश तुहि मैं यही चाहता था आज उन गुंडों को पुलिस के हवाले कर जो निडरता दिखाई है वही मैं तुझमें हमेशा देखना चाहता था हमेशा से तुझे निडर होकर जिंदगी जीना सिखाना चाहता था इसीलिए अकेले ही भेजा पर तुम लोगों के पीछे ही था किसी अनहोनी की आशंका के लिए पूरी तरह तैयार था।
आश्चर्य चकित तुहीना को आजअपने पिता में कठोरता की जगह कोमलता नज़र आई थी।
अचानक उसे महसूस हुआ कि सच में स्त्री की हिम्मत में उसके आगे बढ़ने में पुरुष का साथ और समर्थन हमेशा जुड़ा होता है ….भाई और पिता भी तो पुरुष ही हैं या फिर मेहुल हो महेश चच्चा हों या राह चलता वो युवक जिसने पुलिस को फोन किया था …
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ये सब मेरे हितैषी ही तो हैं…..दो चार असामाजिक आवारा दिग्भ्रमित गुंडों के कारण पूरी पुरुष जाति के बारे में गलत अवधारणा बना लेना उनसे नफरत करना सही नहीं है ….मन ही मन चिंतन करती तुहिन के पास आकर मां ने हंसकर कहा..” तो फिर अब क्या इरादा है हमारी बहादुर बेटी का शादी करने के बारे में भी और मेहुल के बारे में भी….
बेटा पुरुष को समझना भी कठिन होता है लेकिन सिर्फ पुरुष ही खराब होते हैं ऐसा नहीं है …मां तुम भी ना मौका देखती रहती हो पर हां तुम काफी हद तक सही कहती हो …. !! तुहीना के मन में अब पुरुष की छवि सुधर रही थी।
ये बात सच है कि हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है पुरुषों को इतनी छूट और स्वतंत्रता सिर्फ समाज ने ही नहीं दी है प्रकृति ने ही दी है परंतु ये भी सच है कि स्त्री को ही नहीं पुरुष को भी समझने की जरूरत है खासकर उन्हें जो स्त्री को सम्मान जनक दर्जा दिलाने के लिए पिता पति भाई पुत्र या दोस्त के रूप में हमेशा हर जगह साथ खड़े मिलते हैं और पूरी संवेदनशीलता के साथ संघर्ष रत हैं ।
लतिका श्रीवास्तव
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