“ क्या बात है बहू देख रही हूँ तुम कब से इधर से उधर चहलक़दमी किए जा रही हो… कोई परेशानी है क्या?” सुनंदा जी ने बहू राशि से पूछा
“ हाँ माँ… वो कमली को लेकर थोड़ी परेशान हूँ… कुछ दिनों से वो बहुत परेशान लग रही थी जो पूछा तो सुन कर मेरा हृदय विह्वल होगया…फिर मैंने उसे बहुत समझाया और कहा है अब से तेरा पति ऐसा किया करें तो बर्दाश्त ना करना….
ये पुरूष कभी कभी अपनेआपको भगवान समझने लगते है और औरतों को अपनी दासी जो हर समय उनकी सेवा में उपस्थित रहें… अब तक वो नहीं आई तो डर लग रहा है कहीं उसके पति ने उसके साथ… नहीं नहीं…. बेचारी को कुछ हो गया तो उसके बच्चों का क्या होगा…
.उनके लिए ही तो वो इतनी मेहनत कर रही है…. ताकि वो अपनी ज़िन्दगी उस चाली में ना गुज़ारे ।” राशि कमली का सोच सोच कर परेशान हो रही थी तभी कॉलबेल बजी
सुनंदा जी ने दरवाज़ा खोला तो सामने कमली खड़ी थी …
जल्दी से घर के अंदर घुसकर राशि को देखते हाथ जोड़कर बोली,“ आपने सही कहा था दीदी… ये पुरूष बस झूठे दंभ में रहते…. जरा सा हम हिम्मत दिखाए तो वो भी डर सकते हैं ।”
“ पर ये तो बता हुआ क्या ?” राशि आश्चर्यचकित हो पूछी
कमली वही ज़मीन पर पसर कर बैठ गई… राशि और सुनंदा जी पास ही कुर्सी पर बैठ गई
“ कल फिर वो निकम्मा दारू पी कर आया और खाना खाकर सोने चला गया और मुझे आवाज़ देने लगा… जल्दी आ… दीदी… दोनों बच्चों की परीक्षा आने वाली ….वो पढ़ाई कर रहे थे…मुझे कहा माँ तुम यहीं हमारे पास रहो ना…
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जब रात को बत्ती जाती हैं तो डर लगता है….मैं पति को बोलने गई तुम सो जाओ मैं जरा बच्चों के साथ हूँ… वो नशेड़ी मेरा हाथ पकड़कर बोला… कह रहा हूँ तो समझ नहीं आ रहा…चल आ…सच बोलूँ दीदी मैं एक पल को डर गई बच्चे सयाने हो रहे हैं… उनके सामने माँ बाप की ऐसी बातें हो शोभा तो नहीं देता…
मैं उसको बोली ये क्या तमाशा कर रहे हो… बच्चे अभी पढ़ रहे हैं…सुनेंगे तो क्या सोचेंगे…. तो कहने लगा आजकल के बच्चों को सब पता है चल आ कमरा बंद कर… उसकी ढीठाई सुन मेरा रोम रोम ग़ुस्से से भर गया….
मैं उसको बोली तेरा भेजा फिर गया है… ज़्यादा करेगा ना तो चार थप्पड़ मुझे भी लगाने आते… पति हो लिहाज़ कर रही इसका मतलब ये नहीं तुम जो बोलोगे सुनती रहूँगी…कह कमरे से बाहर निकल गई…बच्चे वहीं पास में पढ़ रहे थे मेरी सूरत देखने लगे शायद अंदर की बात की भनक उन्हें भी लग चुकी थी…. ।”कमली ये कह थोड़ी चुप हो गई
“फिर क्या हुआ कमली … तेरे मर्द ने कुछ ना कहा?” सुनंदा जी पूछी
“ अरे ना माँ जी …. पूछो ही मत… वो बाहर आकर बोलने लगा बड़ी ज़बान चल रही है तेरी… बाहर का हवा पानी ज़्यादा लग रहा तुझे… कल से तू रहना घर पर तब अक़्ल ठिकाने आएगी…ये सुन मैं बिफर पड़ी….
तो क्या तू घर चलाएगा…. बच्चों की फ़ीस…घर का राशन-पानी तू करेगा…. तू तो बस दारूबाज़ है… ना पत्नी की फ़िक्र ना बच्चों की बस एक औरत चाहिए तुझे जो तेरी हर इच्छा पूरी करें…. कान खोलकर सुन ले..
जो आज के बाद मुझे मारा या बच्चों की पढ़ाई रूकवाई मुझसे बुरा कोई ना होगा…अरे अच्छा पुरूष बनकर रह… घर-परिवार का सोच… जब इज़्ज़त देगा तो ही इज़्ज़त पाएगा… अब जा जाकर सो जा…
मैं कहकर रसोई में बच्चों के लिए पानी लाने चली गई वो आया और मुझे पकड़कर अपनी ओर घुमाकर हाथ उठाने को हुआ पर नशे की वजह से लड़खड़ा कर गिर पड़ा ..तभी मेरा पन्द्रह साल का बेटा आकर उसे बिस्तर पर ले जाकर सुला दिया…और बेटी दौड़ कर आई और बोली ‘माँ आज तूने पहली बार बापू के सामने बोलने की हिम्मत की है….
बहुत अच्छा लगा….हर जगह देखो तो कुछ पुरूष अपने आपको कुछ ज़्यादा सुपर समझते हैं अपने अहंकार में डूबे रहते हैं…बापू भी उनमें से ही एक है…अब तू बापू की बात का ऐसे ही करारा जवाब देना….तू सहती रही तभी वो तेरे से ऐसा व्यवहार करते रहे’…
जानती है दीदी बेटी की बात सुन कर लगा जो मैं कल ना बोलती तो वो भी शायद मेरी तरह डरपोक ही बनी रहती…बस मुझे इसी बात की ख़ुशी हो रही कि मैं बेटी के सामने कुछ मिसाल तो पेश कर सकी।”कह कमली काम करने उठ गई
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“ और तेरा पति वो कुछ ना बोला?” राशि ने पूछा
“ क्या ही बोलेगा दीदी हम सब उससे बात ही नहीं कर रहे देखते कब तक अबोला रहता।” कमली झाड़ू करते करते बोली
उधर कमली के पति के साथ बात बंद हुए दस दिन गुजर गए…
एक रात जब वो चौकीदारी ख़त्म कर घर आया बुख़ार में तप रहा था….उसकी हालत देख कमली को समझ आ गया वो ठीक नहीं है…. वो चुपचाप जाकर सो गया…. कमली ने इशारे में बेटे को बापू को देखने को कहा…
“ माँ बापू को तो बहुत बुख़ार है… घर में दवा भी नहीं…. मैं जाकर दवा लाता हूँ तू तब तक पट्टी कर।” बेटा घबराते हुए बोल निकल गया
कमली जाकर पति के सिर पर पट्टी करने लगी… इतने में बेटी खाना लाकर बापू को खिलाने लगी…उसके बाद दवा देकर सब उधर ही बैठ गए
सुबह जब कमली के पति की नींद खुली तो वो देखा सब उसके आसपास ही बैठे हैं… और सवालिया नज़रों में मानो पूछ रहे अब कैसे हैं?
“ तुम सब क्या मुझसे बात नहीं करोगे…. माना बहुत ग़लतियाँ हुई मेरे से… फिर मैं तो मर्द… पुरूष दंभ में जकड़ा रहा….तुम सब पर अपना हुक्म चलाना अपनी शान और अधिकार समझता रहा …. तुम सब मुझसे नाराज़ थे फिर भी मेरा इतना ख़्याल रखा… आख़िर क्यों?” कमली के पति ने पूछा
“ आप एक पुरुष दंभ में ज़रूर रहे बापू पर हम सब के लिए आप इस घर का अहम हिस्सा हो…तुम्हारी हर बार की मार से माँ चट्टान जैसी हो गई….
तुम्हारी गालियाँ सुन कर हमारे अंदर अब किसी की बात का बुरा लगना बंद हो गया….तुम सुधर जाओ हम यही सोचते रहे पर तुम सुधरोगे ये सोचना ही गलती हमारी।” बेटे ने कहा
“ तुम पति हो तुम्हारी हर इच्छा का मान करती रही पर कभी तुम मेरी भावनाओं को समझना ही नहीं चाहे तो हमने दूरी बना ली… पर क्याइतना आसान था तुम्हें बीमारी में छोड़ना …. तुम होते तो शायद अपने पौरुष में हमें हमारी हालत पर छोड़ कर चले जाते….
पर हम ऐसानहीं कर सकते…..अभी भी वक़्त है सँभल जाओ …. हमें प्यार दोगे तो ही प्यार पाओगे।” कमली कह कर वहाँ से जाने लगी तो उसकेपति ने उसका हाथ पकड़कर रोकते हुए कहा
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“ मुझे माफ कर दे कमली….मैं शायद कुछ ज़्यादा ही अपने पुरूष दंभ में जी रहा था…. हमेशा यही देखता आया था पत्नी को पति कीहर बात आँखें बंद कर सुननी चाहिए…. आख़िर मर्द हूँ … पर कभी तेरे मन के भाव समझ ना पाया अब से तेरे मन का भी होगा ये वादाकरता हूँ ।”
कमली बच्चों की ओर देखने लगी
“ बापू आप सच कह रहे हो…. अब माँ को मारोगे डाँटोगे तो नहीं ना …जब वो हमारे पास रहेगी?” बेटी ने आश्चर्य से पूछा
“ ना रे गुड़िया तेरी माँ को अब कुछ ना कहूँगा ।” प्यार से कमली की ओर देखते उसके पति ने कहा
दोस्तों आज भी कई घरों में पति अपने पुरुष होने का दंभ भर पत्नी को महत्वहीन समझते है चाहे वो कुछ करें ना करे पर पत्नी मुट्ठी मेंरहनी चाहिए…..
वो अगर बाहर जाकर काम भी करें तो भी पुरूष की सोच यही रहती है कि घर की सारी ज़िम्मेदारी वही सँभाले…अभीभी इस सोच को बदलने की ज़रूरत है और पुरूष को पत्नी के लिए पति का दिल रख कर उसके साथ प्यार और सम्मान से पेश आने कीज़रूरत है।
मेरी रचना पर आपकी टिप्पणी का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
मौलिक रचना
#पुरुष
रचना बहुत अच्छी और आज के समय मे सच्चाई से भरी हुई आपका हार्दिक अभिनंदन