खोखले रिश्ते – डाॅ संजु झा

सामान्य परिवार की नीना की शादी बहुत  अमीर घराने में हुई। आम लड़कियों की तरह नीना का भी सपना था कि उसका पति खूबसूरत  और सुदर्शन व्यक्तित्व का हो,परन्तु साधारण कद-काठी और साँवले रंग के पति अनिल को पाकर उसके सपनों पर मानो तुषारापात हो गया।

नीना के गोरे रंग काली घनी जुल्फें,छरहरी काया,बड़ी-बड़ी गहरी झील-सी आँखें,सुतवा नाक किसी को भी बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती।नीना का जन्म तो साधारण परिवार में हुआ  था,परन्तु उसे अपने रुप-रंग पर काफी घमंड था।सजन-सँवरने में ही उसका पूरा समय बीत जाता।उसे पढ़ाई में जरा भी रुचि नहीं थी।

संयोगवश नीना की खुबसूरती से आकर्षित होकर अनिल की माँ ने उसे अपने बेटे के लिए पसन्द कर लिया।अचानक से इस रिश्ते के प्रस्ताव पर नीना के माता-पिता को विश्वास नहीं हुआ। अनिल के पिता के दफ्तर में ही नीना के पिता किरानी (क्लर्क)थे।नीना के पिता ने हाथ जोड़कर अनिल के पिता से कहा-” सर! कहाँ आप राजा भोज हैं और हम गंगू तेली’।ये रिश्ता कैसे हो सकता है?”

अनिल के पिता ने नीना के पिता से कहा-“देखो! हमें तुम्हारी बिटिया अपने बेटे अनिल के लिए पसन्द है।मैं ऊँच-नीच में विश्वास नहीं करता हूँ।”

अंधा क्या चाहे,बस दो आँख!नीना के पिता ने जल्दी से नीना की शादी अनिल से करवा दी।आरंभ में इतने अमीर घराने में शादी होने से नीना काफी खुश थी,परन्तु अनिल का साँवले रंग,मझौले कद उसके सपनों के राजकुमार से मेल नहीं खाता था।शादी के कुछ दिनों बाद से ही वह अनिल के प्रति अनासक्त रहने लगी।उसके अंतस में कैद चाहत खीझ और चिड़चिड़ेपन के कारण बाहर आने लगी।उसकी सास अधिकांश गाँव में ही रहकर खेती-बाड़ी का काम देखती थी।शहर में पति और ससुराल दफ्तर चले जाते,वह दिनभर टेलीविजन देखकर बोर हो जाती।शादी के कुछ ही दिनों बाद  उसकी जिन्दगी बेरंग-सी हो चली थी।पति अनिल उसकी उदासी को महसूस करता था।वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था,इस कारण उसे कुछ समय देना चाहता था।

एक दिन उसका पुराना बावर्ची छुट्टी पर चला गया।उसकी जगह जवान खुबसूरत नितिन खाना बनाने आया।नितिन पढ़ाई भी करता था और खर्चें निकालने के लिए खाना बनाने का भी काम।उस गँवरु जवान सुन्दर नितिन को देखकर नीना के दिल में हलचल-सी मच गई,मानो वही उसके सपनों का राजकुमार हो।

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धीरे-धीरे नीना उसके रुप के आकर्षण में बँधने लगी।नितिन गाड़ी भी अच्छी चला लेता था।अब नीना उसे वक्त-वेवक्त बुलाने लगी और उसके एवज में उसे काफी पैसा देती।नितिन भी नीना की कमजोरी को समझ चुका था।एक दिन एकांत पाकर दोनों ने सारी मर्यादाएँ तोड़ दीं।नीना की अतृप्त वासना सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती ही जा रही थी,उसी रफ्तार से नितिन की पैसों की माँग भी बढ़ती जा रही थी।जब भी अनिल पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध बनाने की कोशिश करता,नीना ने बहाने बनाकर टाल जाती।अनिल नीना को हरसंभव खुश रखने की कोशिश करता।

नीना अब छुप-छुपकर नितिन से नहीं मिलना चाहती थी।उसने एक दिन खुलकर कहा-“नितिन!मैं अपने पति को नहीं पसन्द करती हूँ,तुमसे दुबारा शादी करना चाहती हूँ।”

नीना की बातें सुनकर नितिन ने अकचाते हुए कहा-“नीना!तुम्हारी बात सही है।तुम तलाक लेकर मुझसे शादी कर सकती हो,परन्तु हमें घर बसाने के लिए कम-से-कम 20 लाख रुपए चाहिए। “

नीना -” नितिन!तुम पैसों की चिन्ता मत करो।दस लाख मैं अपने अकाउंट से निकाल लूँगी और दस लाख के मेरे जेवर हैं।”

नितिन-“ठीक है!तुम पैसों का इंतजाम करो।पैसे और जेवर लेकर  हम अनजान शहर चले जाऐंगे।बाद में तुम अपने पति से तलाक ले लेना।” 

नीना अब पति के साथ खोखले रिश्ते में नहीं रहना चाहती थी।जब नीना ने बैंक से दस लाख रुपए  निकाले,तभी अनिल को आभास हो गया कि दाल में कुछ काला है।वह नीना की गतिविधियों पर नजर रखने लगा।

तयशुदा समय पर  रात के अंधेरे में नीना रुपए और जेवर लेकर नितिन के साथ रेलवे स्टेशन पहुँची।अनिल चुपचाप उनका पीछा कर रहा था।स्टेशन पहुँचकर नितिन ने नीना के हाथों से पैसों और जेवर की पोटली ले ली और नीना को झांसा देकर दूसरी ट्रेन में बैठकर छूमंतर हो गया।नीना स्टेशन पर बैठी-बैठी नितिन का इंतजार करती रही।सुबह हो चुकी थी,अचानक से नीना की नजर पति पर पड़ी।उसने शर्म से आँखें झुका ली।ग्लानि से आरक्त उसका चेहरा पूरी तरह झुका हुआ था।पलकों ने जैसे  बाँध तोड़ने को आतुर  सैलाब भर रखा था।उसके तन-मन की आँधी थम चुकी थी।

कुछ दिनों पहले जिन दृष्टि में उपेक्षा का भाव  था,वहाँ अब पश्चाताप ही पश्चाताप था।अनिल ने उसे अपनी बाँहों का सहारा देकर उठाया।नीना ने रोते हुए कहा -“अनिल!मुझे माफ कर दो।मैं नितिन के साथ खोखले रिश्तों की खातिर अपना सर्वस्व न्योछावर करती रही।मेरी ख्वाहिशें,मेरे अरमान  केवल खोखले रिश्तों के कारण थे।पति-पत्नी के पवित्र रिश्तों को मैंने शर्मसार किया है!”

अनिल उसे शांत करते हुए  कहता है-“नीना!मुझे लगता है कि हमारा रिश्ता अभी इतना खोखला नहीं हुआ  है कि सँभल न सके।पति-पत्नी के रिश्ते बहुत मजबूत होते हैं।इस बिखरते रिश्ते को बचाने के लिए हमें नए सिरे से प्रयास करने होंगे।”

नीना सहमति में सिर हिलाती है।उसे एहसास हो चुका था कि चाहत की अलगनी पर धोखे के कपड़े नहीं सुखाएँ जाते।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅ संजु झा(स्वरचित)

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