मनु का सर सुबह से ही चकरा रहा था .. किसी काम में मन नहीं लग रहा था .. थोड़ा आराम करना चाहती थी मनु .. कमजोरी भी थी शरीर में.. अभी दो महीने पहले ही तो बिटिय़ां को जन्म दिया था उसने… हर औरत अच्छे से वाकिफ हैं बच्चा होने के बाद कुछ महीने शरीर कितना कमज़ोर रहता हैं… खैर छोड़ो ..
फिर भी औरत की ज़िन्दगी में दो पल का सुकुन मुश्किल हैं… मम्मीजी , (सासू माँ )खाने के लिए अलग आवाज लगा रही थी … ससुर जी, अपने दो चार दोस्तो को बुला गप्पे मार रहे हैं… चाय नास्ते का फरमान जारी कर चुके थे .. बिटिय़ां रानी माँ के दूध के लिए अलग बाजा बजा रही थी … और माँ मनु पता ही हैं आपको.. सर दर्द से परेशान …
तभी अचानक से मनु को कल पढ़ा हुआ आर्टिकल याद आया – सेल्फ लव.. मनु ने चेहरे पर एक मुस्कान के साथ बिटिय़ा को लिटा दूध पिलाया .. उसे सुला दिया… हल्की सी चादर उड़ा मनु सर पकड़कर उठी… किचेन में गयी… दूध गर्म किया .. उसमें ओट्स डाले … अपने कमरे में कटोरें में लेकर आयी… चम्मच से खाने लगी… तभी सासू माँ आ धमकी …
बहरी हो गयी हैं क्या ?? इतनी देर से शिव के पापा चाय के लिए और मैं खाने के लिए आवाज लगा रहे हैं… सुनाई नहीं पड़ता क्या तुझे…
मम्मीजी आपको पता है खाना बना रखा हैं… ले लिजिये…मेरा सर बहुत दर्द हो रहा हैं.. मेरी बेटी छोटी हैं…आप लोग उसे लेते नहीं हो…मुझे ही देखना पड़ता हैं…अभी उठ जायेगी… जब तक सो रही हैं मैं भी थोड़ा आराम कर लूँ … चाय आप बना लिजिये.. नास्ता डिब्बे में रखा हैं.. इतना बोल मनु करवट बदल सो गयी..
सासू माँ पहली बार अपनी गाय सी सीधी बहू के मुंह से ऐसा सुन अवाक रह गयी… कह कुछ ना पायी … रसोईघर में गयी… 5 कप चाय बनायी .. पतिदेव को देकर आयी… पतिदेव भी बहू के आने के बाद पहली बार पसीने से तरबतर अपनी पत्नी को चाय लाता देख स्तब्ध रह गए…
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सासू माँ ने थाली में खाना लगाया … दही लिया… पानी ले अपने कमरे में आकर खाना खाने लगी… आज बाकी दिनों से एक रोटी कम खा पायी… आज थोड़ा सा काम करके थकान जो हो गयी थी… तो सोचो मनु बेचारी घर के काम कर कितना खा पाती होगी…
अगले दिन से मनु घर के काम के साथ खुद का भी खाने पीने का ध्यान रखने लगी… सच बात हैं हम औरतें खुद की ही आस्तीन का सांप होती हैं.. जो कभी नहीं जान पाती की खुद पर ध्यान न देकर हम खुद के साथ अन्याय कर रहे हैं…
शरीर में ज़ितनी ताकत हो उतना ही काम करो… थकान हैं सब काम छोड़ दो…पहले आराम करो.. फिर कुछ और.. घुमो फिरो… मन का खाओ… मन का पहनो… जीवन एक बार मिला हैं… कहीं बुढ़ापे में मन में कसक ना रह जायें की घर गृहस्थी के चक्कर में खुद पर ध्यान नहीं दे पायें…
सासू माँ, ससुर जी भी अब मनु के बदले रुप को समझने लगे हैं… अपनी पोती को खिलाते हैं जब मनु काम में लगी होती हैं य़ा आराम करती हैं…
मीनाक्षी सिंह की कलम से
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