पितृ दोष – शुभ्रा बैनर्जी 

समीर ने कई बार कहा था अम्मा और बाबूजी से,शहर में उसके पास आकर रहने के लिए।बाबूजी हर बार कुछ ना कुछ बहाना‌ करके टाल जाते थे।अम्मा का बड़ा मन होता था अपने बेटे के घर आकर रहने का,पर पति की इच्छा के चलते मन मारकर रह जातीं थीं।बाबूजी एक स्कूल मास्टर थे।थोड़ी बहुत खेती थी। ईमानदारी से सारा जीवन निकाल दिया उन्होंने।कभी बेईमानी की कमाई नहीं ली।पूरे गांव में उनकी इज्जत थी।

समीर की शादी के बाद से ही बाबूजी घर और जमीन समीर के नाम करने की ज़िद करने लगे थे।समीर ने उन्हें मना किया।”अभी आप कहीं नहीं जा रहें हैं।

आपने मुझे जीवन दिया,शिक्षा और संस्कार दिए।यह घर और जमीन आपकी थी और आपकी ही रहेगी।”निशा (समीर की पत्नी)को बड़ा बुरा लगता था ,हमेशा कहती”आप मना क्यों कर देतें हैं?कल को कुछ ऊंच- नीच हो गई तो रिश्तेदार दखल कर लेंगे।”

“ऊंच-नीच मतलब,क्या कहना‌ चाह रही हो निशा?”समीर निशा का लालच देख कर हैरान हो जाता।

“अरे इस बुढ़ापे में कोई भरोसा है,कब चल बसें।”निशा तर्क देने लगती।

निशा रईस पिता की इकलौती संतान थी।उसके पिता के पास काफी जायदाद थी,जो वह समीर को ही देना चाहते थे,पर समीर का आत्मसम्मान उसे कभी ससुराल की संपत्ति लेने की अनुमति नहीं देता था।समीर को बेटी हुई,कुछ महीनों पहले ही।

अम्मा और निशा की मां ने मिलकर दो महीने संभाला‌ निशा और उसकी‌बेटी को।उसी दौरान समीर ने अपनी अम्मा के प्रति निशा के व्यवहार में बहुत बदलाव देखा। बात-बात पर गांव के रहन-सहन को लेकर अपमानित करती थी वह अम्मा को।

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अम्मा ने कभी शिकायत नहीं की।अब अम्मा वापस जा चुकीं थीं।आज़ ही फोन पर पता चला कि अम्मा को दिल से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण परीक्षण करवाने हैं ,तो वह बाबूजी से आग्रह करने लगा ,अम्मा को लेकर आने के लिए।

निशा ने जैसे ही सुना बाबूजी और अम्मा के आने की खबर,बरस पड़ी”आपको मुझसे पहले पूछ तो लेना था।छोटी सी बच्ची के साथ कितनी दिक्कत हो जाएगी बुजुर्गो की सेवा करने में।मैं इतना सब नहीं कर पाऊंगी।”,

समीर ने निशा की मजबूरी समझते हुए उसे विश्वास दिलाया कि वह एक हफ्ते की छुट्टी ले लेगा। अम्मा को लेकर बाबूजी शाम को आ गए थे।

समीर उन्हें स्टेशन से सीधा हॉस्पिटल ले गया।अम्मा को आब्जर्वेशन के लिए एक दिन के लिए भर्ती करना पड़ा।बाबूजी को साथ लेकर घर पहुंचते ही निशा की‌आवाज कानों पर पड़ी।अपनी मां से फोन पर बात कर रही थी”मम्मी,अब फिर से मुझे मत समझाने बैठना।

समीर की ग़लती तो आप लोगों को दिखती ही नहीं।मुझसे बिना पूछे अपने मां-बाप को शहर बुलवा लिया।”

समीर के बाबूजी सन्न रह गए अपनी बहू की बात सुनकर।एक अभिमानी पिता के लिए इससे बड़ा अपमान और कुछ हो नहीं सकता था।समीर को समझाते हुए कहा उन्होंने”बेटा,बहू से बिना पूछे तुम्हें अब कुछ भी नहीं करना चाहिए।

तुम्हारी पत्नी का तुम पर पूर्ण अधिकार है।समीर स्वयं की नजरों में गिर गया था‌,अपने बाबूजी के सामने।अगले ही दिन अम्मा की सारी रिपोर्ट साधारण आते ही, बाबूजी उन्हें लेकर वापस चलें गए।

समीर को अपना‌ ही घर काटने को दौड़ रहा था।कितना चाव था अम्मा को उसके पास रहने का पर‌ निशा के कारण संभव हो ना पाया।इसी उधेड़बुन में कार चलाते हुए समीर सड़क पर एक मोटरसाइकिल वाले से एक्सिडेंट कर बैठा।

मामूली सी चोट आई दोनों को।निशा को बताते ही फोन पर चिल्लाने लगी”कहा था मैंने,ग्रहदशा अच्छी नहीं चल रही है,सावधानी बरतने को कहा था पंडितजी ने।आप कुछ सुनते ही नहीं।आपके ऊपर पितृदोष है।नासिक जाकर पूजा करनी होगी।”

समीर चुपचाप घर आया और सामान पैक करने लगा,तो निशा ने पूछा “कहां जा रहें हैं आप”?

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“निशा तुम्हारे पंडितजी ने बताया है ना मेरे ऊपर पितृदोष है,तो‌ मैं इस दोष के साथ ही अपने पिता के साथ रहूंगा।तुम ना आना चाहोगी मुझे मालूम है,इसलिए मैंने पापा(निशा के)को फोन कर दिया है, तुम्हें ले जाने के लिए।

हां एक बात और कहूंगा,मैं अपने साथ अपनी बेटी को भी ले जा रहा हूं।वह भी अपने पिता के पिता होने के दोष के साथ ही रहेंगी।पिता होना ही तो दोष है ना सबसे बड़ा।

पिता की कमाई अपने बच्चों की,पिता का घर बच्चों का,पिता की संपत्ति बच्चों की,तो फिर पिता का दोष बच्चे के लिए अस्वाभाविक क्यों है?मेरे पिता ने मुझे जीवन में सब कुछ दिया बिना इस आशा के कि मैं बुढ़ापे में उनकी देखभाल करूंगा।

अरे जो व्यक्ति अपने बेटे पर एक रुपए के लिए भी आश्रित ना हो उसका दोष मेरे सर कैसे लग सकता है।जब पिता के सारे पुण्य हैं मेरे तो उनके ग्रहों का दोष भी मैं खुशी-खुशी अपने सर लेता हूं।निशा ,पिता कभी अपने बच्चों का बुरा सोचतें भी नहीं,बुरा‌ करने की तो बात ही दूर।तुम अपने पिता के घर रहना,बिना किसी दोष के।मैं तुम्हें हर बंधन से आजाद करता हूं।”

निशा ने कभी कल्पना भी नहीं की थी समीर के इस रूप की।पापा भी‌सुन रहे थे समीर की बातें।समीर के सामने हांथ जोड़कर बोले”मैं बहुत शर्मिन्दा हूं बेटा,एक पिता होकर मैंने अपनी बेटी को सही शिक्षा नहीं दी तभी तो अपने पति के पिता को ससुर समझ रही है और पितृदोष की बात कर रही है।अच्छा ही है कि वह मेरा बेटा नहीं ,नहीं तो मैं पितृऋण से कभी मुक्त ना करता उसे।मेरी बेटी ने आज मुझे जीते जी मार दिया ।”

निशा रोते हुए समीर से माफी मांग रही‌थी”मेरे बच्चे को मुझसे दूर ना करिए।मेरे पापा ने भी मुझे अपनाने से मना कर दिया।अब मैं किसके सहारे जाऊं।”

“निशा ,हर मां-बाप बड़ी उम्मीद से अपने बच्चों को पालते हैं।बच्चे के पैदा होते ही उसके लिए जमीन,मकान,पैसे जोड़ना शुरू कर देता है पिता।

अपने खून को पसीने की तरह जलाकर बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने वाले पिता अपने बच्चों पर अपना‌ कोई दोष चढ़ने दे सकतें हैं भला क्या?”

निशा समीर के आगे हांथ जोड़कर बोलीं”मैं नादान थी जो ससुराल की संपत्ति पर अपना अधिकार जमाना चाहती थी और पिता का दोष बेटे पर दिखाकर हमेशा के लिए अलग करना चाहती थी।

आज़ मुझे ईश्वर ने सद्बुद्धि दे दी।पिता के ऋण से बच्चे कभी उऋण नहीं हो सकते और ना ही पिता के कारण बच्चों का अहित हो सकता है।”

आज ही नहीं, कभी भी पिता अपनी संतान के अहित का कारण नहीं बन सकते

शुभ्रा बैनर्जी 

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