नहीं भाभी इस बार छुट्टियों में सोनाली को कंप्यूटर और गिटार की कोचिंग करना है तो हम लोग गांव नहीं आ पाएंगे..!
देवरानी प्रियंका फोन पर कह रही थी और मोनाली बार बार पूछ रही थी मां क्या कहा चाची ने कब आ रहें हैं वो लोग सोनाली ने मेरे जन्मदिन पर आने का पक्का प्रोमिस किया है….बेटी की अधीरता को देख सुमन दुखी हो गई कैसे इसे बताए उसकी सहेली बहन नहीं आ रही है।
गर्मी की छुट्टियां ही ऐसा समय रहता था जब सोनाली की परीक्षाओ के बाद उसके देवर जो शहर में नौकरी करते थे सपरिवार आ जाते थे।उनकी बेटी सोनाली और सुमन की बेटी मोनाली दोनो बहनें कम और दोस्त ज्यादा हैं।
सुमन समझ गई थी कि प्रियंका अब शहर में रहती है हर तरह की सुख सुविधा से पूर्ण घर है उसका यहां गांव आना उसे अच्छा नहीं लगता है पिछली गर्मी में आई थी तभी दिन भर चिढ़ती रहती थी अक्सर लाइट गोल हो जाती थी फिर यहां गांव में कहां एसी की ठंडक मिलेगी…कैसे रहते हो आप लोग यहां पर मेरा तो दम घुट जाता है यहां आकर …मेरे घर में तो हर कमरे में एसी लगा है अटैच्ड लेट बाथ है…यहां तो कमरे से इतनी दूर लेट बाथ है …आप ये हमेशा साड़ी पहन के कैसे जी रही हैं कितनी झंझट है ये साड़ी !!मेरी तो सुबह देर से सोकर उठने की आदत है यहां सब सुबह से क्यों उठ जाते हैं..!हर बात पर उसे परेशानी लगती थी हर चीज यहां की बुरी लगती थी किसी तरह एक हफ्ता बिता कर वो लगभग भाग ही गई थी यहां से।
लेकिन सोनाली और मोनाली तो जैसे जिंदगी जीती थी साथ मिलकर एक साथ सोना एक साथ उठना नाश्ता खाना नहाना घूमना बगीचे से दादी की पूजा के फूल इक्कठे करना माला बनाना सब साथ साथ करती थीं ऐसा लगता था जैसे दो जिस्म एक जान हों।मोनाली का तो जन्मदिन भी छुट्टियों में पड़ता था हर साल सोनाली उसके लिए कुकर वाला केक अपने हाथों से बनाती थी और खूब धूमधाम से जन्मदिन मनाया जाता था ….इस बार भी इसीलिए मोनाली बेसब्री से गर्मी की छुट्टियां और चाची के साथ सोनाली के आने का इंतजार कर रही थी ।
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का हुआ सुमन कब आ रही है छोटी बहुरिया सासू मां ने मावा के लड्डू बांधते बांधते उत्साह से पूछा हमर या लड्डू तो बन जाहि ना तब तक…. सुमन ने सिर का पल्लू ठीक करते हुए आहिस्ता से कहा इस बार सोनाली को कुछ कोचिंग लेना है इसलिए नहीं आ पाएंगे कह रही थी।
का कह रही हो नहीं आ पाएंगे !!आपन घर नहीं आ पाएंगे !!इतनी तैयारी कर डारे है इतने आस बंधी है कब आयेंगे !!या कौन कोचिंग के बहाना हमाई से बनाए लागी!
मोनाली को तो विश्वास ही नहीं हुआ सुनकर कि सोनाली उसके जन्मदिन पर नही आयेगी वो तो रोने ही बैठ गई..और मांजी दुखी होकर बाबूजी को ये बात बताने चली गईं थीं।
अरे पैसा और सहर का रंग चढ़ गया है हम जनिथ हैं छोटी बहुरिया बहुते घमंडिया गए हैं पैसा का रोब सहर का नखरा हम घर वालेन का बतैथ है …का हम लोग गांव के मनई जिंदगी जीना नहीं जनीथ हैं बाबूजी का प्रलाप शुरू हो गया था ।पूरा घर उदास हो गया था इस बार पूरा परिवार एक साथ इक्कठा नहीं हो पाएगा।
अरे वो अपने मैके जाएगी वहां सब सुख है जो वो चाहती है बड़ा सा बंगला है उसके भाई का हर कमरे में एसी लगे हैं भाभी भी ऊंचे ओहदे पर है यहां गांव में ये सब कहां मिलेगा इसीलिए बहाने बना रही है साल में एक बार कुछ दिन यहां हम सबके साथ बिताना कठिन लग रहा है…मां जी लड्डू परात में अधबना ही छोड़ कर चुप चाप आंखों के आसूं छुपाती अपनी चटाई में लेट कर बडबडा रही थीं।
सुमन दो ही दिनो बाद होने वाले मोनाली के जन्मदिन की चिन्ता में डूब गई कि तैयारी कैसे करे कि वो खुश हो जाए क्योंकि उसने कह दिया था अगर सोनाली नहीं आयेगी तो वो अपना जन्मदिन ही नहीं मनाएगी बिना सोनाली के कैसा जन्मदिन !!
अचानक पूरा घर एक अजीब सी खामोशी की चादर में लिपट गया था ।
जब प्रियंका शादी होकर गांव आई थी तब उसे यही गांव का घर बहुत अच्छा लगता था बहुत बड़ा घर है ये तो कितना खुला खुला बाहर ये बड़ा सा बगीचा तो प्राण है इस घर का बड़ी खुश रहती थी… और सुमन के साथ सम्मानजनक व्यवहार रहता था उसका।सुमन वैसे तो एक ही साल बड़ी थी पर बहुत समझदार और जिम्मेदार बहू थी वो पूरा घर और सास ससुर की जिम्मेदारी के साथ अपनी देवरानी को भी प्रेम और अपनत्व से बांध रखा था उसने। दोनों की डिलीवरी भी एक साल के अंतर से हुई और दोनों की ही प्यारी बेटियां हुईं जिनके नाम बहुत प्यार से एक जैसे ही रखे थे उन लोगों ने।
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अचानक देवर की शहर में ही नौकरी लग गई …सब खुश भी हुए थे की चलो हमारे परिवार का भी कोई शहर में रहेगा अब मां बाबूजी के इलाज के लिए भी शहर के अच्छे डॉक्टर्स का इलाज अब संभव हो पाएगा लेकिन उनके जाने वाले दिन सब बहुत रो रहे थे विशेषकर सोनाली और मोनाली तो एक दूसरे को छोड़ ही नही रहे थे…
तब से हर गर्मी की छुट्टी में जब वो लोग यहां आकर रहते हैं तभी पूरा घर मानो एक साथ पूरा जीवन जी पाता है।
पिछले साल जब यहां आए थे तभी देवर की इच्छा थी कि मोनाली को भी सोनाली के ही साथ शहर के अच्छे स्कूल में प्रवेश दिला दें दोनो साथ में पढ़ भी लेंगी रह भी लेंगी …लेकिन सुमन ने अभी बहुत छोटी है मैं इसके बिना कैसे रह पाऊंगी कॉलेज की पढ़ाई के समय देख जायेगा कह कर बात खत्म कर दी थी प्रियंका ने उस समय भी कोई जोर नहीं दिया था शायद अब शहर में रहकर मोनाली भी एक गंवार और फूहड़ लगने लगी थी जिसकी संगत में उसकी बेटी सोनाली के बिगड़ जाने का खतरा उसे दिखने लगा था वो सोनाली को मोनाली के गांव जैसे रहन सहन से बचा कर रखना चाहती थी इसलिए भी अब गांव नहीं आने के बहाने तलाशती रहती थी।
पैसे और शहर के रंग ढंग ने प्रियंका के अंदर घमंड पैदा कर दिया था वो अपने आप को कुछ अलग कुछ विशिष्ट समझने लग गई थी पिछली बार गांव आने पर वो किसी मेहमान की तरह ज्यादातर अपने कमरे में ही बैठी रहती थी सुमन के साथ किचेन में काम कराना उसे अपनी हेठी लगती थीसुमन समझती सब थी उसे भी प्रियंका की तरफ से आती और निरंतर बढ़ती परायेपन की गंध बराबर महसूस होती रहती थी..!
आज मोनाली का जन्मदिन है सुबह से वो अपने कमरे में औंधी पड़ी रो रही है सोनाली को याद कर रही है पहली बार अपने जन्मदिन पर वो अकेला महसूस कर रही है।मां बाबूजी अलग दुखी थे …बिचारी सुमन क्या करे घर का ऐसा माहौल उसे काटने दौड़ रहा था रह रह कर प्रियंका का परायों जैसा बरताव उसके दिल को साल रहा था।
अचानक बाहर कार रुकने की आवाज़ आई और सोनाली दौड़ते हुए मोनाली मोनाली चिल्लाते हुए सीधे मोनाली के कमरे में चली गई मोनाली हैप्पी बर्थडे टू यू …बहना देख तेरे लिए अपने हाथों से केक बना कर लाई हूं….अचानक सोनाली को अपने समक्ष देख मोनाली खुशी से कूद पड़ी सच्ची में तू आ गई है मैं कोई सपना तो नहीं देख रही हूं ना सोना!! दोनों ऐसे लिपट गईं जैसे राम से भरत मिल रहे हों।
प्रियंका साड़ी पहने सिर पर पल्लू डाल मां बाबूजी और सुमन के पैर छू रही थी घर में तो जैसे जीवन का संचार हो गया मां जल्दी से लड्डू का डिब्बा ले आईं।
सुमन सुखद आश्चर्य में डूबी हुई थी प्रियंका अपने मायके नहीं गई!! कि प्रियंका आकर उसके गले लग गई
भाभी मैं बड़े घमंड से शान मार कर मायके गई थी भाई भाभी के साथ छुट्टी मनाने के लिए जैसे ही वहां पहुंची भाभी ने घर की चाबी देते हुए थोड़ी बेरुखी से ही कहा अरे प्रियंका मुझे भी अपने मायके जाना है तुम लोग आराम से रहना तुम्हारे लिए बड़ा वाला एसी रूम साफ करवा दिया है सब सुविधा है यहां पर रामू है वो खाना बना दिया करेगा एक हफ्ते बाद मैं आ जाऊंगी फिर हम घूमने चलेंगे कहीं बाहर…कह कर भाई के साथ चली गईं और उनका बेटा रिजुल भी चला गया जबकि सोनाली रिजूल से ही गिटार सीखने गई थी..!
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सच में सुमन भाभी उस दिन वो एसी कमरा मुझे किसी भट्टी से कम नहीं लगा था इतना बेरुखी भरा स्वागत यहां और गांव में मां बाबूजी और आप सबका उल्लास पूर्ण स्वागत झकझोर गया ये घमंड की पट्टी मेरी आंखों से उतर गई आप लोगों की इतनी याद आई आपका स्नेह मां बाबूजी की ममता भरी मनुहार की तुलना मैं शहर की थोथी दिखावटी सुख सुविधाओं से करने लगी थी सोच कर ही आत्मग्लानी होने लगी सोनाली का दुखी चेहरा हर पल मुझे दुखी मोनाली का चेहरा याद दिलाता रहा ..आप लोग जो दिल से हम लोगो के आने का पलक पांवड़े बिछाकर इंतजार कर रहे हैं वो छोड़ कर मैं यहां आई हूं जहां मेरे आने की किसी को कोई परवाह ही नही है….सब याद आता रहा… रात भर सो नहीं पाई…!! कहते हुए प्रियंका सुमन से लिपट सी गई।सुमन ने भी उसे अपने स्नेह से बांध लिया।
भाभी आपके हाथ का साग खाए बहुत दिन हो गए चलो ना आज बनाते हैं साथ मिलकर कहती प्रियंका सुमन का हाथ पकड़ किचेन में ले आई थी … अरी बहुरियो जाओ तुम दोनों बच्चों के साथ जन्मदिन की तैयारी करो ये किचेन का काम आज मैं संभाल लूंगी बड़े दिनों बाद आज पूरा परिवार इक्कठा हो पाया है जोरदार पालटी होनी चाहिए … पाल्टी नहीं दादी पार्टी मोनाली ने जोर से हंसकर कहा तो सब हंसने लगे…प्रियंका को आज फिर से गांव का घर सबसे बड़े सुख अपनत्व और सच्ची आत्मीयता में सराबोर लगने लगा था ।
सच है कई बार अपनो से मिली उदासीनता अपनो के प्रति आत्मीयता जगा कर सच्चे लगाव का बोध करा जाती है।
अरे रुपए से खरीदी जा सकने वाली भौतिक सुविधाओ की घरवालों के सच्चे अनमोल प्यार से कैसी तुलना कैसा घमंड!!
#घमंड
लतिका श्रीवास्तव