नीता को लगा कि अभी उसके दिल की धड़कन रुक जाएगी और वह मर ही जाएगी ..पर ऐसा होता है क्या भला…? वक्त कैसे रुख बदल देता है यह शायद उसे पता ना था वरना वह ऐसा करती ही ना, पर अब अनहोनी तो हो ही गई ना उसकी नजर में ।
नीता को लग रहा था कोई तो उसके पास हो जिसके सामने वह अपना गुबार निकाल सके। पर कौन…?उसका सिर दुखने लगा और वो वहीं सोफे पर लेट गई। थोड़ा समय पीछे चली गई। नीता के पति पंकज और रवि दो भाई थे।
पंकज शहर में रहते थे पढ़ने में अच्छे थे तो नौकरी भी अच्छी मिल गई शहर में । उन्होंने शहर में ही घर बनवा लिया और अपनी पत्नी नीता और दो बच्चों के साथ आराम से रहने लगे । इस घर को लेने में पिता बृज भूषण ने काफी सहायता की थी वो काफी किफ़ायत से चलते थे यह सबको पता था अतः जब पंकज को पैसों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपने मकान का एक हिस्सा बेच कर उसकी पैसों की कमी दूर कर दी ।
रवि व उसकी पत्नी मंजू को कोई एतराज भी नहीं हुआ । रवि छोटे शहर में रहता था सीधा-साधा था ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था तो पिता ने स्कूल के पास ही एक स्टेशनरी की दुकान खुलवा दी। रवि और उसके परिवार का गुजर-बसर अच्छे से हो जाता था ।
पिताजी रवि के साथ रहते थे पेंशन उन्हे मिलती थी और रिटायरमेंट के बाद जो उन्हें पैसा मिला था उन्होंने पत्नी के कहने पर नोएडा के पास एक प्लॉट ले लिया था । पत्नी भी साथ छोड़कर चली गई। उस प्लॉट पर किसी ने नाजायज कब्जा कर लिया तो बृजभूषण जी ने केस भी दायर किया और अब 8 साल हो गए उसका कोई भी नतीजा सामने ना आया ।
बृजभूषण जी अब थक चुके थे अदालत के चक्कर लगाते हुए और अब उन्होंने वकील को बोल भी दिया कि आप ही देख लो जो होगा बता देना, और फिर बुढ़ापा जो अनेक बीमारियां लिए साथ आता है बृजभूषण जी पर भी आया और यह निर्णय लिया गया कि बृजभूषण जी पंकज के साथ शहर में रहेंगे जहां पर उन्हें चिकित्सीय सुविधाएं भी अच्छे से मिल जाएंगी ।
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नीता को यह सब अच्छा तो नहीं लगा पर वह कुछ कर ना सकी । फिर उसने दूसरे तरीकों से ससुर को तंग करना शुरू कर दिया कभी सब्जी ही नहीं है, कभी आटा कम था तो रोटी कम बनी, कभी मशीन खराब है तो कपड़े नहीं धुले यानी किसी भी मुद्दे में उन्हें तंग करना उसकी आदत में शुमार हो चुका था।
पंकज मिट्टी का माधो था उसे दिखाया कुछ जाता था और कहा कुछ जाता था। 3 साल पिता जी ने यूं ही गुजार दिए। अब वो भी तंग आ चुके थे । छोटे बेटे के पास अगर जाते तो वहां चिकित्सय सुविधा का अभाव था तो उन्हें मन मारकर वहां रहना पड़ रहा था,
लेकिन अब नीता पूरी तरह से हावी हो चुकी थी उसने ससुरजी को वहां से हटाने के लिए सोच लिया था कि किसी तरह उन्हें वापस भेज दिया जाए । बृजभूषण भी सब देख रहें थे, समझ रहे थे वो तैयार हो गए उन्हें रवि के पास कोई तकलीफ न थी सिर्फ मेडिकल सुविधा के अभाव को याद करके थोड़ा घबरा गए थे
लेकिन अतः वे तैयार हो गए और रवि उन्हें इज्जत से ले गया । ले जाने के 1 महीने के बाद ही वक्त ने कुछ ऐसा पलटा खाया कि जिस प्लॉट के लिए उन्होंने केस दायर किया था वह केस ब्रजभूषण जी जीत गए और केस जीतने के बाद आनन-फानन वह प्लॉट 80 लाख में बेच दिया और उसमें से आधा उन्होंने रवि को दे दिया ।
हालांकि रवि ने लेने से काफी मना किया लेकिन बृजभूषण जी नहीं माने और उन्होंने उसे ही दिया और आधा उन्होंने फिक्स डिपाजिट करवा दिया । पंकज और नीता को जब पता चला तो उनके सीने पर सांप ही लोट गए उन्हें लगा कि अगर पिताजी यहां होते तो 40 लाख उन्हें ही मिलते लेकिन अब क्या हो सकता था ।
कहते हैं न इंसान सबसे झूठ बोल सकता है लेकिन अपनी अंतरात्मा से नही । वो हमेशा बताती है कि तुमने कहा क्या गलत किया है वह बिल्कुल झूठ नहीं बोलती । यही नीता के साथ हुआ किस मुंह से वह कहती कि पिताजी आप वापस आ जाइए।
शिप्पी नारंग