पूरे अठारह साल बाद एम के उर्फ महेशवा गांव जा रहा है.. रानू को गांव जाने के लिए तैयार करने के लिए कितना आरजू मिन्नत करना पड़ा.. बाबूजी की तीसरी पुण्यतिथि है… छोटा भाई रमेश ने पूजा रखी है..
कल का फ्लाइट है.. बच्चों ने साफ इंकार कर दिया है गांव जाने से..
पंद्रह साल की लवी और बारह साल के प्रिंस ने कहा गांव बहुत डर्टी होता है और वहां बहुत डर्टी लोग रहते हैं…
उनकी क्या गलती है मुंबई में जन्म लिया..अभिजात्य वर्ग के लोगों के बीच रहा.. मां ने गांव की जो परिभाषा बताई वही समझे बच्चे…
बिहार के एक छोटे से गांव से मैट्रिक पास कर आगे की पढ़ाई के लिए पटना बाबूजी ने भेज दिया..
मां दो साल पहले हीं टीबी होने के कारण गुजर गई थी..
छोटा भाई रमेश आठवीं कक्षा में गांव के स्कूल में हीं था.. बाबूजी खेती करते थे.. साधारण परिवार था…
पढ़ने में तेज होने के कारण महेश को वजीफा मिलने लगा.. बाबूजी जितना हो सकता था पैसा भेजते थे…
आगे की पढ़ाई के लिए महेश दिल्ली चला गया…
रमेश को शहर में पढ़ाने की हैसियत नहीं थी बाबूजी को.. रमेश ने भी परिस्थितियों से समझौता कर बाबुजी। के साथ खेती करने लगा..
बाप बेटे को उम्मीदें महेश पर टिकी थी..
और पांच साल के अथक मेहनत से महेश आईटीओ (इनकम टैक्स ऑफिसर) बन गया.. मुंबई में पहली पोस्टिंग हुई..
बाबूजी और रमेश के खुशी का ठिकाना नहीं रहा…
सबसे पहले महेश ने कच्चे मकान के जगह पक्का मकान बनाना शुरू किया गांव में… बरसात में घर बहुत चुता था.. रात जग के बितानी पड़ती थी..
दो कमरा और बाथ रूम बन चुका था.. किचन और बाकी कमरे बनने के पहले हीं बाबूजी को कहीं से उड़ती खबर मिली की महेश ने शादी कर ली है.. दूसरी जाति की लड़की से..
ससुराल बहुत पैसे और पावर वाला है.. वहीं रहता है..
बाबूजी बहुत स्वाभिमानी थे…
महेश से फोन पर उसकी मां की कसम दे कर पूछा..
महेश झूठ नही बोल सका… जाने अनजाने में महेश ने अपने पैरों पर खुद हीं कुल्हाड़ी मार ली थी… इसका अहसास महेश को बाद में होगा ये उसने कहां सोचा था… और बाबूजी ने हमेशा के लिए रिश्ता खतम कर दिया.. यहां तक की अपने अंतिम संस्कार में भी महेश को शामिल होने से साफ मना कर दिया गांव वालों के सामने…
बाबूजी बिल्कुल गुमशुम हो गए..
रमेश की शादी कर दिए..
उनका मन खेती में भी नही लगता..
रमेश को महेश के कारण आगे नहीं पढ़ा पाए इस अपराध बोध से हमेशा ग्रस्त रहे..
और एक रात सोए तो सोए हीं रह गए…
महेश सपरिवार पेरिस गया था घूमने के लिए..
रमेश ने सूचना दे दी..
गांव कितना बदल गया है.. कच्ची पगडंडियां अब पक्के रोड हो गए है.. कच्चे मकान की जगह पक्के घर बन गए हैं..
रमेश और उसके बच्चे रोड पर खड़े हैं हमारे इंतजार में.. मैं रमेश के गले लगा तो आंखों के कोर गीले हो गए.. बच्चों ने हम दोनो के पैर छुए..
अरे घर आधा पक्का और आधा कच्चा हीं रह गया ओह…
रानू और मेरे रहने की व्यवस्था पक्के कमरे में की गई थी.. साफ सुथरा चादर तकिया टेबल फैन मिट्टी के घड़े में पीढ़ा पर पानी और ग्लास.. बगल के कमरे में बच्चे पढ़ते थे..
रमेश और सुमन खपड़ा वाले कच्चे घर में रहते हैं..
लकड़ी के चूल्हे पर बना खाना आज बरसों बाद खा रहा था.. रानू असहज हो रही थी पर मैं कितने सालों बाद खाने के बाद संतुष्टि महसूस कर रहा था.. सोते समय सोंधा गरम दूध का ग्लास रमेश कमरे में पहुंचा गया.. दोनों बच्चे बारी बारी से मेरा और रानू का पैर दबाने आए.. रानू ने मना कर दिया पर मैं उनके प्यार भरे मनुहार को टाल नहीं सका.. कब नींद आ गई पता हीं नहीं चला.. बाथरूम जाने के लिए उठा तो देखा रमेश और सुमन एक थाली में हंसते बात करते खा रहे थे.. दोनो एक दूसरे से मनुहार कर रहे थे आप एक रोटी लीजिए तो हम भी ले लेंगे.. मुझे अपना घर याद आ गया खाने के समय चारो लोग मोबाईल पर लगे रहते हैं..
बाथरूम से वापस आया तो सुमन कह रही थी आप को हाथ पोंछने के लिए मेरा आंचल हीं चाहिए तौलिया टंगा हीं रह जाता है.. ओह इतनी कमी है पर प्यार…
सुबह पूजा की तैयारी में रमेश सुमन और दोनो बच्चे लगे थे..
पूजा अच्छे से संपन्न हो गई.. रानू को लाख कहा साड़ी पहन लो पूरा गांव आज पूजा में शामिल होने आएगा पर रानू डिजाइनर गाऊन हीं पहनी..
सुमन और रमेश के सामने मैं अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहा था.. और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मैने खुद हीं मारी थी ये महसूस कर रहा था…
आज कितने दिनों बाद अपना पुराना नाम महेशवा सुनने को मिल रहा था.. गांव वालों के पचासों सवाल.. बाबूजी की व्यथा सब कुछ सुना रहे थे..
रमेश और उसकी पत्नी की सभी तारीफ कर रहे थे..
रानू को देखकर लोगों के चेहरे पर ब्यंगात्मक मुस्कान थी..
बाबूजी के कई साथी भी थे जो बाबूजी और रमेश के त्याग की चर्चा कर रहे थे..,
अगले दिन तीज था.. सुमन खाना पीना बनाने के बाद गुझिया बना रही थी.. मैने रानू से कहा सुमन के लिए जो साड़ी लाई हो दे दो..
शाम को सुमन रमेश की लाई हुई साधारण सूती छींटदार चुनरी साड़ी पहन के तैयार हुई .. पंडितजी आए कथा कहने.. सुमन साक्षात लक्ष्मी और अन्नपूर्णा की अवतार लग रही थी.. प्रेम से पति की लाई हुई साधारण सी साड़ी उसके लिए असाधारण थी.. रानू इन दकियानूसी परंपराओं को नहीं मानती थी.. सुमन को देखकर मां याद आ गई..
रमेश ने शाम को दुआर पर गोईठा पर स्वादिष्ट लिट्टी चोखा बनाया बच्चों ने सहायता की..
सुबह सुमन नहा के पूजा कर रही थी तब तक रमेश ने गरमागरम पकौड़े और चाय तैयार कर ली.. सुमन ने पूजा कर बाबूजी के फोटो को प्रणाम किया फिर रमेश के और मेरे पैर छुए… मैं गदगद हो गया.. सदा सुखी रहो का आशीर्वाद दिया.
भले हीं मेरे भाई के पास मेरे जैसा पद पोस्ट संपति नही है पर उसके पास जो है वो मुझे कभी नही मिल पाएगा..
बाबूजी का पूरा आशीर्वाद रमेश को मिला है.. सच हीं कहा गया है आशीर्वाद का बंटवारा नहीं हो सकता है.
रानू से मैं सात दिन रहने का वादा लेकर आया था पर रानू ने हंगामा कर कल के फ्लाईट का टिकट करवा दिया..
रमेश बच्चे सुमन सब की आंखें नम है.. बच्चे फिर जल्दी आने का प्रॉमिस करवा रहे हैं.. मैं रमेश और बच्चों को बाहों में लेकर बिलख उठता हूं.. आसुओं का बांध टूट जाता है.. हिचकी लेकर मैं और रमेश रो रहे है.. इतना बाबूजी के मृत्यु पर भी नही रोया था..
ओला दरवाजे पर आ चुका है.. सुमन रास्ते का खाना पैक कर के दे दिया है..
भगवान मेरे भाई को बच्चों को सुमन को दुनिया की हर खुशी दे..
रमेश मैं फिर आऊंगा जल्दी और अकेले.. अपनी जड़ों की ओर लौटना हीं होगा तभी मैं मशीनी जीवन से बाहर निकल असली जिंदगी का आनंद ले पाऊंगा… दृढ़ संकल्प के साथ महेश गाड़ी में बैठ जाता है..