क्या बात है लाडो!.तू बहन तो मेरी है पर पक्ष हमेशा अपनी भाभी की लेती है। ऐसा क्यूँ बोल..?
भैया आप नहीं समझोगे,जब माँ-पिता का साया न हो मायके में तो एक बेटी को कैसा लगता है।
जबसे भाभी आई हैं सब बदल गया।माँ, सखी सब उनमें है। आती हूँ तो दिन कैसे निकल जाता है पता नहीं चलता। चलता है तो उस दिन जिस दिन जाना है।
मेरी भाभी !..लाखों में हो न हो,पर जो मेरी है वो किसी की नहीं हो सकती।
जबसे मैनें कहा था कि आने वाली हूँ,तबसे दिन गिनते हुए ये गाँठे लगा-लगा हर चीज को याद करती रही और बाँधती रही।
ये देखिए कितनी चीजों से भर दी मेरी झोली।
देखो भैया ,एक बात मुझे बहुत खलती है,जब आप भाभी पर उंगलियां उठाते है। बेचारी कुछ बोल नहीं पाती,इतना सबका ध्यान रखतीं है फिर भी कठघरे में खड़ी रहती हैं।आखिर क्यूँ…?
आपके रिश्ते में ये खिंचाव मुझे साफ पता चल रहा है….आप गुस्से में कुछ भी बोल जाते है।
उनका हमारे सिवा और है भी कौन!..इकलौती संतान थी वो अपने माँ- बाप की।अब वे दोनों नहीं रहे तो भाभी अकेली हो गई न।
आप आइंदा मेरी भाभी पर कोई तोहमत नहीं लगाएंगे ,मेरे सर पर हाथ रख कसम खाइए।
नहीं तो मैं नहीं आऊँगी आपके घर में।
अरे लाडो ये क्या कह रही है तू आपके घर में,तेरा मायका है..तेरा अधिकार है।
इसी अधिकार से कह रही हूँ ,मेरी भाभी को खुश रखना आपका पहला कर्तव्य है।
घर की अन्नपुर्णा ही खुश न रहे तो आपका परिश्रम बेकार है।
अपनी ननद को अपने पक्ष में बोलता देख रहा न गया और फफक ही पड़ी।
लाडो मेरी कोई बहन तो नहीं थी पर तू मेरी बहन भी और सखी भी है।
बहुत किस्मत वाली हूँ मैं कि तेरी भाभी हूँ।
वाह भई,..बहन हो तो ऐसी। सदा खुश रहो।