नियति का चक्र

सासू माँ विजयाजी कई दिनों से बहू की हरकतें देख रही थी.. कभी बहू नेहा चुपचाप रसोईघर में कुछ बनाते बनाते खा लेती , अगर विजया जी पहुँच जाती तो चुपचाप गैस के नीचे खाने की चीज सरका देती, अपना पल्लू बड़ा सा कर लेती .. घूंघट के अंदर से ही जल्दी जल्दी खाना गले के नीचे उतार लेती ..

फिर सासू माँ की तरफ देख पूछती – कुछ चाहिए था क्या मम्मीजी… विजया जी देखकर भी अन्देखा बन जाती … कई बार नेहा जल्दी से कटोरा भर भरकर बनी हुई सब्जी , दाल, रोटी, दही नाली में बहा आती.. यहां तक कि सुबह का बना खाना भी… जल्दी से बर्तन मांजकर रख देती… विजयाजी कहती – सुबह की सब्जी बची हो बहू तो मुझे दे दे… पर नेहा हर बार य़हीं कह देती कि नहीं मम्मीजी वो तो मैने सुबह ही खा ली…

ऐसे कई किस्से जैसे दूध ऊबालते हुए कई बार नेहा से गिर  जाता तो वो चुपचाप सफाई करके दूध में पानी मिला देती … तेल , टमाटर तो इतने डालती सब्जी में कि लगता तेल तैरता सब्जी के ऊपर.. उससे एक और सब्जी बन जायें … दालें , मसालें , चावल में एक भी घुन य़ा शीलन दिखती तो उठाकर धूप में डालने के बजाय कचरें में फेंक देती…

विजया जी मन ही मन सोचती कि ना तो मैं बहू को डांटती हूँ, ना उसके काम में दखलअन्दाजी करती हूँ,,फिर भी बहू ऐसा क्यूँ करती हैं… 

य़हीं सब सोच विजया जी ने एक तरीका निकाला… उन्होने नेहा से कहा , बहू चल आज मैं तुझे  आटे के घी के लड्डू बनाकर खिलाती हूँ… बस तू मेरी मदद कराती रहना…. आटा भूनते भूनते  विजया जी नेहा से बोली – बहू तुझे पता हैं तू पूछती थी ना ये बगल वाले घर की आंटी बिल्कुल गंदी सी, मैली सी, दीनहीन सी  क्यूँ लगती हैं…

तो बताती हूँ तुझे… ये किसी समय में इस कोठी की मालकिन थी… रानी विक्टोरिया की तरह साड़ी जमीन पर लहराती हुई चलती थी .. ऊपर से नीचे तक गहनों से लदी रहती थी.. पर इनके हाथ में बरक्कत नहीं थी शायद .. कहते हैं भूलकर  भी दूध की बनी चीज नाली में नहीं बहानी चाहिए पर ये तो ज़ितना दूध बच जाता, य़ा थोड़ा भी खराब लगता तो उठाकर पूरा फेंक देती…

ये नहीं कि खराब दूध का पनीर बना ले.. य़ा किसी जानवर के पास रख आयें … किसी के मुंह लगे … सब्जी में तेल भरभर डालती , उससे दो तीन सब्जी बन जाए … कितने भी महंगे क्यूँ ना हो टमाटर पांच , छह तो एक सब्जी में डाल ही देती….

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अरे सस्ते हो तो कितने भी डालो पर जब 60-70 चल रहा हो टमाटर तो एक में भी काम चला लो.. हम तो उतने दिन सूखी खटाई से ही काम चला लेते थे जब तक सस्ता ना हो जायें तब जाकर तीन बच्चे पाल पायें … घर की लक्ष्मी औरत होती हैं,,

ये चाची तो खाना बनाते बनाते रसोईघर में ही खा लेती थी , उन्ही झूठें हाथों से खाना बनाती रहती थी .. बताओ भला बरक्कत कैसे आयेगी फिर …अरे भूख लगी हैं तो दो रोटी बनाकर गैस बंद कर   खा लो…कोई आफत थोड़े ना आ जायेगी…

कितनी मेहनत से घर का आदमी कमाता हैं, ये सुबह का बचा खाना भी फेंक देती थी .. या तो अन्दाज करके उतना ही बनाओ य़ा खा लो.. कोई सब्जी दाल खराब नहीं होती इतनी जल्दी… एक दो दिन तो समझ आता है पर इनका तो रोज का था …

पूरी नाली में चाची का बहाया खाना दिखाई पड़ता था … घर की दाल , मसालें समय समय पर धूप दिखाते रहना चाहिए … मैं कहती थी चाची से… पर चाची कहती, अभी तो सही है.. कभी धूप में ना डालती… सीधा फिर वो कचरें के डिब्बे में ही पड़े मिलते… ऐसे घर के अन्न का अपमान करेगा आदमी तो कभी न कभी तो भुगतना पड़ेगा …. 

नियति ने ऐसा चक्र चला कि पति का सारा काम ठप पड़ गया … एक आदमी बेवकूफ बनाकर सारा पैसा ले गया … सब दुकानें बंद हो गयी इनकी… सब बिक गया… इसी गम में पति बिमार रहने लगे… अब लकवा मार गया हैं इन्हे … ये इन्ही की कोठी थी

अब कर्जदारों ने कब्जा कर लिया हैं… अपने ही घर में बाहर टीन डालकर रहने को मजबूर हो  गयी हैं चाची…. वो तो वो आदमी भला हैं जो इतनी जगह दे दी रहने की….इसलिय दिन कभी एक से नहीं होते बहू… आज हम देसी घी के लड्डू खा रहे हैं,

कल शायद एक वक़्त की रोटी का आटा भी नसीब ना हो… इसलिये अच्छे समय में भी इंसान को संतुलन बनाकर रखना चाहिए … नियति कब क्या समय दिखा दे इंसान को कुछ नहीं पता … ये ले बातों बातों में आटा भी भूनकर तैयार हो गया बहू…. अब जा घी ले आ…. और मेवे… 

नेहा मम्मीजी की बातों को बड़े ध्यान से सुन रही थी … उसे लगा जैसे माँ जी उसे ही बोल रही हो…. नेहा बोली – मम्मीजी ,, घी हिसाब से ही डालियेगा , आज शाम को लायेंगे ये… अभी की रोटी में लग जायें .. 

विजया जी हंसते हुए बोली… तू मुझे सिखायेगी… मेरे हाथ में जादू हैं… लड्डू भी घी के स्वादिष्ट बनेंगे… और दो दिन की रोटी का घी भी बच जायेगा…. 

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नेहा सासू माँ को देख मुस्कुरा दी…. अगले दिन से नेहा पूर्ण रुप से घर की असली सुचारू गृहणी बन चुकी थी … 

विजया जी तो नियति का इतना बड़ा सार्थक पाठ पढ़ा दुनिया से विदा हो गयी… पर आज़ जब बच्चों की पढ़ाई के लिए लाखों रूपये की ज़रूरत पड़ी तो नेहा ने अपने बचाये हुए पैसे पतिदेव के हाथों में थमा दियें… 

स्वरचित 

मौलिक अप्रकाशित 

मीनाक्षी सिंह 

#नियति

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