इंसान को कठपुतली बनाकर नियति कितने खेल खेलती है और ना जाने कितने रंग दिखाती है। ऐसे ही कुछ दुखद और सुखद रंग उसने ऋतु और उसके परिवार को दिखाए। ऋतु के माता-पिता ने खुशी खुशी सही उम्र देखकर ऋतु का विवाह मोहित से करवाया था। विवाह के बाद साल पर साल व्यतीत होते गए किंतु कोई संतान नहीं हुई।
ऋतु के माता-पिता, विशेषकर उसके पिताजी कि यह दिली इच्छा थी कि उन्हें कोई नाना जी कहकर पुकारे। आठ दस वर्ष बीत जाने पर भी उनकी यह इच्छा पूरी ना हो सकी।
इस बीच ऋतु के भाई बहन भी बड़े हो चुके थे और उन दोनों की भी सगाई कर दी गई थी। दोनों की सगाई में सभी बहुत खुश थे।
फिर यह निर्णय लिया गया कि ऋतु की
बहन मीना की शादी पहले की जाएगी और बाद में भाई अतुल की शादी करवाई जाएगी।
बहन मीना के विवाह के अधिकतर निमंत्रण पत्र बंट चुके थे,केवल घर के पास रहने वाले कुछ पड़ोसियों के निमंत्रण पत्र शाम को दिए जाने वाले थे। ऋतु के पिताजी सुबह ऑफिस गए और उसकी माता जी से कह गए कि शाम को आता हूं और फिर कार्ड् देने चलेंगे। ऋतु की माताजी मीना के साथ बाजार जाने के लिए तैयार हो रही थी क्योंकि मीना के कुछ छोटे-मोटे सामान लेने बाकी थे।
इतने में पड़ोस के घर में फोन आया और माताजी फोन सुनने चली गई। वापस आई तो बहुत घबराई हुई और पसीने में बुरी तरह लथपथ थीं। उन्हें देखकर मीना बहुत घबरा गई उसने पूछा कि” क्या हुआ मम्मी?”
मां के मुंह से बड़ी मुश्किल से दो शब्द निकले-“ऑफिस में तेरे पापा को कुछ हुआ है, मैं अभी आती हूं।”
ऐसा कहकर वह कंघी वही फेंक कर, चुन्नी उठाकर रिक्शा वाले की तरफ भागी और तुरंत रिक्शा करके ऑफिस पहुंची।
उधर ऑफिस वाले लोग पिताजी को अस्पताल लेकर पहुंचे और डॉक्टर ने उन्हें देखते ही कहा-“आई एम सॉरी, अब कुछ नहीं हो सकता।”
एंबुलेंस घर की तरफ चल पड़ी और उधर मां ऑफिस पहुंच गई। ऑफिस वालों से सारी बात पता लगते ही वह वापस घर की तरफ आईं और एंबुलेंस देखते ही पूरी बात उनकी समझ में आ गई और वह अपने होश खो बैठी। वह और मीना जोर जोर से रोने लगी। तब तक किसी ने अतुल को भी फोन कर दिया था और ऋतु भी ससुराल से निकल पड़ी थी।
सब गहरे सदमे में थे और समझ नहीं पा रहे थे कि 10 दिन बाद मीना की शादी है यह सब क्या हो गया? यह नियति का कैसा खेल है वह अपने ऐसे रंग क्यों दिखा रही है। हमने किसी का कभी बुरा करना तो दूर ,सोचा तक नहीं ऐसा हमारे साथ क्यों हुआ। ऋतु के पिताजी बेहद मिलनसार, रिश्तो को समझने और निभाने वाले, सबकी मदद करने वाले और खुश रहने वाले इंसान थे, उनके साथ इतना बुरा क्यों हुआ? अब आगे क्या होगा यही सब सोच रहे थे।
भविष्य के बारे में सोचते हुए सारे कर्मकांड किए गए और फिर पंडित जी से पूछ कर नियत समय पर विवाह भी किया गया, किंतु नियति ने अपना रंग फिर दिखाया और मीना के ससुराल वाले बेहद ही घटिया निकले ,जिसके कारण ढाई महीने बाद ही उसका तलाक हो गया और वह मायके वापस आ गई। अब उसे याद आ रहा था कि एक बार पिताजी ने कहा था-“मैं अपनी तबीयत खराब होने के कारण मीना के ससुराल में एक बार भी उन लोगों से मिलने नहीं जा पाया, जब वे लोग हमारे यहां आए तभी से मुझे उनका व्यवहार खटक रहा है ना जाने क्यों मेरी छठी इंद्री कह रही है कि यह लोग सही नहीं है।”
मां ने कहा था-“मैं और मीना के मामा जी अच्छी तरह जांच पड़ताल करके आए हैं आप बिल्कुल चिंता मत करिए सब कुछ ठीक होगा।”
मीना और उसकी मां इस बात को याद करके बहुत रोते थे कि पिताजी ने कैसे एक बार मिलने पर ही उन लोगों की नियत समझ ली थी, पर हम लोग समझ नहीं पाए।
और ऋतु इस बात को याद करके रोती थी कि पिताजी की कितनी इच्छा थी कि कोई उन्हें नानाजी, नाना जी कहकर पुकारे।
पिताजी की दोनों छोटे बच्चों की विवाह की इच्छा और ऋतु की संतान को गोद में खिलाने की इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकी। यह सब नियति का खेल और उसके रंग नहीं ,तो और क्या है। मन में सिर्फ इतना ही बार-बार आता है कि ऐसा किसी के साथ ना हो।
स्वरचित अप्रकाशित
गीता वाधवानी दिल्ली
#नियति