आक्रोश का लावा  – रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’

अगला नाम है …..रंजीता  गर्ग 

 माइक पर रंजीता  के नाम की घोषणा होते  ही पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।मंच पर जाने से पहले रंजीता  ने आंख बंद कर अपने इष्ट देव को प्रणाम किया ,फिर बड़ी दीदी के पैर छुए ।रंजीता  को आज  उसकी पुस्तक ‘आपबीती’ के लिए सम्मानित किया जा रहा था । उसकी पुस्तक ‘आपबीती ‘इस वर्ष की सर्वाधिक बिक्री वाली पुस्तक बन गयी थी ।

पुरस्कार हाथ मे लेते पल रंजीता की पलकें नम हो गईं परन्तु उसने अपने आप पर काबू पा लिया ।

“क्या आप कुछ कहना चाहेंगी?” उदघोषक ने उसकी तरफ माइक बढ़ाते हुए कहा ।

“जी ,मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि मेरे इस पुरस्कार की असली हक़दार सामने बैठी माँ समान मेरी दीदी हैं जिन्होंने सही समय पर दिशा निर्देश देकर मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया ।अन्यथा …..”कहते कहते रंजीता का गला भर आया और  वह  विनम्रता से धन्यवाद कहकर मंच से उतर गई ।

घर पहुंच कर फोन चालू किया तो  बधाई संदेशों की भरमार थी ।औपचारिक सा धन्यवाद संदेश देते हुए उसने फोन स्विच ऑफ कर दिया और लेट गयी ।

इतने महत्वपूर्ण दिन भी आज उसका किसी से बात करने का दिल नही कर रहा था ।

पता नही कब उसकी आंख लग गयी और एक दुःस्वप्न की तरह बीती घटनाएं एक एक कर उसकी बंद पलकों के नीचे से गुजरने लगीं ।

पच्चीस  साल पहले ……

अभी रंजीता ने कॉलेज में दाखिला लिया ही था कि अनजाने में कब  वह  कक्षा के एक लड़के मोहित 

की तरफ आकर्षित हो गयी  उसे पता ही नही चला।  

मोहित से उसकी नज़रों की भाषा छुपी न रह सकी और वह भी अब ज्यादा से ज्यादा समय उसके नजदीक बने रहने की कोशिश करने लगा । दो साल कब गुजर गए पता ही नही चला ।रंजीता अब घर वालों से छुपकर उससे पार्क में ,माल में मिलने भी लगी थी । रंजीता पर प्यार का खुमार इस कदर चढ़ चुका था कि  सहेलियों के लाख समझाने पर भी उसको  मोहित में कोई कमी नज़र नही आ रही थी ।




“रंजीता मोहित से इतना मेलजोल ठीक नही है ।”

“रंजीता कल मैंने मोहित को किसी के साथ कालेज के पीछे वाले मैदान में देखा था ।”

सहेलियां उसे हर प्रकार से समझाने का प्रयत्न करतीं ।मगर रंजीता तो किसी और ही धुन में थी ।

“क्या यार ,होगा कोई ।अरे वो लड़की मोहित की कोई रिश्तेदार भी तो हो सकती है ।” कहने को तो रंजीता कह देती पर कभी कभी वो भी भ्रमित हो ही जाती ।

“मोहित ,क्या तुम्हारी जिंदगी में कोई और भी है?”

“ये तुमसे किसने कहा दिया?” मेरा तो भूत वर्तमान भविष्य सब तुम ही हो।” कहकर मोहित उसे गले लगा लेता और बात आई गयी हो जाती ।

और एक दिन ……..

“मोहित मुझे तुमसे मिलना है ,अभी।”

“क्यों क्या हुआ ?तुम इतनी परेशान क्यों हो?”

“वो सब मैं तुम्हे मिलने पर बताऊंगी ।बस मुझे अभी मिलना है।”

“अच्छा बाबा कहाँ मिलना है बताओ। वहीं अमित के फ्लैट पर।”

अमित मोहित का रईस मित्र था जिसका एक फ्लैट  शहर के बाहरी इलाके में था ।

“हां वहीं पर ।मगर जल्दी आओ ।”

कुछ समय बाद अमित के फ्लैट पर दोनों मिलते हैं ।

“बोलो मेरी जान क्या बात है ?”

“मोहित अब हमें जल्दी घरवालों से बात करके शादी कर लेनी चाहिये ।”

“शादी ? अरे ये अचानक शादी की क्या  सूझी ।अभी हमारी उम्र शादी की जिम्मेदारियां उठाने की नही है ।जस्ट चिल।”

“मोहित मजाक छोड़ो मैं …..मेरा मतलब है …मेरे पेट मे …एक ….नन्ही जान पल रही है ।”

“क्या!!!!! अरे इसमें इतना घबराने वाली क्या बात है ।अमित के पहचान की कोई डॉक्टर है ,कल चलकर अबॉर्शन करवा देता हूँ।”

“अबॉर्शन !!!!  पर क्यों”? क्या तुम्हे ये बच्चा नही चाहिए?”

” बच्चा ???बस करो ये शादी ,बच्चा की राग ।मुझे तुम जैसी लड़की से शादी नही करनी ।”

“मुझ जैसी?क्या मतलब है तुम्हारा ।”

“अरे जो लड़की शादी के पहले अपना सर्वस्व अर्पण कर दे उसका क्या भरोसा करना ।पता नही किसके किसके साथ गुलछर्रे उड़ाई हो।”

“मो…हि… त  ये तुम क्या कह रहे हो ।तुम तो मेरे चरित्र पर दाग लगा रहे ।

कुछ देर दोनो में इसी तरह बहस चलती रही और परिणाम वही हुआ जो होना था ।

रंजीता रोते हुए वहां से चली गयी।

घर पहुंचते ही वह अपने कमरे की ओर दौड़ ली । कमरे में पहुंचते ही उसने क्रोध और दुःख में कमरे के सामान को अस्त व्यस्त करना शुरू कर दिया ।संयोग वश उस दिन बड़ी दीदी घर आई हुई थी।

बड़ी दीदी की पारखी नज़रों से रंजीता के चेहरे के भाव छुपे न रह सके ।रंजीता को  विश्वास में लेकर उन्होंने उसकी सारी बातें ध्यान से सुनी । माँ को रंजीता की कालेज में छुट्टियों की बात बताकर वो उसे अपने साथ ले आयीं। 




रंजीता अवसाद में आ गयी ।उसे समझ मे नही आ रहा था कि आखिर इस मुसीबत से कैसे पार पाए ।कई बार मोहित से बात करने का प्रयास किया मगर उसने शायद रंजीता को ब्लॉक कर दिया था । बड़ी दीदी ने रंजीता का अबॉर्शन करवा दिया ।

रंजीता का चिड़चिड़ापन दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था ।

अचानक से किसी पर भी जोर से चिल्ला पड़ना ,सामान फेंक देना ये उसके रोज के काम हो गए थे ।जीजाजी भी उसे लाख संयत करने की कोशिश करते पर असफल ही रहते ।ऐसे में एक दिन चाय पीते पीते बड़ी दीदी ने रंजीता से पूछा …

“रंजीता बचपन मे तो तुम बहुत अच्छी कविताएं और कहानियां लिखती थी न।”

“लिखती थी दीदी।” रंजीता ने अनमने भाव से कहा।

“तो फिर से क्यों नही कोशिश करती ?”

“नही दीदी ,अब मुझसे ये सब नही होगा ।”

“क्यों नही होगा ? ऐसी बहुत सी बातें होंगी जो तुम किसी से नही कह पाती होगी ।है न ।क्यों नही उन बातों को तुम एक डायरी में लिखना शुरू कर दो ।”कहते कहते दीदी ने एक डायरी और पेन रंजीता के हाथ मे पकड़ा दिए ।शायद वो पहले से ही सब सोच कर आयीं थीं ।

वो दिन रंजीता के जीवन मे एक बड़ा बदलाव लेकर आया ।

अब वो अपने मन के सारे दुख और आक्रोश  शब्दों में उतारने लगी ।

इधर जीजाजी ने उसे कानून की पढ़ाई करने की सलाह दी ।

“देखो रंजीता मैं चाहता हूं तुम अपनी ऊर्जा को  सकारात्मकता में खर्च करो ।कानून की पढ़ाई करो ।और अपने जैसी लड़कियों की मुखर आवाज बनो ।”

जीजाजी की बातें रंजीता को अच्छी लगी ।उसे लगा मोहित जैसे लड़कों को सबक सिखाने के लिये  वकालत से अच्छा कुछ हो ही नही सकता । 

कुछ वर्षों बाद रंजीता वकालत के क्षेत्र में एक जाना माना नाम हो गयी ।वो मुख्यतः समाज की सताई हुई महिलाओं के ही केस लेती ।

उनके लिए पैरवी करते समय उसे लगता जैसे वो खुद के लिये लड़ रही हो । खासकर कम उम्र की लड़कियों में वो अपनी छवि देखती ।उसका सारा आक्रोश उसकी दलीलों में झलकता ।

बहुत कम ऐसा होता जब वो किसी को न्याय दिलाने में सफल न हो सकी हो ।

इधर बीच दीदी ने कई बार उससे शादी करने की बात कही मगर वो उसके लिये तैयार नही हुई ।

“दीदी लड़की एक बार ही किसी को अपना सब कुछ सौंपती है ।”

उसके अंदर का दहकता लावा अभी भी शांत नही हुआ था ।उसकी कहानियां अब उसके अपने मुवक्किलों के दुःख दर्द पर आधारित होने लगी थीं ।लेखन और वकालत उसके वो दो हथियार बन गए थे जिनका प्रयोग अब वो मोहित जैसे गंदी सोच वाले लड़कों के खिलाफ कर रही थी ।कई महिला संगठनों से अब उसको भाषण के निमंत्रण भी आने लगे थे ।

दरवाजे की घंटी से उसकी तंद्रा टूटी । सामने  दीदी और जीजाजी  खड़े थे कुछ सामान लेकर खड़े थे ।

“कहाँ थी ,कितनी देर से घंटी बजा रहे हैं ।”

“ओह!! दीदी सर बुरी तरह दुःख रहा था ,इसीलिये लेट गयी थी ।”उसने मुस्कुराते हुए कहा ।

“अरे हम तो बस ये देने आए थे , इधर से गुजर रहे थें तो सोचा देते चलें ।अच्छा हम चलते हैं ।तुम आराम करो ।”

“क्या होता उसका  अगर उस दिन बड़ी दीदी ने उसके आक्रोश के लावे को सही दिशा न दी होती ।शायद वो भी और  लड़कियों की तरह  या तो अपने आप को खत्म कर लेती  अथवा जीवन भर अंदर ही अंदर घुटती रह जाती ।

एक बार पुनः मन ही मन उसने बड़ी दीदी को नमन किया और और सब कुछ बुरे सपने की तरह भूलकर अगले केस की तैयारी में जुट गई ।

#पछतावा 

रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’

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