पछतावे के आँसू –  विभा गुप्ता

  ” लेकिन मम्मी, ऐसा कहना क्या ठीक है?”  नव्या ने अपनी मम्मी प्रेमलता से पूछा तो उन्होंने तपाक-से कहा कि क्यों नहीं..? आखिर तू अनिकेत की पत्नी है।उस पर तेरा अधिकार है।

    ” ठीक है मम्मी, मैं सुनयना जीजी से ऐसा ही कहूँगी।” कहकर नव्या अपने घर चली आई।

            सुनयना नव्या की जेठानी थी।नव्या का पति अनिकेत जब दस बरस का था तभी उसके पिता का देहांत हो गया था।तब उसके बड़े भाई अशोक ने ही घर और पिता की ज़मींदारी संभाली थी।अशोक अनिकेत से उम्र में तेरह बरस बड़े थें,इसलिए अनिकेत उनको पिता समान मानता था।फिर सुनयना अशोक की पत्नी और अनिकेत की भाभी बनकर इस घर में आ गई।सुनयना का अनिकेत की तरफ़ प्यार देखकर उसकी सास बहुत खुश थीं कि मेरे बाद भी सुनयना इस घर को जोड़े रखेगी।

          सुनयना और अशोक के विवाह के पाँच बरस बाद उन्हें एक बेटा हुआ।सास की दादी बनने की आस पूरी हो गई।पोते के छठीयार पर तो उन्होंने अपने सब अरमान पूरे किये थें।अनिकेत भी अपने भतीजे के साथ खूब खेलता था।काॅलेज़ की पढ़ाई के लिये अशोक ने अपने छोटे भाई को शहर भेज दिया।

       अनिकेत बीकाॅम के फ़ाइनल ईयर में था तभी घर से खबर आई कि एक खतरनाक बीमारी ने उसके भतीजे की जान ले ली।वह घर गया,सूना घर और अपनी भाभी की सूनी गोद देखकर वह बहुत रोया।वह अपनी भाभी से बोला कि आज से मैं आपका देवर नहीं,बेटा हूँ और आप मेरी भाभी माँ हैं।

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          सुनयना की सास पोते की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाईं और महीने भर के अंदर वो भी भगवान को प्यारी हो गईं।अब घर में दो प्राणी ही बचे थें।बेटे के दुःख को सुनयना ने तो बर्दाश्त लिया था लेकिन अशोक अंदर ही अंदर बेटे के गम में घुले जा रहें थें।अब ज़मींदारी में भी उनका दिल नहीं लगता था।

       अनिकेत बीकाॅम के बाद एमकाॅम कर रहा था तभी उसका परिचय एक फ़र्म के मालिक दिनेश मलहोत्रा से हुई।शहर में उनकी और भी कंपनियाँ थीं जिनको मैनेज करने के लिए वे एक विश्वसनीय व्यक्ति की तलाश कर रहें थें जो अनिकेत से मिलने के बाद पूरी हो गई।एमकाॅम की डिग्री मिलते ही अनिकेत मलहोत्रा साहब के यहाँ काम करने लगा।उसकी मेहनत और लगन को देखकर कंपनी ने उसे रहने के लिए एक फ़्लैट भी दे दिया।अब वह बहुत खुश था।उसने सोचा कि अबकी घर जाऊँगा तो ज़मींदारी का काम किसी को सौंप कर भईया और भाभी माँ को अपने साथ शहर ले आऊँगा लेकिन भगवान को तो कुछ और ही मंजूर था।




          घर पहुँचने पर अनिकेत ने जब अपने भईया को बिस्तर पर बेहोश पड़े देखा तो उसका कलेजा मुँह को आ गया।बोला, ” भईया, मैं आपको शहर लेकर जाऊँगा,वहाँ के इलाज से आप जल्दी अच्छे हो जायेंगे लेकिन उसका भाई अगले दिन का सूरज न देख सकें।सुनयना तो बदहवास-सी हो गई थी।अनिकेत ने बहुत कहा कि भाभी माँ, मेरे साथ चलिये,अब यहाँ क्या रखा है तब सुनयना ने कहा कि अभी नहीं, पहले तेरी दुल्हन को इस घर में उतार लूँ।

      मलहोत्रा साहब अनिकेत को बहुत पसंद करते थें और उसे अपना दामाद बनाना चाहते थें।एक दिन उन्होंने अनिकेत को अपने घर चाय पर बुलाया और विवाह की बात छेड़ दी।अनिकेत को मलहोत्रा साहब की पढ़ी-लिखी नव्या पसंद तो थी लेकिन स्टेटस का अंतर?तब मलहोत्रा साहब ने कहा कि भरोसा रखो अनिकेत, नव्या से तुम्हें कभी कोई शिकायत नहीं होगी और ये बात सच साबित भी हुई।

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         शादी के बाद नव्या ने अपनी जेठानी सुनयना को वही सम्मान और आदर दिया जो अनिकेत अपनी भाभी माँ को देता था।वह अपनी कसम देकर सुनयना को शहर ले आई।साल बीतते -बीतते उसने एक बेटे को जन्म दिया।बेटे आर्यन के पहले जन्मदिन पर अनिकेत ने एक बड़ी पार्टी थी,मलहोत्रा साहब भी अपनी पत्नी के साथ पार्टी में आयें थें और जब प्रेमलता ने नव्या को सुनयना के साथ हँसते-बोलते देखा तो उन्हें अच्छा नहीं लगा। 

        आर्यन स्कूल जाने लगा और अनिकेत की भी तरक्की हो गई।वह नये घर में शिफ़्ट हो गया तब नव्या ने उसे दूसरी खुशखबरी दी।नौ माह बाद उसने एक बच्ची को जन्म दिया।सुनयना के दिन तो बस बच्चों के साथ ही कटने लगे।अनिकेत अपने व्यस्तता में भी अपनी भाभी माँ के पास ज़रूर बैठता था।कभी-कभी तो वह ऑफ़िस से आकर सीधे उन्हीं के कमरे में चला जाता जिसपर नव्या ने कभी ऐतराज़ भी नहीं किया।महीने दो महीने में नव्या अपनी मम्मी से भी मिलने चली जाती थी।




         प्रेमलता जी को तो सुनयना शुरु से ही नहीं भायी।इसलिए वो सुनयना को नव्या के रास्ते से हटाने के मंसूबे बनाने लगीं।जब भी नव्या उनसे मिलने आती तो कोई न कोई ऐसी बात कह देती जिससे वह अपनी जेठानी को शक की नज़रों से देखने लगे।शुरु-शुरु में तो नव्या ने अपनी मम्मी की बातों को अपने दिमाग से झटक दिया लेकिन जब एक ही बात बार-बार कही जाये तो मन झूठी बात को सच मानने लगता है।नव्या को भी अपनी मम्मी की बातें सच लगने लगी।उसे महसूस होने लगा कि सुनयना अनिकेत को उससे छीन लेगी और इसी बात पर वह अक्सर ही अनिकेत से उलझ पड़ती।बच्चों पर अपनी चिड़चिड़ाहट निकालती और जब सुनयना उसे रोकना चाहती तो उनका भी अपमान करने में वह ज़रा भी नहीं हिचकिचाती।और आज तो प्रेमलता जी ने अपनी बेटी को ब्रह्मास्त्र ही दे दिया था।

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        घर आकर नव्या ने अनिकेत को अपनी भाभी माँ से हँस-हँसकर बातें करते देखा तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।अपनी मम्मी का दिया हुआ ब्रह्मास्त्र छोड़ते हुए उसने सुनयना को कह दिया, “आप तो भाभी माँ बनने का ढ़ोंग करती हैं।उसके आड़ में आप अपनी वासना की….।” इतना सुनते ही अनिकेत पत्नी पर हाथ उठाते-उठाते रुक गया।और सुनयना….उसे लगा जैसे किसी ने उसके कानों में पिघला शीशा डाल दिया हो।दोनों हाथों को अपने कानों पर रखते हुए चीखी, ” नव्या…! तुम होश में तो हो।क्यों माँ-बेटे के पवित्र रिश्ते पर लाछँन लगाकर तुम पाप का भागीदार बन रही ही?”

         क्रोध में इंसान को भले-बुरे की पहचान तो होती नहीं है।नव्या पर भी शक का भूत सवार था।वह अनाप-शनाप बके जा रही थी।अनिकेत वहाँ से चला गया और किशोर वय के आर्यन और अराध्या तो भौंचक ही रह गयें।

      मन का गुबार निकालकर नव्या अनिकेत से बोली कि अब तो इस घर में मैं रहूँगी या तुम्हारी वो।अनिकेत तब भी मौन रहा।उसे समझ नहीं आ रहा था कि कल वो अपनी भाभी माँ से कैसे आँख मिलायेगा।

        अगली सुबह अराध्या जब बड़ी मम्मी के कमरे में गई तो उन्हें बेहोश देखकर ज़ोर-से चिल्लाई, ” पापा….बड़ी मम्मी…..।”

    दौड़ते हुये अनिकेत सुनयना के कमरे में आया तो देखा कि उन्होंने अपनी नस काटकर खून से एक पेपर पर कुछ लिखा था।उसने तुरंत गाड़ी निकाली और सुनयना को लेकर हाॅस्पीटल पहुँचा।बड़ी मुश्किल से डाॅक्टर ने उनकी जान बचाई।




        नव्या ने सुनयना का खून से लिखा पत्र पढ़ा, ” ईश्वर तुम्हें क्षमा करें।अनिकेत मेरे लिए वही है जो आर्यन तुम्हारे लिए है।” 

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 ” हे भगवान! ये मुझसे क्या अपराध हो गया।” वह घर के मंदिर में बैठकर खूब रोई।सुनयना से माफ़ी माँगने हाॅस्पीटल गई तो वो जा चुकी थीं, कहाँ..किसी को नहीं मालूम था।

       अब वह घर पहले जैसा नहीं रहा।अनिकेत और नव्या के बीच ना के बराबर होती।बच्चों ने भी अपनी मम्मी से दूरी बना ली थी।नव्या खुद को कोसती रहती कि क्यूँ मैंने मम्मी की बात सुनी? क्यों अपनी देवी जैसी जेठानी पर शक किया? पश्चाताप की आग में वह अंदर ही अंदर झुलस रही थी।

         समय बीतता गया।आर्यन ने अपने ऑफ़िस की ही एक सहकर्मी से विवाह करके अपनी अलग गृहस्थी बसा ली।नव्या ने जब उसे रोकना चाहा,तब उसने कहा,” नहीं मम्मी, आपने अपनी गृहस्थी में तो आग लगा ली है,कहीं मेरी भी….।” बेटे की बात उसके सीने में तीर की तरह चुभी।छह महीने बाद अराध्या ने भी अपनी पसंद के लड़के से शादी कर ली और फिर पलट कर नहीं आई।

         भाभी माँ का दुःख और बच्चों की जुदाई के सदमे से अनिकेत ने बिस्तर पकड़ लिया।नव्या उसके पैर पकड़कर रोती,माफ़ी माँगती पर वह कुछ जवाब नहीं देता।एक दिन नव्या ने अराध्या को फ़ोन करके कहा कि एक बार तो घर आ जा बेटी,अपने नवासों को देखने के लिये मन बहुत तरस रहा है तो तपाक-से बेटी बोली,” मेरे बच्चों से तो आप दूर ही रहिये, कहीं आप उन्हें भी अपने जैसा..”

   ” अराध्या…!” वो चीख पड़ी थी।

           शक करके उसने अपने ही हाथों से अपनी हँसती-खेलती दुनिया को उजाड़ लिया था।चाहती थी कि एक बार सुनयना जीजी मिल जाये तो उनके पैरों पर गिरकर अपनी गलती की माफ़ी माँग लूँगी।उसकी एक पड़ोसिन ने बताया कि मंदिर में एक तपस्विनी आईं हैं, वो समझ गई कि ये तो सुनयना जीजी ही हैं,भागकर मंदिर गई लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो पाई क्योंकि उसका प्रायश्चित अभी पूरा नहीं हुआ था।

         अनिकेत की सेवा करती नव्या दिनरात यही सोचकर पछतावे के आँसू बहा रही थी कि काश! उस दिन वो अपनी मम्मी की बातों में न आती।

                                   विभा गुप्ता 

   # पछतावा                 स्वरचित 

        शक तो एक ऐसा दीमक है जो परिवार को अंदर की अंदर खोखला कर देता है।अपने रिश्तों में शक को न आने दे,बाद में सिर्फ़ पछताना ही पड़ता है जैसे कि नव्या अपनी जेठानी पर शक करके आज तक पछतावे के आँसू बहा रही है।

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