” दीदी,आप की यह साड़ी तो बहुत सुंदर है,मैं पहन लूँ।” आरती ने अपनी जेठानी देवकी से कहा तो वह बोली ” ठीक है।पहन ले पर ज़रा ध्यान से।”
” हाँ दीदी,ज़रूर।” साड़ी हाथ में लेती हुई आरती अपने कमरे में चली गई।
जब से आरती देवकी की देवरानी बनी थी तब से उसकी यही आदत थी।देवकी की साड़ियाँ, चूड़ियाँ यहाँ तक कि सैंडिल भी ‘दीदी,बहुत अच्छा है ‘ कहकर लेकर पहन लेती थी और वापस करते समय कहती कि आप भी मेरी ले लेना।
एक दिन देवकी को अपनी भतीजी की रिसेप्शन में जाना था।उसने सोचा,मेरे गले का सेट तो पुराना हो चुका है।आरती के पास तो नये डिज़ाइन के हैं,उससे ले लेती हूँ।उसने आरती से कहा कि तुम्हारा ब्लू डायमंड वाला हार बहुत सुंदर है,मेरी साड़ी से मैच भी कर रहा है,ज़रा मुझे देना,कल वही पहनकर रिसेप्शन में जाऊँगी।
सुनकर आरती तुरंत बोली,”अरे दीदी,वो तो मैंने पाॅलिश के लिये दे दिया है।आप पहले कहती तो …”
” कोई बात नहीं ” देवकी आरती की मंशा समझ नहीं पाई।इसके बाद दो-तीन बार ऐसा हुआ, देवकी कुछ भी माँगती,आरती कोई न कोई बहाना लगा देती।अब देवकी समझ गई कि आरती तो गिरगिट है,रंग बदलना उसकी फ़ितरत है।फिर उसने आरती से दूरी बना ली लेकिन आरती तो चतुर खिलाड़ी थी।उसने अपना पैंतरा बदला और देवकी के नज़दीक आने के लिये कभी उसके लिये चाय बना देती तो कभी अपनी चूड़ियाँ उसे जबरदस्ती पहना देती।धीरे-धीरे दोनों के संबंध पहले जैसे हो गये।
अब आरती को अपनी सहेली के जन्मदिन पार्टी में जाना था।उसने देवकी से मुस्कुराते हुए कहा, ” दीदी..,पिछले महीने जो आपने पिंक कलर की शाॅल खरीदी थी ना,बहुत सुन्दर है।स्नेहा के जन्मदिन पार्टी में वही ओढ़कर जाऊँगी।मेरी साड़ी का परफ़ैक्ट मैचिंग…”
” कौन-सा पिंक आरती? ” देवकी ने आश्चर्य-से पूछा।
” अरेऽऽऽ दीदी, वही जो आप कश्मीर इंपोरियम से मँगवाई…।” आरती ने चहकते हुए देवकी को याद दिलाया।
” अच्छा वोऽऽऽऽ, वो तो आरती मैंने अपनी बहन को दे दी है।” कहकर देवकी किचन में काम करने लगी।”
” बहन को दे दी! कब? तीन दिन पहले ही तो….।” फिर आरती समझ गई।तीखे स्वर में बोली,” मैंने आपको अपनी इतनी सारी चीजें दी और आपसे एक माँगा तो आपने रंग बदल लिया।”
देवकी हा-हा करके हँसने लगी।बोली, ” क्या करूँ आरती,ये तो संगत का असर है।पिछली बार मेरे एक हार माँगने पर तुमने गिरगिट की तरह रंग बदल लिया था, आज मैंने रंग बदल लिया।
विभा गुप्ता
# गिरगिट की तरह रंग बदलना स्वरचित