निष्ठा तुम कल खाना बना देना छोटू खा लेगा, घर से निकलते -निकलते निष्ठा की सास ने उसे बोला। आवाज़ में कुछ संकोच भी था और संकोच के साथ साथ निष्ठा को उनकी आवाज़ में उनका अभिमान टूटता सुनाई दे रहा था।
बात छह महीने पुरानी थी। दिवाली को बस दो हफ़्ते बाक़ी थे । और निष्ठा की सास (मीना जी) की तबीयत कुछ ख़राब थी। एक हफ़्ते पहले वो अपनी सहेलियों के साथ घूमने गई थी (पुणे लोनावला )। जबसे वहाँ से आयी थीं उनकी ख़ासी नहीं जा रही थी। दस साल पहले उन्हें कैंसर होकर चुका था इसलिए उनके दोनों बेटों को उनकी तबियत का बहुत डर रहता था।उन्हें एक छीक भी आ जाए तो दोनों घबरा जाते थे। हाँ लेकिन उन्हें कभी घूमने के लिए नहीं रोकते थे। निष्ठा बड़े बेटे देव की पत्नी थी, छोटा बेटा छोटू अभी कुंवारा था। पिछली दिवाली पर ही उनके पति का स्वर्गवास हुआ था। यह दिवाली सबके लिए पिछले साल के दुःख को ताज़ा कर रही थी। उस पर से उनकी तबियत…
निष्ठा दिवाली की सफ़ाई बाज़ार का काम सब देख रही थी उसके देवर का कहना था कि डॉक्टर को मीना जी के सिम्टम्स टीबी के लग रहे हैं।
इसके लिए वो अपने कमरे में ही रहे है तो बाक़ी सबके लिए अच्छा होगा। निष्ठा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो कैसे सारी ज़िम्मेदारी संभालेगी इतना बड़ा त्योहार है कितने काम होते हैं। उसने अपने आपको हिम्मत दी और कामों में लग गई। पहले सुबह उठकर सबका नाश्ता खाना बनाती, फिर नौकर के साथ मिलकर सफ़ाई में लग जाती। हर दिन दिवाली नज़दीक आ रही थी। छोटी दिवाली का दिन आया, सुबह मीना जी ने निष्ठा को बोला कि उन्हें डॉक्टर को दिखाने जाना है कुछ नए टेस्ट होने हैं।
निष्ठा को उन्होंने दिन भर का काम समझाया और छोटे बेटे के साथ निकल गई । निष्ठा सुबह के काम निपटाकर बैठी इतने में देव भी ऑफ़िस से जल्दी आ गया। निष्ठा ने उसे खाना परोसा तभी उसका देवर भी आ जाता है। पर निष्ठा ने देखा वो अकेला है , मीना जी नहीं है और आज वो जल्दी भी आ गया नहीं तो इससे पहले वो जब भी मीना जी को डॉक्टर के पास ले जाता हमेशा 3-४ घंटे लगते थे। क्योंकि हॉस्पिटल घर से बहुत दूर है पर आज तो यह आधे घंटे में ही आ गया। निष्ठा ने उससे पूछा -मम्मी जी कहा है ? उसने पहले कुछ जवाब नहीं दिया । फिर निष्ठा के दोबारा पूछने पर बोला पार्लर छोड़कर आया हूँ उन्हें सिर में मेहंदी लगवानी थी।
यह सुनते ही निष्ठा का ग़ुस्सा ज्वालामुखी जैसा फूटा , क्योंकि यह पहली बार नहीं हुआ था इससे पहले भी बहुत बार मीना जी बीमारी का बहाना करती थी । और जब कोई किटी पार्टी या फंक्शन में जाना होता तो तुरंत उनकी तबियत ठीक हो जाती थी।
पर निष्ठा ने कभी सोचा नहीं था कि वह दिवाली जैसे त्योहार पर भी यह करेंगी ।निष्ठा और उसके देवर में बहस छिड़ गई। “उन्हें टीबी के लक्षण है उन्हें रूम में ही रहने दो” यह बात उसके देवर ने कही थी और आज उन्हें पार्लर छोड़कर आया है।
उस दिन के बाद से उन दोनों की बातचीत बंद हो गई ,क्योंकि यह सब होने के बावजूद भी देवर को निष्ठा ही ग़लत लग रही थी। बात इतनी बढ़ गई कि अगर निष्ठा खाना बनाती तो उसका देवर खाना नहीं खाता और मीना जी भी उसे कुछ नहीं कहती। क्योंकि उनके पास 24 घंटे का नौकर था जो उनके बेटे का हर काम कर देता।निष्ठा के साथ घर में गैरों जैसा व्यवहार होने लगा। हो भी क्यों नहीं आख़िर घर की बहू है बेटी नहीं जो ग़लत को ग़लत बोल सके।
निष्ठा को बहुत बार बुरा लगता पर वो अपनी माँ की बात याद करके सब सहन कर लेती।की जिनका कोई नहीं होता उनका भगवान होता है , और भगवान के सामने बड़ों से बड़ों का अभिमान नहीं टिकता।
थोड़े दिन पहले ही जब मीना जी बाहर जा रही थी। और नौकर को देवर के खाने का सब समझा रही थी। तो निष्ठा ने बोला भी था-कि आप चिंता मत करिए मैं बना दूंगी। पर मीना जी ने – जोश के साथ बोला नहीं कोई बात नहीं यह नौकर कर देगा सब…. जबकि उन्हें मालूम था कि वो नौकर खाना बनाना नहीं जानता। उस दिन शायद उनका अभिमान उनसे ये बुलवा रहा था।
और आज का दिन है क्योंकि नौकर काम छोड़कर चला गया है । और मीना जी को दो दिन के लिए बाहर जाना है । तो वो धीमे स्वर में बिना नज़रें मिलाए जाते- जाते सिर्फ़ यही बोल पाई की तू जो भी बनाए उसके लिए भी रख देना वो खा लेगा।
#अभिमान
निकिता अग्रवाल
Hyderabad (Telangana)
Self composed and original story