रजनी दुल्हन बनी कार से उतरी, सब रिश्ते की भाभी, चाची सास, ताई सास कार को घेर कर खड़ी थी। तभी एक भारी सी आवाज़ आयी, “अरे भाई हवा तो आने दो, नई बहुरिया अंदर भी जाएगी, देख लेना।”
फिर सासु जी ने कई रस्मों के साथ परछन किया और रजनी ने घूंघट डाले, रोशन के साथ घर मे प्रवेश किया।
शादी का घर था, बहुत शोरगुल था।
एक दो दिन मे घर के रिश्तेदार अपने घर गए, रजनी ने आराम करने के बाद सब जान लिया, अधिकतर रोशन ने हर सदस्य का पूरा परिचय विस्तृत रूप में दिया था। सासुजी बहुत कम ही बोलती थी, ससुर जी को पूजा पाठ से फुरसत नही मिलती थी। बड़ी भाभी के जिम्मे रसोई और वो लगती भी अन्नपूर्णा जैसी थी, घर से किसी को भी बिना खाये नही जाने देती थी।
तीसरे दिन सुबह ही घर के सबसे बड़े भैया रोबीले अंदाज में रोशन को पुकारते हुए कमरे में आये, “सुनो, छोटे ये मसूरी की टिकट है, तुम दोनो घूम आओ। बाबूजी को मैं समझा दूंगा।”
और रोशन रजनी को देखकर आंखों ही आंखों में इशारे करने लगे। ये एक सरप्राइज था जिससे रोशन की नजर में बड़े भैया की इज्जत में इजाफा हुए था। फिर रजनी से रोशन ने कहा, “देखा रजनी, ये हैं मेरे भैया, पता है बड़ा भाई भी पिता जैसा होता है, आर्मी अफसर है, एक हफ्ते की छुट्टी पर आए हैं और भाभी भी हमारे ही साथ रहेंगी क्योंकि इनकी ड्यूटी बॉर्डर पर है।”
रजनी और रोशन ने अपने नए जीवन मे मसूरी की वादियों में ही रंग भरे।
फिर समय ने रफ्तार पकड़ी, दो बड़े भैया के और दो रोशन के बच्चों की किलकारियों से घर भरा। वर्ष में दो बार छुट्टियों में बड़े भैया आते, और उस समय घर मे उत्सव सा माहौल होता। तीन साड़ियां लाते, जिसमे भाभी से कहते, पहले रजनी को रंग छांटने दो, माँ को दिखा दो, फिर तुम लेना। गलती से भी रोशन अपने बड़े भैया की किसी चीज के लिए कहते, बहुत सुंदर है, तो वो रोशन की हो जाती। और रोशन कहते, “पता है बड़ा भाई भी पिता जैसा होता है। मैं बाबूजी से हमेशा डरता रहा, मुझे जो भी चीज की जरूरत होती, भैया पूरी कर देते हैं।
मां, बाबूजी बहुत शांत प्रकृति के थे, और शांति से ही एक दिन भगवान को प्यारे हो गए।
फौजी रुतबे और प्रेम भाव से बड़े भैया ने पूरे परिवार की देखभाल करी। बच्चो और पत्नियों के कारण कभी कभी घर का माहौल खराब भी होता था, पर जल्दी ही सुधर जाता था। दोनो भाइयों का अब भी यही हाल था, एक थाली में खाना खाते और गर्म रोटियां ही परोसी जाती, जिसको आधी करके दोनो खाते, और दूसरी गर्म रोटी का इंतेज़ार करते थे।
फिर शुरू हुआ, बड़े भैया का अपने बेटे के लिये उचित वधू का चुनाव करना। इंटरकास्ट विवाह के बिल्कुल विरोधी थे, जब कि उस समय तक अधिकतर घरों में ऐसे विवाह हो रहे थे। कई बार विभिन्न लड़कियों से बात चली, पर उन्हें पसंद नही आई। मॉडर्न लड़कियां उन्हें अच्छी नही लगती थी।
एक बार अपने मित्र के यहां गांव गये, उनके पड़ोस की एक कन्या ने दौड़ दौड़ कर मन से आवभगत करी। फिर उन्होंने अपने मित्र से पूछताछ करी। कोमल नाम की लड़की, ज्यादा पढ़ी लिखी , बहुत सुंदर भी नही थी। पर कहते हैं ना, भाग्य भी बहुत कुछ होता और फौजी भैया को वो कन्या भा गयी। एक हफ्ते के अंदर ही उन्होंने शादी की बात चलाई और पत्नी और बेटे के साथ ही उनके घर गए। लड़की के माता पिता तो इतना अच्छा घर वर देखकर ही फिदा हो रहे थे। बिना दान दहेज के एक शानदार शादी हुई।
अब एक दिन फौज से रिटायर होकर बड़े भैया ने ऊपर की मंजिल पर अपना आशियाना बनाया, क्योंकि इतने वर्षों में समान भी बढ़ गया था, बहू आ गयी थी।
नीचे रोशन का परिवार रहने लगा, पूजा पाठ, होली दीवाली सब त्योहार एक साथ ही होता था। देवी की अष्टमी की पूजा शानदार तरीके से करते थे, सारी पूजा विधि, मंत्र बड़े भैया को कंठस्थ थे। पर पूजा कराते, रोशन से, अब जल छिड़को, ये मंत्र बोलो, और पूरे परिवार के लोग मंद मंद मुस्काते, क्योंकि सिर्फ बड़े भैया के सम्मान में ही वो सब करते थे। उस समय भी वो अपने शब्द दोहराते, बड़ा भाई भी पिता जैसा होता है।
रिश्तेदारी की प्रत्येक शादी, मुंडन, हर छोटे समारोह में भी, बाबूजी की तरह रस्मे निभाते रहे। एक बार गांव से पुराने कोई दोस्त आकर बोले, “भईया, पत्नी को कैंसर हो गया है, अस्पताल वाले बहुत पैसा मांग रहे।”
“क्या बात करते हो, इलाज जरूर कराओ, मैं जितना बन पड़े सहायता करूंगा।”
बड़े भैया का खाना चटपटा बनता था, तेल मसालों की अधिकता रहती थी, वरना वो कहते फीका बना है।
एक रात दो बजे उनके बेटे ने बुलाया, “चाचा, जल्दी आइये।” देखा उन्हें हार्ट में दर्द हो रहा, फिर रातभर सब बैठे रहे। सुबह मेदांता ले जाने पर एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी के बाद ब्लॉकेज निकला। अब आपरेशन हुआ। आपरेशन तो ठीक हुआ पर इसी बीच उन्हें आधे शरीर पर लकवा का अटैक पड़ा। बहुत प्रसिद्ध दिल्ली का अस्पताल है, वहां का खर्चा ही कई लाखो में आया, बेटे ने उनके एकाउंट में जितना भी था, खर्च कर दिया, फिर कुछ रिश्तेदारों ने भी सहायता करी। क्योंकि बड़े भैया ने भी जीवन भर किसी को ना नही कहा। उनके घर जो आता था, खुश होकर ही जाता था।।डॉक्टर की बहुत कोशिशों के बाद भी उनकी तबियत नही सुधरी, फिर उसी अवस्था मे वो घर आये। अब वो बिस्तर के ही होकर रह गए। पूरा जीवन उन्होंने अपना परिवार को दिया था, इसलिये ईश्वर ने भी उन्हें एक सुपुत्र और पुत्रवधू ऐसी दी थी, जिसने पूरे मन से उनकी सेवा करी। रजनी और रोशन भी मानते बहुत थे, पर उनकी भी उम्र हो चली थी, जितना बन पड़ता सबने किया।
बड़े भैया पूरे परिवार और कुनबे के चहेते, एक तरह से अब वो बाबूजी के पर्याय ही थे। दूर के शहर, गांव से सबलोग उनसे मिलने आये। तीन वर्ष बड़े भैया बिस्तर पर रहे और एक दिन सबको रुलाकर भगवान को प्यारे हो गए। और रोशन ने आज रोते हुए फिर दोहराया, “मेरा पिता जैसा बड़ा भाई भी चला गया।