देखो बेटा, कुछ प्रैक्टिकल बनो,कश्मीरी लाल एक बड़े उद्योगपति है, उनकी बेटी से शादी होगी तो एक फैक्ट्री वो आराम से तुम्हारे नाम कर सकते हैं।पर इशारा तो करना पड़ेगा,ना।
पर बाबूजी हमे क्या कमी है, आप खुद उद्योगपति हैं, सबकुछ आपके पास है।और रही मेरी बात, तो बाबूजी मैं दहेज के खिलाफ हूँ, मैं सपना के पिता से कुछ भी नही लेना चाहता।
ओह, तो तुम बेटा केवल अपने बाप की दौलत पर ही जीवन यापन करना चाहते हो।आज मौका मिल रहा है, तो आदर्श बघार रहे हो।
नही बाबूजी,मैं बिल्कुल भी आप पर आश्रित नही रहना चाहता।मैंने सपना को भी कह दिया है कि मुझसे शादी करना चाहती हो,तो मेरी आमदनी पर ही निर्भर रहना होगा और वो इस बात से खुश है। हमे तो बस आपके आशीर्वाद की आकांक्षा सदैव ही रहेगी।
दो दिन में पता चल जायेगा बरखुरदार,हमने अच्छे अच्छे देखे हैं।तो ठीक है बेटा तो बसाओ अपनी दुनिया अलग से।पढ़ा लिखा दिया है,कमाओ खाओ और खुद ही घर बसाओ।
गिरधारी लाल एक बड़े उद्योगपति थे,सनी उनका एक मात्र बेटा था।इसी वर्ष अपनी बिज़नेस मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी कर चुका था,सनी। सपना भी उसकी सहपाठी थी, दोनो एक दूसरे को प्रेम करने लगे थे।संयोगवश सपना के पिता भी उद्योगपति थे।सनी और सपना ने निश्चय किया था कि वो स्वयं आत्मनिर्भर जीवन जीयेंगे।यही कारण था कि गिरधारीलाल अपने पुत्र को कश्मीरी लाल जी से एक फैक्टरी दहेज में लेने को सनी को समझा रहे थे तो सनी ने अपने पिता को साफ मना कर दिया था।
सनी के इस प्रकार उनकी बात को काटना गिरधारीलाल जी को कचोट रहा था।उन्हें लग रहा था सनी ने उनका अपमान किया है।उन्हें लगता था कि उद्योग जगत में उन्होंने अपना साम्राज्य स्थापित किया है, इतने एशो आराम से सनी की परवरिश की है, वो क्या कर सकता है?कही नौकरी ही तो करेगा,उससे क्या वो अपनी गृहस्थी चला पायेगा।फिर भी उसे आना तो मेरे ही पास पड़ेगा। दो चार महीने में ही आटे दाल के भाव का पता चल जायेगा।
अपने अभिमान के अहंकार में डूबे गिरधारीलाल जी ने अपने एकलौते बेटे सनी को स्पष्ट कह दिया कि यदि वो मेरी संपत्ति का उपभोग करना चाहता है तो उसे मेरी बात माननी होगी,अन्यथा उसका इस संपत्ति से कोई सरोकार नही रहेगा।
सनी तो स्वयं ही आत्मनिर्भर बनना चाहता था,पर अपने पिता द्वारा कहे शब्द उसके लिये मानो चुनौती बन गये।सनी ने सपना से कहा कि मैं पहले कुछ कर लूं फिर शादी करेंगे,क्या मेरा इंतजार करोगी?सपना ने सनी का हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा,सनी तुम्हारे अतिरिक्त मैं किसी के बारे में सोच भी नही सकती,मैं तुम्हारे मार्ग की बाधा नही सहायक बनूंगी,सनी।
सनी ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के अन्तर्गत मशरूम को आधुनिक पद्धति से उगाने के उद्योग के लिये कर्ज को आवेदन कर दिया।उन दिनों शेड में मशरूम उगाना एक लाभप्रद उद्योग माना जाता था और यह बहुत कम लोगों ने अपनाया था।यही कारण था कि लोन पास हो गया।500 गज जमीन किराये पर लेकर उसमें टीन का शेड डाल सनी ने अपनी यह फैक्टरी स्थापित कर ली।प्रारम्भ में जान पहचान वालो ने मजाक भी बनाया कि बिज़नेस मैनेजमेंट की डिग्री लेकर किसान बने हो वो भी किराये की कुल 500 गज जमीन में।सनी ने धैर्य नही खोया और मेहनत के साथ इस उद्योग का अध्ययन भी करता और उसे बढ़ाने का प्रयास भी करता।उसने रास्ता पा लिया,उसे कई फाइव स्टार होटल्स के ऑर्डर्स मिलने प्रारंभ हो गये।धीरे धीरे उसने और जमीन पहले किराये पर लेकर कार्य विस्तार किया फिर अपनी जमीन ही खरीद ली। गुणवत्ता के कारण मशरूम की मांग बढ़ती जा रही थी।सनी का नाम भी अब अनजाना नही रह गया था।
मशरूम के इसी उद्योग को सनी ने कई स्थानों पर फैला लिया।सपना से शादी नही हुई थी,पर उसका सहयोग सनी को मिलता रहा,तमाम पत्राचार और ऑर्डर्स की स्क्रूटनी सपना ही करती थी।
दो वर्षो के अथक प्रयासों का फल आखिर सनी को मिला।उद्योग जगत में नाम भी,आय भी और अब सरकार द्वारा पुरुस्कार के लिये चयनित हो जाने पर तो सोने में सुहागा हो गया।गिरधारी लाल जी सब सुन रहे थे और समझ भी रहे थे।बेटे की सफलता उन्हें भाव विभोर कर रही थी पर अपने अभिमान के व्यूह में सनी को कहे शब्द उन्हें उद्वेलित भी कर रहे थे।वैसे भी एकलौते पुत्र का घर त्यागना और खुद का अकेला रह जाना उन्हें अंदर तक तोड़ रहा था।पर अब करे तो क्या करे?
और एक दिन सनी सपना को ले अपने पिता के पास घर आ गया।गिरधारीलाल तो देखते रह गये, मुद्दत बाद सनी को देखा था,सपना के साथ उसकी जोड़ी कितनी फब रही थी,उनके मुंह से कोई बोल फूट ही नही रहा था।सनी और सपना ने आगे बढ़ गिरधारीलाल जी के चरण स्पर्श किये।भावातिरेक में गिरधारीलाल जी ने दोनों को गले लगा लिया।बेटा अपनी शादी में अपने बाप को बुलाया भी नही?सनी बोला बाबूजी आपके आशीर्वाद के बिना सपना आपकी बहू कैसे बनेगी?आपका आशीर्वाद ही तो लेने आये है,शादी की तारीख आप ही तो तय करेंगे बाबूजी।करेंगे न?
गिरधारीलाल जी आगे बढ़ भीगी आंखे लिये फिर एक बार सनी और सपना को गले से लगा लिया।उनका अभिमान चूर चूर हो गया था,पर बेटे ने अपना अस्तित्व सिद्ध कर उनकी शान में चार चांद भी तो लगा दिये थे।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
स्वरचित, अप्रकाशित।
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