बेटी को कॉलेज जाते ही माधुरी जी ने अपने सेवानिवृत्त पति विनोद जी को अपने पास बुलाई और बोली दिनभर पेपर पढ़ते रहते हो कभी बेटी के बारे में भी सोचा है।
उसकी शादी कब होगी विनोद जी ने हंसते मुस्कुराते हुए बोले हो जाएगी भाग्यवान इतनी भी क्या जल्दी है, अभी हमारी बेटी की उम्र ही क्या हुई है जो शादी करने की पड़ी है। माधुरी जी ने विनोद जी के बात को काटते हुए बोला आज तक अपने जीवन में किसी भी चीज को सीरियस लिया है जो आप अब लेंगे।
अरे भाई मैं यह नहीं कह रही हूं कि आज ही आप रितिका की शादी कर दो लेकिन जब तक आप ढूंढेगे नहीं तो शादी होगा कैसे आजकल अच्छे लड़के मिलते कहां हैं।
और फिर मैं तो अपनी लड़की की शादी वही करूंगी जहां पर ससुराल मे उसके सास नहीं होगी।
विनोद जी बोले ऐसा क्यों कह रही हो आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे आपको कुछ पता ही नहीं हो क्या आपको पता नहीं है जब आपकी मां जिंदा थी तो हमें कैसे कैसे दिन दिखाए हैं। हर बात में ताना मारती रहती थी। अरे भाग्यवान हर सास एक जैसी नहीं होती है जरूरी नहीं है कि तुम्हारी सास जैसी थी वैसे ही हमारी बेटी की सास होगी।
माधुरी कड़े शब्दों में कहा चाहे कुछ भी हो जाए मैं अपनी बेटी की शादी वही करूंगी जहां उसका सास नहीं होगी। कुछ दिन बाद माधुरी के भाई यानि कि रीतिका का मामा इनके घर पर आए और उन्होंने बताया एक लड़का है रेलवे में टीटी के पद पर कार्य करता है लड़का अच्छा था। लेकिन माधुरी को यह पता चला वह एक संयुक्त परिवार में रहता है तो माधुरी जी ने मना कर दिया मेरी बेटी कोई नौकरानी नहीं है जो उनके घर में जाकर सबकी सेवा करेगी
मामा जी बोले शादी करके लड़की जब ससुराल जाती है तो वहां नौकरानी नहीं होती है बल्कि वह उसका घर हो जाता है और अपने परिवार वालों की सेवा करना उसका धर्म और उसका कर्तव्य भी हो जाता है।
भैया चाहे कुछ भी हो जाए मैं अपनी बेटी की शादी मैं ऐसे किसी घर में नहीं करूंगी जहां पर सास नाम की चिड़िया हो।
यह सुनकर विनोद जी खिलखिलाकर हंसने लगे माधुरी कैसी बात करती हो अब ऐसा रिश्ता हम कहां से ढूंढ लेंगे जहां पर सास ही न हो।
माधुरी जी ने बोला ढूंढने पर तो भगवान भी मिल जाते हैं। एक दिन पार्क मे शाम को माधुरी जी और उनकी सहेली बैठी हुई थी सहेली ने बताया एक लड़का बताया और बताया कि लड़का की मां नहीं थी लड़के के पिता जी थे और एक बड़ी बहन थी उसकी शादी हो चुकी थी।
बहुत अच्छे पोस्ट पर नौकरी नहीं करता था लड़का रेलवे में ही ग्रुप डी के पोस्ट पर नौकरी करता था माधुरी जी को यह रिश्ता पसंद आया। बोला कोई बात नहीं मेरी बेटी कम से कम सुख चैन से तो रहेगी मुझे यह रिश्ता पसंद है बहन आप इस रिश्ते की बात करो रिश्ते की बात हुई लड़के वाले रितिका को देखने आए। रीतिका तो देखने में बहुत सुंदर थी और पढ़ाई में भी काफी तेज थी रितिका की शादी उस लड़के से हो गई।
शादी की डेट नवंबर में निर्धारित हुआ। रितिका के होने वाले पति महेश से अब अक्सर फोन पर बातें होने शुरू हो गई कभी कभी वीडियो कॉल भी हो जाया करता था। उन दोनों में आगे आने वाले जीवन के बारे में बहुत सारी प्लानिंग भी शुरू हो गई थी। हम ऐसे करेंगे वैसे करेंगे यहां घूमने जाएंगे वहां घूमने जाएंगे जैसे हर कपल्स करते हैं। एक दिन रितिका के ससुर यानी रमेश बाबू रितिका के घर पर आए और रितिका के पापा से बोले कि मैं बाजार गया था, बहू के लिए गहने और साड़ी खरीदने लेकिन मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था मैं क्या खरीदूं और क्या नहीं खरीदो। अगर आज महेश की मां होती तो अच्छे से सब कुछ कर लेती।
तो मैंने सोचा क्यों ना यह पैसे बहू को ही दे दूँ और वह अपनी पसंद की सारी चीजें खरीद ले पहनना तो आखिर उसे ही है। रमेश बाबू चले गए पैसे देकर।
अगले दिन ही रितिका और उसकी मम्मी बाजार जाकर शादी का सामान खरीद के ले आए।
शाम को जब रितिका अपनी सहेलियों से मिली तो यह सारी बात उनको बताएं कि आज वह बाजार गई थी और अपनी शादी की सारी खरीदारी करके आई है।
रीतिका के सहेलियों ने रितिका को बहुत ही लकी बताया बोला यार तुम बहुत किस्मत वाली हो जो तुम्हें ऐसा ससुराल मिला है एक तो तुम्हें सास नाम की जंतु से मुक्ति मिला। और अपने पसंद की खरीदारी भी करके आई वहां पर तुम जो मर्जी कर सकती हो कोई तुम्हें रोकने वाला भी नहीं है जहा मर्जी आ सकती हो जब मर्जी सो के उठ सकती हो यह सुनकर रितिका मन मे ही इतिराने लगी ये तो है।
धीरे-धीरे शादी का दिन नजदीक आ गया लोग शादी की तैयारियों में जुट गए मेहमानों का आना जाना शुरु हो चुका था देखते-देखते शादी के दिन नजदीक आ गया रितिका दुल्हन के लिबास में काफी खूबसूरत दिख रही थी ऐसा लग रहा था जैसे मानो चांद जमीन पर उतर कर आ गया है।
कुछ देर के बाद बारात भी दरवाजे पर आ गई थी शादी में सब ने मिलकर डांस किया सुबह विदाई का समय आ गया रितिका अपने मायके से विदा होकर अपने ससुराल चली गई। ससुराल पहुंचते ही उसका स्वागत रीतिका की ननद श्वेता और श्वेता की मामी ने किया मामी ने हीं सारी शादी के रस्म को किया।
फ्रेश होकर रीतिका नीचे आ गई थी रितिका से श्वेता ने तब उसका परिचय बाकी सारी मेहमानों से कराया लेकिन रितिका को यह पसंद नहीं आ रहा था क्योंकि वह थक चुकी थी।
अगले दिन से ही मेहमानों का जाना शुरु हो गया देखते ही देखते घर पूरी तरह से खाली हो गया। अगले दिन ऐसे लग
रहा था जैसे घर में कोई शादी नहीं हुई हो रीतिका को घर बिलकुल खाली लगने लगा था। सिर्फ श्वेता ही रह गई थी। रीतिका ने अपने ननद से कहा दीदी आप कुछ दिन रह जाइएगा। श्वेता बोली नहीं रह पाऊंगी क्योंकि बच्चों की स्कूल भी खुल गया है और इसके पापा भी खाना नहीं बना पाते हैं। तो मैं फिर जल्दी आऊंगी अभी तो मुझे जाना पड़ेगा अगले दिन श्वेता भी चली गई।
आज रितिका को बिल्कुल अकेले ऐसा महसूस हो रहा था काश मेरी सास होती घर में तो होती इतना उदास और खाली तो नहीं लगता खैर अब तो जो होना था हो गया।
एक दिन रात को रीतिका ने अपने पति से कंही हनीमून पर चला जाए ऐसा बोला ही था कि हनीमून पर जाने का बात करने पर ही वह आग बबूला हो गया कैसी बात करती हो अभी तो शादी में कितने पैसे खर्च हो गए और तुम अभी हनीमून पर जाने की बात करती हो। पैसे पेड़ पर उगते हैं क्या हैं पूरे दिन ड्यूटी करता हूं तब जाकर महीने के ₹20000 कमाता हूं। और फिर बाबूजी को ब्लड प्रेशर की दवाई देनी पड़ती है अगर हम घर पर नहीं रहेंगे तो उनकी देखभाल कौन कर पाएगा।
बाद में देखेंगे तो चलेंगे। रीतिका मन मसोसकर रह गई आज उसे सच में अपने सास की कमी महसूस हो रही थी।
अगर घर में उसकी सास होती तो कम से कम वह हनीमून पर जा सकती थी। बाबू जी को देखभाल करने वाला कोई तो होता लेकिन अब क्या करती अब तो जो होना था वह हो गया था।
धीरे-धीरे समय का पहिया चला रितिका गर्भवती हो गई कुछ दिनों बाद रीतिका ने अपने पति से कहा कि दीदी को कुछ दिनों के लिए यही पर बुला दीजिए क्योंकि मेरे से अब कुछ हो नहीं पाता है। मैं बहुत जल्दी थक जाती हूं उसके पति ने अपनी बहन के पास फोन मिलाया बहन ने यह कह कर मना कर दिया कि भैया मैं कैसे आ पाऊंगी आप देख ही रहे बच्चों के स्कूल हैं चलो एक दो दिन की बात होती तो मैं आ भी जाती इतने दिन में कैसे आ पाऊंगी।
महेश ने रितिका से कहा तुम ऐसा क्यों नहीं करती हो तुम अपनी मां को यहां पर क्यों नहीं बुला लेती हो रितिका ने बोला कि मां कैसे आ पाएगी आपको पता नहीं है क्या कि भाभी भी वहां गर्भवती है उनकी भी देखभाल करने वाला कोई नहीं है उनको उनके तो मायके में भी कोई नहीं है।
अब महेश भी काफी चिंतित हो गया कोई बात नहीं।
आज के दिन रितिका को सचमुच में अपने सास की कमी महसूस हो रही थी उसे ऐसा लग रहा था सही में ससुराल सास के बिना अधूरा होता है आज मेरे पास सास होती तो मुझे किसी के आगे यह नहीं कहना पड़ता कि आप आ जाओ आप आ जाओ जैसी भी होती थोड़ा बहुत तो मदद करती ही।
पर यह कहां संभव था ना चाहते हुए भी अपनी मां के पास फोन लगा दिया और बोली मां तुम ही तो पूछ रही थी ना बिना सास वाली ससुराल अब बताओ मैं कैसे करूं आप भी यहां नहीं आ सकती हो। उसकी मां को भी सच में अब ऐसा लग रहा था कि हां यह जरूरी था अगर आज मेरी बेटी के सास होती तो कैसी भी थोड़ी बहुत हेल्प तो कर ही देती लेकिन क्या करती बहू को भी अकेला छोड़कर नहीं जा सकती।
उन्होंने बस यही कहा कि बेटी तुम भी यहीं आ जाओ जैसे अपनी बहू की करती हो वैसे तुम्हारी भी सेवा कर दिया करूंगी
अंत में यही डिसाइड किया और वह अपने मायके चली गई कुछ दिनों के बाद रितिका का बहुत प्यारा बच्चा हुआ और बच्चा होने के 15 दिन बाद ही अपने ससुराल चली आई यहां आने के बाद फिर से वही प्रॉब्लम बच्चे को कौन संभालेगा।
खाना भी बनाना होता था ससुर जी की दवाई देनी होती थी ना चाहते हुए भी एक बाई रखना पड़ा एक मां जैसी अपने बच्चों की सेवा कर सकती है बाई कभी भी नहीं करती है एक दिन क्या हुआ बाई बच्चे के पास बैठी थी तब तक TV देखने में बच्चा बेड से नीचे गिर गया और अपने बच्चे की रोते हुए आवाज सुन रितिका दौड़ी हुई किचन से आई और बाई को बहुत डांट लगाई और उसे अभी यहां से निकल जाने को बोली। आज के बाद तुम यहां आना भी मत और उस दिन से रितिका ने सोचा जैसे भी हो अपने बच्चों की केयर मैं खुद करूंगी और उस दिन तो सचमुच बहुत रोई उसे लग रहा था कि ससुराल में सास कितना जरूरी होती है हर पल उसकी कमी महसूस होती है।
सहेलियों आपको ऐसा लगता है अगर हमारे ससुराल में सास नहीं है तो हम बहुत ही स्वतंत्र जीवन जिएंगे जो मर्जी करेंगे लेकिन ऐसा नहीं होता है आपने इस पूरी कहानी में इस चीज को महसूस किया होगा सास की जरूरत कितनी होती है एक ससुराल में।
उम्मीद है यह कहानी आपको पसंद आई होगी अगर यह कहानी आप के दिल के कोने को थोड़ा सा भी छुआ होगा तो दोस्तों ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर कीजिए। धन्यवाद!