आखिर वो अपना इतना शानदार घर छोड़ कर इस ओल्ड एज होम में आ ही गया। उसके दिन आंसुओं से भर गये थे।पिछली दर्दनाक जिन्दगी भूलना इतना आसान तो न था। हर पल कुछ न कुछ कष्टप्रद बातें उसके दिलो दिमाग में तैरती ही रहतीं ।उसका पूरा वजूद छलनी हो कर रह गया था। वो हर दम खून के आंसू पीता रहता।
आज उसे अपना घर बेतरह याद आ रहा था।
घर के लोग-पत्नी बस नाम की-बच्चे सिर्फ मां के।उन सबकी बेरुखी उसे पल पल तकलीफ देती थी।उसके बच्चे सिर्फ अपनी मां को अहमियत देते थे।
आज उसे वो सरगोशियां याद आ रही थीं जब पत्नी अक्सर बच्चों से कहती-” देखो तुम्हारे बाप ने मुझे सारी जिन्दगी सिर्फ परेशान किया है।मैने तुम बच्चो के लिये बड़ी जिल्लते सही हैं, मैने तुम लोगो के लिये अपना सारा जीवन होम कर दिया।”
वो काम के सिलसिले में अक्सर घर से बाहर रहता।पैसा वो देता-वाह वाही उसकी पत्नी लेती।कई बार उसने अपना पक्ष भी रखना चाहा,पर उसे किसी ने बोलने भी न दिया था। उसका साथ देने वाला कोई न था।बच्चे अपनी मां की बातों पर यकीन करते रहे।उनकी आंखों में अपने लिये नफरत के भाव देख उसका दिल खून के आंसूं पीता रहता।
उसका दोष बस इतना सा था कि वो सुदर्शन व्यक्तित्व का स्वामी न था।उसकी पत्नी बहुत सुन्दर थी।गरीब घर की होने के कारण मुझसे शादी करना उसकी मजबूरी थी। माना उन दोनो का कोई मेल न था,पर क्या शारिरिक सुन्दरता ही सब कुछ होती है, उसके सोने जैसे दिल का कोई मोल न था।उसने अपने परिवार के लिये अथक परिश्रम किया था,पर किसी ने उसका मोल न समझा।
साल दर साल बीतते गये। बच्चों को अपनी मंजिल मिल चुकी थी।अब उन लोगों को उसकी कोई जरुरत न थी।वो उसे रोज खून के आंसू रुलाते थे। इक दिन आखिर उसका धैर्य टूट गया।उसने वो घर छोड़ दिया। इस ओल्ड एज होम को अपना घर बना लिया।अपना सब कुछ यहां दान कर दिया।
यहां सभी आराम होने के बाद भी वो हर रोज अपने अतीत को याद करता है और उसका दिल खून के आंसू पीता रहता है।शायद अब मौत ही उसे इस तकलीफ से छुटकारा दिला सकती है।
लघुकथा प्रतियोगिता
मुहावरा खून के आंसू पीना
रंजना वैद्य
स्वरचित