तुझे जब देखा पहली दफा,
उसी वक़्त मुहब्बत का एहसास हुआ था
काव्या के आँखो में आंसुओं का नामोनिशान नहीं था।बस नज़र भर उस तिरंगे से लिपटे ताबूत को देख रही| तभी पीछे से जवान आए,और कहा-कमांडो लीडर आहान अख़्तर ने अपने आख़िरी साँसों में ये लिफ़ाफ़े आपके नाम दिए थे,
मैम इसे रखें।
काँपते उसके हाँथों ने उन पैकेट्स को
थाम्हा।और आहान की लाश से लदी ताबूत को उठाया गया।काव्या बस बेज़ान मूरत की तरह उसे देखती रही।
काव्या की नीरवता को तोफो कि बजती
सलामी भी न तोड़ पाई।
तू शामिल हो चला उन शहीदों में
जिसे पल भर के लिए लोग याद करते हैं,
फिर तेरी तस्वीर को भी कोई न पहचानेगा।
काव्या बिस्तर पर बेज़ान पड़ी थी।हवा का एक झोंका आहान का अहसास कराता हुआ काव्या को छूने लगा हवा की सरसराहट में जैसे आहान ने आवाज़ दे दी हो,और सारे लिफ़ाफ़े जो टेबल पर पड़े थे
वो सारे हवा के झोंकों से बिस्तर पर बिखर गए।काव्या के लरजते हाथ उन्हें समेटने लगे,और एक पन्ने की कुछ लाइन काव्या की नज़रो से जा मिली।
तुझे देखा जब पहली दफा,
उसी वक़्त मुहब्बत का अहसास हुआ था।
तुझमें ही अपना सारा जहाँ ढूंढ लिया,
तू उस वक़्त मेरे लिए खास हुआ था।
पढ़ते ही काव्या जो अब तक स्तब्ध थी छलछला कर रो उठी।और उसके बहते आंसू उन पन्नों में बिखर गयी। जैसे
आहान से ही जा मिले हो। उन लिखे अल्फ़ाज़ों ने काव्या और आहान की पहली
मुलाकात की यादों में काव्या को गुम हो जाने को मजबूर कर दिया।
टेबल पर सिर टिकाए,और उन चिट्ठियों को
आंसुओं से भिगाते हुए वो वो लम्हा याद करने लगी।
12 th NC C कैम्प का वो अंतिम दिन,सभी अंतिम दिन का काम पूरा करने जा चुके थे।पर काव्या की तबियत अचानक खराब हो गयी।सभी तंबुओं में एक एक कैडेट् रूके हुए थे।काव्या की गिरती हालत को देखकर कैम्प इन्चार्ज ने दूसरे टैंट से एक कैडेट को आवाज़ लगाई।वो दौड़कर
फ़ौजाना अंदाज़ में वहाँ आए।और सर को सैल्यूट किया।
उनसे काव्या कई बार रूबरू हो चुकी थी।और हर बार उसे देखकर काव्या की नजरें उस पर ठहर जाया करती थी।उसे आता देख थोड़ी सी असहजता सी महसुस हुई।
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जिन्हें देख नज़रे शरमाने लगती है,
वही आज इतने करीब हैं मेरे।
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सर ने उन्हें आर्डर दिया-वो काव्या की देखरेख करे और उसके साथ रहे।और ऐसा बोल वो चले गए।जाती दिसम्बर और आती जनवरी की कपकपाती ढंढ में वो टैंट के बाहर बैठ गए। और कई बार उसकी नजरें काव्या को देखने की कोशिश करती पर फिर बड़ी सराफत से नज़रें फेर भी लिया करता।
काव्या ने दवाई की एक डोज़ ले ली थी तो बेहतर महसूस कर रही थी।थोड़ी देर बाद आहान ने कॉफी बना ली और काव्या को दिया बोला-पी लीजिये थोड़ा फ्रेश फील करेंगी।काव्या ने कहा- जी शुक्रिया पर आप आराम करे हमारी वजह से आपको तकलीफ हो गई,हम ठीक हैं।इतनी ढंढ है आप अंदर आकर बैठ जाए।पर आहान नहीं
गया।
कॉफ़ी पीकर काव्या बोली- अरे वाह कॉफ़ी बेहद अच्छी बनी है।आहान ने शुक्रिया कहा।
मेडिसिन का असर उतरते ही।रात की सर्द हवाओं के कारण काव्या की तबियत बिगड़ने लगी।शरीर तपने लगा,और आहान ने रात भर पानी की पट्टी की,रेडक्रोस से दूसरी मेडिसिन्स लाया।तब जाके काव्या को कुछ देर बाद नींद आ गई।और आहान टैंट के बाहर ढंढ में बैठा रहा।
अचानक काव्या की नींद टूटी और उसने आहान को हल्की झपकी में देखा।उसने झट से एक चादर उसे ओढ़ा दिया।पर काव्या के स्पर्श से आहान की नींद टूट गई।
और नज़रें मिल सी गई, और काव्या ने असहजता से नज़रें झुका ली।
तभी सभी कैडेट्स वापस आ गए।और काव्या से हाल चाल पूछने लगे।पर जिसने उसकी इतनी देखभाल की उसे कोई कुछ न पूछ रहा था।उस भीड़ में आहान खोने की कोशिश कर रहा था।और काव्या की नज़र उसे जाता देख उसी पर टिकी रही।उसे शुक्रिया तक न कह पाई।और वो ओझल
सा हो गया नज़रों के सामने से।
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दिल में कसक सी छोड़ गए,
जो आकर तुम चले गए।
न मुलाकात की न बात की,
कोई याद दिल के आईने में
लकीर बनाकर तुम चले गए।
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काव्या तड़प सी गई जैसे कुछ खो रहा हो,कुछ छूट रहा हो,इधर से उधर समझ ही न पाई,कि हो क्या रहा है, और केम्प खत्म भी हो गया, सब समान समेटने लगे।
मगर काव्या का मन कहीं और ही लगा रहा।अपना सामान जिया के बैग में डाले जा रही थी। जिया ने आवाज़ दी-काव्या ये क्या कर रही है, पर काव्या सुन ही नहीं रही थी।
जिया ने उसके कान खिंचे क्या हुआ यार तुझे, कर क्या रही है,अचानक काव्या को होश आया बोली- कुछ तो नहीं क्या हुआ दी
समान पैक कर रहें हैं
जिया बोली-ऐसे समान पैक करते हैं देख
काव्या बोली ओ सॉरी दी ध्यान कहीं और चला गया था।
चल ध्यान अपना वापस ला बस आ गई है।
बस में बैठे -बैठे काव्या सिर्फ आहान के खयालों में खोई रही।अचानक बस जोर के झटके से ब्रेक लगाकर रुक गई ,आवाज़ आई- रुको रुको
और काव्या ख़यालो के समुन्दर से बाहर आ गई, देखा कि बस के बाहर आहान।
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दिल की धड़कन तेज हो गई,
उसे देखा तो
पर कह न पाए कुछ यूं चुप रह गये।
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आहान की बस खराब हो गई थी
वो ‘जिया ‘काव्या की दोस्त के पास आकर बैठ गया उससे बातें करने लगा,वो एक दूसरे को पहले से ही जानते थे। आहान के आने से बस में मौसम ही बदल गया।
सब गाने गुनगुनाने लग गये।
आहान ने काव्या को छुपती निग़ाहों से देखते हुये एक गाना गया।
‘सनम ओ सनम ये आँखें बोलती हैं’……
तब काव्या ने एक गाना गाया-
‘अगर तुम मिल जाओ ज़माना छोड़ देंगे हम’
और कब शहर आ गया पता ही न चला काव्या आहान से चाह कर भी बात न कर पाई, और आहान बस से उतरकर चला गया कुछ कहना था उसे पर कह न पाया।
फिर कभी मुलाकात होगी या
नहीं,
तेरे साथ को याद बनाएंगे,
कभी बैठेंगें तनहा अकेले तो,
तेरी मीठी याद में भी आंसू बहायेंगे।
अचानक
दरवाज़े पर खटखटाहट से काव्या की यादों की माला के मोती फर्श पर इधर उधर बिखर गये। और वो वापस वर्तमान के धरातल पर उन मोतियों को ढूंढने लगी।
दरवाजे पर “अरमान” काव्या का दोस्त आया था।काव्या ने दरवाजा खोलकर कहा- अरमान आइये (अपने आसुओं को छुपाने की नामुनकिन कोशिश में )
अरमान ने कहा- काव्या तुम रो रही हो काव्या बस करो।
अरमान मैं ठीक हूँ-काव्या ने कहा।
अरमान ने माहौल ठीक करने के लिये – काव्या चाय कॉफी नहीं पिलाओगी,और ये जिया कहाँ रह गयी,
काव्या – ओ आई एम सॉरी
ओके ओके कोई बात नहीं मैं बनाता हूँ कॉफी -अरमान ने कहा
काव्या ने कहा -अरमान आप चिंता क्यों करते हो मैं ठीक हूँ,तभी जिया भी पहुँच जाती हैं।और अरमान दोनों को कॉफ़ी की कप पकड़ा देता हैं।
वाव अरमान आपने बहुत टेस्टी कॉफ़ी बनाई हैं तभी जिया आप पर फ़िदा हैं।
आहान भी बिल्कुल ऐसी ही कॉफ़ी ……..कहकर काव्या चुप हो जाती हैं और फिर से उदास हो जाती हैं अरमान के जाने के बाद जिया और काव्या ने आहान का दूसरा लिफ़ाफ़ा खोला-
,
याद तुझे पल पल मैं करता रहा हूँ,
तुझसे मिलने के बाद मैं जलता रहा हूँ,
बहते इस लहू से लिख रहा हूँ,
जिस दिन से तुझे देखा,
तुझे ही प्यार करता रहा हूँ।
काव्या के आँखों की नमी उन चिट्ठियों पर पिघल रही थी , जिया से बोली काश उसने मुझसे कहा होता काश
जिया मैं तो आहान को उस कैम्प के बाद भूल सी गई थी मुझे तो उनकी सूरत तक याद नहीं थी,उनका सिर्फ नाम याद रह गया था पर मैं उसे ख्वाब समझकर आगे बढ़ चुकी थी।
काव्या फिर से अपने यादों के डायरी में उन तस्वीरों को उकेरती है जब वो दुबारा आहान से मिली थी। तब उसे पता भी नहीं था कि ये आहान हैं।
उस N.C.C. कैम्प के 5 साल बाद जब काव्या अरमान से कॉलेज में मिली थी वो सिनियर थे ।उनसे काव्या की गहरी दोस्ती जिया के जरिये हो गयी ।
एक दिन अरमान ने काव्या को थिएटर ले जाने का वादा किया,पर वो टाइम पर नहीं पहुँच पाए तो काव्या गुस्से से अरमान के घर पहुँच गई।
दरवाज़ा खुला था काव्या आवाज़ लगाते गई-अरमान अरमान
उधर से आवाज़ आई कौन हैं, कौन आया है।
काव्या ने कहा- मैं हूँ आपकी दुश्मन आप बाथरूम में हो,निकलो आप बाथरूम से पहले, आज आपको मैं बताती हूँ, आपकी खैर नहीं है, थिएटर ले जाने का वादा किया था,और भूल गये…..।
तभी सिर पर टॉवेल डालें हुये वो बाथरूम से निकला और काव्या ने कुछ सोचा न समझा और उसे पीटने लगी ,और बोलने लगी हमेशा ऐसा ही करते हो हमेशा धोखा देते हो,बड़बड़ाने लगी ।
इधर टॉवेल में सिर ढके आवाज़ आई – मगर सुनिये तो ज़रा मिस ज़रा सुनिए तो आप मार क्यों रहीं हैं।
तभी दरवाजे पर आवाज़ आई-बिट्टू बिट्टू काव्या ने पीछे पलट के देखा तो अरमान को खड़ा पाया और वो हसते ही जा रहे हैं
और बोले- काव्या आप यहां हम आपको लेने ही जा रहे थे।
पर आज तो ये गये काम से काव्या के हाथ की मार …..
काव्या एकदम से चौक गई, oh my god. अरमान आप यहां हो तो फिर ये……काव्या शर्म से पानी पानी हो गई।
अरमान बोले-तो छोटे नवाब ज़रा अपना घूंघट तो खोलिये ।उसने अपना टॉवल सिर से हटाया.काव्या शर्म के मारे अरमान के पीछे जा खड़ी हुई, और डर के धीमे आवाज़ में बोली-
हमें मुआफ़ कर दीजिये प्लीज।आपने हमें बताया क्यों नहीं।
आहान गुस्से से बोले- मैडम आपने मौका कब दिया,और रुई की तरह धुन डाला, भाई जान आपने भी क्या दोस्त बनाये हैं।वाह तूफान मेल की तरह आई और बस……।आते ही मेरी ये हालत कर दी,आगे आगे क्या होगा अल्हा जाने।
काव्या कान पकड़कर सामने आई और आहान उसे देखता रह गया।
काव्या बार बार सॉरी बोलने लगी-i am sorry please मुझे मुआफ़ कर दीजिये,ये सब इनकी वज़ह से हुआ है आप जो सज़ा देना चाहते हैं हमे मंज़ूर हैं।
आहान -वाह क्या बात है,
देती हैं ज़ख्म पर ज़ख्म मोहतरमा,
अब सॉरी कहकर हमारा दर्द बड़ा रही हैं
हम आपको मुआफ़ नहीं करेंगें।ओफ्फो छोटे नवाब बेचारी सॉरी तो कह रही हैं मुआफ़ भी कर दो यार अरमान ने कहा।
फिर काव्या ने अरमान को मारा।
अरमान बोले -यार मुझे क्यों मार रही हो उसको पीटकर तुम्हारा जी नहीं भरा,वैसे उसमे मेरी क्या गलती ,तुम्हे इंसान देखकर मरना चाहिए था न।
काव्या बोली-अरमान हमसे बात मत करो,न आप भूलते न ये सबकुछ होता,बेचारे खम्हखा पिट गए।
और सुबह की रोशनी ने यादों को अंधेरो में छुपा दिया।हद
सुबह की भोर किरणों ने गालों पर ढहते आँसुओ को सूखा लेना चाहा, पर तभी काव्या ने आहान की डायरी देखी पन्ने पलटते गये हवा के झोको से,जिसमें आहान ने काव्या से आखिरी मुलाकात का ज़िक्र किया था जिस पर एक आंसू और टपक पड़े और आहान को पुकार उठे।
आहान ने लिखा-कल मेरा जन्मदिन है, और काव्या मुझे मिल गई है पर उसने मुझे पहचाना नहीं शायद उस लड़कपन की काव्या मुझे भूल चुकी है कितनी बार ही हम रूबरू हुए है पर क्या उसे अहसाह नहीं होता,या कभी कभी लगता है वो भी मुझे महसूस करती है।
पलके उनकी झुकी झुकी,
सुर्ख गालों के तट पर,
नज़रें उठाती हैं मध्यम मध्यम,
हया की शरमाती हद पर,
फिदा हो जाता हूँ, उनकी इस अदा पर,
मर जाऊंगा जैसे मैं सरहद पर
,
जन्मदिन की पार्टी की तैयारी में कितनी ही बार उनसे रूबरू होता रहा।और कुछ तो होता था उनको मेरे पास आकर,कुछ तो जिसे मैं महसूस करता था,अचानक उनकोदेखते देखते मुझे चोट लग गई, और मैं भाई जान को चिल्लाने लगा तो भाई दौड़कर आये भाई का प्यार कभी कभी ही मिलता ह इसलिये मैं और नाटक करने लगा, भाई जान बहुत दर्द हो रहा है खून भी निकल रहा है, भाई ने काव्या को आवज़ लगाई काव्या आ ज़रा इसे अपनी गोद मे सुला ,काव्या हिचकिचाई पर जाने क्या था उसने अपनी गोद में मेरा सिर रख लिया, और भाई ने पट्टी दी काव्या ने सिर पर पट्टी कर रही थी मैं एकदम चुप से हो गया और उसे देखने लगा ।आज वो 5 साल पहले वाली काव्या का अहसास सा हुआ,वो नज़रें चुरा के शर्मा के चली गई।
जिनको पाने की उम्मीद नहीं थी हमें,
आज वो हमारे सामने आ खड़े हैं,
कैसे आपको बताएं हम,
किस कश्मकश से लड़े हैं
,
तभी अरमान ने आवाज़ दी और डायरी के पन्ने बन्द हो गये ।
अरमान ने बताया कि हा मुझे याद हैं उस दिन रात को आहान सोते वक्त तुम्हारा नाम बड़बड़ा रहा था और हाथों में एक रुमाल जिसपे तुम्हारा नाम लिखा था बेहद पुराना लग रहा था। मैंने उससे पूछा पर बता नहीं रहा था पर नज़रें चुरा रहा था।तब बात समझ आ गई। आहान ने कहा हा भाईजान जो आप सोच रहे हो वही बात है, लेकिन ये सब कब से भाई 5 साल से।
अरमान ने कहा-फिर देर किस बातकी बोल दे, हा इस बार बोल ही दूँगा।
जन्मदिन की पार्टी में सभी आ गए थे आहान भी खुश था पर कुछ बदला बदला सा लग रहा था अरमान और जिया भी देख रहे थे कि कुछ अलग सा लग रहा हैं आहान
काव्या आई उसकी नज़र आहान को ढूंढ रही थी वो सबसे मिली पर आहान उसे दूर जाने की कोशिश करने लगा । अरमान ने आहान को कहा जा बोल दे,आहान बोला ज़रा सब्र करो भाईजान मुझसे ज्यादा तो आप बेसब्र हो रहे हो। पार्टी खत्म होने दो ।और नज़रें भी चुराने लगा जैसे अपने आँसुओ को छुपाना चाह रहा हो।
पर पर्टी खत्म हो गई सब चले गये काव्या भी,पर आहान ने काव्या को कुछ नहीं बताया और अकेले जाकर बैठा रहा कुछ पल किसी सोच में डूबा हुआ।
प्यासे उन नैनों की प्यास अभी बाकी हैं
मेरे इज़हार की एक रात अभी बाकी हैं
अरमान ने पूछा क्यों नहीं बताया तुमने उसे……
आहान के हाथ मे हेड आफिस का लेटर था उसे जाना पड़ेगा।
भाई आप देख रहें है न इस एक पन्ने में मेरी ज़िंदगी या मौत है, उसे क्या कहकर जाऊंगा,किसका इंतज़ार करने कहूंगा,मेरा या मेरी खून से लथपथ लाश का कहें भाई जान।
भाई वो आज मुझे नहीं पहचानती की मैं वही आहान हूं 5 साल पहले कैम्प वाला,
मेरा एक इज़हार उसे ज़िन्दगी भर के लिये तड़पायेगा उसे जीने दो वरना वो मर भी न पाएगी ।
क्यों कि कहीं न कहीं उसके दिल के किसी कोने में मैं हूं।
पर आहान तुम क्या रह पाओगे उसके बगैर,भाईजान अगर होगी वो मेरे तकदीर में तो वापस आकर कहूंगा पर अभी नहीं
अरमान की ये बाते सुनकर काव्या की आँसु छलक उठते हैं,वो अरमान के बाहों में सिमट कर रोने लगती है।
आहान आपने ये क्या किया काश आपने बताया होता काश ।
तभी उस डायरी से एक खून से भरी चिट्टी गिरी
उस खून से भरी चिट्टी को काव्या के लरज़ते हाथों ने खोला पढ़ा—
कभी न आने के लिये जा रहा हूँ मैं,
मगर तेरी ज़िन्दगी में समा रहा हु मैं,
मेरे मौत के ताबुत को तू ही हाथ लगाना,,
तेरी मोहब्बत में सबकुछ…………..काव्य…..
और आगे शायद आहान की सांसो ने दम तोड़ दिया……………….
दीपा साहू “प्रकृति”