सीमा और राकेश की शादी को अभी दो सप्ताह ही हुए थे. विवाह परिवारों तथा एक जानने वाले के द्वारा हुआ था. राकेश किसी कम्पनी में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर था. सीमा ने तो एम बी ए करके अभी ज्वाइन ही किया था. देखने में राकेश काफी हैंडसम था. सीमा से पहली मुलाकात एक रेस्तरां में हुई थी. शालीन और शांत व्यक्तित्व का धनी राकेश उसे पहली नज़र में ही भा गया था. डिमांड भी कुछ न थी. विवाह भी सादे तरीके से ही हुआ.
लेकिन हनीमून से आने के बाद राकेश कुछ अनमना सा लगा. मनाली में भी कभी कभी उसे लगा ज़रुर था कि जैसे राकेश उस के साथ रह कर भी कहीं और ही है. सीमा ने कुछ पुछना ठीक नहीं समझा. राकेश के माता पिता रिटायर्ड लाइफ जी रहे थे. पूना में उनका अपना पैतृक घर है. सीमा ने चलकर उनके पास कुछ दिन बिताने का कहा , लेकिन राकेश आफिस में अधिक काम होने का कहकर टालता रहा. राकेश की मां से सीमा की फोन पर कई बार बात हुई.
दिन ऐसे ही गुजरते रहे. सीमा खुश थी. राकेश जब ऑफिस के काम से टूर पर जाता तो सीमा अपने माता पिता के घर चली जाती. वो लोग इसी शहर में रहते थे. एक सोसायटी में राकेश ने एक फ्लैट खरीद लिया और किराए के मकान से दोनों नए घर में शिफ्ट हो गए. सीमा ने घर को सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया.
फिर एक दिन राकेश ने बताया कि मां की तबीयत ठीक नहीं, पूना जाना होगा. सीमा के लाख कहने पर भी राकेश उसे साथ ले चलने को तैयार न हुआ. हड़बड़ी में वह अकेला ही निकल गया. सीमा को कुछ अजीब तो लगा लेकिन उसने ज़िद न की.
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लेकिन जब तीन दिन तक राकेश का कोई फोन न आया तो सीमा को चिंता होने लगी. उसी दिन फ्लाइट से वह पूना पहुंच गई. घर पहुंचीं तो वहां कोई न मिला. पड़ौस में पूछने पर पता चला कि छोटी बच्ची अस्पताल में भर्ती हैं. वहीं सब मिलेंगे. अस्पताल का पता लेकर तुरंत पहुंची. राकेश और उसके माता पिता आई सी यू के बाहर ही मिल गए. राकेश बदहवास सा दिखा. सीमा को देखकर सभी चौंक गए. राकेश फूटफूट कर रोने लगा. उसकी तीन वर्ष की बच्ची को निमोनिया हो गया था. फेफड़ों में इन्फेक्शन हो गया था. ज्वर उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. बाहर बैंच पर बैठे हुए राकेश ने बताया कि उसकी पत्नी का कोविड के कारण अचानक देहांत हो गया था. छोटी बच्ची को संभालने की ज़िम्मेदारी मां बाबूजी ने ले ली थी. सीमा के माता पिता को सब पता था, लेकिन सीमा को कुछ नहीं बताया.
इतना बड़ा धोखा. सीमा के पांव तले ज़मीन खिसक गई. सारा संसार ही जैसे बिखरने लगा. लेकिन सीमा ने खुद को संभाला. माता पिता को घर आराम करने के लिए भेजा. राकेश के साथ अस्पताल में ही रही. धीरे धीरे बच्ची की हालत सुधरने लगी. पांच दिन बाद अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई. घर में भी सीमा ने तीमारदारी में कोई कसर न छोड़ी. बच्ची भी जैसे मां के प्यार की भूखी थी. उसी की गोद में रहना पसंद करने लगी. रिया नाम था उसका
राकेश शर्मिंदा था. इस तरह रिया के बारे में छुपाने के खिलाफ था वह. लेकिन मां ने रिया की पूरी ज़िम्मेदारी लेने का संकल्प लिया था. उनकी ज़िद के आगे किसी की न चली.
कुछ दिन बाद सब दिल्ली आ गए. सीमा ने अपने मन को टटोला. रिया के प्रति लेशमात्र भी शंका न थी. उसने रिया को मां का प्यार देने का फैसला कर लिया. राकेश के प्रति भी क्रोध अब नहीं रहा. माफ कर देने और आगे बढ़ने में ही सबकी भलाई है. उसने अपने संसार को संभालना ही उचित समझा.
– डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा
मौलिक एवं स्वरचित