रात के तीन बज रहे थे | सभी सो रहे थे |सुमन अपने पति आलोक की तस्वीर के आगे चुपचाप बैठी एकटक तस्वीर को निहार रही थी |
कल उसके एकलौते बेटे अनमोल की शादी थी|सभी परिवार आये हुए थे |दिनभर काफी गहमागहमी रही | आज बहू घर आई और सारे दिन रस्म रिवाज होते रहे |अब सब थककर सो रहे थे, पर सुमन की आंखों में नींद नहीं थी|आज उसे अपने पति की बहुत याद आ रही थी, जो उसे आज से पंद्रह साल पहले छोडकर इस दुनिया से चले गये थे | तब उसकी बड़ी बेटी दीपा सोलह साल, छोटी बेटी रिया चौदह साल और बेटा अनमोल बारह साल का था |कहने को तो पंद्रह साल हो गये थे, पर सुमन को आज भी सबकुछ ज्यों का त्यों याद था | सारी बातें, सारे दृश्य उसकी आँखों के सामने चलचित्र की भांति घूम रहे थे |
सोलह साल पहले उसके पति को कैंसर हो गया था |जैसे ही उसे इस बात की जानकारी हुई, वह अपनी पूरी शक्ति से उसे हराने में लग गई | उसे एक -एक दिन की एक- एक बातें याद आ रही थी | कैसे वह अपने पति के साथ इस अस्पताल से उस अस्पताल भटकती रही | अपनी सारी शक्ति इस मुसीबत का सामना करने में लगा दिया | सारे रिश्तेदारों ने संकट की इस घड़ी में सहायता करने के डर से किनारा कर लिया | बस थोड़ी बहुत नाम मात्र की सहायता और औपचारिकता करके उन्होंने पल्ला झाड लिया | अपने पूरे सामर्थ्य भर वह अपने पति के जीवन के लिए जी जान से लडती रही |अस्पताल और मंदिर दौडती रही | सारी जमापूंजी खत्म हो गई | उधार भी लिया, कुछ बाकी न रखा, पर उसका कोई प्रयास काम न आया और उसके पति आलोक उसे मंझधार में छोड़, जीवन की जंग हार, दुनिया से चले गये |जो परिवार, रिश्तेदार, जीते जी आलोक की बीमारी में उनसे मिलने, उनका हाल जानने न आये, वे सब उनके श्राद्ध कर्म में औपचारिकता निभाने आये और अपना दुख प्रकट कर, सांत्वना देकर चले गये |
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किसी ने उसके या उसके बच्चों के बारे में गंभीरता से न सोचा | अब उनका क्या होगा, इसपर लोगों ने चर्चा तो बहुत की, पर किया कुछ नहीं | “कुछ जरूरत होगी तो बताना” कहते हुए सब चले गये |”कुछ जरूरत, यहाँ तो सब जरूरत ही जरूरत है |” सुमन सोचती | उसे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था, वह क्या करे ?वह फूट-फूट कर रोना चाहती थी, जीना नहीं चाहती थी “पर बच्चे ” उनका क्या होगा ? इन्हें कौन देखेगा?” मरना तो दूर, वह तो खुल कर रो भी नहीं पाई, क्योंकि उसके रोते ही बच्चे भी रोने लगते |उसे अपने चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था |उस अंधेरे में आशा की एक किरण बनकर आये थे मनोहरलाल जी |मनोहरलाल जी उसके पति की कंपनी में काम करते थे| एकदिन उसके घर आये |बहुत देर तक बैठे |हालचाल पूछा |सारी बातें जानकर कहने लगे – “मैं शहर से बाहर अपने बेटे के पास गया हुआ था, इसी से पहले नहीं आ सका |कल रात को ही लौटा हूँ |आलोक मेरे साथ काम करता था, पर उम्र में मुझसे बहुत छोटा था |मेरी बड़ी इज़्ज़त करता था और हर बात में मेरी सलाह लेता था |वह बेहद सीधा, सरल और अच्छा इंसान था |मैं उसे बहुत पसंद करता था |उसके जाने का मुझे भी बहुत दुख है |”मनोहर लाल इतना कहकर थोड़ा रूके फिर सुमन को समझाने लगे -“मैं जानता हूँ कि आलोक के जाने का दुख तुमसे ज्यादा किसी को नहीं हो सकता, पर बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी भी तुमसे ज्यादा किसी की नहीं है | तुम्हारे जान देने से भी अब वह वापस नहीं आ सकता |तुमसे जितना बना तुमने किया और अब आगे भी तुम्हे ही सब संभालना है |अब अपने बच्चों की सारी जिम्मेदारी तुम्हारे उपर है |रोना बंद करो और बच्चों की ओर देखो |तुम्हें अपने आप को और बच्चों को संभालना है |कर्तव्य के एक नये पथ, जिम्मेदारियों की एक नई राह पर तुम्हें चलना है | राह कठिन है और यहाँ तुम्हें न थक कर रूकना है, न किसी की गलत इरादों के आगे झुकना है और न हीं कठिनाईयों से घबराकर टूटना है| समझी, न रूकना, न झुकना, न टूटना,क्योंकि तुम्हारे प्रत्येक निर्णय का प्रभाव तुम्हारे बच्चों पर पडेगा | तुम्हें अगर अपने बच्चों की जिंदगी बनानी है तो आलोक की याद अपने दिल में बसाये आगे बढते जाना है | उठो हिम्मत करो, ईश्वर तुम्हारी मदद करेंगें |”
“लेकिन, न तो मेरे पास कोई जमापूंजी है, न हीं कोई काम, न कोई मददगार |मैं कैसे कर पाऊंगी, यह सब? बच्चों की पढ़ाई भी अभी पूरी नहीं हुई है |मैं क्या करूँ? ” सुमन रोने लगी |
“रोओ मत, यह जरूर एक गंभीर समस्या है, पर रोने से इसका हल नहीं निकलेगा |” मनोहर लाल ने कुछ सोचते हुए कहा-“मैं अपनी कंपनी में कोशिश करता हूँ |मैनेजर साहब से आग्रह कर तुम्हें कंपनी में कोई काम दिलवाता हूँ, जिससे तुम अपने बच्चों का पालन ठीक से कर सको |”
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“आप देवता हैं |मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा ” सुमन ने अपने हाथ जोड़ दिए |
“नहीं, मैं एक सामान्य इंसान हूँ और इंसानियत के नाते यह करना चाहता हूँ |आलोक मुझे बड़ा भाई समझता था और आज से तुम भी मुझे अपना बड़ा भाई समझो |’इतना कहकर मनोहर लाल जी चले गये | सुमन को उनकी बातों ने बहुत प्रभावित किया |उसके व्याकुल मन को थोड़ी शांति मिली |
मनोहर लाल जी के सहयोग से जल्द ही उसे कंपनी में एक नौकरी मिल गई | नौकरी छोटी थी और जिम्मेदारियां बड़ी, अत: उसने रोना छोड़ दिया और पूरी हिम्मत से जिम्मेदारियों की राह पर चल पडी़ |वह दिन और आज का दिन |अपनी हिम्मत और मेहनत से उसने अपनी सारी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह पूरा किया | जिन लोगों ने मदद को हाथ बढाया, उसके पीछे भी उनका कोई न कोई स्वार्थ रहा और सुमन उनकी मंशा पहचान उन्हें दूर करती गई| अकेले ही तीनों बच्चों का पालन- पोषण, पढाई- लिखाई, शादी-ब्याह किया | तीनों बच्चे बेहद समझदार और योग्य निकले और मेहनत से इंजिनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर नौकरी करने लगे | जो जो रिश्तेदार संकट के समय दूर हो गये थे वे सब अब पास आने लगे | दीपा की शादी तीन साल पहले और रिया की शादी एक साल पहले हो गई | अनमोल ने अपने साथ काम करने वाली लड़की को पसंद किया और उसके साथ बेटे की शादी कर उसने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली |मनोहरलाल जी ने सदा उसे उचित सलाह और हिम्मत दिया| यथासंभव मदद भी की |दो वर्ष पहले वे चल बसे, पर उनकी सलाह न रूकना, न झुकना, न टूटना सदा उसका मार्गदर्शन करता रहा |” मैने अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर दी |काश, आज आप भी हमारे साथ होते | ” सोचते हुए सुमन ने एक गहरी सांस ली|
“मम्मी, आप यहाँ बैठी हैं|सोई नहीं? क्या बातें कर रही हैं, पापाजी से? “आवाज सुनकर सुमन ने सिर उठाकर देखा |नई बहू पैर छूकर प्रणाम कर रही थी |
“बता रही थी कि मैंने अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर ली |अब तो मुझे अपने पास बुला लें |” सुमन खडी़ होकर बोली |
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“वाह मम्मी, आप पापा के पास चली जायेंगी, तो हमारे बच्चों को कौन सम्हालेगा |”अनमोल पास आते हुए बोला |
” धत”बहू लजाते हुए सुमन के गले लग गई |” अनमोल ने मुझे आपके बारे में सब बताया है |आप ने अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर ली |अब हमें भी तो अपनी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दें |आप आराम करें और हमें आपकी सेवा करने दें |”
“तुमनें तो मेरे मन की बात कह दी |” कहते हुए अनमोल भी मां के गले लग गया |सब हंसने लगे |सुबह की रोशनी कमरे में आने लगी |
#जिम्मेदारी
स्वलिखित और अप्रकाशित
सुभद्रा प्रसाद,
पलामू, झारखंड |