तरूणा की दशा देखकर, रामेश्वर जी करूणा से भर गए। उन्होंने हौले से उसके सिर पर हाथ रखा,और बस यही कह पाए ‘बेटा! तू अकेले इतना सबकुछ सहती रही, हमसे कुछ कहा क्यों नहीं? पर बस अब और नहीं, बेटी मैं सबकुछ ठीक कर दूंगा।’ उनका गला रूंध गया था। अपने ऑंसू छिपाने के लिए वे तेज कदमों से अपने कमरे में चले गए। मैं कैलाश नारायण को क्या मुंह दिखाऊँगा। बड़े विश्वास के साथ मैंने उसकी बेटी तरूणा की खुशियों की जिम्मेदारी ली थी। वह तो बेचारा कह रहा था कि
हम जैसे गरीब की बेटी का तुम्हारे घर में क्या काम,तुम जैसे धनवान के यहाँ मेरी बेटी की क्या अहमियत रहेगी। मगर मैंने ही उससे वादा किया था, कि आज से तेरी बेटी की खुशियों की जिम्मेदारी मेरी। तब कहीं जाकर, मेरी दोस्ती के खातिर वह अपनी बेटी का विवाह मेरे बेटे के साथ करने के लिए राजी हुआ। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा बेटा राजू इस तरह अपने संस्कारों को भूलकर गलत राह पकड़ लेगा। वो तो अच्छा हुआ कि मैं यहाँ शहर में इनसे मिलने के लिए आया, वरना मुझे तो कुछ मालुम ही नहीं पड़ता।
तरूणा कितनी संस्कारी और सहिष्णु लड़की है, उसने कभी अपने पति की बुराई नहीं की, फोन पर भी हमेशा यही कहती कि वह खुश है, क्या इस तरह कोई लड़की खुश रह सकती है। जब मैंने जोर देकर उससे पूछा तो बस उसने इतना ही कहा था, कि पापाजी आप कुछ दिन यहाँ रूक जाइये।
आज आठ दिनों से यहीं हूँ, और मेरे सामने सारी स्थिति स्पष्ट होती जा रही है। राजू का तरूणा के साथ रूखा व्यवहार, बात-बात पर तुनक जाना। तरूणा का सहम कर मायूस हो जाना। खुश दिखने की कोशिश करने के बावजूद उसकी ऑंखें उसकी उदासी बयान कर ही देती है। कितनी हंसमुख लड़की थी तरूणा। एक साल हमारे साथ ससुराल में रही, सात महिनों में राजू ने इसका क्या हाल कर दिया, हंसती खिलखिलाती रहने वाली ऑंखों के नीचे स्याह काले धब्बे पड़ गए हैं।
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आस पड़ोस के लोगों से और चुपके से उसके ऑफिस जाकर राजू के बारे में उन्होंने बहुत कुछ जान लिया था, उन्हें पता चला कि राजू का उसके ऑफिस में रहने वाली किसी क्लर्क के साथ अवैध संबध है। वे सोच ही रहै थे, कि वे किसी दिन राजू को रंगे हाथ पकड़े। सुनी सुनाई बात पर, अगर मैं उससे कुछ कहूँगा तो बात बिगड़ जाएगी। तभी उन्होंने राजू को किसी से फोन पर बात करते हुए सुना। ‘तुम समझा करो ना यार! मैं अभी तुम्हें घर नहीं बुला सकता, ऑफिस के बाद तुमसे मिलने तुम्हारे घर आता हूँ।
‘ रामेश्वर जी ने सारी बातें सुनी और आगे की योजना भी बना ली। राजू ने ऑफिस जाते समय कहा-‘पापा आज ऑफिस के बाद मुझे जरूरी काम से जाना है, आने में देर हो जाएगी। ‘ रामेश्वर जी ने कहा ठीक है बेटा। ऑफिस का समय समाप्त होने के बाद वे ऑफिस गए, वहाँ से पता चला कि वो ऑफिस की क्लर्क कविता के घर गए हैं। उसके घर का पता पूछकर वे उसके घर गए। वहाँ राजू को देख उनको यकीन हो गया कि राजू के बारे में लोग जो कह रहे हैं, सही है। राजू अपने पापा को वहाँ देखकर अचकचा गया।
बड़ी मुश्किल से बोला ‘पापा आप यहाँ ‘ कविता के चेहरे पर भी हवाइयाँ उड़ रही थी। उसने हाथ जोड़कर नमस्कार किया। राजू कुछ कहता उससे पहले ही रामेश्वर जी बोले मुझे तुमसे जरूरी काम है, घर चलो। राजू कुछ नहीं बोला मगर उसके चेहरे पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था। रामेश्वर जी ने रिक्षा एक बगीचे के आगे रूकवाया और राजू से कहा ‘उतरो , मैं बहू के सामने तमाशा बनाना नहीं चाहता।मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है।’ राजू नीचे उतरा वह समझ रहा था कि पापा किस बारे में बात करना चाह रहे हैं।
एक जगह बैठकर रामेश्वर जी ने पूछा तुम्हारे बारे में, मैं जो सुन रहा हूँ, क्या वह सच है?’ ‘तो उसने आपके सामने मेरी शिकायत की, और आपने मेरी जासूसी करना शुरू कर दी। उसकी इतनी हिम्मत। पापा आप हद से ज्यादा आगे बढ़ रहे हैं, आज तो आप उसके घर ही चले आए, क्या सोचेगी वो?’ ‘ वो कौन?क्या लगती है वो तेरी? और यह जान ले कि बहू ने तेरे बारे में कुछ नहीं कहा है, वह एक संस्कारी लड़की है।’ राजू का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह बोला ‘ आपका मान रखने के लिए मैंने उससे शादी की,
मुझे तो पहले से ही वह पसंद नहीं थी। मैं कविता से प्रेम करता हूँ,और उसके बिना नहीं रह सकता।’ ‘ऐसा कैसा मान रखा तूने ? पहले मना कर देता तो उसकी जिन्दगी तो खराब नहीं होती। तू कविता को नहीं छोड़ सकता, तो तरूणा को तलाक दे दे। और आज के बाद मुझे भी पापा मत कहना। वह मेरी जिम्मेदारी है, उसे मैं सम्हाल लूंगा।’ रामेश्वर बाबू की आवाज में तेजी आ गई थी। ‘नहीं दे सकता उसे तलाक उसे भरण पोषण का पैसा देने की सामर्थ्य नहीं है मुझमें। और मैं कविता को भी नहीं छोड़ सकता। ‘
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‘तो यह तेरा आखरी फैसला है।’
‘हॉं ‘
‘ठीक है,मैं तरूणा को अपने साथ गॉंव ले जा रहा हूँ, अब तू मेरे फैसले का इंतजार कर।’
दोनों घर आ गए। दूसरे दिन रामेश्वर बाबू ने तरूणा से कहा बेटा अपना सामान जमा लो, हम गाँव चल रहे हैं। तुम्हारी मम्मी जी ने तुम्हें बुलाया है। जाते समय तरूणा ने राजू से कहा ‘मैं जा रही हूँ ‘ राजू कुछ नहीं बोला। गाँव जाते समय रामेश्वर जी ने तरूणा से कहा बेटा मुझे सब मालुम हो गया है, राजू कविता को घर भी लेकर आता है ना? कैसे सहन किया तूने यह सब कुछ, बताया क्यों नहीं।? कैसे बताती, आप और मम्मी जी मुझे इतना प्यार करते हैं, मैं आपको कैसे दु:खी करती?बेटा मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं तेरे माता पिता को कैसे मुह दिखाऊँ?क्या सोच रहै होंगे वो मेरे बारे में?’ ‘आप चिन्ता न करें पापाजी उन्हें कुछ भी मालुम नहीं है।’ रामेश्वर जी को आश्चर्य हुआ, उन्होंने तरूणा के सिर पर हाथ रखा और पूछा ‘बेटा तू क्या चाहती है,
क्या तू अब भी राजू के साथ रहना चाहती है?’ ‘बस अब मेरी यही इच्छा है कि मैं आपके और मम्मी जी के पास रहूँ?’ वह फफक कर रो पड़ी। रामेश्वर जी ने उसको दिलासा दिया। घर आकर उन्होंने अपनी पत्नी कमला के आगे सारी बातें कही तो वे बहुत दु:खी हुई और उन्होंने पूछा कि ‘अब आप क्या सोच रहे हैं?’ ‘सबसे पहले मैं कैलाश नारायण से मिलकर सबकुछ सही -सही बताऊंगा फिर कुछ सोचते हैं।’ दूसरे दिन वे बहू के मायके गए और उनको सारी स्थिति बताई और दिल से क्षमा मांगी। और विश्वास दिलाया की वे तरूणा के जीवन में खुशियाँ लाकर रहेंगे
उन्होंने कहा कि ‘मैं चाहता हूँ, कि राजू और तरूणा का तलाक करवा दे,और तरूणा की फिर से शादी करवा दे। और इस पूरे कार्य की जिम्मेदारी मेरी है, मुझे बस आपकी अनुमति चाहिए।’ कैलाश नारायण जी की ऑंखों से ऑंसू बह रहै थे, उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़कर बस इतना ही कहा, कि ‘मैं अपनी पुत्री को आपको दे चुका, अब आप जो भी उचित समझे। मुझमें अब इतनी सामर्थ्य नहीं है।’ रामेश्वर जी ने उन्हें विश्वास दिलाया और घर आ गए। आकर अपनी पत्नी को सारी बात बताई। कमला जी बोली कि ‘आप अपने बेटे के विरूद्ध कैस लड़ेंगे?’ ‘
हॉं लड़ूंगा। यह इंसाफ की लड़ाई है, जरा सोचो तरूणा की जगह अगर हमारी रानू के साथ ऐसा होता तो तुम क्या करती?’ कमला जी कुछ नहीं कह पाई। रामेश्वर जी ने वकील को बुलाकर राजू के पास तलाक का नोटिस भेजा। आगे तलाक की पिटिशन लगवाई ,स्वयं बेटे के खिलाफ गवाही दी,और बहू के भरण पोषण की भी मांग की। जज ने तलाक की अर्जी मंजूर की और भरण -पोषण की मांग भी मंजूर की। भरण पोषण की मांग रामेश्वर जी ने सिर्फ इसलिए की कि वो राजू को सबक सिखाना चाहते थे, यह राजू की कही उस बात कि ‘मैं तरूणा
को तलाक नहीं दूंगा, मुझमें उसके भरण पोषण के लिए पैसा देने की सामर्थ्य नहीं है। ‘ का जवाब था। रामेश्वर जी ने तरूणा के लिए एक अच्छा रिश्ता देखकर शादी का निश्चय किया, लड़का बैंक में नौकरी करता था और परिवार भी बहुत अच्छा था। रामेश्वर जी ने उनके सामने सारी स्थिति स्पष्ट कर दी थी। उन्हें तरूणा पसंद थी।उन्होंने तरूणा से पूछा तो वह बोली -‘पापाजी मुझे नहीं करनी शादी, मुझे आप अपने पास ही रहने दो।’ उन्होंने और तरूणा के माता पिता ने समझाया बेटा हम हमेशा तेरे साथ नहीं रह पाऐंगे।
पक्के पान है, पता नहीं कब झड़ जाए। हम सबकी खुशी इसमें ही है बेटा! कि तेरा घर बस जाए। वह बड़ी मुश्किल से तैयार हुई। रामेश्वर जी ने धूमधाम से उसका विवाह किया। तरूणा के जीवन में फिर से खुशियाँ आ गई। रामेश्वर जी ने अपनी नैतिक, सामाजिक, मानवीय और आत्मिय सभी जिम्मेदारियों को निभाया। और तरूणा की खुशियों की जो जिम्मेदारी ली थी, उसे पूरा किया। राजू को अपनी संपत्ति से बेदखल कर अपनी संपत्ति की वसीयत में, बेटी रानू और तरूणा को बराबरी का हिस्सेदार बनाया।
#जिम्मेदारी प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित