भाभी,,,!!
जल्दी से नीचे आइए,,,देखिए ये क्या हो गया ,,,!!
एकाएक देवर जी और देवरानी की आवाज सुन कर मेरा मन घबराया और मैं दौड़ कर सीढ़ियों से नीचे वाले फ्लोर पर आई ।
अमावस का दिन था तो उस दिन घर पर वैसे ही बहुत काम था तो सासू मां ,में और मेरी देवरानी घर की साफ – सफाई में लगीं हुई थी,,,।
नीचे आकर देखा तो बच्चों के कमरे में दीवारों , टेबल और बेडशीट पर पूरा खून ही खून बिखरा पड़ा था और एक पक्षी के छोटे छोटे पंख सारे कमरे में तितर-बितर पड़े थे ।
अरे,,!!
यह क्या हुआ,,,?
भाभी देखो ,,!! एक कबूतर उड़ते उड़ते अचानक कमरे में आया और पंखे से कट कर फर्श पर गिर गया है ,,देवरानी ने कहा ,,।
हमारे घर कबूतरों का आना बहुत होता है तो हमारी कोशिश यही रहती है कि हम सभी जाली के दरवाजे बंद रखें परंतु फिर भी कभी-कभार कोई दरवाजा खुला रह जाता है,, शायद उस दिन भी ऐसा ही हुआ होगा और वह बेचारा उड़ता हुआ पंखे से आ टकराया होगा ।
मैने देखा कमरे में दरवाजे के पीछे अधमरी सी हालत में एक कबूतर पड़ा था । उसके मुंह और पंख के नीचे से बहुत खून बह रहा था ,उसकी चोट ढूंढ पाना मुश्किल था।
जैसे ही मैंने उसे पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया वह फड़फड़ा कर उड़ा और दूसरी जगह जा बैठा,,,।
कबूतर के खून से बहुत तीव्र गंध आ रही थी,,। उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना जरूरी था क्योंकि वह इस कदर लहू लुहान था कि यदि उसे समय पर दवा पानी नहीं मिलता तो उसके प्राण पखेरू ही उड़ जाते,,।
समस्या यह भी थी कि घायल कबूतर को किस प्रकार पकड़ कर अस्पताल ले जाया जाएगा,,।
तभी हमारे मस्तिष्क में एक विचार आया , हम लोगों ने जल्दी से एक गत्ते का बॉक्स लिया उसमें चाकू से कई जगह छेद कर दिया जिससे उसे सांस लेने में कोई परेशानी न हो । परंतु सबसे मुश्किल काम की घायल कबूतर को कैसे पकड़ कर उसमें बैठाया जाए ।
वह कबूतर इतना फड़फड़ा रहा था कि कोई भी उसे पकड़ पाने में सफल नहीं हो पा रहा था ,,।
घर में सब जानते हैं कि मुझे पशु पक्षियों से बहुत ज्यादा लगाव है ,, और मैं ऐसे किसी पक्षी यां जीव को छूने से डरती भी नही हूं ।
“देवर जी ने कहा ,,” भाभी , अब तो आपको ही इसे उठाकर इस बॉक्स में बैठाना होगा,, ।
दरअसल कबूतर के बहुत ज्यादा चोट थी ,,,उसे पकड़ने में भी डर लग रहा था कि कहीं पकड़ने में हम उसकी पीड़ा और दर्द को और ना बढ़ा दें ।
दो चार बार के प्रयास से मैंने उसे एक कपड़े से पकड़ कर गत्ते के बक्से में डाल दिया,,। सुबह के नौ बज रहे थे , देवर जी को ऑफिस जाना था और मेरे पतिदेव बिजनेस के सिलसिले में दिल्ली से बाहर गए हुए थे । तो उसे अस्पताल ले जाने की जिम्मेदारी भी हमें ही निभानी थी
घर के सब काम छोड़कर मैं और मेरी देवरानी उसे लेकर स्कूटी पर ही निकल पड़े ।
बचपन में कई बार मैंने देखा था कि हमारे घर के बाहर बड़े खंभे पर से कई बार बिजली का झटका लगने से कबूतर गिर जाते थे ,,।
तब मेरे पिताजी उन कबूतरों को इलाज के लिए शाहदरा के किसी धर्मार्थ पक्षी अस्पताल में ले जाया करते थे । मेरे पिताजी भी बहुत बड़े पशु पक्षी प्रेमी थे , हमने घर में पक्षियों के लिए एक भंडार घर बना रखा था ,उसमे बड़े – बड़े कट्टों में बाजरा , मक्का और मूंग दाल रखा रहता था , वे नियम से सुबह उठते ही पक्षियों के लिए दाना और पानी डाला करते थे । वे हमेशा कहा करते थे हर इंसान को अपने जीवन काल के एक पशु या पक्षी का पालन पोषण अवश्य ही करना चाहिए ।
स्कूटी चलाते-चलाते मेरे मन में बस शाहदरा वाले हॉस्पिटल का ख्याल आ रहा था ।
मुझे उस अस्पताल का एड्रेस तो नहीं पता था परंतु फिर भी मैं किसी प्रकार लोगों से पूछ – ताछ कर उस अस्पताल में पहुंच ही गई ।
वहां जाकर हमने डॉक्टर से बात की तो उस कबूतर की हालात देखकर उन्होंने कहा ,” आप निश्चिंत हो जाइए यह कबूतर बिल्कुल ठीक हो जायेगा ,,।”
डॉक्टर की बात सुनकर हम दोनों देवरानी जेठानी की जान में जान आ गई थी ।
“क्या डॉक्टर,,,?
यह सच में ठीक हो जाएगा,,?”
हां,,, हां बहन जी,,!
आप बिल्कुल चिंता मत करिए यह मात्र 15 दिन में ठीक हो कर उड़ान भरने के लायक हो जाएगा ।
अब आप रिसेप्शन पर अपना फोन नंबर लिखवा दीजिए । और यदि आप इस कबूतर को ठीक हो जाने के बाद वापस ले जाना चाहते हैं तो आप इसे वापस भी ले जा सकतीं हैं ।
और यदि आप इसे वापस नहीं ले जाना चाहते तो हम आपको इन्फॉर्म करके इसे खुले आसमान में उड़ा देंगे ।
डॉक्टर की बात सुनकर हमारा मन बहुत प्रसन्न हुआ । हृदय तल से उन लोगों का आभार व्यक्त किया और वहां से निकल आए ।
आज ऐसा लग रहा था मानो एक मूक जीव की जान बचा कर हमने एक जिम्मेदार नागरिक होने का फर्ज अदा किया है।
यदि हम उसको ठीक समय पर अस्पताल ना पहुंचाते तो , वह अवश्य ही मर जाता । रास्ते में आते हुए मैंने मन ही मन पिता जी को प्रणाम किया और उन्हें धन्यवाद दिया कि उनके संस्कारों की वजह से आज हम एक असहाय जीव की जीवन रक्षा करने में कामयाब हो गए थे ।
आज दोनों देवरानी जेठानी ने घर का काम नहीं किया और ना ही लंच बनाया,,, परंतु जो जिम्मेदारी हमने आज निभाई थी उसके लिए पूरे परिवार से शाबाशी जरूर मिली थी ।
#जिम्मेदारी
स्वरचित मौलिक
पूजा मनोज अग्रवाल
दिल्ली