अपना हिस्सा – ऋतु गुप्ता

 शरद ने अपनी पत्नी शुभी से कहा यह तुम क्या कह रही हो कि मैं गांव जाकर बाबूजी से मकान व दुकान में अपने हिस्से की बात करूं, उनसे कहूं कि यह घर मेरा भी है,क्योंकि कानूनन मेरा भी हक बनता है कि मैं भी अपने भाई के साथ बराबर का हिस्सेदार हूं,उस घर व दुकान में…

 तुम इतनी खुदगर्ज कैसे हो सकती हो शुभि, जरा सोचो बाबू जी ने सही समय पर यदि हमारी मदद ना की होती तो आज हमारे पास ये घर की छत भी ना होती, और हम किस तरह अपने बच्चों की शिक्षा व पालन पोषण का खर्च उठाते।आज के महंगाई के समय में हम अपने बच्चों को वो सब सहूलियत नही दे पाते क्योंकि हर महीने की आधी से ज्यादा तनख्वाह तो घर की किस्त जमा करने में ही चली जातीं।

 मैं तो पढ़ लिख कर शहर आ गया, पीछे मुड़कर कर भी नही देखा, अच्छी खासी नौकरी थी, लेकिन ज्यादा पैसे के लालच में शेयर बाजार में बीस लाख का नुकसान कर बैठा। वह तो छोटे भाई का ही दिल इतना बड़ा था कि उसने बाबू जी से कहकर मेरे हर कर्जे की भरपाई करवा दी नहीं तो आज जो यह ऐशो आराम की जिंदगी हम और तुम जी रहे हैं वह शायद हमें ना मिलती।

उस पर भी तुम्हारी ये खुदगर्जी की बात मुझे समझ नहीं आती कि घर गांव वाले घर में अपना हिस्सा मांग लूं क्या यही सिला दूं छोटे भाई की भलाई और सरल स्वभाव का?

 जब हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा की जरूरत थी, तब कौन मदद को आगे आया,बाबूजी ही ना, और बाबूजी के पास पैसा कहां से आता है, उसी छोटी सी दुकान से जहां भाई दिन रात बाबू जी के साथ मेहनत करता है, माल भरवाता है, तगादे लाता है, सारा कुछ तो देखता है भाई, एक विश्वास के साथ कि पापा घर में बड़े हैं, जो करेंगे सही करेंगे, उसने कभी भी ऐशो आराम की जिंदगी नही जी, दिन-रात एक कर दिये व्यापार के लिए…

 चाहता तो बगावत कर सकता था, लेकिन उसे पता है कि अपने ही अपनों की मुसीबत में काम आते है,उसने निस्वार्थ अपनी मेहनत की जमा-पूंजी भी हमारे बच्चों की पढ़ाई के लिए बाबूजी को दे दी.. और तुम उसी भाई से हिस्से की बात करती हो।

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हमारे पास तो फिर भी सर पर छत है ,शहर में अच्छा जीवन यापन कर रहे हैं ,उसने अपनी पूरी जिंदगी निस्वार्थ बाबूजी के साथ व्यापार व मां की सेवा में लगा दी।

 क्या उसकी पत्नी को हक नहीं था, तुम्हारी तरह निश्चिंत व बेफिक्र जिंदगी जीने का। उसने भी अपने पति के साथ मां की सेवा में बरसों लगा दिए और तुम हिस्से की बात करती हो। यदि यही बात थी तो मां की सेवा में हिस्सा मांगती, जिम्मेदारियों में हिस्सा मांगती, तब मैं समझता कि हां तुम ठीक कह रही हो।

यदि हिस्सा ही चाहती हो , तो चलो सब कुछ बेचकर गांव चलते हैं, सारी जिम्मेदारी साथ साथ निभाते हैं और जिस तरह की जिंदगी मेरा भाई और उसका परिवार जी रहा है, उसी तरीके की जिंदगी जीते हैं,सुख दुख जिम्मेदारियां सभी कुछ आधा-आधा बांट लेते हैं।यदि बीस साल मैने नौकरी की है तो, उसने भी बीस साल बाबूजी के साथ व्यापार को दिए हैं। पर शुभि तुमसे यह नहीं हो पाएगा, क्योंकि तुम सिर्फ लेना जानती हो देना तो तुमने कभी सीखा ही नहीं। सभी परिवार वह नहीं जो लेने के लिए लड़ें, वरन परिवार तो वह है जो एक दूसरे के साथ सुख दुख में साथ खड़ा हो। ईश्वर ने भाई भाई का रिश्ता संपत्ति बांटने के लिए नहीं सुख-दुख बांटने के लिए बनाया है

शुभि एकदम चुप ही रही,सोच रही थी कि एकदम शरद को क्या हो गया, उसने फिर भी हिम्मत करके कहा मेरी बात तो सुनो मैं जो कुछ कह रही हूं अपने बच्चों के भविष्य के लिए कह रही हूं।

 इस पर शरद ने कहा – और मेरे भाई के बच्चों के भविष्य का क्या… और शुभि लेनी हो तो अपनो की दुआंए लेनी चाहिए, उनके दिल से आह के साथ निकली बद्दुआएं नही … क्योंकि बिना बोली बद्दुआएं ईश्वर से मिला अभिशाप होता है।




 लेकिन तुम ठीक कह रही हो शुभि गांव तो मुझे जाना ही होगा, अपना हिस्सा लेने के लिए , अपने भाई के दिल में अपने प्यार का हिस्सा, बाबूजी के आशीर्वाद की दुआओं में अपना हिस्सा, भाभी की आंखों मे अपनेपन का हिस्सा,और भतीजा भतीजी का अपने बड़े पापा के लिए सम्मान में अपना हिस्सा।

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मैं जा रहा हूं गांव ,एक साइन करने कि मकान दुकान में मेरा कोई हिस्सा नहीं है, सब कुछ मेरे भाई का है क्योंकि सही मायने में मां बाबूजी की औलाद होने का फर्ज उसने ही निभाया है, जो जिम्मेदारियां हमें दोनों भाइयों को मिलकर उठानी थी उसने अकेले ही उठाई है। कह कर शरद निकल पड़ा अपने गांव की ओर, अपने हिस्से के लिए…एक भाई से भाई के प्यार का हिस्सा लेने के लिए, दोनों भाइयों के दिलों को जोड़े रखने के लिए ।

#जिम्मेदारी 

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलंदशहर

उत्तरप्रदेश

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