ओफ ओह…! मां… क्या हर छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बना देती हो आप..? अब कहा ना याद नहीं था…
मनोज अपनी मां शारदा जी से कहता है…
शारदा जी: बेटा..! यह बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं मैंने… मुझे सब पता है… तेरी मां अब तुझ पर बोझ बन गई है… पर क्या करूं बेटा..? भगवान का बुलावा आए, तब तो मैं जाऊं… पता है.. आजकल बच्चे कहां बूढ़े मां बाप की सेवा करना चाहते हैं …?
मनोज: और भगवान क्यों आपको बुलाकर परेशानी लेना चाहेंगे…? कितने आराम से है वह… फिर क्यों वह अपनी परेशानी खुद बुलाएंगे..? और अब बस भी कीजिए मुझे कोसना…
अपने बेटे के मुंह से यह बात सुनकर शारदा जी थोड़ी दुखी हो जाती है… पर क्या करें वह तो मां है… बेटे को बद्दुआ कभी नहीं देगी…
मनोज: पता नहीं, मेरा ही नसीब इतना खराब क्यों है..? ना अच्छा एम्पलॉई बन पाया और ना ही अच्छा बेटा… इससे तो बेहतर होता कि मैं मर ही जाता… हर किसी को मुझसे शिकायत है… पर मेरी शिकायत सुनने वाला कोई नहीं…
जब मैं अपनी पसंद से पढ़ना चाहता था… पापा ने अपनी पसंद थोप दी… फिर किस्मत को बेहतर करने का मौका मिला, तो मां ने अपनी जिम्मेदारी का वास्ता देकर रोक लिया और बाहर जाने नहीं दिया… किसी तरह अपने हालातों से लड़ते-लड़ते यहां तक पहुंचा, तो अब मां को लगता है, मुझे उनकी परवाह नहीं…
शारदा जी: तू यह सब क्या बोले जा रहा है बेटा…? तू मेरी दवाई लाना भूल गया, इसमें तेरी ही गलती है और वही बात मैंने बताने की कोशिश की… और तू उल्टा मुझे ही सुनाने लग गया…?
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यहां तक कि अपने स्वर्गवासी पिता को भी शामिल कर रहा है….? हम तेरे माता पिता है, तो हमारी जिम्मेदारी तुझ पर ही है…
मनोज: सही कहा आपने मां..! आपकी जिम्मेदारी मेरी ही है… पर क्या यह जिम्मेदारी मैंने खुद ली है…? क्या मैंने आपको मुझे जन्म देने के लिए कहा था..? या फिर मैंने आप लोगों को मेरे ऊपर खर्च करने को कहा था..? नहीं मां नहीं.. आप लोग माता पिता बनना चाहते थे, इसलिए मेरा जन्म हुआ… आप लोग मेरे द्वारा अपने अधूरे सपने को पूरा करना चाहते थे, इसलिए मेरे ऊपर खर्च करते गए और अपने अरमान मुझ पर थोपते चले गए… कभी जानने की कोशिश तक नहीं की कि मैं क्या चाहता हूं..? या मेरे भी कोई अरमान हो सकते हैं..?
बचपन से आज तक, जब भी मैं आप लोगों से अपने मन की कहता… आप लोग कहते, क्या इसी दिन के लिए तुझे बड़ा किया है…? आज तक मुझे यह समझ नहीं आया कि किस दिन के लिए आप लोगों ने मुझे बड़ा किया हैं..? कभी-कभी तो आप लोगों की बातें सुनकर ऐसा लगता है, आप लोगों ने मुझे जन्म देकर, मुझ पर एहसान किया है, उसी का किराया ले रहे हैं…
अगर बच्चे मां बाप की सेवा ना करें तो, लोग उन्हें काफी भला बुरा कहते हैं…. पर क्या कभी किसी ने यह सोचा है, कि बच्चों को भी ऐसा लग सकता है कि, उसके माता-पिता बस उसे अपने सपने पूरे करवाने के लिए ही बड़ा कर रहे हैं…
मां..! बच्चे को जन्म देकर बड़ा करना, हर माता-पिता की जिम्मेदारी होती है… पर बच्चा अपने माता-पिता की जिम्मेदारी उठाएं, उसकी वजह माता-पिता के लिए उसका प्यार होना चाहिए… ना कि कोई एहसान का किराया…
आज पापा हमारे बीच नहीं है… अगर वह होते तो शायद, मैं आप लोगों के साथ नहीं रहता… आप अकेली है और मुझे आपकी चिंता है… इसलिए हम साथ रहते हैं… पर मैं यह आपके द्वारा मेरे ऊपर किए गए एहसान का किराया नहीं है… हां पर प्यार भी नहीं है… और इसकी वजह कहीं ना कहीं आप और पापा ही है…
शारदा जी निरुत्तर खड़ी मनोज की बातें सुन रही थी… यह जो मनोज के मुंह से शब्द निकल रहे थे आज, वह शब्द नहीं बल्कि सालों से जमी ज्वालामुखी है, जो आज जाकर फटी है…
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दोस्तों.. माता-पिता का आदर और सम्मान करना प्रभु सेवा माना गया है.. पर आजकल के इस लेनदेन वाली दुनिया में हर रिश्ता लेनदेन का ही बनकर रह गया है… जहां हर कोई अपने स्वार्थ के लिए एक दूसरे से रिश्ता निभा रहा है…. कहीं माता पिता बच्चों को अपने बुढ़ापे का सहारा मानकर, उनकी परवरिश कर रहे हैं… तो कहीं बच्चे अपने माता-पिता से अपनी जायदाद का हिस्सा पाने के लिए मीठे बोल बोल रहे हैं… जो अगर यह स्वार्थ भी खत्म हो जाए, तो इंसान एक रोबोट ही बनकर रह जाए… जिसके अंदर कोई भावनाएं नहीं हैं…. मैं नहीं कहती सभी ऐसे ही है… पर आजकल ऐसे ही देखने को मिलते हैं… शायद आप भी मेरी बात से सहमत होंगे..?
इसलिए बच्चों को परवरिश दे… नाकि एहसान… उन्हें प्यार और अपनापन दे…नाकि ताने और शिकायत… और सबसे बड़ी बात, एक समय तक ही उनके लिए फैसले ले… फिर उसके बाद उन्हें अपने फैसले और बात रखने की छूट दे… और उस पल उसका सहारा बने… नाकी रुकावट… वह अगर गलत है तो, सही दिशा दिखाएं और सही है तो, प्रोत्साहन दे… फिर देखिएगा.. इस दुनिया से लेनदेन का किस्सा ही खत्म हो जाएगा और रिश्ते प्यार और अपनापन से निभाए जाएंगे…
यह मेरे अपने विचार है… मेरा इरादा किसी के भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं है… अगर फिर भी मेरी बातों से किसी का दिल दुखा हो तो, उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं
धन्यवाद
#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल
रचना 2
स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित
रोनिता कुंडू
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