अग्नि परीक्षा – ऋतु गर्ग

अग्नि परीक्षा लक्ष्मी ने आँखों के सपने लिए हुए ससुराल की दहलीज पर कदम रखा तो उसे बहुत सुखद का अहसास हुआ।

उसे यह घर अपना लगने लगा।

   क्योंकि मायके में हर वक्त यह सुनते सुनते ऊब चुकी थी की एक दिन तुम्हें तो अपने घर जाना है।

 यह वाक्य लक्ष्मी के दिन मन को बहुत आहत करते! मगर वह किसी से कुछ भी न कहती और चुपचाप अपने काम में मन लगाने का प्रयत्न करती।

जैसे लक्ष्मी का रिश्ता राजेश के साथ पक्का हुआ तो उसने भी अपनी आंखो में सपने सजाने शुरू कर दिए।

 उसे तो सिर्फ यह पता था कि अब उसे भी अपना घर मिल जाएगा।

 वह अपरिचित थी कि कैसा होता है ससुराल कैसे उन्हें उसे सभी के साथ सामाजस्य बैठाना है।

 वह एकल परिवार में रहते हुए अपना जीवन जी रही थी 

जहाँ पर उसका कोई मार्गदर्शक नहीं था। सौतेली माँ को तो खुद से ही फुर्सत नहीं मिलती थीं। वह कभी -2 ही लक्ष्मी से बात करने का समय निकाल पाती थी।

     माँ का अधिक साथ न मिलने से घर का रसोई का काम भी ज्यादा नहीं सीख पाई थी।

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    कुछ दिन तो ससुरात में सभी ठिक-ठाक चलता रहा। सासु मां ने भी भरपूर प्यार जताने का प्रयास किया लेकिन उनकी आवाज़ की कठोरता किसी के भी मन पर कोई सकारात्मक  प्रभाव नहीं डाल सकी।

  लक्ष्मी ने ससुराल में आते ही सभी कार्यो को पूरे मन से समझने की कौशिश की।        लेकिन यह क्यार उसके काम में हमेशा कुछ न कुछ नुक्स ननद और साम के द्वारा निकाला जाता।

 वह बहुत आहत होती मगर मुँह से कुछ न कहती।

    जैसे लक्ष्मी ने रसोई में दोपहर का खाना तैयार करके रखा और अपने कमरे की सफाई करने के लिए जाने लगी तो

 सास की कर्कस आवाज को सुन वह जड़ सी हो गई। 

कहाँ जा रही हो महारानी ?

      अब कमरे में जाकर सो मत जाना।

 लक्ष्‌मी मन ही मन सोचने लगी ससुर जी तो ऐसे नहीं है वह हमेशा कितना रख्यात रखते हैं।

    जब भी दुकान से घर आएंगे तो बहु की मनपसंद का कुछ खाने का सामान अवश्य ताते और सुबह ही पूछ कर जाते कि बेटा आज क्या लाना है।

 ससुर के प्यार भरे स्वभाव के कारण वह स्वयं का दुःख भूल जाती और सारा वक्त घर के काम काज में बिता देती।

सास और ननद ससुर को इस बात से भी ताने देती कि हमारी परवाह किसी को कहां है यह तो बहुत ही अच्छी लगेगी।

    कभी सास का कभी देवर नंद को ख्याल रखते हुए समय का ध्यान ही न रहता।

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उसे अपनी तो परवाह ही न रहती।

लेकिन पति के आने से पहले खुद को संवार कर ठिक करना जानती थीं।

 सास नंद के ताने उतहानों से अंदर ही अंदर क्षत्र विज्ञत होती जा रही थी।

    वह अपने मन की बात अपने पति से भी नहीं कह पाती थी। 

    मन ही मन सोचती क्या खुद का घर ऐसा होता है।

उसे कहीं पर भी अपनापन दिखाई न देता।

    पति से कुछ कहने की कोशिश करती उससे पहले ही पति द्वारा प्रश्न कर दिया जाता कि तुम दिन भर सभी का ख्याल तो रखती हो ना मैं तो काम पर चला जाता है सभी जिम्मेदारी  तुम्हें ही संभालनी है। 

तुम घर की बड़ी बहू हो।

    लक्ष्मी मन ही मन सोचती रहती कि मैं इस घर की बहु हूँ क्या मुझे यहाँ के लोग बेटी का अधिकार कभी न देंगे।

 अब मैं कहाँ जाऊँ?

   सभी से तो यही कहा था कि ससुराल ही तुम्हारा घर है। 

  लक्ष्मी को रह रहकर पापा के घर की याद सताने लगती।

लक्ष्मी को दिन भर सांस लेने की भी फुर्सत न मिलती।

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 सास जो कि थोड़ा बहुत घर का काम करती थी उसने उन्होंने भी लक्ष्मी के आने के बाद धिरे धिरे घर का का काम करना

छोड़ दिया। 

क्या तो वह दिन भर टी वी के सामने समय बर्बाद करती या फिर माला हाथ में लेकर जपने का ढोंग करती। 

किसी की भी हिम्मत सासु मां से कुछ पूछने की न होती।

 उनकी जर्कश आवाज से सभी को डर लगता था। 

वो जो बोलती पत्थर की लकीर हो जाती।

    यदि घर में सिलेंडर खत्म हो जाता तो लक्ष्मी को डांट पड़ती तुम देखकर नहीं चलाती हो कितना जल्दी खत्म हो गया। अकारण ही उस पर कभी कपड़े इस्तरी नहीं किए कभी सब्जी कैसे कम हो गई अकारण ही सभी उस पर हावी रहने लगे।

     उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसका दोष क्या है।

 यहां सभी लोग मुझसे क्या चाहते हैं।

 लक्ष्मी मध्यमवर्गीय परिवार से थी मगर वहाँ संतोष से जीवन जी रहे थे।

  क्यों बहू को ही हमेशा अग्नि परिक्षा से गुजरना होता है।

 क्यों घर के सदस्य बहु को घर का सदस्य नहीं मानना चाहते हर पल क्यों अंगारों पर चलने को कहा जाता है।

   क्या उसे इस प्रकार परिपक्व बनाया जा रहा है।

 या फिर कोमल मन को छलनी किया जा रहा है ।

लेकिन यह क्या?????

 एक दिन वह स्वयं को सज संवार कर तैयार कर लेती है ।

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अग्नि परिक्षा के लिए ओर सदा के लिए बिदा हो जाती है ।

घर परिवार, समाज की दुर्दशा पर चिंता करते करते और एक प्रश्न चिन्ह छोड़ जाती है सदा के लिए। 

आखिर कब तक बहु को देनी होगी 

अग्नि परिक्षा??

ऋतु गर्ग, सिलिगुड़ी पश्चिम बंगाल

स्वराचित मौलिक रचना

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