बड़ा भाई पिता जैसा ही होता है – प्रीती सक्सेना

पतिदेव का जन्म दिन है, काफी लोग आने वाले है, मैं माया जल्दी जल्दी तैयारी करती जा रही हूं, बेटी को नाश्ता करा दिया, मेरा छोटा नन्हा शायद भूखा है, इसलिए दादी की गोद में मचल रहा है, दूध पिला ही देती हूं, वरना सम्भालना मुश्किल होगा, लाइए मम्मी सनी को मुझे दे दीजिए, बेटे को लेकर बेडरूम में आई, और फीड कराने लगी, जैसे ही सनी ने दूध पीना शुरू किया, दर्द की जोरदार लहर उठी, तड़प गई मै, लगा ,

काफी देर से नहीं पिलाया, इसलिए ऐसा हुआ होगा, दर्द हो ही रहा था, पर भूलकर शाम की पार्टी के इंतजाम में लग गई।

सुबह उठते ही भाभी जो Dr हैं, फोन लगाया, सारी बाते बताई, भाभी ने कहा , सबसे पहले जाकर Dr को दिखाओ, मैं पति के साथ Dr Ko दिखाने गई , ढेर सारे टैस्ट के बाद वही रिपोर्ट आई जिसके लिए हर कोई डरा हुआ था

ब्रेस्ट कैंसर, मैं स्तब्ध, मेरे छोटे छोटे दो बच्चे, नई जिंदगी की शुरुआत हुए, कुछ साल ही तो हुए हैं,

ईश्वर इतना अन्यायी कैसे हो सकते हैं, बिलख बिलख कर रो पड़ी मैं, पति सास ससुर सब धीरज दिला रहे, पर मैं अपने आप को संभालने में असफल हो रही।

सुबह दरवाजे की घंटी बजी दरवाजे पर मेरे दादा, मेरे सबसे बड़े भाई को देखकर मेरा आंसुओ का रुका हुआ बांध मानो टूट पड़ा, मैं उनके सीने से लगकर बहुत रोई, दादा बिल्कुल सामान्य, बोले एक Dr की बेटी हो तुम और एक Dr की बहन, इतनी कमजोर कैसे हो गई बेटा,


सच में दादा को देखकर बहुत शक्ति सी आ गई मुझमें, दादा ने सबसे बात करके मुझे इंदौर ले जाने की बात की ओर शाम की फ्लाइट से हम इन्दौर आ गए,

फिर सिलसिला शुरु हुआ मेरे ट्रीटमेंट का, ऑपरेशन, कीमो थेरपी, बहुत बहुत तकलीफ, पर मेरा परिवार स्तंभ की तरह मेरे साथ खडा रहा, पति आते, कुछ दिन रहते, हिम्मत दिलाते, फिर चले जाते, जॉब कि जिम्मेदारी भी निभानी थी।

 मेरे तीनो भाई अपनी इकलौती बहन के लिए हर संभव कोशिश कर रहे, पिता का साया उठ चुका था, मेरे भाई ही मेरे पिता तुल्य रहे, कीमो थेरपी के कारण मेरे सिर के बाल सब झड़ गए दादा ने शानदार विग बनवाकर मुझे गिफ्ट किया जो बिल्कुल मेरे बालों जैसा ही था। हर समय मुझे व्यस्त रखते, मेरे कुछ सोचने से पहले ही जैसे उन्हें सब पता चल जाता।

अभी और एक दुःख बाकी था , भोपाल से इंदौर टैक्सी से आते समय मेरा तीसरे no के भाई का भीषण एक्सीडेंट, और उसमे भाई का न बच पाना, तोड़ गया हम सबको, उस विषम परिस्थिति में भी दादा हम सबके लिऐ ढाल बनकर खड़े रहे, सबको संभालते रहे।

मेरी तबियत और बिगड़ती जा रही थी, कैंसर ने पूरे शरीर को गिरफ्त में ले लिया था, मैं पूरी तरह निराश हो चुकी थी, बस दादा ही थे जो अभी भी उम्मीद और आशा के साथ मेरा मनोबल बढ़ाए थे । मेरा खाना पीना सब बंद हो चुका था, मेरी जिद के कारण मुंह से दाल चावल पतला खिलाते और वो पेट में लगी नली से निकल जाता, मेरे दादा ने वो सब कुछ किया जो एक पिता अपनी बेटी के लिए करता,  मेरी यही कामना थी मुझे अगले जन्म में भी अपने दादा की ही बेटी बनना है क्योंकी वो मेरे पिता से भी बढ़कर हैं।

मैं 3 अक्टूबर 2003 को इस दुनिया से जा चुकी हूं, मेरी ये कहानी मेरी बुआ की बेटी प्रीती दीदी के माध्यम से आप तक पहुंचा रही हूं, ईश्वर से एक बार पुनः मांगना चाहती हूं, अगला जनम मुझे मेरे भाई, मेरे दादा के घर ही देना , वही मेरे पिता, पिता से भी बढ़कर हैं

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