बहू – डाॅ संजु झा

अपने एकलौते बेटे की चिन्ता में उमाजी के दिल और दिमाग में शून्यता गहराती जा रही थी।उनका मन इतना उद्वेलित था कि कोई भी काम नहीं कर पा रही थीं।अचानक से फोन की घंटी उनके मन के सन्नाटे को चीरते हुए बज उठती है।घंटी की आवाज सुनकर उनकी बहू रोमा कहती है-” माँजी!फोन उठा लेना।मैं बाथरूम में हूँ।”

उमाजी लपककर फोन उठा लेती हैं।ऊधर की आवाजें सुनकर उनकी बूढ़ी आँखों में चमक आ जाती है।वह मन-ही-मन बहू का आभार व्यक्त करते हुए  कहती हैं -” हे ईश्वर !मेरे जैसी समझदार बहू  देने के लिए  आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!

 बहू रोमा अपने भींगी बालों को पोंछते हुए बाथरूम से निकलती है और सामने सासू माँ को देखकर पूछ बैठती है-“माँ जी!किसका फोन था?”

उमाजी की आँखें खुशी से गीली हैं।जबाव देते हुए उन्होंने कहा-“बहू! जल्दी से तैयार  हो जाओ। नशा -मुक्ति केन्द्र से फोन आया है।उनलोगों ने गगन को वापस ले जाने को कहा है!”

खुशी से दोनों सास-बहू की आँखें सावन की बारिश की भाँति बरसने लगती हैं।दोनों एक-दूसरे से लिपट जाती हैं।

रोमा की यादों में गुजरा हुआ  वक्त आकर मानो ठहर-सा जाता है।पिछले कुछ  सालों से  उसकी जिन्दगी में कितने तूफान और  झंझावात आएँ,जो उसकी सुखी गृहस्थी को तिनका-तिनका बिखेरने लगा।वो तो सासू माँ का ही प्यार  और स्नेह  था,जिसके कारण उसने एक बार  फिर  से गगन को सुधरने का मौका दिया था और उसे नशा-मुक्ति केन्द्र  लेकर  गई थी।

उमा जी ने उसकी सोच पर विराम लगाते हुए कहा -” बहू! तुम्हारे धैर्य और हिम्मत के कारण ही  मेरा बेटा एक बार फिर से ठीक  हो गया है।आज मैं भी तुम्हारे साथ गगन को लाने नशा-मुक्ति केन्द्र चलूँगी।”

सास की बातों से सहमत होते हुए  रोमा ने कहा -“माँ जी!जल्दी से तैयार  हो जाईए।हम सब गगन को लाने चलेंगे।”

दोनों सास-बहू  तैयार होकर बेसब्री में समय से पहले ही नशा -मुक्ति केन्द्र  पहुँच जाती हैं।वहाँ का स्टाॅफ उन्हें कुछ देर  इंतजार करने को कहता है।उमाजी पोते को लेकर  घुमाने लगती हैं।रोमा आँखें बंदकर एक बार  फिर  से अतीत की यादों में विचरण करने लगती है। रोमा और गगन दोनों ने एक साथ ही मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी।पढ़ाई के दौरान  ही दोनों एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगें,परन्तु दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि बिल्कुल अलग थी।गगन सामान्य परिवार का लड़का था।उसके पिता का देहांत  बचपन में ही हो गया था। बस एक माँ थी,जिनकी आँखों में सदैव बेटे के उज्ज्वल  भविष्य  की कामना थी।इसके विपरीत  रोमा का परिवार संपन्न था।वह दो भाईयों की एकलौती बहन थी।गगन से शादी की बात सुनकर  उसके परिवारवाले काफी नाराज  हुए,परन्तु रोमा की जिद्द के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा।आखिर परिवार की सहमति से दोनों की शादी धूम-धाम से हो गई। 




शादी के कुछ दिनों बाद  दोनों ने एक ही दफ्तर में नौकरी ज्वाइन कर ली।आरंभिक दिनों में उनकी जिन्दगी में खुबसूरत पवन की बयार थी,खुशियों का झोंका था।रोमा को उमा जी के रुप में एक प्यारी-सी माँ मिली थीं,जिनकी आँखों में दुआओं का अथाह समंदर उमड़ता रहता था।उमा जी को भी रोमा के रुप में एक प्यारी-सी बेटी मिल गई थी। रोमा जैसी बहू पाकर वे खुद को भाग्यशाली समझती थीं।सास-बहू का बड़ा ही प्यारा-सा रिश्ता था।लोग उनके सम्बन्ध पर मन-ही-मन जलते थे।शादी के दो साल बाद रोमा ने एक प्यारे -से बेटे को जन्म दिया।घर में सासू माँ होने के कारण उसे बच्चे की कोई चिन्ता नहीं रहती,परन्तु दफ्तर से आने के बाद उसका अधिकांश समय अपने बच्चे संग ही व्यतीत होता।इन सब बातों से उसका पति गगन खुद को उपेक्षित समझने लगा।कुछ दिनों पहले जहाँ उनके दाम्पत्य-जीवन में खुशियों की लाली थी,पलक झपकते ही उसे दुखों की कालिमा ने निकलना शुरु कर दिया।

गगन अब जान-बूझकर दफ्तर  से देरी से आने लगा।दोस्तों के साथ बैठकर शराब पीने लगा।शुरु में बस एक-दो पैग ही पीकर घर आता था,जिसका पता न तो रोमा को चलता,न ही उसकी माँ को ही।रोमा अपनी कर्मठता और कार्यकुशलता से दफ्तर  में काफी लोकप्रिय थी।दफ्तर  में सभी उसकी तारीफें करतें।एक ही दफ्तर होने के कारण  रोमा की तारीफों से  गगन के मन में ईर्ष्या-भावना जाग्रत होने लगी।गगन खुद को घर और बाहर दोनों जगह उपेक्षित महसूस करने लगा।धीरे-धीरे उसका पुरुषोचित दंभ सिर उठाने लगा।

दोनों की शादी और नौकरी के चार वर्ष  बीत चुके थे।उस दिन दफ्तर  में  तरक्की (प्रमोशन) लिस्ट निकलनेवाली थी।रोमा अपने केबिन  में काम कर रही थी,उसी समय उसके बाॅस  ने उसे बधाई  देते हुए कहा-” रोमा!बहुत-बहुत बधाई!तुम अब वरिष्ठ प्रबंधक (सीनियर मैनेजर)बन गई हो!”

रोमा भी खुशी से बाॅस से हाथ मिलाते हुए  धन्यवाद कहती है।

गगन प्रमोशन लिस्ट में अपना नाम न देखकर पहले से ही नाराज था।अचानक उसकी नजर बाॅस के साथ हँसते हुए  रोमा पर चली जाती है।उसके तन-बदन में आग लग जाती है।वह ईर्ष्या और गुस्से से हारे हुए  जुआरी की भाँति सिर नीचा कर दफ्तर  से बाहर  निकल जाता है।उसका शरीर  ईर्ष्या की अग्नि में झुलस रहा था।रोमा को सभी स्टाॅफ बधाईयाँ देते हैं।अचानक से उसे ख्याल  आता है कि  अभी तक गगन ने उसे बधाई नहीं दी है!उसकी नजरें चारों तरफ गगन को ढ़ूँढ़ती  हैं,परन्तु गगन का कहीं अता-पता नहीं  दिखता है।उसे इतना एहसास  तो था कि प्रमोशन  नहीं होने से गगन दुखी है,परन्तु इस बात  का उसे आभास तक नहीं था कि उसकी तारीफ  और तरक्की से गगन के मन में हीन-भावना घर कर रही है या उसका पुरुषोचित दंभ पत्नी की तरक्की को पचा नहीं पा रहा है!

रोमा दफ्तर  से घर आती है।सासू  माँ के हाथों में मिठाई का डिब्बा पकड़ाते हुए  कहती है-“माँजी!इस बार गगन का प्रमोशन  नहीं हुआ। काफी दुखी है।”

उमा जी -बहू!कोई  बात नहीं।अगली बार  उसका भी प्रमोशन हो जाएगा।”

काफी रात बीत चुकी है,गगन अभी तक घर नहीं लौटा है।रोमा की सासू माँ तो बच्चे के साथ सो गईं है,परन्तु उसकी आँखों में नींद नहीं है।उसे समझ में नहीं आता है कि अपने प्रमोशन की वह खुशी मनाएँ या मातम!उसकी सोच पर काॅलबेल की घंटी से विराम लग जाता है।पूरे नशे में धुत गगन घर में दाखिल होता है।रोमा उसे इस हालत में देखकर गुस्से से कहती है-“गगन!मेरी तरक्की से तुम इतने अधिक जलने लगे कि तुमने खुद को शराब में ही डुबो दी?”




गगन ठिठाई से जबाव देते हुए कहता है-“तुम्हारा प्रमोशन हुआ है तो क्या मैं खुशी से नाचूँ?तुम्हें जिससे मन हो हाथ मिलाओ,जिससे मन हो गले मिलो,मुझे उससे क्या?”

उस समय रोमा पति से बहस न कर चुपचाप  सोने चली जाती है।

धीरे-धीरे उनके दाम्पत्य-जीवन में कटूता बढ़ती जा रही थी।रोमा की सास से बेटे की हरकत छुपी हुई  नहीं थी।वे बार-बार अकेले में गगन को समझाने की कोशिश करतीं,परन्तु उसकी आँखों पर तो ईर्ष्या और शक की पट्टी चढ़ चुकी थी।एक दिन आवेश में आकर गगन ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया।उसने अपने दोस्त के साथ मिलकर बिजनेस शुरु किया,जो असफल ही रहा।

अब हताशा में गगन जिन्दगी से निराश हो चुका था,उसने खुद को शराब के नशे में डुबो दिया।उमाजी बेबस -सी बेटे को तिल-तिलकर मरते हुए देख रहीं थीं।एक दिन उनके सब्र का बाँध टूट पड़ा और उन्होंने बेटे को खूब फटकार लगाई। बेटा भी शराब के नशे में अपना आपा खो चुका और माँ को अनाप-शनाप बनने लगा।बेटे के दुर्व्यवहार से  दुखी होकर माँ की आँखों से आँसू अनवरत झरने लगें।उसी समय रोमा दफ्तर से घर आती है और माँ के प्रति गगन के दुर्व्यवहार से काफी दुखी होकर उसे डाँटती है।गगन भी नशे में रोमा पर हाथ उठा देता है।उस दिन गगन के उठे हुए  हाथ  ने न केवल उसके आत्मसम्मान  को ठेस पहुँचाया,बल्कि उसके भरोसे को भी तार-तार कर दिया।उसकी निष्ठा और प्रेम का ऐसा प्रतिफल मिलेगा,ऐसा उसने कभी सोचा भी नहीं था।उसकी आँखों में आँसू आ गए। मन में जमा दर्द अब नासूर  बन चुका था।अब और घुटन उसे बर्दाश्त नहीं थी।उसी समय वह भरे मन से बेटे को लेकर घर छोड़ने का निर्णय करती है।उसकी सास कातर वाणी में उसे समझाते हुए कहती है-बहू! समस्या से पलायन किसी बात का हल नहीं है।तुम तो पढ़ी-लिखी हो।किसी प्रकार  मेरे बेटे की जिन्दगी और अपने घर को बर्बाद होने से बचा लो।मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ।”

अगले दिन रोमा नशा -मुक्ति केन्द्र  का पता लगाती है और गगन को उसमें भर्ती करवाती है।तीन महीने के कठिन  इलाज के बाद गगन धीरे-धीरे ठीक  होने लगता है और उसका नशा बिल्कुल छूट जाता है।समय के साथ दुख के बादल छँट गए और आज उसे घर वापस ले जाने आई है।

उसी समय अस्पताल की नर्स  उसके सामने गगन को लाती है।सामने गगन को देखकर उसकी सोच  पर विराम  लग जाता है।गगन को  ठीक देखकर  उमाजी की आँखों से आँसुओं का समंदर उमड़ पड़ता है,शायद बेटे के पुनर्जीवन के खुशी के आँसू थे।

माँ , पत्नी और बेटा को देखकर गगन की आँखें भर गईं और उसकी आवाज भर्रा गई। उसकी आवाज  में बेचैनी और पश्चाताप है।वह रुँधे गले से पत्नी और माँ से माफी माँगता है।उसके सिर पर हाथ रखकर  उमाजी कहती हैं – बेटा! मैं बहुत  भाग्यशाली हूँ कि मुझे रोमा जैसी बहू मिली है।इसने मेरे बुढ़ापे के सूरज को अस्त होने से बचा लिया और तुम्हारा आशियाना तिनका-तिनका बिखेरने से बच गया भगवान ऐसी समझदार बहू सब को दें।”

सचमुच  समझदार  लड़कियाँ आवेश में न आकर अपने घर को टूटने से बचा लेती हैं।प्रेमचन्द की कहानी ‘बड़े घर की बेटी ‘ की आनन्दी ने भी अपनी सूझ-बूझ से घर टूटने से बचा लिया था।

समाप्त। 

#बहु 

लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)

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